Manu Smriti
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पित्रा भर्त्रा सुतैर्वापि नेच्छेद्विरहं आत्मनः ।एषां हि विरहेण स्त्री गर्ह्ये कुर्यादुभे कुले ।।5/149

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कोई भी स्त्री पिता, पति अथवा पुत्रों से अपना बिछोह - अलग रहने की इच्छा न करे क्यों कि इनसे अलग रहने से यह आशंका रहती है कि कभी कोई ऐसी बात न हो जाये जिससे दोनों - पिता तथा पति के कुलों की निन्दा या बदनामी हो जाये । अभिप्राय यह है कि स्त्री को सर्वदा पुरूष की सहायता अपेक्षित रखनी चाहिए, उसके बिना उसकी असुरक्षा की आशंका बनी रहती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
कन्या या स्त्री को चाहिए कि वह पिता, पति व पुत्रों से पृथक् रहने की इच्छा न करे। क्योंकि इन से पृथक् रहने से स्त्री पितृकुल व पतिकुल, दोनों कुलों को कलङ्कित कर सकती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पित्रा भत्र्रा सुतैः वा अपि) पिता, भाई या पुत्र से (न इच्छेत् विरहम् आत्मनः) अपना वियोग न चाहें। (एषां हि वियोगेन स्त्री गह्र्मे कुर्यात् उभे कुले) इनसे अलग होकर भय है कि स्त्री दोनों कुलों को दूषित न कर दे।
 
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