Manu Smriti
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मद्यैर्मूत्रैः पुरीषैर्वा ष्ठीवनैह्पूयशोणितैः ।संस्पृष्टं नैव शुद्ध्येत पुनःपाकेन मृन्मयम् ।।5/123

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
शराब, मूत्र, मल, थूक, राद, खून इनसे लिपा हुआ मिट्टी का बर्तन फिर पकाने से भी शुद्ध नहीं होता ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(मद्यैः) शराब से (मूत्रैः) पेशाब से (पुरीषैः) मल से (ष्टीवनैः) थूक से (पूयशोणितैः) राध और खून से (संस्पृष्टम्) लगा हुआ (मृन्मयम्) मिट्टी का बरतन (पुनः पाकेन) दुबारा तपाने से भी (न एव शुद्ध्येत) शुद्ध नहीं होता।
 
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