Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस विधि से धीरे धीरे सब प्रकार के कर्मों का परित्याग कर क्रोध लोभ मोहादि से विमुक्त होकर ब्रह्म (परमात्मा) के स्वरूप में निमग्न हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस विधि से धीरे - धीरे सब संग से हुए, दोषों को छोड़ के सब हर्ष - शोकादि द्वन्द्वों से विशेषकर निर्मुक्त होके विद्वान् संन्यासी ब्रह्म ही में स्थिर होता है ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस विधि से धीरे-धीरे सब संगों को छोड़कर और हर्ष-शो आदि सब द्वंद्वों से विशेष कर निर्मुक्त होकर संन्यासी ब्रह्म ही में स्थिर होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अपने विधिना) इस विधि से (सर्वान् संगान् शनैः शनैः त्यक्वा) सब संसर्गो को धीरे धीरे छोडकर (सव द्वन्द्व विनिर्मुक्तः) राग-दोष आदि सब द्वन्द्वों से मुक्त होकर (ब्रहम्णि एव अवतिष्ठते) ब्रह्म में ही स्थित हो जाता है।