Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विद्वान् लोग क्षमा से दुष्टकर्मकारी सत्संग और विद्यादि शुभ गुणों के दान से गुप्त पाप करने हारे विचार से त्याग कर और ब्रह्मचर्य तथा सत्यभाषणादि से वेदवित् उत्तम विद्वान् शुद्ध होते हैं ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
ये दो (५।१०७-१०८) श्लोक निम्नकारणों से प्रक्षिप्त हैं -
(क) मन से दूषित स्त्री का रजस्वला से कोई सम्बन्ध नहीं है, अतः यह श्लोक प्रक्षिप्त है ।
(ख) इन श्लोकों की शैली भी अयुक्तियुक्त तथा मनु की मान्यता से विरूद्ध है । जैसे ५।१०७ में कहा है कि जो दुष्कर्म करने वाले हैं, वे दान करने से शुद्ध हो जाते हैं । दान करने से दुष्कर्मों की शुद्धि का क्या सम्बन्ध है ? फिर तो मनुष्य को छूट ही मिल जायेगी, विशेषकर धनी पुरूषों को, कि वे कितने भी दुष्कर्म करते रहें, दान करने से शुद्ध हो जायेंगे । इसी प्रकार मन से दूषित स्त्री की शुद्धि का रज से क्या सम्बन्ध है ? रजस्वला होने से शारीरिक शुद्धि हो सकती हैं किन्तु मन की नहीं । मनु जी ने ५।१०९ में मन की शुद्धि सत्य से मानी है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
विद्वान् लोग क्षमा से, दुष्टकर्मकारी सत्संग व विद्यादि शुभ गुणों का दान मिलने से, गुप्त पाप करने वाले विचार से, और वेदज्ञ लोग ब्रह्मचर्य सत्यभाषणादि तप से शुद्ध होते हैं।१
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(क्षान्त्या शुद्ध्यन्ति विद्वांसः) विद्वान् लोग क्षमा के द्वारा शुद्ध हो जाते हैं। (दानेन अकार्यकारिणः) जो समय पर कार्य करने से चूक जाते हैं वे दान से। अर्थात् दान करने से उनकी इस भूल का दोष दूर हो जाता है। (प्रच्छन्न पापा जप्येन) छिपे हुए पाप जप करके। (तपसा वेदवित्तमाः) वेदज्ञ लोग तपस्या से।