Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्राणायाम द्वारा इच्छा आदि दोषों को भस्मी-भूत कर देना चाहिये, परमात्मा में चित्तवृत्ति लगाकर पाप को इन्द्रिय-निग्रह (वश में) करके विषयों का ध्यान द्वारा लोभ, मोह, क्रोधादि को दूर कर देना चाहिये, तथा अनीश्वर वाद, अर्थात् ईश्वर से पृथक्ता कराने वाले काय्र्य व तर्क को त्याग देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इसलिए संन्यासी लोग प्राणायामों से दोषों की धारणाओं से अन्तःकरण के मैल को प्रत्याहार से संग से हुए दोषों और ध्यान से अविद्या, पक्षपात आदि अनीश्वरता के दोषों को छुड़ाके पक्षपात रहित आदि ईश्वर के गुणों को धारण कर सब दोषों को भस्म कर देवे ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
टिप्पणी :
‘‘इसलिए संन्यासी लोग नित्यप्रति प्राणायामों से आत्मा, अन्तःकरण और इन्द्रियों के दोष, धारणाओं से पाप, प्रत्याहार से संगदोष, ध्यान से अनीश्वर के गुणों अर्थात् हर्ष, शोक और अविद्यादि जीव के दोषों को भस्मीभूत करें ।’’
(स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए संन्यासी प्राणायामों से इन्द्रिय-दोषों को, धारणाओं से अन्तःकरण के मैल को, प्रत्याहार से संसर्ग-जन्य दोषों को, और ध्यान से अविद्यादि अनीश्वरता के दोषों को भस्म करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
प्राणाहार से दोषो को जला दे। धारणाओं से पाप को, प्रत्याहार से संसर्ग अर्थात् राग को, ध्यान से नास्तिकपन को जला दें (प्रायायाम, धारण, प्र प्रत्याहार तथा ध्यान योग के है)