Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो वेदाध्ययनी पुरुष सब भूतों (जीवों) को अभय प्रदान कर गृह त्याग करता है अर्थात् सन्यास धारण करता है वह संसार में निडर होकर धर्मोपदेश कर सकता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो पुरूष सब प्राणियों को अभयदान सत्योपदेश देकर गृहाश्रम से ही सन्यास ग्रहण कर लेता है उस ब्रह्मवादी वेदोक्त सत्योपदेशक संन्यासी को मोक्षलोक और सब लोक - लोकान्तर तेजोमय (ज्ञान के प्रकाशमय) हो जाते हैं ।
(स० वि० संन्यासाश्रम सं०)
टिप्पणी :
‘‘जो सब भूत प्राणिमात्र को अभयदान देकर, घर से निकलके संन्यासी होता है उस ब्रह्मवादी अर्थात् परमेश्वर - प्रकाशित वेदोक्त धर्म आदि विद्याओं के उपदेश करने वाले संन्यासी के लिए प्रकाशमय अर्थात् मुक्ति का आनन्दस्वरूप लोक प्राप्त होता है ।’’
(स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो सब प्राणियों को अभयदान देकर घर से निकले संन्यासी हो जाता है, उस ब्रह्मवादों, अर्थात् परमेश्वर से प्रकाशित वेदोक्त धर्मादि विद्याओं को उपदेश करने वाले संन्यासी, के लिए मोक्षलोक की प्राप्ति होती है, जिसमें सभी लोक प्रकाशमय होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः सर्व भूतेभ्यः दत्वा अभयं गृहात् प्रव्रजति) जो सर्वस्व दान करके अभय होकर घर त्याग देता है, (तस्य ब्रह्मवादिनः) उस ब्रह्मवादी के (लोकः तेजोमयं भवन्ति) लोक-परलोक प्रकाशमय हो जाते हैं। अर्थात् वह अन्धकारयुक्त योनियों को नहीं पाता।