Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यज्ञ पात्रों की शुद्धता हाथ से करनी चाहिये। यज्ञकर्म में चमस (चमचा) तथा सण्डासी चिमटा की पवित्रता धोने से होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यज्ञ करते समय प्रयुक्त यज्ञ के पात्रों चमचों और कटोरों की शुद्धि हाथ से रगड़कर मांजने और धोने से होती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यज्ञकर्मणि) यज्ञकर्म में (यज्ञ पात्राणाम्) यज्ञ के बर्तनों की शुद्धि (पाणिना मार्जनम्) हाथ से माँजने से (चमसानां ग्रहाणां च शुद्धिः प्रक्षालनेन तु) चमचों और ग्रहों अर्थात् प्यालों की शुद्धि घी डालने से हो जाती है। ग्रह उन प्यालों को कहते हैं जिनमें सोमरस आदि निकाला जाता है।