Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सब भूतों से निर्वैर इन्द्रियों के विषयों का त्याग वेदोक्त कर्म और अत्युग्र तपश्चरण से इस संसार में मोक्षपद को पूर्वोक्त संन्यासी ही सिद्ध कर और करा सकते हैं, अन्य नहीं ।
(स० प्र० पंच्चम समु०)
टिप्पणी :
‘‘और जो निर्वेर, इन्द्रियों के विषयों के बंधन से पृथक्, वैदिक कर्माचरणों और प्राणायाम सत्यभाषणादि उत्तम उग्र कर्मों से सहित संन्यासी लोग होते हैं, वे इसी जन्म इसी वर्तमान समय में परमेश्वर की प्राप्ति रूप पद को प्राप्त होते हैं, उनका संन्यास लेना सफल और धन्यवाद के योग्य है ।’’
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसके विपरीत जो संन्यासी सब भूतों से निर्वैर, इन्द्रियों के विषयों से पृथक्, वैदिक कर्माचरणों तथा प्राणायाम सत्य-भाषणादि उत्तम उग्र कर्मों से युक्त होते हैं, वे इसी जन्म में परमेश्वर की प्राप्तिरूप पद को प्राप्त होते हैं। उन का संन्यास लेना सफल और धन्यवाद के योग्य है।