Manu Smriti
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अगारादभिनिष्क्रान्तः पवित्रोपचितो मुनिः ।समुपोढेषु कामेषु निरपेक्षः परिव्रजेत् ।।6/41

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
संसार त्यागी तथा स्नानादि से शुद्ध हो विचार करता हुआ और दूसरे के दिये हुए अन्नादि में अनिच्छुक हो सन्यास को धारण करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जब सब कामों को जीत लेवे और उनकी अपेक्षा न रहे पवित्रात्मा और पवित्रान्तःकरण मननशील हो जावे तभी गृहाश्रम से निकलकर संन्यासाश्रम का ग्रहण करे अथवा ब्रह्मचर्य ही से संन्यास का ग्रहण कर लेवे । (सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब समुपस्थित सब कामनाओं को जीत लेने व उनकी अपेक्षा न रहने से मनुष्य पवित्रात्मा किंवा पवित्रान्तःकरण मननशील हो जावे, तभी गृहाश्रम से निकल कर संन्यासाश्रम का ग्रहण करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(आगारात् अभिनिष्क्रान्तः) घर से निकलकर (पवित्रउपचितः) कमण्डलु आदि से युक्त होकर (मुनिः) मुनि (समुपोढेषु कामेषु निरपेक्षः) प्राप्त सुख-साधनों से उदासीन होकर (परिव्रजेत्) विचरे। अर्थात् यदि उसे सुख के साधन प्राप्त हों, तो उनको न भोगे।
 
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