Manu Smriti
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पतिं हित्वापकृष्टं स्वं उत्कृष्टं या निषेवते ।निन्द्यैव सा भवेल्लोके परपूर्वेति चोच्यते ।।5/163

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो स्त्री अपने अल्पगुणी पति को त्याग कर दूसरे अधिक गुणी पति को वरण (ग्रहण) करती है वह संसार में निन्दनीय होती है तथा दो पति वाली कहलाती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(विवाह होने के बाद तुलनात्मक रूप में) किसी अच्छे व्यक्ति के मिलने की संभावना होने पर जो स्त्री निम्न कुल या गुणों वाले पति को छोड़कर उत्तम कुल या गुणों वाले पति का सेवन करती है वह लोगों में निन्दा ही प्राप्त करती है और ‘पहले इसका दूसरा पति था’ यह उसके विषय में व्यंग्य किया जाता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(या) जो स्त्री (अपकृष्टं पतिं हित्वा) थोड़े गुण वाले पति को छोड़कर (उत्कृष्टं निषेवते) उससे उत्कृष्ट का सेवन करती है (सा लोके निंद्या एव भवेत्) वह लोक में निन्दनीय होती है (परपूर्वेति च उच्यते) और उसको चिढ़ाने के लिये लोग कहते हैं कि इसका पहला पति तो और था।
 
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