Manu Smriti
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ऋक्षेष्ट्याग्रयणं चैव चातुर्मास्यानि चाहरेत् ।तुरायणं च क्रमशो दक्षस्यायनं एव च ।।6/10

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नक्षत्र अग्रण, चातुर्मास, उत्तरायण, दक्षिणायन कर्मों को करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नक्षत्रयज्ञ नये अन्न और चातुर्मास्य यज्ञ तथा क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन यज्ञों को भी करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऋक्ष-इष्टि, आग्रयण इष्टि, चातुर्मास्य इष्टि करता रहे। उत्तरायण और दक्षिायण भी।
 
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