Manu Smriti
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प्रोक्षणात्तृणकाष्ठं च पलालं चैव शुध्यति ।मार्जनोपाञ्जनैर्वेश्म पुनःपाकेन मृन्मयम् ।।5/122

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
घास, काष्ठ और पुआल से बने पदार्थ जल में डुबाकर पोंछने से शुद्ध होता है घर की शुद्धि धोने - बुहारने और लीपने से होती है मिट्टी का पात्र या पदार्थ फिर आग में पकाने से शुद्ध होता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तृणकाष्ठं च पलालं च) घास फूस (प्रोक्षणात् एव शुद्धयति) पोंछने से ही शुद्ध होते हैं। (बेश्म) घर (मार्जन + उपांजनैः) झाड़ू देने तथा लीपने से (पुनः पाकेन मृन्मयम्) मिट्टी का बरतन आग में तपाने से।
 
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