Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, यती विशेष अर्थात् सन्यासी यह चारों आश्रम पृथक पृथक गृहस्थ ही से उत्पन्न हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास ये चारों अलग - अलग आश्रम गृहस्थाश्रम से ही उत्पन्न हुए हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ब्रहम्चारी, गृहस्थी वानप्रस्थ और संन्यासी। यह चार आश्रम पृथक्-पृथक् गृहस्थ से ही निकले है।