Manu Smriti
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इन्द्रियाणां निरोधेन रागद्वेशक्षयेण च ।अहिंसया च भूतानां अमृतत्वाय कल्पते ।।6/60

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोक राग, द्वेष को छोड़ और सब प्राणियों से निर्वैर वत्र्तकर मोक्ष के लिए सामथ्र्य बढ़ाया करे । (स० प्र० पंच्चम समु०)
टिप्पणी :
‘‘जो संन्यासी बुरे कामों से इन्द्रियों के निरोध, राग - द्वेषादि दोषों के क्षर और निर्वैरता से सब प्राणियों का कल्याण करता है, वह मोक्ष को प्राप्त होता है । ’’ (सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
विषयों से इन्द्रियों के रोकने, रोग द्वेषादि दोषों के क्षय करने, तथा निर्वैर होकर सब प्राणियों से वर्तने से संन्यासी मोक्ष प्राप्ति के लिए सामर्थ्यवान् होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन्द्रियों के निरोध से राग-द्वेष के क्षय से, और। अहिंसा से प्राणियों को अमृतत्व अर्थात् मोक्ष की योगयता होती है।
 
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