Manu Smriti
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जगतश्च समुत्पत्तिं संस्कारविधिं एव च ।व्रतचर्योपचारं च स्नानस्य च परं विधिम् । ।1/111
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तनी बातें इस शास्त्र में कही गई हैं, सृष्टि उत्पत्ति, संस्कार* करने की विधि, व्रत की आवश्यकता, स्नान की विधि।
टिप्पणी :
*संस्कार 16 हैं:- 1-गर्भाधा न, 2-पुंसवन, 3-सीमन्तोन्नयन, 4-जातकर्म, 5-नामकरण, 6-निष्क्रमण, 7-अन्नप्राशन, 8-चूड़ाकर्म, 9-कर्णवेध, 10-उपनयन, 11-वेदारम्भ, 12-समावर्तन, 13-विवाह, 14-गृहस्थाश्रम, 15-वाणप्रस्थाश्रम, 16-सन्यास।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
१।१११ से ११८ तक आठ श्लोक निम्न कारणों से प्रक्षिप्त हैं - ये श्लोक पूर्वापर प्रसंग से विरूद्ध हैं । १।११० श्लोक में धर्म का प्रकरण है और १।१२० श्लोक में भी धर्म का वर्णन है । इस धर्मविषय के मध्य में इन प्रक्षिप्त श्लोकों में वर्णित विषय - सूची सर्वथा ही असंगत है । और यह विषयसूची यदि मौलिक होती, तो ग्रन्थ के प्रारम्भ में होनी चाहिये थी अथवा ग्रन्थ के अन्त में । किसी विषय के बीच में विषय - सूची की कोई संगति नहीं है । ये श्लोक मनु की शैली से भी विरूद्ध हैं । मनु प्रत्येक विषय का प्रारम्भ तथा अन्त में निर्देश अवश्य करते हैं, और प्रवचन - शैली में तो यह अत्यावश्यक होता है, परन्तु इन आठ श्लोकों में वण्र्य विषय का संकेत नहीं है । और १।११८ श्लोक में ‘शास्त्रेऽस्मिन् उक्तवान् मनुः’ कहकर तो प्रक्षेप्ता ने इनके प्रक्षिप्त होने का प्रबल प्रमाण ही दे दिया है । मनु का नाम लेकर किसी और ने ही इन्हें बनाया है और ‘शास्त्र’ शब्द का प्रयोग भी मनु का नहीं है । क्यों कि प्रवचन को जब ग्रन्थरूप में संकलित किया गया, तदनन्तर ही ‘शास्त्र’ शब्द का मनुस्मृति के लिए व्यवहार सम्भव हो सकता है , स्वयं मनु द्वारा नहीं । और इन श्लोकों में जो विषय - सूची दिखाई गई है , उसके अनुसार मनुस्मृति में विषयों का वर्णन भी नही है । जैसे - १।११८ श्लोक में कहे कुलधर्म, व पाखण्डियों के धर्मों का कहीं मनुस्मृति में वर्णन ही नहीं है । और जिस विषय को मनु ने ‘कार्यविनिर्णय’ शब्द से कहा है, उसको इस विषय सूची में पृथक् - पृथक् ‘साक्षिप्रश्नविधान’, ‘स्त्रीपुरूषधर्म’, विभावधर्म आदि नामों से उल्लेख किया है और मनुस्मृति में वर्णित अनेक मुख्य विषयों - (प्रथम अध्याय में धर्मोत्पत्ति, १२वें अध्याय में त्रिविध गतियाँ, धर्मनिश्चयविधि आदि) का इस विषयसूची में अभाव ही है । अतः यह विषयसूची असंगत, शैली - विरूद्ध, तथा सर्वथा अपूर्ण है ।
 
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