Manu Smriti
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ध्यानिकं सर्वं एवैतद्यदेतदभिशब्दितम् ।न ह्यनध्यात्मवित्कश्चित्क्रियाफलं उपाश्नुते ।।6/82

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सन्तानादि के ¬प्रतिबन्धन को तोड़ना, मानपमान का विचार न होना आदि बातें जीवात्मा को परमात्मा के ध्यान से प्राप्त होती हैं तथा अनात्मज्ञानी (अर्थात् आत्मा को न जानने वाला) सांसारिक दुःखों से विमुक्त होकर मुक्ति लाभ नहीं कर सकता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह जो कुछ पहले कहा गया है यह सब ही ध्यानयोग के द्वारा सिद्ध होने वाला है अध्यात्मज्ञान से रहित कोई भी व्यक्ति उपर्युक्त कर्मों के फल को नहीं पा सकता ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यत एतत् अभिशब्दितम्) यह जो कुछ कहा गया, (तत् सर्वम् एव) वह सब ही (ध्यानिकम्) ध्यान से सम्बन्ध रखता है। (अनध्यात्मवित्) जो आत्मिक ज्ञान नहीं रखता या जो ध्यान नहीं करता, (कः चित्) वह कोई भी (क्रियाफलं न उपाश्नुते) किसी के काम के फल को नही पाता।
 
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