Manu Smriti
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व्यभिचारात्तु भर्तुः स्त्री लोके प्राप्नोति निन्द्यताम् ।शृगालयोनिं प्राप्नोति पापरोगैश्च पीड्यते ।।5/164
यह ५।१६४वां श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त है -
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दूसरे पति सम्भोग करने से स्त्री, संसार में अपयश पाती है। गीदड़ का जन्म पाती है तथा पाप रोगों से दुखी होती है।
टिप्पणी :
स्त्री का दूसरे पति की इच्छा करना कामवृत्ति के कारण है। अतएव वह स्त्री तथा वह पुरुष जो विषयों की इच्छा से दूसरा विवाह करते हैं गीदड़ की योनि को प्राप्त होते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
(क) यह श्लोक पूर्वापर के प्रसंग से विरूद्ध है । ५।१६३ में कहा है कि जो स्त्री पति को छोड़कर उससे उत्कृष्ट पति को अपनाती है वह लोक में निन्दनीय होती है और ५।१६५ में कहा है कि जो स्त्री अपने पति के अनुकूल रहती है, वह ‘साध्वी’ रूप में प्रशंसित होती है । इन दोनों के मध्य में स्त्री के व्यभिचार के फल का कथन असंगत है । (ख) और मनु जी ने किसी एक कर्म से किसी योनि - विशेष में जाना नहीं माना है । इस विषय में मनु जी के १२।९,३९-५२ तथा ७४ श्लोक द्रष्टव्य हैं । किन्तु इस श्लोक में एक कर्म के फलस्वरूप शृगालयोनि में जाना माना है । अतः यह श्लोक मनु की मान्यता से विरूद्ध है । (ग) और इस श्लोक की शैली निराधार तथा अपशब्द - युक्त है, यह मनु की शैली नहीं हो सकती ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
स्त्री लोक में व्यभिचार से निन्दित हो जाती है। उसका दूसरा जन्म श्रृगाल का होता है। पाप के रोग से पीड़ित होती है।
 
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