Manu Smriti
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चैलवच्चर्मणां शुद्धिर्वैदलानां तथैव च ।शाकमूलफलानां च धान्यवच्छुद्धिरिष्यते ।।5/119

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो पशु स्पर्श योग्य नहीं हैं उनके चमड़े का पात्र (बर्तन) और मांस का बर्तन इन दोनों की पवित्रता वस्त्र
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. चमड़े के बर्तनों की शुद्धि वस्त्रों के समान होती है बांस के पात्रों की शुद्धि भी उसी प्रकार होती है और शाक, कन्दमूल और फलों की शुद्धि अन्नों के समान जल में धोने से होती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(चर्मणाम्) चमड़े की चीजों की (शुद्धिः) शुद्धि (चैलवत् वै) कपड़ों के समान ही है। (दलानाम्) ताड़ आदि के पत्तों से बनी हुई चटाई आदि की भी (तथैव च) उसी प्रकार होती है। (शाक मूलफलानां च) शाक, मूल और फल की (धान्यवत् शुद्धिः इष्यते) अन्न के समान शुद्धि होती है।
 
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