Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
केवल एक काल (समय) ही भिक्षा याचन करें, अधिक भिक्षा ग्रहण करने से सन्यासी सांसारिक विषयों में लिप्त होकर अपने सन्यासनामी व्रत को तोड़ देता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
संन्यासी एक ही समय भिक्षा मांगे भिक्षा के अधिक विस्तार अर्थात् लालच में न पड़े क्यों कि भिक्षा के लालच में या स्वाद में मन लगाने वाला संन्यासी विषयों में भी फंस जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
संन्यासी को चाहिए कि वह प्राणरक्षार्थ दिन में केवल एक वार ही भिक्षाचरण करे और भिक्षा का बहुत विस्तार न करे। क्योंकि बहुत भिक्षा खाने में आसक्त संन्यासी विषयों में भी आसक्त हो जाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
भैक्षम् एककालं चरेत्) एक बार भिक्षा माँगे , (विस्तरे न प्रसज्जेत) बहुत भिक्षा का लोभ न करे, (भैक्षे प्रसक्तः यतिः हि विषयेषु अपि सज्जति) जो सन्यासी भिक्षा में लालच करता है वह विषयों में फँस जाता है।