जीवन्मुक्त की चित्रण -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषयः देवाः । देवता प्रजापतिः: । छन्दः निवृद् आर्षी बृहती।
सुत्रस्यऽऋद्धिरस्यगन्म ज्योतिरमृताऽअभूम। दिवं पृथिव्याऽअध्यारुहामाविदाम देवान्त्स्वर्योतिः ॥
-यजु० ८।५२
हे जीवन्मुक्ति! तू ( सत्रस्य) जीवन-यज्ञ की ( द्धिःऋ असि ) समृद्धि है। (अगन्मज्योतिः ) पहुँच गये हैं हम प्रजापति रूप ज्योति तक। ( अमृताः अभूम) अमर हो गये हैं, जीवन्मुक्त हो गये हैं। (पृथिव्याः दिवम् अध्यारुहाम ) पृथिवी से द्युलोक में चढ़ गये हैं, निचले स्तर से सर्वोच्च स्तर पर पहुँच गये हैं। हमने (अविदामदेवान्) पा लिया है, दिव्य गुणों को, ( स्वः) आनन्द को, (ज्योतिः ) दिव्य प्रकाशको।।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये जीवन के पुरुषार्थ-चतुष्टय कहलाते हैं। धर्माचरण, धर्मानुकूल उपायों से अर्थसञ्चय एवं धर्मानुकूल काम का सेवन करते हुए मोक्ष के लिए प्रयत्नशील रहना मानव-जीवन का चरम लक्ष्य है। मुक्ति के मुख्य उपाय हैं विवेक, वैराग्य, षट्क सम्पत्ति (शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, समाधान) और वृत्ति-चतुष्टय (मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा) । इन उपायों द्वारा अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश इन पाँच क्लेशों से छूट कर मनुष्य मुक्ति का परमानन्द प्राप्त करता है। उक्त साधनों के अतिरिक्त ‘‘परमेश्वर की आज्ञा पालने, अधर्म-अविद्या-कुसङ्ग-कुसंस्कार, बुरे व्यसनों से अलग रहने, सत्यभाषण, परोपकार, विद्या, पक्षपातरहित न्यायधर्म की वृद्धि करने, परमेश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना अर्थात् योगाभ्यास करने, विद्या पढ़ने-पढ़ाने, धर्म से पुरुषार्थ कर ज्ञान की उन्नति करने, पक्षपातरहित न्यायधर्मानुसार आचरण करने आदि साधनों से मुक्ति और इनसे विपरीत ईश्वराज्ञाभङ्ग आदि से बन्ध होता है।”१ जब मनुष्य उस परमात्मा के दर्शन कर लेता है, जो अपने आत्मा के भीतर और सर्वत्र बाहर भी व्याप रहा है तब उससे अज्ञानरूपी गाँठ कट जाती है, उसके सब संशय छिन्न हो जाते हैं और दुष्ट कर्म क्षय को प्राप्त हो जाते हैं। इस स्थिति में जब तक शरीरपात नहीं होता, तब तक वह जीवन्मुक्त कहाती है। ऐसे ही कोई मनुष्य अपनी आनन्दमय जीवन्मुक्ति का वर्णन करते हुए प्रस्तुत मन्त्र में कह रहे हैं
‘हे जीवन्मुक्ति ! तू हमारे जीवन-यज्ञ की अतिशय समृद्ध अवस्था है। इस अवस्था में हमने प्रजापति परमात्मारूप ज्योति को पा लिया है। हम अमर हो गये हैं। हम पृथिवी से उठकर अन्तरिक्ष में पहुँच गये हैं, हमने ऊर्ध्व स्तर को पा लिया है। हमने दिव्य गुण पा लिये हैं। हमने आनन्द पा लिया है। हमने दिव्य प्रकाश प्राप्त कर लिया है। हमें जीवन्मुक्त हो गये हैं। देहपात के अनन्तर अब हम सुदीर्घ काल तक मुक्ति का आनन्द पाते रहेंगे, प्रभु के साहचर्य का दिव्य सुख अनुभव करते रहेंगे।’
पाद–टिप्पणियाँ
१. स० प्र०, समु० ९।।
२. मु० उप० २.२.१८
जीवन्मुक्त की चित्रण-रामनाथ विद्यालंकार