Manu Smriti
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अवेक्षेत गतीर्नॄणां कर्मदोषसमुद्भवाः ।निरये चैव पतनं यातनाश्च यमक्षये ।।6/61

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कर्मों के दोष न होने वाली मनुष्यों की बुरी गतियों और कष्टों का भोगना तथा मृत्यु के समय होने वाली पीड़ाओं को विचारे और विचार कर मुक्ति के लिए प्रयत्न करे ।
 
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