Manu Smriti
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स्थलजाउदकशाकानि पुष्पमूलफलानि च ।मेध्यवृक्षोद्भवान्यद्यात्स्नेहांश्च फलसंभवान् ।।6/13

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पृथ्वी, जल व पवित्र वृक्ष से जो शाक, मूल, फूल, फल उत्पन्न हुये हैं तथा फल से उत्पन्न तेल को भी भोजन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
भूमि और जल में उत्पन्न शाकों को पवित्र वृक्षों से उत्पन्न होने वाले फूल, कन्दमूल और फलों को और फल से उत्पन्न होने वाले तैलों या अर्कों को खाये ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अद्यात्) इन चीजों को खावें, स्थलज अर्थात् भूमि में पैदा हुए या जल में पैदा हुए फल, मूल और फलों को। पवित्र वृक्षों से उत्पन्न हुओं को। (फलसंभवान् स्नेहान् च) फलों से पैदा हुए तैलों को।
 
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