Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
यस्मादण्वपि भूतानां द्विजान्नोत्पद्यते भयम् ।तस्य देहाद्विमुक्तस्य भयं नास्ति कुतश्चन ।।6/40

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस शक्तिसम्पन्न (सामथ्र्यवान्) ब्राह्मण से धर्मात्मा होने के कारण सब भूत (जीव) निडर हों अर्थात् किसी जीव को भय न हो तथा वह सब से प्रेम करता हो उसको आगामी जन्म में कुछ भी भय नहीं रहता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जिस द्विज से प्राणियों को थोड़ा - सा भी भय नहीं होता उसको देह से मुक्त होने पर कहीं भी भय नहीं रहता ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यस्मात् द्विजात्) जिस ब्राह्मण से (भूतानाम्) प्राणियों को (अणु अपि भयं न उत्पद्यते) थोड़ा भी भय उत्पन्न नहीं होता। (देहात् विमुक्तस्य) उसको मरने पर (भयं नास्ति कुतः वन) कहीं भी भय नहीं है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS