क्या माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी ? 🤔 ✍🏻 शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी

[२ वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के उप-मुख्यमंत्री डॉ॰ दिनेश शर्मा ने अजीबो-गरीब बयान दिया था। उन्होंने कहा की- ‘सीता माता का जन्म जमीन के अंदर किसी घड़े में हुआ था। इसका मतलब है कि रामायण काल में टेस्ट ट्यूब बेबी का कॉन्सेप्ट था।’ (दैनिक भास्कर, दिनांक २ जून २०१८) इस भ्रांति का निवारण के लिए हम शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी का एक लेख प्रस्तुत कर रहे है। उर्दू में लिखें इस लेख का हिंदी अनुवाद श्री राजेंद्र जिज्ञासु जी ने किया है। पाठक स्वयं पढ़ कर स्वविवेक से निर्णय लेवें। – 🌺 ‘अवत्सार’]

      प्रिय पाठकवृन्द ! आज हम आपकी सेवा में महारानी सीताजी की उत्पत्ति के विषय में कुछ बताना चाहते हैं। महाभारत के युद्ध में अच्छे-अच्छे विद्वानों के मारे जाने के पश्चात् एक घोर वाममार्ग का समय आया। जिसमें स्वार्थी, अनाचारी लोगों ने सुरापान, मांसाहार तथा व्यभिचार को धर्म ठहराया और प्राचीन ऋषि-मुनियों पर सुरापान, मांसाहार व व्यभिचार के दोषारोपण करने के लिए भागवतादि पुराणों की रचना की। इन पुराणो में जहाँ ऋषियों पर दुराचार सम्बन्धी दोष लगाये गये वहाँ उनकी उत्पत्ति को भी घृणितरूप से जनता के सामने उपस्थित किया। यदि आप पुराणों को पढ़ें तो आपको पता लगेगा कि पुराणों ने किसी की उत्पत्ति को सीधे ढंग से पेश नहीं किया। जहाँ इन वामपन्थी लोगों ने पुराणों का निर्माण किया वहाँ प्राचीन ग्रन्थों में भी मांस, व्यभिचार आदि के श्लोक घड़कर मिला दिये और पूज्य महात्माओं की उत्पत्ति को घृणितरूप से वर्णन करनेवाले श्लोक भी प्राचीन ग्रन्थों में मिला दिये। चूंकि इन धूर्त, पाखण्डी, वाममार्गी पौराणिक लोगों ने महारानी सीताजी की उत्पत्ति के बारे में भी वाल्मीकि रामायण में निम्न प्रकार के श्लोक बनाकर सम्मिलित कर दिये, जैसाकि जनक ने बताया है – 

      🔥अथ मे कृषतः क्षेत्र लांगलादुत्थिता तत॥१३॥ 

      🔥क्षेत्रं शोधयता लब्धा नाम्ना सीतेति विश्रुता। 

      भूतलादुत्थिता सा तु व्यवर्धत ममात्मजा॥१४॥ 

      [वा॰ रा॰ बाल॰ ६६ / १३ – १४] 

      अर्थ – मेरे द्वारा खेत को जोतने पर मेरे हल की फाली से यह ऊपर को उठ पड़ी॥१३॥ चूंकि वह मुझे खेत को जोतते हुए मिली, अतः उसका नाम सीता प्रसिद्ध हो गया वह मेरी पुत्री पृथिवी से निकली और वृद्धि को प्राप्त हुई॥१४॥ 

      अब सीता की इस उत्पत्ति पर ज़रा विचार कीजिए। प्रथम तो इस प्रकार की उत्पत्ति सृष्टि के नियम के विरुद्ध है, क्योंकि मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ३३ में स्पष्ट लिखा है कि – 

      🔥क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान्। 

      क्षेत्रबीजसमायोगात्सम्भवः सर्वदहिनाम्॥३३॥ 

      अर्थ – श्री खेतरूप है और पुरुष बीजरूप है। खेत तथा बीज के मिलने से ही सब शरीरधारियों की उत्पत्ति सम्भव हो सकती है। 

      अतः बिना स्त्री-पुरुष के संयोग के जैवी सृष्टि में किसी भी शरीरधारी की उत्पत्ति असम्भव और सृष्टि-नियम के विरुद्ध है, अतः सिद्ध हुआ कि सीता की उत्पत्ति का इस प्रकार वर्णन करना पौराणिक गप्पाष्टक ही है। दूसरे स्वयं रामायण में भी इसके विरुद्ध प्रमाण मिल जाते हैं जैसाकि जब सीता अनसूया के पास गई और अनसूया ने उसको पतिव्रत धर्म का उपदेश किया तो उत्तर में सीता ने कहा कि –

      🔥पाणिप्रदानकाले च यत्पुरा त्वग्रिसंनिधौ। 

      अनुशिष्टं जनन्या मे वाक्यं तदपि मे धृतम्॥८॥ 

      [वाल्मीकि रामा॰ , अयोध्या स॰ ११८]

      अर्थ – पहले अग्रि के समीप जो मेरा हाथ राम को पकड़ाते हुए मेरी जननी ने मुझे शिक्षा दी थी वह वाक्य भी मैंने धारण किया हुआ है। 

      इस श्लोक में सीता ने स्पष्ट शब्दों में अपनी जननी माता का वर्णन किया है। इससे आगे जब हनुमान्जी सीता से मिलकर लौटने लगे तो सीता ने कपड़े में से खोलकर एक मणि हनुमान् को दी और कहा कि यह राम को दे देना। और मणि देने के पश्चात् सीता ने कहा कि –

      🔥मणिं दृष्ट्वा च रामो वै त्रयाणां संस्मरिष्यति। 

      वीरो जनन्या मम च राज्ञो दशरथस्य च॥२॥ 

      [वाल्मीकि रामा॰ सुन्दर॰ स॰ २८] 

      अर्थ – इस मणि को देखकर राम तीन को याद करेंगे – मेरी जननी को, मुझे और राजा दशरथ को। 

      सीता के इस कथन से भी सीता की जननी माता का होना स्पष्ट सिद्ध है। इससे यह तो सिद्ध है कि सीता की माता और वह भी पालन करनेवाली नहीं अपितु जननी अवश्य थी, किन्तु कथा में गौण होने के कारण उसका स्पष्ट वर्णन रामायण में नहीं आया। अब हम आपको पौराणिकों के घर से ही अपने पक्ष की पुष्टि के प्रमाण बताते हैं। जब प्रतिपक्षी स्वयं ही हमारी बात का अनुमोदन कर दें तो फिर उनके मिथ्यात्व में क्या सन्देह है। लीजिए शिवपुराण, रुद्रसंहिता, पार्वतीखण्ड अध्याय ३, श्लोक २९ में लिखा है कि – 

      🔥धन्या प्रिया द्वितीया तु योगिनी जनकस्य च। 

      तस्याः कन्या महालक्ष्मीर्नाम्ना सीता भविष्यति॥ 

      अर्थ – दूसरी धन्यभाग्यवाली जनक की स्त्री जिसका नाम योगिनी है उसकी कन्या महालक्ष्मी होगी, उसका नाम सीता होगा।

      ‘जादू वह जो सिर चढ़कर बोले’ यह जनश्रुति पौराणिकों पर ही ठीक घटित होती है। इन सम्पूर्ण प्रमाणों से यह स्पष्ट सिद्ध है कि योगिनी नाम की जनक की स्री थी। उसके गर्भ से ही सीता की उत्पत्ति हुई थी। पौराणिकों ने खेत से सीता का निकलना मिथ्या ही रामायण में मिला दिया। इसी प्रकार से अन्य ऋषि , मनीषियों की उत्पत्ति भी सृष्टि-नियम के विरुद्ध मिथ्या ही पुराणों ने प्रतिपादित की है। सज्जन लोग बुद्धिपूर्वक सच्चाई को ग्रहण करने का प्रयत्न करें।

✍🏻 लेखक – शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी [अनुवादकर्ता – राजेंद्र जिज्ञासु जी]

प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’

॥ओ३म्॥

3 thoughts on “क्या माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी ? 🤔 ✍🏻 शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी”

  1. जब इन मुर्ख वेदवैनाशिक आर्यसमाजियों को जब किसी प्रश्न का उत्तर देते नही बनता तो ग्रंथो को प्रक्षिप्त कहते हुए पलायन कर जाते है। पुराणों को तो ये त्रिकाल में भी सिद्ध नही कर पाएंगे। यदि बिना माता-पिता के ये उत्पन्न नही हो सकते तो बताओ कि अग्नि वायु और अंगिरा और रवि ये बिना माता पिता के कैसे टपक पड़े। बताओ इनके माता पिता का नाम? मनुस्मृति का जो तुमने प्रमाण दिया तो महारथी जी क्या आपने मनुस्मृति का पहला अध्याय नही पढ़ा? सप्तऋषियों का जन्म कैसे हुआ आखिर? लोगो को शास्त्रो के नाम ठगने वाले ये धूर्त पहले तो असली सत्यार्थ प्रकाश को ही लोगों से छिपाते हैं ।वास्तव में ये प्रच्छन्न नास्तिक ही है ।केवल शुष्क तर्कों के द्वारा धर्ममाधर्म का निर्णय करते है ।केवल चार मन्त्र संहिताओं को लिए ही आने को वैदिक समझते है । ब्राह्मण ग्रंथो के वेदत्व का अपलाप करते है। कही का ईट कही का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा। यही है इनके सत्यार्थ प्रकाश का सार।

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