Manu Smriti
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उच्चावचेषु भूतेषु दुर्ज्ञेयां अकृतात्मभिः ।ध्यानयोगेन संपश्येद्गतिं अस्यान्तरात्मनः ।।6/73

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
बड़े छोटे प्राणी और अप्राणियों में जो अशुद्धात्माओं से देखने के योग्य नहीं है उस अन्तर्यामी परमात्मा की गति अर्थात् प्राप्ति को ध्यान योग से ही संन्यासी देखा करे । (सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
बड़े-छोटे प्राणी-अप्राणियों के भीतर इस अन्तर्यामी परमात्मा की गति को संन्यासी ध्यानयोग से सम्यक्ता देखा करे, जो कि अशुद्धात्माओं से देखने के अयोग्य है।
 
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