यत्तत्कारणं अव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकम् ।तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्मेति कीर्त्यते । ।1/11 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो परमात्मा जगत् का उपादान है और छिपा हुआ है और नित्य सत्-असत् का कत्र्ता है, उसने जिस मनुष्य को संसार में सबसे पहिले चारों वेदों का ज्ञाता उत्पन्न किया, उसी को सब लोग ’ब्रह्मा’ कहते हैं।