Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विवाहों में जो स्वस्तिपाठ (शुभकामना के लिए मन्त्रपाठ) और प्रजापति - यज्ञ किया जाता है वह इनके कल्याण की भावना से ही किया जाता है विवाह में स्त्रियों को पति के लिए सौंप देना ही इन पर पति का अधिकार होने का कारण है अर्थात् विवाह संस्कार पूर्वक जो स्त्री को पति के लिए दे दिया जाता है तो इस दान के पश्चात् ही उन पर पति का अधिकार हो जाता है, उससे पूर्व नहीं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(आसाम्) इन स्त्रियों का (स्वस्त्ययनं प्रजापतेः यज्ञः च) स्वस्त्ययन और प्राज्ञापत्य यज्ञ (विवाहेषु प्रदानं च) और विवाह में पति के हवाले करना (मंगलार्थ प्रयुज्यते) इनके कल्याण के लिये किया जाता है। (स्वाम्यकारणं च) और यह उनके स्वामीपन का कारण है। अर्थात् विवाह से स्त्रियाँ अपने पति की सम्पत्ति की स्वामिनी हो जाती है।