Manu Smriti
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वनेषु च विहृत्यैवं तृतीयं भागं आयुषः ।चतुर्थं आयुषो भागं त्यक्वा सङ्गान्परिव्रजेत् ।।6/33

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस प्रकार आयु का तीसरा भाग वन में व्यतीत करके संग को त्याग कर आयु के चतुर्थ भाग में सन्यास को धारण करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस प्रकार जंगलों में आयु का तीसरा भाग अर्थात् अधिक से अधिक पच्चीस वर्ष अथवा न्यून से न्यून बारह वर्ष तक विहार करके आयु के चैथे भाग अर्थात् सत्तर वर्ष के पश्चात् सब मोह आदि संगों को छोड़कर संन्यासी हो जावे । (सं० वि० सन्यासाश्रम सं०)
टिप्पणी :
‘‘इस प्रकार वन में आयु का तीसरा भाग अर्थात् पचासवें वर्ष से पचहत्तरवें वर्ष पर्यन्त वानप्रस्थ हो के आयु के चैथे भाग में संगों को छोड़के परिव्राट् अर्थात् सन्यासी हो जावे ।’’ (स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार वन में आयु का तीसरा भाग, अर्थात् अधिक से अधिक २५ वर्ष और न्यून से न्यून १२ वर्ष तक, विहार करके आयु के चौथे भाग में, अर्थात् ७५वें वर्ष के पश्चात्, मोहादि सब संगों को छोड़ कर परिव्राट् अर्थात् संन्यासी हो जावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आयुषः तृतीयं भागम्) आयु के तीसरे भाग में (वनेषु च विहृत्य एव) वानप्रस्थाश्रम के कत्र्तव्य को समाप्त करके (आयुषः चतुर्थ भागम्) आयु के चैथे भाग में (संगान् त्यवत्वा) सम्बन्धों को छोड़कर (परिव्रजेत्) सन्यासी हो जाय।
 
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