Manu Smriti
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आश्रमादाश्रमं गत्वा हुतहोमो जितेन्द्रियः ।भिक्षाबलिपरिश्रान्तः प्रव्रजन्प्रेत्य वर्धते ।।6/34

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जितेन्द्रिय हो यज्ञ को संपूर्ण कर यथाक्रम एक आश्रम के पश्चात् दूसरे आश्रम को ग्रहण कर भिक्षा तथा बलिकर्म से श्रमित थका हुआ सन्यास धारण कर परलोक में ब्रह्म पद को प्राप्त करता है।
 
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