ब्राह्मण ग्रन्थों में निर्दिष्ट ‘गौतम-अहल्या और इन्द्र-वृत्रासुर’ की आलंकारिक कथा का वास्तविक स्वरूप न समझ कर पुराणों में इसका अत्यन्त बीभत्स रूप में वर्णन किया है।
ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार इन्द्र नाम सूर्य का है और गौतम चन्द्रमा का, तथा अहल्या नाम रात्रि का है। अहल्या-रूपी रात्रि और गोतम-रूपी चन्द्रमा का आलङ्कारिक पति-पत्नी भाव का कथन है। इन्द्र=सूर्य को अहल्या का जार इसलिये कहते हैं कि सूर्य के उदय होने पर रात्रि नष्ट हो जाती है। इस कथा का यही तात्पर्य निरुक्त में भी दर्शाया है –
🔥”आदित्योऽत्र जार उच्यते रात्रेर्जरयिता। ३।५”
🔥”रात्रिरादित्यस्योदयेऽन्तर्धीयते। १२।११”
इन्द्र-वृत्रासुर कथा में भी इन्द्र नाम सूर्य का है। उसे त्वष्टा भी कहते हैं। वृत्र नाम निघण्टु में मेघ-नामों में पढ़ा है। जब वृत्र-मेघ बढ़ कर आकाश मण्डल को ढांप लेता है तब इन्द्र (त्वष्टा) इस पर अपनी वजरूपी किरणों से आघात करता है। वृत्र मर कर=बादल बरस कर पानी के रूप में भूमि पर गिर पड़ता है। निरुक्त २।१६-१७ तथा शत॰ १।१।३।४-५ में इस कथा का यही आलंकारिक रूप वर्णित है।
इन दोनों कथानों का वास्तविक स्वरूप ऋषि दयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के ग्रन्थप्रामाण्याप्रामाण्य प्रकरण में भी दर्शाया है। ऋषि ने मार्गशीर्ष शुदि १५ सं० १६३३ के दिन वेदभाष्य के विषय में जो विज्ञापन छपवाया था, उसमें भी इसका शुद्ध स्वरूप दर्शाया है। देखो ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन भाग १, पूर्ण[१] ७४॥
[📎पाद टिप्पणी १. पुस्तक में ‘पूर्ण’ के स्थान पर ‘पृष्ठ’ अंकित था, जो की मुद्रण दोष प्रतीत होता। हमने इसे ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन से मिलान करके सही कर दिया है – 🌺 ‘अवत्सार’]
✍🏻 लेखक – महामहोपाध्याय पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक
(📖 साभार ग्रन्थ – ऋषि दयानन्द सरस्वती के ग्रन्थों का इतिहास)
प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’
॥ओ३म्॥