Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वन में वास कर इस दीक्षा का तथा अन्य दीक्षा भी सेवन करें और विविध उपनिषदों में जो वेद की श्रुतियाँ हैं उनको आत्मा की भली प्रकार सिद्धि प्राप्त करने के लिये पढ़ें तथा समझें।
टिप्पणी :
उपनिषदों से तात्पर्य गुप्तलीला अर्थात् परोक्ष पदार्थ जीवात्मा परमात्मा का ज्ञान कराने वाली पुस्तकें हैं जिनमें वेद मंत्रों के द्वारा ब्रह्मज्ञान की व्याख्या की गई है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इस प्रकार वन में बसता हुआ इन और अन्य दीक्षाओं का सेवन करे और आत्मा तथा परमात्मा के ज्ञान के लिए नाना प्रकार की उपनिषद् अर्थात् ज्ञान और उपासना विधायक श्रुतियों के अर्थों का विचार किया करे ।
(सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार विद्वान् वनस्थ वन में बसता हुआ इन और इसी प्रकार के अन्य व्रतों का सेवन करे, और आत्मा तथा परमात्मा के ज्ञान के लिए नाना प्रकार की उपनिषद्, अर्थात् ज्ञान और उपासना विषयक, श्रुतियों के अर्थों का विचार किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(विप्रः वने वसन्) वन में रहकर ब्राह्मण (एताः च अन्याः च दीक्षाः सेवेत) इन नियमों का तथा अन्य नियमों का पालन करें। (आत्मसंसिद्धये च) और आत्म-सुधार के लिये (विविधाः औपनिषदोः च) भिन्न-भिन्न उपनिषत् सम्बन्धी नियमों का पालन करें।