Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आचार-रहित ब्राह्मण वेद के फल का भोग नहीं कर सकता। और आचार-सहित ब्राह्मण वेदों के फल का भोग कर सकता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
आचारात् विच्युतः विप्रः जो धर्माचरण से रहित द्विज है वह वेदफलं न अश्नुते वेद प्रतिपादित धर्मजन्य सुखरूप फल को प्राप्त नहीं हो सकता, और जो आचारेण तु संयुक्तः विद्या पढ़ के धर्माचरण करता है, वही सम्पूर्णफलभाक् भवेत् सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(आचारात् विच्युतः विप्रः) आचार से गिरा हुआ विद्वान् (न वेदफलम् अश्नुते) वेद के फल को नहीं पाता। (आचारेण तु संयुक्तः) और सदाचार से युक्त (सम्पूर्ण फलभाक् भवेत्) सब फल का भागी होता है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि जो धर्माचरण से रहित द्विज है वह वेदप्रतिपादित धर्मजन्य सुखरूप फल का प्राप्त नहीं हो सकता। किन्तु जो विद्या पढ़ के धर्माचरण करता है वही सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है।१