परम पुरुष को प्रसन्न और प्रत्यक्ष स्वरुप-रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः नारायणः । देवता पुरुषः । छन्दः आर्षी अनुष्टुप् ।
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहार्भवत्पुनः। ततो विष्वङ् व्यूक्रामत्साशनाननेऽअभि॥
-यजु० ३१.४
परम पुरुष परमेश्वर ( त्रिपाद्) तीन पादों से, तीन चतुर्थांशों से ( ऊर्ध्वः उदैत् ) संसार से ऊपर उठा हुआ है, लोकातिक्रान्त है, ( इह पुनः ) इस संसार में तो (अस्यपादःअभवत् ) इसका, इसकी महिमा का एक पाद अर्थात् चतुर्थाश ही विद्यमान है। ( ततः ) उसी एक पाद से ( विष्व ) विविध लोकों में गया हुआ वह (साशनानशने अधि) भोग भोगनेवाले चेतन प्राणी-जगत् में और भोग-रहित अचेतन जगत् में (व्यकामत) अभिव्याप्त है।
मैं भी पुरुष हूँ और मेरा भगवान् भी पुरुष है। अन्तर केवल इतना है कि मैं तो विशेषणरहित केवल ‘पुरुष’ हूँ, और मेरा भगवान् ‘परम पुरुष’ है। मैं पुरुष इस कारण हूँ कि मैं अपनी शक्ति से शरीररूप पुरी में परिपूर्ण हूँ और मेरा प्रभु पुरुष इस कारण है कि वह ब्रह्माण्डरूप पुरी में परिपूर्ण है। यास्काचार्य ने ‘पुरुष’ शब्द की निष्पत्ति तीन प्रकार से की है-‘पुरि सीदति, पुरि शेते, पूरयति अन्त: ५, परमेश्वर ब्रह्माण्ड पुरी में स्थित है, ब्रह्माण्ड-पुरी में शयन करता है, अन्तर्यामी होकर सबको अपनी सत्ता से परिपूर्ण करता है। यह पुरुष परमेश्वर चतुष्पाद्’ कहलाता है। किसी चौकी या पशु के चारों पैर विद्यमान रहें, तो वे चौकी या पशु पूर्ण कहलाते हैं, ऐसे ही परमेश्वर की पूर्णता को बताने के लिए उसे ‘चतुष्पाद् कह दिया जाता है। प्रस्तुते मन्त्र में कहा गया है कि परमेश्वर के उन चार पादों में से तीन पाद तो इसे ब्रह्माण्ड से ऊपर हैं, पंरिदृश्यमान सकल ब्रह्माण्ड की विभूति तो उसके केवल एक पाद से ही सम्पन्न हो रही है। उस एक पाद से ही वह *साशन’ और ‘अनशन’ जगत् में अपना विक्रम दिखा रहा है। साशन और अनशन का अर्थ है भोग करनेवाला और भोग न करनेवाला अर्थात् चेतन और जड़ जगत्। चेतन जगत् की महिमा पर दृष्टि डालो। यह आत्मा, प्राण, मन, बुद्धि, ज्ञानेन्द्रिय, कर्मेन्द्रियों का चेतन पुतला मानव-शरीर कैसे बड़े-बड़े आत्मोपयोगी और लोकोपयोगी कार्य कर लेता है ! इस चेतन मानव ने प्रत्येक क्षेत्र में अद्भुत आविष्कार किये हैं। यातायात के लिए वायुयान और जलपोत बनाये हैं, आत्मरक्षा और शत्रु-विजय के लिए युद्धोपयोग शास्त्रास्त्र बनाये हैं। रोगों से छुटकारा दिलाने के लिए ओषधियाँ आविष्कृत की हैं। मानव से अतिरिक्त चेतन गाय, घोड़े, हाथी आदि पशुओं, रंग-बिरंगी चिडियों तथा अन्य जन्तुओं में भी कैसी करामात भरी हुई है। यह तो है ‘साशन’ अर्थात् चेतन जगत् की कथा। ‘अनशन’ या जड़ जगत् में भी आश्चर्यजनक चित्रकला भरी पड़ी है। बादल, नदियाँ, सागर, स्रोत, झरने, वृक्ष, लताएँ, सूर्य, चाँद, सितारे सब आदर्श कलाकृति के नमूने हैं। इनमें प्राणियों के उपयोग की सामग्री भरी पड़ी है। यह सब चेतन और जड़ जगत् की महिमा उस परम पुरुष के चार पादों में से केवल एक पाद का माहात्म्य है। इससे उस पुरुष की महान् महिमा हम कुछ-कुछ अनुमान कर सकते हैं। आओ, श्रद्धापूर्ण नमन करते हैं हम उस ‘परम पुरुष’ को।
पाद-टिप्पमियाँ
१. उद्-इण् गती, लङ् लकार।
२. विषु विविधम् अञ्चति गच्छतीति विष्वङ्।
३. अशनेन भोगेन सहितं साशनम्, न अशनेन भोगेन सहितम् अनशनम्।
४. वि क्रमु पादविक्षेपे, ल। ५. पुरुष: पुरिषादः पुरिशयः पूरयतेर्वा । पूरयति अन्तः इत्यन्तरपुरुषमभिप्रेत्य। ** यस्मात् परं नापरमस्ति किञ्चिद् यस्मान्नाणीयो न ज्यायोऽस्ति कश्चित् । वृक्ष इव स्तब्धो दिवि तिष्ठत्येकस्तेनेदं पूर्णं पुरुषेण सर्वम् ।। निरु० २.३
परम पुरुष को प्रसन्न और प्रत्यक्ष स्वरुप-रामनाथ विद्यालंकार