Manu Smriti
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अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति मनः सत्येन शुध्यति ।विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति ।।5/109

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जल से शरीर के बाहर के अवयव सत्याचरण से मन विद्या और तप अर्थात् सब प्रकार के कष्ट भी सह के धर्म ही के अनुष्ठान करने से जीवात्मा ज्ञान अर्थात् पृथिवी से ले के परमेश्वर पर्यन्त पदार्थों के विवेक से बुद्धि दृढ़ निश्चय पवित्र होती है । (स० प्र० तृतीय समु०)
टिप्पणी :
‘‘किन्तु जल से ऊपर के अंग पवित्र होते हैं आत्मा और मन नहीं, मन तो सत्य मानने, सत्य बोलने और सत्य करने से शुद्ध और जीवात्मा विद्या, योगाभ्यास और धर्माचरण ही से पवित्र तथा बुद्धि ज्ञान से ही शुद्ध होती है, जल मृत्तिकादि से नहीं’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जल से बाह्य अंग पवित्र होते हैं, सत्य मानने सत्य बोलने सत्य करने से मन शुद्ध होता है, विद्या तथा योगाभ्यास-धर्माचरणरूपी तपस्या से जीवात्मा शुद्ध होता है, और ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।१
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(गात्राणि) शरीर (अद्भिः) जलों से (शुद्धयन्ति) शुद्ध होते हैं। (मनः सत्येन शुद्धयति) मन सत्य से शुद्ध होता है। (विद्यातपोभ्यां भूतात्मा) सूक्ष्म शरीर विद्या और तप से। (बुद्धिः ज्ञानेन शुद्ध्यति) बुद्धि ज्ञान से शुद्ध होती है।
 
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