Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वसन्त तथा शरद ऋतु में जो भोजन योग्य पवित्र अन्न (मुन्यन्न) उत्पन्न होता है उसे स्वयं लाकर शास्त्रोक्त विधि द्वारा पृथक् पृथक् पुरोडाश व चरु देवताओं को यज्ञसिद्धि होने के निमित्त देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वसन्त और शरद् ऋतु में प्राप्त होने वाले पवित्र और स्वयं लाये हुए नीवार आदि मुनि - अन्नों से पुरोडाश और चरू नामक यज्ञीय हव्यों को विधि अनुसार अलग - अलग तैयार करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वासन्त शारदैः) वसन्त और शरद ऋतु के (स्वयमाहृतैः) अपने हाथ से लाये हुए (मेध्यैः मुनि + अन्नेः) पवित्र मुनि-अन्नों द्वारा (पुरोडाशान् चरून् च) पुरोडाश और चरु को (पृथक्) अलग अलग (विधिवत्) विधि के अनुसार (निर्वपेत्) बनावे।