Manu Smriti
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चरूणां स्रुक्स्रुवाणां च शुद्धिरुष्णेन वारिणा ।स्फ्यशूर्पशकटानां च मुसलोलूखलस्य च ।।5/117

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वरु, स्रुग, स्रुवा, सूप, गाली, मूसल, ओखली, इन सबकी शुद्धता उष्ण (गरम) जल से होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (वृत आदि की चिकनाई लगे पात्रों की शुद्धि की विधि है -) चरू, स्त्रुक, स्त्रुव, स्फ्य, छाज, शकट और मूसल - ऊखल नामक यज्ञपात्रों की शुद्धि गर्म जल से धोने से होती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(चरूणां स्रु कस्रु वाणाम्) चरू, स्रुक्, स्रुवा आदि यज्ञ के पात्र जिनमें घी आदि चिकने पदार्थ लिये जाते हैं, (स्फ्य शूर्प शकटानां च) स्फ्य लकड़ी की तलवार जैसी चीज होती है और मिट्टी आदि खोदने में काम आती है, सूप, शकट या गाड़ी जिसमें भरकर चावल या सोम आदि लाते हैं (मुसल + उलूखलस्य च) और मूसली तथा ओखली इनकी (शुद्धिः उष्णेन वारिणा) शुद्धि गर्म जल से होती है।
 
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