Manu Smriti
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अनेन विधिना नित्यं पञ्चयज्ञान्न हापयेत् ।द्वितीयं आयुषो भागं कृतदारो गृहे वसेत् ।।5/169

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इस (४।१ से ५।१६८ तक) पूर्वोक्त विधि से रहते हुए पंचयज्ञों को कभी न छोड़े और आयु के दूसरे भाग तक स्त्री - सहित घर में निवास करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस विधि से कभी पंच यज्ञों को न त्यागें। आयु का दूसरा भाग विवाह करके गृहस्थ आश्रम में लगावें।
 
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