Manu Smriti
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अप्रयत्नः सुखार्थेषु ब्रह्मचारी धराशयः ।शरणेष्वममश्चैव वृक्षमूलनिकेतनः ।।6/26

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सुख के लिये प्रयत्न न करें, ब्रह्मचारी होकर धरती पर सोवें। वृक्ष, मूल में वास करें तथा वासस्थान से प्रीति न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
शरीर के सुख के लिए अतिप्रयत्न न करे, किन्तु ब्रह्मचारी अर्थात् अपनी स्त्री साथ हो तथापि उससे विषय चेष्टा कुछ न करे भूमि में सोवे अपने आश्रित वा स्वकीय पदार्थों में ममता न करे वृक्ष के मूल में बसे । (स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वनस्थ शरीर के सुख के लिए अतिप्रयत्न न करे, किन्तु ब्रह्मचारी रहे। अर्थात् यदि अपनी स्त्री साथ हो, तो भी उससे विषय-चेष्टा कुछ न करे। भूमि पर सोवे, अपने आश्रित व स्वकीय पदार्थों में ममता न करे, तथा वृक्ष के मूल में बसे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अप्रयत्नः सुखार्थेषु) अपने सुख के लिये यत्न न करें। ब्रह्मचारी रहें, जमीन पर सोवें, (शरणेषु अममः च एव) मकान आदि में ममता न करें, (वृक्ष मूलनिकेतनः) वृक्ष के नीचे ही पड़ा रहा करे।
 
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