Manu Smriti
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निर्लेपं काञ्चनं भाण्डं अद्भिरेव विशुध्यति ।अब्जं अश्ममयं चैव राजतं चानुपस्कृतम् ।।5/112

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस सुवर्ण (सोने), शंख, मोती वा पत्थर के पात्र में जूठनादि नहीं लगी तथा जिस रूपे (चांदी) के पात्र में रेखा (लकीरें) नहीं हैं यह केवल जल ही द्वारा शुद्ध हो जाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जिसमें किसी चिकनाई झूठन आदि का लेप न लगा हो ऐसा सोने का पात्र जल में उत्पन्न होने वाले मोती शंख आदि से बना पात्र और पत्थरों के पात्र चित्रकारी की खुदाई से रहित चांदी का पात्र केवल जल से ही शुद्ध हो जाता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(निर्लेपं कांचनं भांडम्) सोने का बरतन जिसमें कोई गीली चीज न लगी हो, (अब्जम्) शंख मोती आदि जल में से उत्पन्न होने वाले पदार्थों से बनी हुई चीज (अश्ममयं चैव) पत्थर की चीज़ (राजत च) और चाँदी की चीज़ (अनु पस्कृतम्) जिसमें नकाश न हों (अद्भिः एव विशुद्ध्यति) केवल जल से शुद्ध होते हैं।
 
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