Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो धर्म ही से पदार्थों का संचय करना है वही सब पवित्रताओं में उत्तम पवित्रता अर्थात् जो अन्याय से किसी पदार्थ का ग्रहण नहीं करता वही पवित्र है, किन्तु जल, मृत्तिका आदि से जो पवित्रता होती है, वह धर्म के सदृश उत्तम नहीं होती ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
धर्म से पदार्थों का संचय करना, सब पवित्रताओं में उत्तम पवित्रता है। अतः, जो अन्यथा से किसी पदार्थ को ग्रहण नहीं तरता वही पवित्र है; मिट्टी व जल से जो पवित्रता होती है वह अर्थशुद्धि के समान उत्तम नहीं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सर्वेषाम् एव शौचानाम्) सब शौचों में (अर्थ शौचं परं स्मृतम्) धन की शुद्धि सबसे बढ़कर है। (यः अर्थे शुचिः) जो धन कमाने में शुद्ध है (स शुचिः) वह वस्तुतः शुद्ध है। (न मृत + वारि + शुचिः शुचिः) मिट्टी और जल की शुद्धि शुद्धि नहीं है।
अर्थात् जिसके धन कमाने के साधन शुद्ध नहीं हैं वह कितना ही अन्य बातों में शुद्ध क्यों न हो शुद्ध नहीं कहा जा सकता।