Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो द्रव (पदार्थ) यथा तेल घी आदि हैं उनको वस्त्र आदि से छान लेवें तथा जमे हुए पदार्थों को दो कुश लेकर उन पदार्थों में चलाने से पवित्र हो जाते हैं। यदि शय्या (चारपाई) आदि पर जूठन गिर पड़ी हो तो वह जल के छींटे देने से पवित्र हो जाती है। काष्ठ (काठ) आदि का पात्र जब जूठनादि से अधिक लसा हो तो वह छीलने से पवित्र होतो है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सब घी, तैल आदि द्रव पदार्थों की शुद्धि छान लेने से और ठोस वस्तु जैसे लकड़ी की चैकी आदि की पोंछने से तथा लकड़ी के पात्रों की शुद्धि छीलने से मानी है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सर्वेषां चैव) और सब (द्रवाणां) द्रव अर्थात् घी आदि बहने वाले पदार्थों की (शुद्धिः) शुद्धि (उत्पवनं स्मृत्तम्) केवल छान लेने से बताई है। (संहतानाम्) ठोस चीजों की जैसे चैकी आदि, (प्रोक्षणाम्) पोंछने से (दारवाणां च तक्षणम्) लकड़ी की बनी हुई चीजों की छीलने या खराद करने से।