कुन फ़यकून इंसान व शैतान [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-४] ✍🏻 पण्डित चमूपति

[मौलाना सनाउल्ला खाँ कृत पुस्तक ‘हक़ प्रकाश’ का प्रतिउत्तर]

      दर्शन व धर्म के सामने एक प्रश्न सदा से चला आया है वह यह कि संसार में वर्तमान पदार्थों की उत्पत्ति कैसे हुई? सभी धर्म जो परमात्मा की सत्ता मानने वाले हैं परमात्मा की सत्ता को नित्य मानते हैं उसका प्रारम्भ कभी नहीं हुआ। आर्यसमाज ईश्वरेत्तर तत्त्वों की सत्ता भी अनादि अर्थात् सदा से मानता है, परन्तु इस्लाम की मान्यता इसके विपरीत है। इस्लाम में प्राकृतिक वस्तुओं और चेतन पदार्थों को सदा रहने वाली तो माना है, परन्तु वे सदा से (अनादि) ही हैं ऐसा नहीं माना गया।[१] इस्लाम की मान्यता है कि परमात्मा ने कहा- कुन (हो जा) और सब कुछ उत्पन्न हो गया। इसीलिए सूरते बकर में आया है –

      🔥बदीअस्समावातेज़वल अरजे व इज़ाकज़ा अपरन फ़इन्नमा यकूलो लहू कुन फ़यकून। [बकर आयत ११७]

      (खुदा) बनाने वाला आसमानों व भूमि का और जब चाहता है करना कोई काम तो एक ही तरीका है वह उसको कहे कि हो जा बस हो जाता है। 

      आयत में लिखा है- ‘उस’ को कहता है हो जा। किसको कहता है? अनुपस्थित को? यह ‘हो जा’ भूतकाल में ही हो लिया। या अब भी यह आदेश दिया जाता है। वाक्य शैली से तो ज्ञात होता है कि यह आदेश सदा दिया जाता है। परन्तु क्या वर्तमान काल में कोई वस्तु इस आदेश को कारण बनाकर कार्यरूप में परिणित होती है? अब नहीं होती, तो पहले भी किस प्रकार होती होगी? आदेश अन्य कारण की उपस्थिति में दिया जाता तो कल्पना सम्भव थी। इसके विपरीत नहीं। अकारण कार्य के लिए प्रमाण चाहिए। 

[📎 पाद टिप्पणी १. विज्ञान भी प्रकृति को अनादि व नित्य मानता है। जिसका अन्त नहीं वह अनादि होगा ही। जो अनादि है वही नित्य होगा। यह दर्शनशास्त्र मानता है। -‘जिज्ञासु’]

      🔥फ़इन्नमा यकूलोलहू कुन फ़यकून। [अल इमरान आयत ४७]       

      🔥इन्नमा कौलना लिशैयिन इजाअरदनाहो अननकूलो लहुकुन फ़यकून। [सूरत नहल आयत ४०] 

      यही कथन हमारा किसी वस्तु को जब हम निश्चय करते हैं, इसके अतिरिक्त हम उससे कहें हो जा बस वह हो जाती है। 

      🔥इन्नमा अमरहु इजा अरादा शंअन अन यकूलोलहू कुन फ़यकून। [सूरते यासीन आयत ८२]

      इसके अतिरिक्त उसका आदेश नहीं कि जब वह कोई चीज़ चाहे, यह कहता है उसको हो जा, बस वह हो जाती है।

      इसके विपरीत निम्नलिखित आयतों में कुछ और ही दशा है –

      🔥इन्ना रब्बुकुमुल्लाहो अल्लज़ी ख़लक्स्समावातेवलअरज़े फ़ी सित्तते अय्यामिन सुम्मस्तवा अलल अरशे। [आयत ५२; सूरते यूनस आयत ३] 

      वास्तव में पालनहार तुम्हारा अल्ला है जिसने बनाया आसमानों व ज़मीन को छह दिन में फिर ठहर गया सिंहासन के ऊपर। 

      कोई प्रश्न कर सकता है कि उस समय सूरज तो था नहीं जो दिनों का हिसाब उससे हो जाता। फिर दिनों का अनुमान कैसे हुआ। 

      तफ़सीरे जलालैन में इसका उत्तर दिया है –

      छह दिन से आशय उतनी मात्रा है। क्योंकि उस समय सूरज न था। जो उनका हिसाब उससे होता। 

      कोई पूछे ६ दिन क्यों लगा दिए? लिखा है –

      और इसका कारण छह दिन में बनाया यद्यपि उसकी सामर्थ थी कि यदि चाहता तो एक क्षण में बना डालता यह है कि धीरे-धीरे व जल्दी न करना सिखलाए। 

      तफ़सीरे हुसैनी में कहा है –

      मकरे शैतानस्त ताजीलदर शताब। 

      खूए रहमानस्त सबरो हिसाब॥ 

      शैतान का स्वभाव है शाघ्रता दयालु प्रभु का स्वभाव है धीरज से व विधि से 

      तो यह कुन भी जल्दी न कहा जाता होगा। धैर्य व हिसाब से कहा जाता होगा। अर्थात् छह दिन में। 

      सूरते हम सजदा में फ़रमाया है –

      🔥कुलअइन्नकुमलतकफ़रुना बिल्लज़ी ख़लकत अरज़ा फ़ीयौमेने व…..कद्दराफीहा अकवातहाफ़ी अरबअते अय्यामिन फ़कजाहुना सबआ समावातेफ़ीयोमेने। [हा-मीम सजदा ९।१०।१२] 

      अर्थात् कह क्या तुम कुफ्र करते हो उससे जिसने बनाया ज़मीनों को दो दिन में.और निश्चित किए उसमें भोज्य पदार्थ ४ दिन में…फिर बनाए सात आसमान दो दिन में। 

      लीजिए अब तो दिनों की संख्या आठ हो गई। तफ़सीरे जलालैन में इस कठिनाई का समाधान किया है –

      ज़मीन दो दिन में रविवार व सोमवार को बनाई गई, उसमें सब वस्तुएँ मंगल व बुधवार में और आसमान जुमेरात (बृहस्पतिवार) व जुमा (शुक्रवार) की पिछली रात में काम पूरा हुआ और उसी समय बनाया गया आदम को। 

      भोजन सामग्री जो चार दिनों में उत्पन्न की थी उनके दो दिन भूमि की उत्पत्ति में सम्मिलित कर लिए इस प्रकार कुल संख्या फिर छह की छह रही। 

      यह हुई अचेतन सृष्टि की उत्पत्ति, अब मनुष्यों की भी सुन लीजिए। यह तो तफ़सीरे जलालैन ने ही बता दिया कि जुमा (शुक्रवार) की पिछली रात आदम का पुतला घड़ा गया था। घड़ा किससे गया? कैसे गया? 

      🔥ख़लकंतहु मिनतीन (स्वाद) 

      उत्पन्न किया उसको मिट्टी से। 

      🔥ख़लकतो बियदय्या (स्वाद) 

      बनाया मैंने दोनों हाथों से। 

      फ़इज़ा सवेतुहा बनफ़रवता फ़ीहे मिरुही। [सूरते हजर आयत २७] 

      ◾️अल्लाह के दो हाथ हैं – जब मैं ठीक कर लूँ (पैदा) उसको फूंक दूं उसमें रुह (आत्मा) अपनी। इन प्रमाणों से सिद्ध है कि इन्सान का उपादान कारण मिट्टी है। कुछ स्थानों पर गन्दी मिट्टी कहा है, उसे अल्लाहताला ने दोनों हाथों से ठीक किया है और उसमें अपनी रुह (आत्मा) फूँकी है। क्या वास्तव में मानव शरीर की रचना मिट्टी से ही हुई है ? क्या उसको बनाने वाला दो हाथों वाला है ? यह प्रश्न हमारे इस अध्याय के विषय से बाहर है। यहाँ केवल यह देखना अद्दिष्ट है कि मानव की अपनी स्वयं सत्ता कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं। मिट्टी वह है जो कुन के कहते ही ज़मीन के साथ पैदा हुई है चाहे वह कुन एक क्षण में कहा गया हो चाहे दो दिन में या छह दिन में। रुह (आत्मा) अल्लाह मियाँ की अपनी है। इसके अर्थ चाहे यह करो कि अल्लाह ने अपने शरीर में से मानव के शरीर में जीवन का सांस फूंका जैसा इञ्जील में वर्णन किया गया है और चाहे स्वामी दयानन्द की शंका की सार्थकता के आगे नतमस्तक हो जाओ और रुही (मेरी आत्मा) का अर्थ करो ‘अल्लाह मियाँ की प्यारी रुह’ रुह (आत्मा) या तो अल्ला मियाँ के अन्दर से निकली है या अभाव से भाव की गई है। इस प्रकार की मिट्टी और आत्मा कर्म में स्वतन्त्र नहीं हो सकती।[२] जो गुण व स्वभाव स्वतन्त्र कर्ता ने इसमें केन्द्रित कर दिये। उसके अनुसार वह कर्म करती जाएँगी फिर अल्लाह मियाँ की यह शिकायत कि –

      🔥इन्नल इन्सानो लिजुलूमिन कुफ्फारुन। [सूरते इब्राहिम आयत २७] 

      वास्तव में मनुष्य अत्याचारी व काफ़िर है, असंगत है, क्योंकि यह अत्याचार वृत्ति व कुफ्र की प्रकृति को उसके स्वभाव में अल्लाह द्वारा प्रदान किया गया है। आश्चर्य तो यह है कि कुछ मनुष्य इस ईश्वरीय देन के विरुद्ध न्याय व ईमान का प्रदर्शन करते हैं, परन्तु वह भी तो उनका चमत्कार नहीं, बनाने वाले ने ऐसा बना दिया। 

[📎पाद टिप्पणी २. अधिक जानने के इच्छुक हमारी पुस्तक पं० रामचन्द्र देहलवी और उनका वैदिक दर्शन अवश्य पढ़ें। -‘जिज्ञासु’] 

      उत्पत्ति के इस सिद्धान्त पर शंका यह होती है कि जब नित्य सत्ता ईश्वरीय सत्ता के अतिरिक्त और कोई अन्य नहीं और अल्लाह पूर्ण है, पवित्र है, नेक है तो उसकी रचना में दोष, पाप व कमजोरियाँ प्रवेश कैसे पा गईं ? 

      पाप का आदि स्रोत कौन है? कुरान में इस प्रश्न को यों समाधान किया गया है –

      🔥वइजा कुलना लिलमलाइकते स्जिदू अलआदमा फ़सजद इल्ला इबलीस, अबा व स्तकबराब काना मिनलकाफ़िरीन। [सूरते बकर आयत ३४] 

      जब कहा हमने फ़रिश्तों को, नतमस्तक हो आदम के प्रति तो उन्होंने आदम के प्रति सिर झुकाया, परन्तु शैतान ने नहीं झुकाया। उसने घमण्ड किया और वास्तव में वह काफ़िरों में से था। 

      प्रश्न यह है कि जब शैतान भी अल्लाह ताला की ही रचना है और अल्लाह उसे जैसा चाहता बना सकता था तो उसे काफ़िर क्यों बनाया? 

      लीजिए गुनाह (पाप) की कहानी आगे चलती है –

      🔥वकुलना यादमो उसकुन अन्ता व जोजकल जन्नता व कुला मिनहारगवन हैसो शियतुमा बलातकरिवा हाजिहिश्शजरता फ़तकूना मिनज्ज़वालिमीन।फअजल्लाहुमश्शैतानो अन्हा फ़अखरजहुमा मिम्मा काना फ़ीहे वकुलन हबितू बअज़कुमलिबाज़े उदव्वुन । वलकुम फ़िलअरज़े मुस्तकरुन व मताउन इललहीन। [सूरते बकर आयत ३५-३६] 

      और कहा हमने ए आदम रहो तुम और तुम्हारी पत्नी स्वर्ग में और खाओ इच्छानुसार जैसा चाहो और न निकट जाओ उस वृक्ष के। पापी हो जाओगे, परन्तु पथ-भ्रष्ट किया उनको शैतान ने और निकाल दिया उनमें से जिसमें वह थे और कहा हमने उतरो तुममें से कुछ लोग एक दूसरे के शत्रु हैं और तुम्हारे लिए भूमि पर ही ठिकाना है और कुछ समय लाभ है। 

      यहाँ से पाप का प्रारम्भ होता है। अल्लाह मियाँ ने तो आदम और उसकी पत्नी को स्वर्ग में डाल ही दिया था। कोई पूछे किन कर्मों के पुरस्कार स्वरूप? कहा जाएगा कर्मों के अभाव में। शैतान ने उनको बहकाया वह किसकी मेहरबानी से? बहिश्त कहा था? जहाँ से उतरने का आदेश हआ। फिर परस्पर शत्रु भी बना दिया यह वह गुण है जिसको ऊपर जुल्म और कुफ्र के नाम से वर्णन किया गया है। शैतान की उत्पत्ति प्रारम्भिक पाप है किसका? सूरते स्वाद में उपरोक्त वार्तालाप और भी विस्तार से वर्णन किया है –

      🔥काला या इब्लीसा मामनअका अनतसजुदाइम्मा ख़लकतो बियदय्या, अस्तकबरता अमकुन्ता मिनलआलीना काला अना खैरुन मिनहो, ख़लकतनी मिन नारिन व खलकतहू मिनतीने कालाफ़अखरजमिन्हा फ़इन्नका रजीमुनाव इन्ना अलैका लअनती इला योमिद्दीना, काला रब्बा फ़न्जुरनी इलायोमि युबअसूना, काला फ़इन्नका मिनलमुन्ज़रीन इलायोमिल वक्तिल मालूम। काला फ़बिइज्जतिका लउगवन्नहुम अजमईन। [सूरत स्वाद आयत ७५-७६, ७७, ७८,७९, ८० तथा ८१ तक]

      (अल्लाह ने कहा) ऐ शैतान क्या बात मना करती है तुझको उसके सामने नतमस्तक होने से जिसे स्वयं मैंने अपने दोनों हाथों से उत्पन्न किया है। तूने घमण्ड किया या था तू उच्च श्रेणी वालों में से था। (शैतान बोला) कहा मैं श्रेष्ठ हूँ इससे कि बनाया तूने मुझको अग्नि से और बनाया इसको मिट्टी से। (ख़ुदा बोले) अच्छा तू इन आसमानों में से निकल जा। वास्तव में तू सड़ा-गन्दा है। वास्तव में तुझ पर लानत फटकार है मेरी न्याय के दिन (कयामत) तक। कहा ए रब ढील दे मुझे उस दिन तक कि उठाए जाएँगे मुर्दे। कहा कि अच्छा तू ढील दिए गयों में से है दिन निश्चित तक। (शैतान बोला) अच्छा सोगन्ध है तेरी प्रतिष्ठा की पथ-भ्रष्ट करूँगा इनको सम्मिलित (रूप से)। 

      शैतान को तो उत्पन्न किया ही था और वह भी अग्नि से अब जब वह अपनी स्वाभाविक प्रकृति के चमत्कार को दिखाने लगा तो अल्ला मियाँ रुष्ट हुए। क्या जानते न थे कि है ही ऐसा? प्रश्न हो सकता है कि जब यह अल्लाह के अपने अधिकार क्षेत्र में था कि सबको अधीनस्य उत्पन्न करता तो शैतान को क्यों विद्रोही स्वभाव का उत्पन्न कर दिया या भूलचूक से ऐसा हो गया। यदि भूल नहीं हुई, अपितु इच्छा से उसे घमण्डी बनाया गया तो रुष्ट होने और डराने धमकाने से क्या तात्पर्य है? बेचारे को फटकारा तक गया है। फिर भी रहमानियत (कृपालुता) का गौरव है कि उसने मौहलत (अवसर) माँगा तो दे दिया गया। वह किस बात की? प्रलयकाल तक लोगों को मनुष्यों को पथ-भ्रष्ट करने की। भला मनुष्य पर यह कृपा क्यों की? घमण्ड करे शैतान उसका दण्ड मिले मनुष्यों को। विचित्र कृपालुता है! 

      परन्तु नहीं लगे हाथों मनुष्य को शिक्षा भी दे दी है –

      🔥वला तत्तबिऊ खुतवातिश्शैताने इन्नहूलकुम उदुव्वुन मुबीन, इन्नमा यामुरकुम बिस्सूएवल फुहशाए। [सूरते बकर आयत १६८-१६९[

      और मत पीछे चलो शैतान के। सचमुच वह तुम्हारे लिए बड़ा शत्रु है वह और कुछ नहीं (करेगा) तुम्हें बुराई व लज्जाजनक कार्यों का ही आदेश देगा। 

      या अल्ला ! इसे पैदा ही नहीं करना था, किया था तो हमारा शत्रु न बनाना था। उसने आज्ञा का उल्लंघन किया उस पर लानत (फटकार) हुई। था बुद्धिमान् कि मुहलत (अवसर) माँग ली। कृपालुता का सहारा ले लिया कि उसे अवसर दिया जाए इसमें हमें शंका आपत्ति नहीं। परन्तु हमें पथ-भ्रष्ट करने की सामर्थ्य क्यों प्रदान की गई? उसकी शैतानियत का कोई और उपयोग हो जाता। 

      इसी सूरते स्वाद का कथानक सूरते ऐराफ के प्रारम्भ में आया है अवसर प्राप्त होने पर शैतान ने अपनी इस महत्वाकाँक्षा की महानता का कि वह प्रलय के दिन तक लोगों को पथ-भ्रष्ट करेगा कारण बताया है –

      🔥काला फ़बिमा अग़वतीनीलअकदन लहमसिरातन मुस्तकाम, सुम्मालआतैनहम मिनबैने ऐदैहिम व मिन ख़लफ़हिम व अनईमा निहिम व अनशुमाइलहिम व ला तजिदो अकसरहुन शाकिरौन। काला अख़रज़ो मिन्हा मजओम्मान मदहूरा।लमनतबइका मिन्हुम लअमलअन्ना जहन्नमा मिन्कुम अजमईन। [सूरते आराफ १६, १७, १८] 

      (शैतान) ने कहा (ए ख़ुदा) चूँकि तूने पथभ्रष्ट किया मुझे अलबत्ता (निश्चय ही) मैं उनके लिए तेरे सीधे रास्ते पर बैठूंगा। फिर उनके आगे से, पीछे से, दाएँ से, बाएँ से और तू उन्हें प्रायः धन्यवादी नहीं पाएगा, (ख़ुदा ने) कहा-निकल यहाँ से लज्जित व फटकारे हुए। जो उन (लोगों) में से तेरे पीछे लगेंगे वास्तव में भरूँगा दोजख़ को तुम सबसे। 

      शैतान कहता ही तो है कि अल्लाह ने मुझे पथ-भ्रष्ट किया है। जब उसकी सत्ता अभाव से हुई है और जब वह अल्लाह के आदेश का सब प्रकार से पालक है तो उसमें शैतानियत का सामर्थ्य उत्पन्न ही किसने की है? फिर अल्लाताला हैं कि बजाए इसके कि कुन कहकर उसे शैतान से भला मानस बना दें विपरीत इसके शैतान को प्रलयकाल तक खुली पथ-भ्रष्टता का अवसर देते हैं और इस पथ-भ्रष्टता का लक्ष्य किसे बनाते हैं? बेचारे मनुष्यों को वह भी तो जैसे अल्लाह ने बना दिए बन गए। किसी के भाग्य में पथ-भ्रष्टता लिखी गई किसी के भाग्य में शैतान से बचा रहना लिखा गया फिर यह झाड़-झपट (लानत-फटकार) क्यों? कि दोज़ख़ को भर दूंगा। पहले ही आज्ञा हो गई कि दोज़ख़ भरा जाना है। इसलिए सबको सन्मार्ग नहीं दिखाया जाएगा। इस शाश्वत इच्छा के मार्ग में बाधा कौन उत्पन्न कर सकता है ? अब कहिए भलाई बुराई की कल्पना भ्रम है या कुछ और? 

      इस पर अल्ला मियाँ फरमाते हैं –

      🔥या मूसा इन्नहू अनल्लाहुल अजोजुलहकीम। [सुरते नहल आयत ९] 

      ए मूसा सचमुच मैं ख़ुदा हूँ बड़ी कार्य कुशलता वाला। 

      शैतान के सम्बन्ध में तो न प्रौढ़ता का ही प्रमाण दिया और न कार्य कुशलता का। हाँ यह और बात है कि अपने आपको कुछ कह लें। 

      ऐसे ही कुरान के सम्बन्ध में फ़रमाया है –

      🔥ला रैबा फ़ीहे हुदन लिल मुत्तकीन। [बकर आयत १] 

      इसमें सन्देह नहीं मार्गदर्शन करती है परहेज़गारों को। 

      परहेज़गार पहले ही निर्मित है, मार्गदर्शन किसका हुआ? लेखक के कथन का तात्पर्य क्या हुआ? दूसरे भी ऐसा ही कहें तब कोई अर्थ हुआ। 

      सूरते हजर में शैतान ने फिर यह कथन दुहराया –

      🔥काला रब्बे बिमाअगवैतनी लउजय्यनना लहूमफ़िल अरजे वलउग़वयन्नुमहुम अजमईन। [सूरते हजर आयत ३९]

      कहा ए रब (ख़ुदा) चूँकि पथ-भ्रष्ट किया है तूने मुझे निश्चय ही सजाऊँगा (उनको गुनाहों से) मैं ज़मीन पर उन सबको पथ-भ्रष्ट करूँगा। 

      यह सजाना (जीनत देना) क्या है ? दोज़ख़ के लिए संवारना? अल्लाह मियाँ की शाश्वत वाणी की ही तो आज्ञा पालना हो रही है। 

      लीजिए अल्लाह मियाँ स्वयं फ़रमाते हैं –

      🔥अलमतरअन्ना अरसलन्नश्शैताना अललकाफ़िरीना तवज्जुहम अज्जन। [सूरते मरियम आयत ८४] 

      क्या नहीं देखा तूने हमने भेजा शैतानों को काफ़िरों के ऊपर बहकाते हैं उनको उभार (उत्तेजित) कर।[३]

[📎पाद टिप्पणी ३. Saheeh International, Yusuf Ali, वाले अंग्रेज़ी कुरान व फ़ारुकी जी के हिन्दी कुरान में आयत की संख्या ८३ दी है। -‘जिज्ञासु’ ]

      हम ऊपर निवेदन कर चुके हैं कि नित्य सत्ता अनादि केवल अल्लाताला की ही होने से वास्तविक कर्ता उसी को मानना पड़ेगा। कोई बुरा है तो इसलिए नहीं कि उसने जानबूझकर किसी कानून का उल्लंघन किया है, अपितु इसलिए कि उसे ऐसा बनाया गया है। और यहाँ तो आदम को पढ़ाया भी अल्ला ने स्वयं ही है। फ़रिश्तों को नतमस्तक भी स्वयं ही बना दिया है और फिर पथ-भ्रष्ट भी स्वयं ही करा दिया है। शैतान की यह स्वीकारोक्ति भी सत्यता पर आधारित है कि मैं अल्लाहताला द्वारा ही पथ-भ्रष्ट किया हूँ। या तो उसे बनाने में अल्लाह मियाँ से भूल हो गई और समय पर उस भूल को सुधारा नहीं गया या फिर अल्लाह मियाँ की प्रारम्भ से इच्छा ही यही रही थी कि प्रायः मनुष्य अकृतज्ञ हों और उनसे दोज़ख़ भर जाए। सर्वशक्तिमान् ख़ुदा के सामने ननुनच करने की तो सामर्थ्य ही किसे है ? बिना शैतान से पथ-भ्रष्ट हुए भी दोज़ख़ में जाने का आदेश हो तो आज्ञा पालन करना ही होगा। यह भी तो अल्लाह की ही चाहना है कि हम दोज़ख़ में जाएँ। परन्तु अपने कर्मों के फलस्वरूप। हम उन कर्मों को करने पर विवश हैं। कर लेंगे, परन्तु एक बात कहेंगे और अवश्य कहेंगे कि बलात् कराए गए कर्मों का फल दण्ड व पुरस्कार नहीं होता। दोज़ख़ को दण्ड और स्वर्ग को पुरस्कार कहना भूल है, हाँ अल्लाह की शक्ति और इच्छा के आगे नतमस्तक हैं।

◾️एकाएक सृष्टि क्यों बना दी?- दर्शन शास्त्र में आगे एक और प्रश्न वह यह कि उत्पन्न करना जब अल्लाह मियाँ के स्वभाव में नहीं तो एकाएक उससे यह सृष्टि उत्पन्न कैसे हो गई। अल्लाह का अपना इसमें कोई लाभ नहीं और हो भी तो एक असीमित समय तक मात्र एकत्व में रहने के पश्चात् सृष्टि के इतने पदार्थों की बहुलता की सामर्थ्य उसमें कहाँ से आ गई? यदि सृष्टि बनाने का ज्ञान अल्लाह मियाँ की बुद्धि में पहले से था तो उसका प्रयोग इससे पूर्व कभी क्यों नहीं हुआ? और इस सृष्टि रचना के पश्चात् फिर भी इसके प्रयोग की क्या कभी संभावना है

      🔥अल्लाहो यब्दुअल ख़लका सुम्मायुईदुहूसुम्मा इलैहे तुरजऊन। [सूरते रूम आयत १०]

      अल्लाह पहली बार उत्पत्ति करता है, दोबारा करेगा, फिर लौटाए जाओगे। 

      कुरान के भाष्यकारों की सम्मति में प्रथम सृष्टि उत्पत्ति हो चुकी। दूसरी सृष्टि प्रलय (न्याय का दिन-कयामत) के दिन होगी और उसके पश्चात् उत्पत्ति का क्रम समाप्त हो जाएगा। तो इसके पश्चात् परमात्मा की सृष्टि उत्पत्ति की शक्ति किस काम आएगी। अल्लाह मियाँ की शक्ति में यह ह्रास व निरस्तीकरण क्या दोष नहीं कि उसकी अनादि व अनन्त सत्ता में केवल दो बार ही उसकी यह शक्ति काम में आई। जब गुण समाप्त हो गया तो गुणी भी समाप्त हो जाएगा। 

      मनोविज्ञान विशेषज्ञ जानते हैं कि चेतन सत्ताओं का ज्ञान अभ्यास व अनुभव के अनुसार होता है। अल्लाह मियाँ का वर्तमान सृष्टि से पूर्व का अनुभव तो बेकारी का है। फिर अनायास यह नूतन अभ्यास उसे कैसे प्राप्त हुआ कि सारे पदार्थ उसने उत्पन्न कर दिए? 

जैसे कि लिखा है –

      🔥वलइन अरसलनारीहन फ़रउहूमुसफ़रैन। [सूरते रूम आयत ५०]

      यदि हम एक वायु भेज दें तो देखें खेती पीली हुई। क्या अल्लाह मियाँ ने इससे पहले कहीं पीली खेतियाँ बनाकर देखी थीं कि उनका वर्णन लोहे महफूज़ (परमात्मा के ज्ञान) की शाश्वत पुस्तक पर नित्य वाणी के रूप में लिखकर रख दिया। यदि यही सृष्टि पहली व अन्तिम है तो इससे पहले पीलापन विद्यमान नहीं था। इसका ज्ञान अल्लाह मियाँ को कैसे हुआ? कहा जा सकता है कि वर्तमान सृष्टि के पदार्थ ज्ञान का परिणाम हैं। यहाँ समस्या यह है कि अल्लाह मियाँ के ज्ञान और कर्म में से पहले कौन था और पीछे कौन? मनोविज्ञान ज्ञान तत्त्व के अनुसार यह दोनों ही एक दूसरे के पूर्ववर्ती भी हैं और पश्चात्वर्ती भी। अल्लाह मियाँ का कौन-सा गुण पहले आता है? ज्ञान का गुण कि कर्म का गुण? दर्शन शास्त्र का यह गम्भीर प्रश्न है जिसका समाधान केवल नित्यकर्म के विश्वासुओं के पास ही है। मध्य में कार्य प्रारम्भ मानने से प्रश्न होता है इससे पूर्व तो यह कार्य हुआ नहीं फिर यह मस्तिष्क में (अल्लाह मियाँ के) कैसे आया और यदि उसके मस्तिष्क में था तो कर्म रूप में परिवर्तित होने में उसके क्या कारण बाधक था? [४]

[📎 पाद टिप्पणी ४. ऋषि दयानन्द की यह वेदोक्त दार्शनिक देन अत्यन्त युक्तियुक्त, मौलिक व बेजोड़ है कि ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव नित्य हैं। ज्ञान व कर्म दोनों ही अनादि होने से पहले व पीछे होने का यहाँ प्रश्न ही नहीं उठता। वेद का मन्त्र सन्ध्या में हम नित्य प्रति पाठ करते हैं, दोहराते हैं – 🔥”यथा पूर्वमकल्पयत्” ईश्वर अनादि काल से सृष्टि और प्रलय का चक्र चला रहा है। यथापूर्व यह सृष्टि रची गई है। -‘जिज्ञासु’ ]

✍🏻 लेखक – पण्डित चमूपति एम॰ए॰ 

📖 ‘चौदहवीं का चाँद’ पुस्तक से संकलित

प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’

॥ओ३म्॥

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