श्री रतिराम जी शर्मा ने देवराला ग्राम में जन्म लेकर सुदूर हरियाणा से बंगाल की धरती को अपनी कर्म भूमि बनाया पूंजी के रूप में माता-पिता का आशीर्वाद और ऋषि दयानन्द के सिद्धांत लगभग १९ वर्ष में, भारत की आजादी के एक वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई जीवन यात्रा ने आज लगभग ९० वर्ष की आयु तक ईश्वर की विभिन्न व्यवस्थाओं को देखा शून्य से शिखर की यात्रा में केवल सच्ची लगन और सच्चे प्रण का आश्रय, दयानन्द के उपदेश और वेद का आदेश सर्वोपरी मानकर अपने सभी कार्य परमपिता को समर्पण करने का एक सिद्धांत ये परिचय है ऋषिभक्त श्री रतिराम जी शर्मा का गाँव की साधारण शिक्षा मगर दयानन्द के असाधारण संस्कारों ने कैसे जीवन की दशा और दिशा बदलकर रख दी, ये इनके जीवन से सीखा जा सकता है- धर्म परायण सहचरी गिन्नी देवी का सानिध्य और सुयोग्य चार पुत्र एवं चार पुत्रियों का भरापूरा परिवार एक आदर्श गृहस्थ का अनुपम उदाहरण दैनिक यज्ञ और स्वाध्याय जीवन का अभिन्न अंग और वर्तमान अवस्था में भी इसका पालन, तीन वर्ष पूर्व धर्मपत्नी का देहावसान सिलीगुड़ी, भीलवाड़ा, दिल्ली और कलकता में चारों पुत्रों का समृद्ध कारोबार, प्रत्येक परिवार में दैनिक यज्ञ की परंपरा और पञ्चमहायज्ञों का पालन सम्पूर्ण आर्य जगत में श्री रतिराम जी शर्मा का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है जीवेम शरदः शतम् के संकल्प को चरितार्थ करने के लक्ष्य से आज भी सक्रिय जीवन का पालन श्री रतिराम जी शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र श्री राजकुमार शर्मा आर्यसमाज सिलीगुड़ी के प्रधान तथा डी.ए.वी. स्कुल के भी प्रधान है | द्वितीय पुत्र डॉ. आनन्द शर्मा वरिष्ठ अधिकारी के पद से केंद्र सर्कार की सेवा से मुक्त होकर दिल्ली में अध्यापन कार्य करते हुवे आर्य समाज द्वारका की स्थापना में संलग्न हैं, तृतीय पुत्र श्री विजय शर्मा आर्य समाज भीलवाड़ा के प्रधान पद पर कार्य करते हुवे अहर्निश आर्य समाज के प्रचार- प्रसार में लगे हैं | चारों पुत्र-पौत्रों का भरापूरा परिवार अपने व्यवसायिक क्षेत्रों में सफल है तथा पुत्रियाँ भी आर्य समाज की शिक्षा के प्रचार में लगी है वेदानुकुल जीवन और साक्षात स्वर्ग के सुख का दृश्य सहज रूप में श्री रतिराम जी शर्मा के जीवनचर्या में देखने को सुलभ है चार पीढ़ियों में आदर्श वैदिक परिवार का सिंहावलोकन, वेद का अनुशरण और आर्य समाज ये सब कुछ श्री रतिराम जी शर्मा के जीवन से सीखा जा सकता है | आर्य समाज के साथ-साथ तमाम धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाए इस वट वृक्ष की छाया से पोषित है