अल्लाह-ताला एक सीमित व्यक्ति है [‘चौदहवीं का चाँद’ भाग-२] । ✍🏻 पण्डित चमूपति

[मौलाना सनाउल्ला खाँ कृत पुस्तक ‘हक़ प्रकाश’ का प्रतिउत्तर]

      प्रत्येक धर्म में सर्वोच्चकोटि की कल्पना परमात्मा के सम्बन्ध में है। कुरान शरीफ़ में उसे अल्लाहताला कहा गया है। कुरान के कुछ वर्णनों पर विचार करने से विदित होता है कि इस्लाम में परमात्मा की कल्पना किसी असीम शक्ति की नहीं है, अपितु स्थान, समय व शक्ति के रूप में एक सीमित व्यक्ति की कल्पना है। स्थानीयता की सीमा के साक्षी निम्नलिखित उद्धरण हैं। शेष प्रकारों की सीमा का वर्णन आगे चलकर किया जाएगा। 

      🔥इन्ना रब्बुकुमुल्लाहोल्लज़ी ख़लकस्समावात् वलअरज़ाफ़ि सित्तते अय्यामिन सुम्मस्तवा अलल अरशे। [सूरते यूनिस आयत ३] 

      वास्तव में पालनहार तुम्हारा अल्लाह है। जिसने उत्पन्न किया आकाशों को और भूमि को छह दिन में फिर स्थिरता धारण की ऊपर अर्श (अल्लाह का सिंहासन) पर। 

      तफ़सीरे हुसैनी में लिखा है –

      मा बदो ईमान दारेम व तावीले आं बहक गुज़ारेम 

      व्याख्या अल्लाह पर छोड़ो – हम इस पर ईमान (श्रद्धा विश्वास) रखते हैं और उसकी व्याख्या अल्लाह मियाँ पर छोड़ते हैं। 

      सूरते हूद में आया है – 

      🔥व हुव ल्लज़ी ख़लकस्ममावाते वलअरज़े फ़ीसित्तते अय्यमिन व काना अरशहू अललमाए। [सूरते हूद आयत ७] 

      और जिसने उत्पन्न किया आकाशों को और भूमि को छह दिन में और है उसका अर्श (सिंहासन) पानी पर। 

      इस पर तफ़सीरे हुसैनी में लिखा है –

      दर बरखे अज़ तफ़ासीर आवुर्दा कि हकताला दर मबदए आफ़रीनशं याकूते सब्ज बयाफ़रीद व बनज़र हैबत दरां निगरीस्त, आं जौहर आब शुद पस हक सुबहाना वताला बाद रा बयाफरीद व आब रा बर बालाए ओ बदाश्त व अर्श रा बर ज़बर आब जाए दाद, 

      अर्थात् कुछ कुरान के भाष्यों में वर्णन है कि अल्लाहताला ने सृष्टि उत्पत्ति के प्रारम्भ में एक हरे रंग का याकूत (कीमती जवाहर पत्थर) बनाया और उसे आतंकपूर्ण दृष्टि से देखा। वह जौहर पानी हो गया फिर अल्लाहताला ने वायु बनाई और पानी को उस पर रखा। और अपने अर्श को (सिंहासन को) पानी के ऊपर स्थान दिया। 

      ◾️अल्लाह ऊपर ही है – इन उद्धरणों से सिद्ध हुआ कि अर्श कोई साकार वस्तु है। और अल्लाताला उस पर स्थित होने से साकार प्रतीत होता है। वायु के ऊपर जल है। जल के ऊपर अर्श है और अर्श के ऊपर अल्लामियाँ। निचला भाग स्वाभाविक रूप से अल्ला से रिक्त होगा। 

      सूरते हाका में इस स्थानीय सीमितता को स्वयं कुरान शरीफ़ के शब्दों में स्पष्ट किया गया है –

      🔥व यहमिलु अरशा रब्बुका फ़ौकहुम योमइज़िन समानियतन 

      और उठाएँगे तेरे रब (पालनहार) के सिंहासन को अपने ऊपर उस दिन आठ व्यक्ति। 

      जिसे आठ व्यक्ति उठाएँगे उसके साकार होने में क्या सन्देह रहा? यह आठ कौन हैं ? तफ़सीरे हुसैनी में लिखा है 

      दर मआलिम आवुर्दा कि दरां रोज़ हमलाए अर्श हश्त बाशन्द ब सूरते बुज़ कोही, अज़ सुम्महाए एशां ता बज़ानू मसाफ़ते आं मिकदारे बुवद कि अज़ आसमाने ता ब आसमाने। 

      अर्थात् मआलिम (कुरान भाष्य) में लिखा है कि उस दिन तख़्त के उठाने वाले आठ होंगे जिन की सूरत पहाड़ी बकरे की होगी। उनके सुम्मों (एड़ियों) से घुटनों तक इतनी दूरी होगी जितनी एक आकाश से दूसरे आकाश तक (होती है)। 

      सूरते सिजदा में लिखा है –

      🔥युदब्बिरुल अमरा मिनस्समाए इललअरजे सुम्मा यअरुजो, फ़ीयीमिन काना मिकदारहू अलफ़ा सिनतिन मिम्मा तउद्दून, 

      व्यवस्था करता है हर बात की भूमि की ओर फिर चढ़ जाता है आसमान की ओर एक दिन में, (ख़ुदाई दिन) जिसका अनुमान तुम्हारी गणना में एक हजार वर्ष है। 

      ◾️इतनी दूर! – आसमान से भूमि की समस्याओं की देखभाल करने वाला फिर हज़ार वर्ष में ऊपर चढ़ने वाला शरीर रहित कैसे हो सकता है ? कुछ लोगों का ऐसा विचार है कि यहाँ चढ़ना अल्लाहमियाँ का नहीं, अपितु फ़रिश्तों का वर्णन है। फिर भी अल्लाहताला भूमि से इतना दूर तो है ही कि फ़रिश्तों को उसके पास जाते हज़ार वर्ष लगते हैं। वह भी तो शरीरधारी ही हुआ। 

      सूरते मआरिज में कहा है –

      🔥तअरजुल मलाइकतो वर्रुहोइलैहि फ़ीयोमिन काना मिकदारहू ख़मसीना अलफ़ा सिनतुन [सूरते मआरिज आयत ४] 

      चढ़ते हैं फ़रिश्ते और रूह उसकी ओर में उस दिन में जिसकी सीमा है पचास हजार वर्ष। 

      एक हजार और पचास हजार के अन्तर को ध्यान में न भी लावें तो अल्लाहताला की दूरी और सीमितता का वर्णन यहाँ भी स्पष्ट शब्दों में हुआ है। 

      ◾️अर्श का वाम दक्ष! सूराए वाकिया की प्रारम्भिक आयतों में बहिश्त में (स्वर्ग में) व दोज़ख़ (नरक) में रहने वालों का वर्णन है। बहिश्त में रहने वालों को असहाबुलमैमना अर्थात् ख़ुदा के दाहिनी ओर रहने वाले और दोज़ख़ में रहने वालों को असहाबुल मशीमता अर्थात् ख़ुदा के बाएँ तरफ़ रहने वाले कहा गया है। तफ़सीरे हुसैनी में इन शब्दों की व्याख्या करते हुए लिखा है कि – (असहाबुलमैमना) ब बहिश्तरवन्द व आँ दर यमीन अर्श अस्त, अर्थात् वे बहिश्त में जाएँगे और बहिश्त अर्श के दाएँ ओर है और (असहाबुलमशीमता) ब दोज़ख़ बरवन्द दोज़ख़ बर चपे अर्श अस्त, अर्थात् उन्हें दोज़ख़ ले जाएँगे और दोज़ख़ अर्श के बाएँ ओर है । जब अर्श के दाएँ और बाएँ दो दिशाएँ हैं और इस प्रकार वहाँ जाने वालों को दाएँ ओर के लोग व बाएँ ओर के लोग कहा जाता है तो अर्श को सीमा रहित कौन कह सकता है? सीमित स्थान का निवासी होने से अल्लाहमियाँ भी सीमित ही हुए। 

      सूरते ऐराफ़ में आया है – 

      🔥फलम्मा तजल्ला रब्बुहूलिलजबलेजअलहूदक्कन व ख़र्रामूसा सअकन। [सूरते आराफ़ आयत १४३] 

      फिर जब दर्शन किया स्वामी उसके ने पहाड़ की ओर किया उसे टुकड़े-टुकड़े और गिर पड़ा मूसा बेहोश। 

      यहाँ परमात्मा की उस ज्योति का वर्णन नहीं जो है तो समस्त ब्रह्माण्ड को घेरे हुए। परन्तु मनुष्य दृष्टि-दोष के कारण उसे पहचानता नहीं, बल्कि किसी ऐसी ज्योति का वर्णन है जिससे प्रकट होने से पहाड़ टूट गया, यह ज्योति जिसका प्रभाव शारीरिक है। आध्यात्मिक नहीं शारीरिक होगा, अर्थात् बिजली की भाँति का जिसका प्रकटीकरण सीमित है और उसे देखकर मूसा बेहोश हुआ। दूसरे शब्दों में परमात्मा की ज्योति आँखों की दृष्टि का आकर्षण भी है जैसे कि मूज़िहुलकुरान में इसी आयत पर लिखा है – 

      “इससे ज्ञात हुआ कि हकताला (परमात्मा) को देखना सम्भव है।” इस ज्योति को सीमित न कहें तो क्या कहें ? 

      सूरते नूर में फ़र्माया है –

      🔥अल्लाहो नूरु स्समावाते वल अरजे मस्सल नूरिही कमिश्कातिन फ़ीहा मिस्ब्बाहुन अलमिस्बाहे फ़जुजाजतिजुजाते। कअन्नहा कोकबुन योकदो मिनशजरतिन मुबा रिकतिन जैतूनतिन लाशर कियतुवला ग़रबियतुनयकादो जैतुहा युज़ियो व लौलम तमस्सहू नारुन। [सूरत नूर आयत ३५] 

      अल्लाह ज्योति है आसमानों की व ज़मीन की, उस (ताक) की भाँति (धनुष सरीखा) जिसमें दीपक हो और वह दीपक शीशे में हो वह शीशा एक तारा है प्रकाशमान है एक वृक्ष के तेल से कि मुबारिक जैतून का है न पूर्व का है न पश्चिम का है। निकट है तेल उसका कि प्रकाशमान हो जाए, यद्यपि उसको आग न लगे। 

      ◾️क्या समझे? – अनेक कुरान के भाष्य देखने पर भी समझ में नहीं आया कि उदाहरण पर उदाहरण पर इस वाक्य का आशय क्या है? हाँ यह स्पष्ट है कि अल्लाहताला का वर्णन शारीरिकता से ऊपर उठ नहीं सका। ताक (तिरवाल) क्या है ? दीपक क्या? शीशा क्या? जैतून का तेल क्या? अल्लाह नूर (ज्योति) है और ताक के सदृश है और तेल बिना अग्नि के प्रकाशमान होने वाला है कुछ रहस्य-सा है जिसकी सूक्ष्मता हमारी मोटी समझ में नहीं आती। 

      सूरते बकर की आयतें – ३३ से ३९, सूरते एराफ़ की आयतें ९ से १५, सूरते स्वाद की आयतें-७० से ७८ आदि स्थानों पर अल्लाहमियाँ का फ़रिश्तों, आदम और शैतान से वार्तालाप वर्णित है। इस वार्तालाप में आदम को शिक्षा देकर स्वर्ग में प्रविष्ट किया है। फ़रिश्तों ने पहले तो घमण्ड किया है, परन्तु फिर नतमस्तक (सिजदा) करने को तैयार हो गए हैं और शैतान आदि से अन्त तक विद्रोही बना रहा। और उसे तीन दिन तक अवसर दिया गया। वार्तालाप की प्रक्रिया एक शरीरधारी मनुष्य की-सी है जो डराता है, धमकाता है और फिर असहाय होकर घटनाओं के बहाव को उसके अपने ढंग से बहने देता है इस वार्तालाप के उद्धरण मनुष्य और शैतान के अध्याय में लिखे गए हैं वहाँ देखिए। 

      सुरते स्वाद में आदम को उत्पन्न करने की युक्ति बताई है 

      🔥ख़लकतो बियदय्या 

      बनाया मैंने दोनों हाथों के द्वारा। 

      यदि यहाँ हाथों का प्रयोग उदाहरण के रूप में हुआ है तो इससे आदम की उत्पत्ति की कोई विशेषता नहीं रही, क्योंकि बनाया तो औरों को भी अल्लाह ने ही है तो वे अभिवादनीय क्यों नहीं? दो हाथों की विशेषता वास्तविक हाथों पर प्रयुक्त है, जो शारीरिक होने 

की निशानी है।  

      सूरते शूरा में लिखा है – 

      🔥व मा कान लिबशरिन अन युकल्लिमहुल्लाहो इल्ला वहयन       

      ओमिन वराए हिजाबिन और युरसिलो रसूलन [सूरते शूरा आयत ५१]

      और नहीं है (सम्भव) किसी मनुष्य के लिए कि अल्लाह बात करे उससे, परन्तु संकेत से या पर्दे के पीछे से या भेजे सन्देश लाने वाला। 

      यदि परमात्मा मनुष्य के अन्दर विद्यमान है तो उसकी बात बिना किसी माध्यम के होनी चाहिए। संकेत, परदा और फ़रिश्ता (सन्देशवाहक-जिबरील की भाँति) सर्वव्यापक परमात्मा किस लिए प्रयुक्त करेगा? 

      तफ़सीरे हुसैनी में इसी आयत की व्याख्या करते हुए लिखा है –

      दर मूज़िह आवुरदा कि ख़ुदा बा रसूलिल्लाह सलअम सखुन गुफ्त अज़ो वराए हिजाबैन यानी हज़रत रसूल पनाह दर दो हिजाब बूद। कि सखुने ख़ुदा शुनीद, हिजाबे अज़ सुर्ख व हिजाबे अज़ मरवारीद सफ़ेद व मसीरत दरमियान हर दो हिजाब हफ़्ताद साला राह बूद। 

      मूज़िह में लिखा है कि ख़ुदा ने रसूलिल्लाह के साथ दो परदों के पीछे से कलाम किया, अर्थात् हज़रत दो पर्दो के बीच में थे जब उन्होंने ख़ुदा का कलाम सुना, एक पर्दा सुर्ख जरी का था और एक पर्दा सफ़ेद मोतियों का था और उन दोनों की दूरी एक दूसरे से सत्तर साल के सफ़र जितनी थी। 

      परदा ख़ुदा और उसके अतिरिक्त के बीच दूरी की सीमा के अतिरिक्त और क्या काम दे सकता है? रसूल ने पर्दे में ख़ुदा से बातचीत की तो ख़ुदा भी तो उसी परदे में होगा। 

      सूरते निसा में कहा है –

      🔥या अय्युहहन्नासू कद जाअकुमुर्रसूलो बिलहक्के मिन रब्बिकुम फ़आमिनू। [सूरत निसा] 

      ऐ लोगो! निःसन्देह आया तुम्हारे पास पैग़म्बर साथ सच्ची बात के तुम्हारे रब (पालनहार) के पास से अतः ईमान लाओ। 

      पैग़म्बर भी मनुष्य है और जब वह कोई सत्य की बात लाता है तो उसका माध्यम उपरोक्त तीन माध्यमों में से एक होगा। या तो वह अल्लाह मियाँ का संकेत पकड़ेगा या पर्दे में होकर बात करेगा या फ़रिश्ते (सन्देशवाहक) के द्वारा वाणी सुनेगा। दूसरे शब्दों में अल्लाह किसी मकान में सीमित रहेगा। वह अन्य संसार से पृथक् है और वह रसूल से बिना माध्यम के बात नहीं करता। 

      सूरते कदर में लिखा है –

      🔥तनज़्ज़लुल मलाइकतोवर्रूहो बिइज़नेरब्बिहिम मिनकुल्ले अमरिन। [सूरते कदर आयत ४] 

      उतरते हैं फ़रिश्ते और आत्माएँ अपने रब के आदेश के साथ प्रत्येक कार्य के लिए। 

      सूरते फ़जर में जिक्र है –

      🔥व जाआ रब्बुका वलमलको सफ़्फ़न सफ़्फ़न, व जाआ योमइज़िन बिजहन्नमा। [सूरते फ़जर आयत २२] 

      और आएगा रब तेरा और फ़रिश्ते सफ़ (लाइन) बाँधकर और लाया जाएगा उस दिन दोज़ख़। 

      यह वर्णन कयामत (प्रलय-न्याय का दिन) का है उस दिन गुनहगार व बेगुनाह सबके सामने रब आएगा। जिससे सिद्ध हुआ कि इस प्रकटीकरण का अर्थ ऐसा प्रकटीकरण नहीं जो साधक लोगों को हृदय-शुद्धि द्वारा प्राप्त होता है और सामान्य लोग अपने हृदय की बुराइयों के कारण उससे वंचित होते हैं, क्योंकि पापियों का हृदय तो उस समय भी शुद्ध न होगा। उनका हृदय का दर्पण जंग लगा हुआ होगा और उनके सामने रब आएगा। यह शारीरिक प्रकटीकरण है। तफ़सीरे हुसैनी में इसे और स्पष्ट कर दिया है। लिखा है –

      (दोजख रा) बर चपे अर्श बदारन्द, अर्थात् दोज़ख़ को अर्श के बाएँ रखेंगे। 

      जब अर्श का दायाँ-बायाँ है तो स्पष्ट ही वह शारीरिक ही हुआ। वह दायाँ-बायाँ वास्तव में अर्श पर बैठने वाले का ही होगा। उपरोक्त उद्धरणों से अल्लाहताला की सीमित अवस्था स्वयं सिद्ध है इस पर किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं। ज़मीन व आसमान बनाकर अर्श पर विराजमान होना, अर्श का पानी पर रखा जाना, आठ फ़रिश्तों से उठाया जाना, हज़ार या पचास हजार वर्ष में स्वयं अल्लाह मियाँ का ज़मीन से आसमान तक या फ़रिश्तों का यह दूरी सफ़र करके उसकी ओर जाना, अर्श या अर्श पर बैठने वाले के दाएँ स्वर्ग और बाएँ नरक का होना, अल्लाह का आग की भाँति चमकना और पहाड़ का टुकड़े करना व मूसा को बेहोश करना, ताक चिराग जैतून का तेल या उनका नूर होना, डराना, धमकाना फिर चुप हो रहना, दो हाथों से पुतला तैयार करना, संकेत परदा या फ़रिश्ते के माध्यम से बात करना, फ़रिश्तों आदि का उसकी ओर से आना-जाना, न्याय के दिन उसका विशेषरूप से प्रकट होना, सीमा व उसके सीमाबद्ध व शरीरी होने के स्पष्ट चिह्न हैं। 

✍🏻 लेखक – पण्डित चमूपति एम॰ए॰ 

📖 ‘चौदहवीं का चाँद’ पुस्तक से संकलित

प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’

॥ओ३म्॥

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