Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
संत्यज्य ग्राम्यं आहारं सर्वं चैव परिच्छदम् ।पुत्रेषु भार्यां निक्षिप्य वनं गच्छेत्सहैव वा ।।6/3

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गाँव के आहार और घर की सामग्री को त्याग करके तथा स्त्री को पुत्र को सौंप कर वन मे जावें अथवा सपत्नीक वन को जायें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब वानप्रस्थ - आश्रम की दीक्षा लेवें तब गांव में उत्पन्न हुए पदार्थों का आहार और घर के सब पदार्थों को छोड़के पुत्रों में अपनी पत्नी को छोड़ अथवा संग में लेके वन को जावे । (सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)
टिप्पणी :
‘‘सब ग्राम के आहार और वस्त्र आदि सब उत्तमोत्तम पदार्थों को छोड़ पुत्रों के पास स्त्री को रख वा अपने साथ लेके वन में निवास करे ।’’ (स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
तब वनस्थ होते समय वह ग्रामों में उत्पन्न हुए पदार्थों का आहार और घर के सब उत्तमोत्तम पदार्थों को छोड़ के, तथा पुत्रों के पास स्त्री को रख के अथवा संग में लेके वन को जावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ग्राम्यं आहारम्) गाँव के भोजन (सर्वं च एव परिच्छदम) और सब सामान-घोड़ा, चारपाई आदि को (संत्यज्य) त्याग कर (भार्यां पुत्रेषु निक्षप्य) स्त्री को पुत्रों के सुपुर्द करके, (सह एव वा) या स्त्री के साथ साथ (वनं गच्छेत्) वन को चला जाये।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS