99999990076553 – Atharv Veda Sanhita Bhag 3
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यह समाधि नहीं है
आज सुबह से ही एक खबर देख रहा हू दिव्य ज्योति जागरण संस्था के संस्थापक श्री आशुतोष जी महाराज के शरीर को फ्रीजर में रखा है और संस्था के व्यस्थापको द्वारा कहा जा रहा है महाराज समाधि में लिन है | जब की डॉक्टरओ द्वारा कहा जा चूका है की उनकी मस्तिष्क में कोई गति विधि नहीं है जिसे अंग्रेजी में Brain Dead कहते है | उनके हृदय में कोई गति नहीं है, उनकी नाडी भी शांत है और चमड़ी ने भी रंग बदलना शरू हो गया है इस कारण डॉक्टरी भाषा में कहा जाय तो उनकी मृत्यु हो चुकी है और डॉक्टरओ ने भी उन्हें मृत घोषित कर दिया है, पर संस्था मानने को तयार नहीं है और बस एक रट लगाये है महाराज समाधि में लिन है और वो भी फ्रीज़र के शुन्य के तापमान में क्या यही समाधि है ? या समाधि किसी अन्य अवस्था को कहते है | हम योग दर्शन के आधार पर इस सत्य या असत्य को जानने का प्रयत्न करेंगे |
जो समाधि शब्द का प्रयोग बड़े साधारण स्थर पर करते है उन्हें समाधि को समझने के लिए सर्वप्रथम योग शब्द को समझना पडेंगा | योग दर्शन के समाधिपाद का दूसरा सूत्र :-
योगश्चितवृतिनिरोध: ||१:२||
परिभाषा :- योग है चित्त की वृतियो का निरोध=रोखना | चित्त की वृतियो को रोखना योग का स्वरुप है |
सांख्य में जिसे बुद्धि तत्व के नाम से कहा गया है, योग ने उसी को चित्त नाम दिया है | योग प्रक्रिया के अनुसार-एक विशिष्ट कार्य है – अर्थ तत्व का चिंतन | योग दर्शन में अर्थ तत्व से तात्पर्य परमात्मा तत्व से है | ईश्वर का निरंतर चिंतन इस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य है और यह चिंतन बुद्धि द्वारा होता है | जब मानव योग विधियों द्वारा समाधि अवस्था को प्राप्त कर लेता है ; तब वह बाह्य विषयो के ज्ञान के लिए इन्द्रियों से बंधा नहीं रहता, उस दशा में बाह्य विषयो के ज्ञान के लिए इन्द्रियों से बंधा नहीं रहता, उस दशा में बाह्य इन्द्रियों के सहयोग के विना केवल अंत:करण द्वारा बाह्य विषयों के ग्रहण करने में समर्थ रहता है |
समाधि दो प्रकार की होती है १. सम्प्रज्ञात समाधि और २. असम्प्रज्ञात समाधि
सम्प्रज्ञात समाधि उस अवस्था को कहते है जब त्रिगुणात्मक अचेतन प्रकृति और चेतन आत्मा तत्व के भेद का साक्षात्कार हो जाता है | इसी का नाम ‘प्रकृति-पुरुष विवेक ख्याति’ है | परन्तु सम्प्रज्ञात समाधि की यह दशा वृति रूप होती है | विवेक ख्याति गुणों की एक अवस्था है | रजस,तमस का उद्रेक न होने पर सत्व गुण की धारा प्रवाहित रहती है | योगी इसका भी निरोध कर पूर्ण शुद्ध आत्म स्वरुप में अवस्थित हो जाता है | वह वैराग्य की पराकाष्टा ‘धर्ममेध-समाधि’ नाम से योग शास्त्र [४/२९] में उदृत है |अभ्यास और वैराग्य दोनों उपायों के द्वारा चित्त की वृतियो का निरोध पर सम्प्रज्ञात समाधि की अवस्था आती है |
असम्प्रज्ञात समाधि उन योगियों को प्राप्त होती है जिन्होंने देह और इन्द्रियों में आत्म साक्षात्कार से निरंतर अभ्यास एवं उपासना द्वारा उनका साक्षात्कार कर उनकी नश्वरता जड़ता आदि को साक्षात् जान लिया है, और उसके फल स्वरुप उनकी और से नितांत विरक्त हो चुके है | वे लंबेकाल तक देह-इन्द्रिय आदि के संपर्क में न आकर उसी रूप में समाधि जनित फल मोक्ष सुख के समान भोग करते है |
शास्त्रों [मुंडक,२/२/८; गीता,४/१९, तथा ३७ ] में ज्ञान अग्नि से समस्त कर्मो के भस्म हो जाने का जो उल्लेख उपलब्ध होता है, वह योग की उस अवस्था को समझना चाइये, जब आत्म साक्षात्कार पूर्ण स्थिरता के स्थर पर पहुचता है | अभी तक समस्त संस्कार आत्मा में विद्यमान रहते है | कोई भी संस्कार उभरने पर योगी समाधि भ्रष्ट हो जाता है |
समाधि लाभ के लिए दो गुणों की अत्यावश्यक है १. वैराग्य २. योग सम्बन्धी क्रिया अनुष्ठान | वैराग्य की स्तिथि होने पर भी यदि योगांगो के अनुष्ठान में शिथिलता अथवा उपेक्षा की भावना रहती है, तो शीघ्र समाधि लाभ की आशा नहीं रखनी चाइये |
सम्प्रज्ञात समाधि की दशा में योगी आत्मा और चित्त के भेद का साक्षात् कर लेता है | वह इस तथ्य को स्पष्ट रूप में आंतर प्रत्यक्ष में जान लेता है, की प्राप्त विषयों के अनुसार चित्त का परिणाम होता रहता है परन्तु आत्मा अपरिणामी रहता है |
आत्म बोध के अतिरिक्त इस अवस्था में अन्य किसी विषय का किसी भी प्रकार का ज्ञान न होने से योगी इस अवस्था का नाम ‘असम्प्रज्ञात समाधि’ है | इन दोनों में भेद केवल इतना है, कि पहली दशा में संस्कार उद्बुद्ध होते है, जब कि दूसरी दशा में नि:शेष हो जाते है |
समाधि अवस्था में आत्मा अपने रूप में अवस्तिथ होता है | अनुभव करना चैतन्य का स्वभाव है, वह उससे छुट नहीं सकता | फलत: जब वह केवल शुद्ध चैतन्य स्वरुप आत्मा का अनुभव करता है, तब उसे स्वरुप में अवस्थित कहा जाता है,केवल स्व का अनुभव करना ; अन्य समस्त विषयो से अछुता हो जाना | आत्मा इस अवस्था को प्राप्त कर समाधि शक्ति द्वारा परमात्मा के आनंद स्वरुप में निमग्न हो जाता है | उस आनंद का वह अनुभव करने लगता है | यही आत्मा के मोक्ष अथवा अपवर्ग का स्वरुप है |
यह हमने समाधि का संक्षिप्त में विवरण किया है और समाधि कि इस स्वरुप में मस्तिष्क कि गति, हृदय गति, नाडी का चलना अन्य सब बातें आवश्यक है | क्यों कि यह सब गति विधिया शरीर के लिए आवश्यक है और विना शरीर के समाधि अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती और शरीर को जीवित रखना है तो इन गति विधियों को होना आवश्यक है | इसलिए दिव्य ज्योति जागरण संस्था के संस्थापक श्री आशुतोष जी महाराज के शरीर कि इस अवस्था को समाधि अवस्था न कह कर इस अवस्था को मृत्यु कहा जायेंगा | और संस्था के प्रतिनिधि जो इस अवस्था को समाधि कह रहे है वह नितांत मूर्खता या पाखण्ड है | किसी भी शास्त्र में श्री आशुतोष जी महाराज कि जो अवस्था है उस अवस्था को समाधि नहीं कहा है |स्व में या परमात्मा के आनंद स्वरुप में स्तिथ रहने के लिए शरीर का जीवित अवस्था में होना आवश्यक है |
सहायता ग्रन्थ :- योग दर्शन भाष्य –भाष्यकार पंडित उदयवीर शास्त्री
यह मुल्ला सतीशचंद गुप्ता के दूसरे लेख “अहिंसा परमो धर्मं ” के उत्तर में लिखा है |
सतीशचंद गुप्ता :- वैदिक ब्राह्मण यज्ञ को प्रथम और उत्तम वैदिक संस्कार समझते थे। यह आर्यों का मुख्य धार्मिक कृत्य था। पशु बलि यज्ञ का मुख्य अंग थी। पशु बलि को बहुत ही पुण्य का कर्तव्य समझा जाता था। गौतम बुद्ध ने जब देखा कि आर्य लोग यज्ञ में निरीह पशुओं की बलि चढ़ाते हैं, तो यह देखकर उनका हृदय विद्रोह से भर उठा। आर्य धर्म के विरूद्ध उठने वाली क्रांति का प्रमुख कारण वैदिक पुरोहितवाद और हिंसा पूर्ण कर्मकांड ही था।
ईसा से करीब 500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध ने वैदिक धर्म पर जो सबसे बड़ा आरोप लगाया था वह यह था कि,
‘‘पशु बलि का पुण्य कार्य और पापों के प्रायश्चित से क्या संबंध ? पशु बलि धर्माचरण नहीं जघन्य पाप व अपराध है ?’’
यह एक विडंबना ही है कि गौतम बुद्ध के करीब 2350 वर्ष बाद आर्य समाज के संस्थापक, वेदों के प्रकांड पंडित स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस्लाम पर जो सबसे बड़ा आरोप लगाया है वह यह है कि
‘‘यदि अल्लाह प्राणी मात्र के लिए दया रखता है तो पशु बलि का विधान क्यों कर धर्म-सम्मत हो सकता है ? पशु बलि धर्माचरण नहीं जघन्य पाप व अपराध है।’’
कैसी अजीब विडंबना है कि जो सवाल गौतम बुद्ध ने वैदिक ऋषियों से किया था, वही सवाल करीब 2350 वर्ष बाद एक वैदिक महर्षि मुसलमानों से करता है। जो आरोप गौतम बुद्ध ने आर्य धर्म पर लगाया था, वही आरोप कई ‘शताब्दियों बाद एक आर्य विद्वान इस्लाम पर लगाता है।
वैदिक मत : यज्ञ वैदिक धर्मं का एक अत्यावश्यक तत्व है इस में कोई संदेह नहीं | वेदों में यज्ञो का महत्व अनेक स्थलों पर अत्यंत स्पष्ट शब्दों में बताया गया है, यहाँ तक कि यज्ञो के द्वारा ही भगवान कि पूजा और मोक्ष प्राप्ति का विधान किया गया है |
यज्ञेन यज्ञमयजन्त…………………………………प्रथमान्यासन |
ते ह नाकं……………………………………………सन्ति देवा: || १०.९०.१६ |
अर्थात सत्यनिष्ठ विद्वान लोग यज्ञो के द्वारा ही पूजनीय परमेश्वर कि पूजा करते है | यज्ञो में सब श्रेष्ट धर्मो का समावेश होता है | वे यज्ञो के द्वारा भगवान कि पूजा करनेवाले महापुरुष दुःख रहित मोक्ष को प्राप्त करते है. जंहा सब ज्ञानी लोग निवास करते है इत्यादि मंत्र इस विषय में उल्लेखनीय है | यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है गुप्ता जी कि यज्ञ शब्द जिस यज धातु से बनता है उस के देव पूजा—संगती करण और दान ये तीन अर्थ धातु पाठ में वर्णित है जिन में हमारे सब कर्तव्यों का समावेश हो जाता है | पर इस सब से आपको क्या गुप्ता जी आप तो उसी अन्य और विपरीत अर्थ को लेंगे जो आपके हित का है और आपका दोष भी नहीं है एक तो आपको भाषा का भी ज्ञान नहीं है और दूसरा मुक्य बात आदरणीय गौतम बुद्ध को भी वैदिक भाषा का ज्ञान नहीं था | और अंतिम वैदिक भाषा यौगिक अर्थ को प्रस्तुत करती है एक शब्द के अनेक अर्थ है जो प्रकरण अनुसार ग्रहण करने होते है | जिसने इस सिद्धांत को तोडा और मनमाने अर्थ किये वह वेद के मंत्रो के ऐसे ही मनमाने अर्थ करेंगा जो उस काल के तथकथित ब्राह्मणों ने किया |
यह बड़े दुःख कि बात है जिस यज्ञ कि इतनी महिमा बी=वेदों में बताई गयी है और जिस को परमेश्वर कि पूजा और प्राप्ति का साधन बताया गया है, उस के विषय में इतने अशुद्ध विचार मध्य कालीन आचार्यो ने उसे बगेर स्वाध्याय किये ही समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिये |
वेद में ऐसा कही नहीं लिखा है की पशु हिंसा से मुक्ति को प्राप्त होंगे उल्टा इसके विपरीत यजुर्वेद ४.१४ में लिखा है “ जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरुप को साथ ही साथ जानता है वह ‘अविद्या’ अर्थात कर्मोपसना से मृत्यु को तरके ‘विद्या’ अर्थात यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है |
सब वेदों में यज्ञ के पर्याय अथवा कही कही विशेषण के रूप में अध्वर शब्दों का प्रयोग सैकडो स्थानों पर पाया जाता है जिस कि व्युत्पति करते हुए निरुक्तकार श्री यास्काचार्य ने लिखा है |
निरुक्त २.७ में आचार्य लिखते है “ अध्वर यह यज्ञ का नाम है जिस का अर्थ हिंसा रहित कर्म है | चारो बी=वेदों में अध्वर के प्रयोग के हजारो उदाहरण है जिस में से निम्नलिखित कुछ का निर्देश यहाँ पर्याप्त है |
स ……………गच्छति || ऋग्वेद १.१. ४ |
इस मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर | तू हिंसा रहित यज्ञो में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञो को सत्यनिष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है |
ऋग्वेद १.१. ८ में मंत्र आता है –
इस मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर ! तू हिंसा रहित यज्ञो में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञो को सत्यनिष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है |
मै सतीशजी ऐसे कई उदाहरण दे सकता हू जो आपके आरोप को सिरे से ख़ारिज कर दे देते है |
मध्य के काल में यज्ञो में पशु हिंसा हुई इससे कोई इंकार नहीं कर सकता पर इसका दोष हम वेदों पर नहीं दाल सकते | दृष्टिहीन को सूर्य नहीं दिखे तो इसमें सूर्य का क्या दोष ?
अब आप कहेंगे ऋषि दयानंद का भाष्य कैसे सत्य और अन्यों का कैसे गलत वैसे ये समझदार को बताना अनावश्यक है पर आप उस श्रृंखला में नहीं आते इसलिए आप को कुछ विद्वानों द्वारा ऋषि के भाष्य पर कि हुई टिप्पणिय बता देते है |
यह सच्च में भारतीयो के लिए एक युगांतरकारी तारीख थी जब एक ब्राह्मण ( स्वामी दयानंद सरस्वती ) ने न केवल स्वीकार किया की सभी मनुष्यों को वेदों को पढने का हक़ है ,जिसका अध्ययन पहले से रूढ़िवादी ब्राह्मण द्वारा निषिद्ध किया गया था |किन्तु जोर देकर कहा कि इनका अध्ययन और प्रचार सभी आर्यों का कर्तव्य है ( Life of Ram Krishna By Roman Rolland p. 59 )
ये सिद्ध हो गया की पशु बलि ना पुण्य का कार्य है गोर पाप है और वेद विरुद्ध है | पापों के प्रायश्चित का इन दुष्कर्मो का कोई लेना देना नहीं है | निश्चित पशु बलि धर्मा चरण नहीं जघन्य पाप और अपराध है |
ऋषि दयानंद का इस्लाम से पशु बलि विषय से प्रश्न करना कोई विडंबना नहीं है क्यों की इस्लाम का कहना है की कुरान ईश्वरीय ज्ञान है | जब ईश्वरीय ज्ञान वेद पर प्रश्न हो सकते है तो कुरान पर क्यों नहीं |कुरहान से कुछ प्रमाण :-
1.
न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते है और न उनके रक्त | किन्तु उसे तुम्हारा धर्म परायण पहुँचता है | इस प्रकार उसने उन्हें तुम्हारे लिए वशीभूत किया है , ताकि तुम अल्लाह की बढ़ाई ब्यान करो | इसपर की उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया और सुकर्मियो को शुभ सुचना दे दो |( कुरान २२:३७ )
ये कितनी मूर्खता की बात है जब खुदा तक उनका गोश्त और खून पहुचेंगा ही नहीं सिर्फ खुदा की प्रशंसा मात्र करने के लिए कुर्बानी दो उस तथाकथित अल्लहा के नाम से जो दयालु है उचित प्रथित नहीं होता | इसलिए प्रश्न किया आप से क्या इसे कहते है ईश्वरीय ज्ञान और ईश्वर जो मात्र अपनी प्रशंसा के निर्दोष प्राणियों की हत्या करवाये गुप्ता जी |
जब ईश्वरीय ज्ञान ही कहता है कुर्बानी दो तो यह कैसे दया और यह कैसा ईश्वर और कैसा ईश्वरीय ज्ञान | आप को गुप्ता जी कोई अधिकार नहीं किसी अन्य पर प्रश्न करे आप कोई एक भी मंत्र वेदों में से बता सखे जो ईश्वर को खुश करने के लिए हत्या की बात करता हो |
Qurbani is Fardh for :
Qurbani, like Zakat, is essential for one who has the financial means and savings that remain surplus to his own needs over the year. It is essential for one?s own self.
However, a slaughter of animal can also be offered for each member of one?s family. It may be offered, though it is not essential, for one?s deceased relations, too, in the hope of benediction and blessings for the departed souls.
What to Sacrifice
All the permissible (halal) domesticated or reared quadrupeds can be offered for Qurbani. Generally, slaughter of goats, sheep, rams, cows, and camels is offered. It is permissible for seven persons to share the sacrifice of a cow or a camel on the condition that no one?s share is less than one seventh and their intention is to offer Qurbani. Age of Sacrificial Animals Sacrifice of goat or sheep less than one year old (unless the sheep is so strong and fat that it looks to be a full one year old) is not in order. Cow should be at least two years old. Camels should not be less than five years old. (http://www.islamawareness.net/Eid/azha.html)
सतीशचंद गुप्ता :- कैसी अजीब विडंबना है कि जो सवाल गौतम बुद्ध ने वैदिक ऋषियों से किया था, वही सवाल करीब 2350 वर्ष बाद एक वैदिक महर्षि मुसलमानों से करता है। जो आरोप गौतम बुद्ध ने आर्य धर्म पर लगाया था, वही आरोप कई ‘शताब्दियों बाद एक आर्य विद्वान इस्लाम पर लगाता है।
वैदिक मत :- आप इस तरह से कुराहन के कुर्बानी विषय को भटका नहीं सकते यह ऊप्पर सिद्ध हो चूका है की वैदिक मत यज्ञ में पशु हिंसा को स्थापित नहीं करता और ना ही ऐसा कोई मंत्र है जिसका अर्थ आपके आरोप को सिद्ध करता है | गौतम बुद्ध के जो आरोप थे वह अज्ञानता वश थे उसे वेदों पर थोपा नहीं जा सकता | यह दोष उस काल के अज्ञानी ब्राह्मण जिन्होंने वेदों के मनमाने अर्थ किये जिस वजह से गौतम बुद्ध वेदों से दूर हुए | हम आपको आवाहन करते है की आप वेदों में से जो आपने आरोप लगाये है सिद्ध कर के बताये | जो की हमने कुरहान से सिद्ध कर दिये है | इसलिये इस्लाम पर प्रश्न तो होंगे अपर इस्लाम के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है इसलिये आप इस विषय को परिवर्तित करने में लगे हुए है जो की हो नहीं सकता |
सतीशचंद गुप्ता :- धर्म का संपादन मनुष्य द्वारा नहीं होता। धर्म सृष्टिकर्ता का विधान होता है। धर्म का मूल स्रोत आदमी नहीं, यह अति प्राकृतिक सत्ता है। यह भी विडंबना ही है कि गौतम बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व का इंकार करके वैदिक धर्म को आरोपित किया था, मगर स्वामी दयानंद सरस्वती ने ईश्वर के अस्तित्व का इकरार करके इस्लाम को आरोपित किया है।
वैदिक मत :- ईश्वर के इकरार और इंकार का चर्चा के विषय से क्या लेना देना गुप्ता जी | ईश्वर का इकरार तो हज़रत मोहम्मद ने भी किया तो फिर उन्होंने भी बहोत गलत किया ? इसे कहते है मुह छुपाना और विषय को भटखाना सतीशचंद गुप्ता जी यह चर्चा के नियम के विरुद्ध है |
सतीशचंद गुप्ता :- प्राचीन भारतीय समाज में पशु बलि के साथ-साथ नर बलि की भी एक सामान्य प्रक्रिया थी। यज्ञ-याग का समर्थन करने वाले वैदिक ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि न केवल पशु बलि बल्कि नर बलि की प्रथा भी एक ठोस इतिहास का परिच्छेद है। यज्ञों में आदमियों, घोड़ों, बैलों, मेंढ़ों और बकरियों की बलि दी जाती थी। रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी मुख्य पुस्तक ‘‘संस्कृति के चार अध्याय’’ में लिखा है कि यज्ञ का सार पहले मनुष्य में था, फिर वह अश्व में चला गया, फिर गो में, फिर भेड़ में, फिर अजा में, इसके बाद यज्ञ में प्रतीकात्मक रूप में नारियल-चावल, जौ आदि का प्रयोग होने लगा। आज भी हिंदुओं के कुछ संप्रदाय पशु बलि में विश्वास रखते हैं।
वैदिक मत :-आप ने आरोप लगाया था वेदों पर कोई एक तो मंत्र दे दिया होता तो बड़ा आनंद आता | आप की विद्वता का ज्ञान होता पर गुप्ता जी आप तो हवाई घोड़े दौड़ा रहे है | वेद में ऐसे किसी बलि का कोई उल्लेख नहीं है | बात कर रहे है वेदों की और वेदों से प्रमाण तो नहीं दिया प्रमाण दे रहे है एक कवी के ग्रन्थ का वाह ! मान गये गुप्ता जी वेद स्वत: प्रमाण है वेद को किसी अन्य ग्रन्थ के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है | यह विशेषता होती है ईश्वरीय वाणी की जो कुरहान में नहीं है |
Dedication of the human sacrifice to the Moon God
“Then the man HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”pulled out a long knife and cut offHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”Bigley’sHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”headHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” with the help of a group of masked men who shouted, “God is great!” in Arabic. This is actually incorrect. They shouted ‘Allahu Akhbar!’ which means ‘Allah is the Greatest’.
However Allah cannot be the same as the Judeo-Christian God, because God forbade human sacrifice when Abraham tried to sacrifice Isaac. There are also warnings in the Old Testament about a moon-demon called Moloch who demands human sacrifice.
This dedication of the slaughtered kafirs to Allah occurs again and again in Islamic attacks. The Fort Hood shooter shouted ‘HYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive”AllahuHYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive” HYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive”Akbar’ as he opened fire. [Again ‘Allah’ is mistranslated as ‘God’]
Note also in the following videos how the congregation shout ‘AllahuAkbar’ as the Kafir’s blood begins to flow. (/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”http://crombouke.blogspot.in/HYPERLINK “http://crombouke.blogspot.in/2010/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”2010/01/HYPERLINK “http://crombouke.blogspot.in/2010/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”satanic-islam-allah-moloch-demands.html)
वेदों में तो नहीं है पर कुरान के अल्लाह के नाम पर आज भी इंसान की बलि दी जाती है | उस दयालु अल्लाह के नाम से बड़ा हास्यास्पद लगता है दयालु और इंसान की कुर्बानी |
सतीशचंद गुप्ता :- वेदों के बाद अगर हम रामायण काल की बात करें तो यह तथ्य निर्विवाद रूप से सत्य है कि श्री राम शिकार खेलते थे। जब रावण द्वारा सीता का हरण किया गया, उस समय श्री राम हिरन का शिकार खेलने गए हुए थे। उक्त तथ्य के साथ इस तथ्य में भी कोई विवाद नहीं है कि श्रीमद्भागवतगीता के उपदेशक श्री कृष्ण की मृत्यु शिकार खेलते हुए हुई थी। यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि क्या उक्त दोनों महापुरुष हिंसा की परिभाषा नहीं जानते थे ? क्या उनकी धारणाओं में जीव हत्या जघन्य पाप व अपराध नहीं थी ? क्या शिकार खेलना उनका मन बहलावा मात्र था ?
वैदिक मत :- सतीश जी रामायण के उस श्लोक की बात करते है जिसमे हिरण के शिकार की बात कही गयी है और क्यों कही गयी है ( अरण्यकाण्ड सर्ग ३३ श्लोक ४–१८ – मृग को देख कर लक्ष्मण ने शंका करते हुए कहा की इस प्रकार रत्नों से विचित्र मृग नहीं होता है अर्थात यह कोई माया है | लक्ष्मण जी की बात को काटते हुए सीता जी कहती है हे आर्यपुत्र ! यह सुहावना मृग मेरे मन को हरता है हे महाबाहो इसे लाइए यह हमारी क्रीडा के लिए होगा | यदि यह मृग जीता हुआ आपके हाथ न आये तो इसकी स्वर्ण खाल को बिछा कर उपासना करने योग्य होगा | तब रामचन्द्र जी लक्ष्मण को कहते है की हे लक्ष्मण तुम्हारे कहे अनुसार यह मृग माया वि है तो इसका वध करना जरुरी है )
अब गुप्ता जी यहाँ स्पष्ट है की सीता जी के द्वारा मृग पकड़ने को कहने का उद्देश्य उसके साथ क्रीडा करना था और रामचन्द्र जी का उद्देश्य उसको या तो क्रीडा के लिए पकड़ कर लाना या यदि वो मायावी हो तो उसका वध करना था |
अब रही श्री कृष्ण जी की मृत्यु की बात तो आपका यह दावा बिलकुल गलत है की उनकी मृत्यु शिकार खेलते हुई थी
महाभारत मौलवपर्व के अनुसार कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद द्वारिका चले आए थे। यादव–राजकुमारों ने अधर्म का आचरण शुरू कर दिया तथा मद्य–मांस का सेवन भी करने लगे। परिणाम यह हुआ कि कृष्ण के सामने ही यादव वंशी राजकुमार आपस लड़ मरे। कृष्ण का पुत्र साम्ब भी उनमें से एक था। बलराम ने प्रभासतीर्थ में जाकर समाधि ली। कृष्ण भी दुखी होकर प्रभासतीर्थ चले गए, जहाँ उन्होंने मृत बलराम को देखा। वे एक पेड़ के सहारे योगनिद्रा में पड़े रहे। उसी समय जरा नाम के एक शिकारी ने हिरण के भ्रम में एक तीर चला दिया जो कृष्ण के तलवे में लगा और कुछ ही क्षणों में वे भी परलोक सिधार गए। उनके पिता वसुदेव ने भी दूसरे ही दिन प्राण त्याग दिए।
सच्चे धर्मं का स्त्रोत वेद ही है | इसलिये मनु जी महाराज ने कहा है “धर्मं को जानना चाहे, उनके लिए परम श्रुति अर्थात वेद ही है, यह माना है |”
यजुर्वेद १२.४० में कहा है “ इन ऊन रूपी बालो वाले भेड, बकरी, ऊंट आदि चौपाये, पक्षी आदि दो पग वालो को मत मार |
अथर्ववेद १.१६ में कहा है “यदि हमारे गौ,घोड़े पुरुष का हनन करेंगा तो तुझे शीशे की गोली से बेध देंगे, मार देंगे जिससे तू हनन कर्ता न रहे | अर्थात पशु, पक्षी आदि प्राणियों केवध करने वाले कसाई को वेद भगवान गोली से मारने की आज्ञा देते है |”
अब ऐसे में मर्यादा पुरषोतम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण कैसे किसी निर्दोष प्राणी की हत्या कर सकते है | वे तो वेदों के ज्ञाता थे |
सतीशचंद गुप्ता :-
अगर हम उक्त सवाल पर विचार करते हुए यह मान लें कि पशु बलि और मांस भक्षण का विधान धर्मसम्मत नहीं हो सकता, क्योंकि ईश्वर अत्यंत दयालु और कृपालु है, तो फिर यहाँ यह सवाल भी पैदा हो जाता है कि जानवर, पशु, पक्षी आदि जीव हत्या और मांस भक्षण क्यों करते हैं। अगर अल्लाह की दयालुता का प्रमाण यही है कि वह जीव हत्या और मांस भक्षण की इजाजत कभी नहीं दे सकता तो फिर शेर, बगुला, चमगादड़, छिपकली, मकड़ी, चींटी आदि जीवहत्या कर मांस क्यों खाते हैं ? क्या शेर, चमगादड़ आदि ईश्वर की रचना नहीं है ?
वैदिक मत :- क्या गुप्ता जी प्राणियों के साथ अपनी तुलना कर रहे है | पर चलिए ठीक ही किया ऐसा कर के | मनुष्य ईश्वर की उपासना करता है तो उसमे ईश्वर के दया और कृपा के गुण आना स्वाभाविक है पर आप में नहीं आये और मनुष्य में स्वाभाविक ज्ञान के अलावा वह नैमितिक ज्ञान को भी धारण करता है | ये दोनों ही गुण पशुओ में न होने के वजह से उनमे दया और कृपा नहीं होती फिर भी एक गुण उनमे मनुष्य से अतिरिक्त होता है और वह है परमात्मा ने जैसा उनका शरीर बनाया है वे वैसा ही भोजन ग्रहण करते है गुप्ता जी पर मनुष्य ज्ञानी होते हुए भी शारीरिक व्यवस्था के विपरीत भोजन ग्रहण करता है और जिम्मेदार ईश्वर को ठहरता है |
सतीशचंद गुप्ता :- विश्व के मांस संबंधी आंकड़ों पर अगर हम एक सरसरी नज़र डालें तो आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन 8 करोड़ मुर्गियां, 22 लाख सुअर, 13 लाख भेड़-बकरियां, 7 लाख गाय, करोड़ों मछलियां और अन्य पशु-पक्षी मनुष्य का लुकमा बन जाते हैं। कई देश तो ऐसे हैं जो पूर्ण रूप से मांस पर ही निर्भर हैं। अब अगर मांस भक्षण को पाप व अपराध मान लिया जाए तो न केवल मनुष्य का जीवन बल्कि सृष्टि का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। जीव-हत्या को पाप मानकर तो हम खेती-बाड़ी का काम भी नहीं कर सकते, क्योंकि खेत जोतने और काटने में तो बहुत अधिक जीव-हत्या होती है।
वैदिक मत :- चलिए आप एक काम करिये रोटी,दाल,चावल, सब्जी कुछ भी ग्रहण मत कीजिये मात्र मांस खाइए और जी के बताइए आप जी नहीं सकते | ये बकवास है एक काल ऐसा भी था की सृष्टि पर जिव हत्या पर मृत्यु दंड की शिक्षा थी पर सृष्टि तो उस अवस्था में आज से भी अच्छी तरह से चली | ये मात्र आपकी सोच है कोई सिद्धांत नहीं है | खेती एक वैदिक कार्य या कर्म है जो समाज के लिए है अगर अनाज नहीं होंगा तो खायेंगे क्या ? पर मांसाहार निजी स्वार्थ है क्यों की कोई भी पशु मरना नहीं चाहता यही सिद्ध करता है यह ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है | पर खेती ईश्वरीय नियम के अनुसार होती है न की व्यक्ति विशेष के नियम अनुसार |
सतीशचंद गुप्ता :- विज्ञान के अनुसार पशु-पक्षियों की भांति पेड़-पौधों में भी जीवन Life है। अब जो लोग मांस भक्षण को पाप समझते हैं, क्या उनको इतनी-सी बात समझ में नहीं आती कि जब पेड़-पौधों में भी जीवन है तो फिर उनका भक्षण जीव-हत्या क्यों नहीं है? फिर मांस खाने और वनस्पति खाने में अंतर ही क्या है ? यहाँ अगर जीवन Life ; और जीव Soul; में भेद न माना जाए तो फिर मनुष्य भी पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की श्रेणी में आ जाता है। जीव केवल मनुष्य में है इसलिए ही वह अन्यों से भिन्न और उत्तम है।
वैदिक मत :- उसमे भले ही जिव है पर पशु की चेतना में और वृक्ष की चेतना में बहोत अंतर है | वृक्ष की चेतना आतंरिक है और पशु की चेतना बाह्य है | इसलिये जब हम किसी पेड पौधे का सेवन करते है तो उनको दुःख नहीं होता और पशु को अत्यंत दुःख सहना पड़ता है | पेड–पौधों का सेवन मनुष्य के लिए ईश्वरीय व्यवस्था है जब की पशु की हत्या कर के खाना नहीं | फल हमेशा पक कर निच्चे गिर जायेंगा पर ऐसी कोई व्यवस्था पशुओ में नहीं |
सतीशचंद गुप्ता :- विज्ञान के अनुसार मनुष्य के एक बार के वीर्य Male generation fluid स्राव (Discharge) में 2 करोड़ ‘शुक्राणुओं (Sperm) की हत्या होती है। मनुष्य जीवन में एक बार नहीं, बल्कि सैकड़ों बार वीर्य स्राव करता है। फिर मनुष्य भी एक नहीं करोड़ों हैं। अब अगर यह मान लिया जाए कि प्रत्येक ‘शुक्राणु (Sperm) एक जीव है, तो इससे बड़ी तादाद में जीव हत्या और कहां हो सकती है ? करोड़ों-अरबों जीव-हत्या करके एक बच्चा पैदा होता है। अब क्या जीव-हत्या और ‘‘अहिंसा परमों धर्मः’’ की धारणा तार्किक और विज्ञान सम्मत हो सकती है
वैदिक मत :- यह ईश्वरीय व्यवस्था है गुप्ता जी करोडों शुक्रानोओ में से कोई एक शुक्राणु गर्भ में जाए और गर्भ स्थापित होंगा | यह नियम है और वैज्ञानिक है एक शुक्राणु गर्भ मे जायेंगा तो गर्भ स्थापना होना बहोत मुश्किल हो जायेंगा | और जब उन शुक्रनुओ ने शरीर ही धारण नहीं किया तो उनको दुःख कैसा और उनकी मृत्यु कैसी ? जिव हत्या तो तब हुई जब शरीर धारण किया | हत्या तो आप करते हो गुप्ता जी | जिव की कभी हत्या नहीं होती, शरीर का त्याग ही मृत्यु कहलाती है | अवश्य पशु हत्या की धारण तार्किक और विज्ञान सम्मत है क्यों की उस अवस्था में जीव ने शरीर धारण कर लिया |
सतीशचंद गुप्ता :- जहाँ-जहाँ जीवन है वहाँ-वहाँ जीव (Soul) हो यह ज़रूरी नहीं। वृद्धि- ह्रास , विकास जीवन (Life) के लक्षण हैं जीव के नहीं। आत्मा वहीं है जहाँ कर्म भोग है और कर्म भोग वही हैं जहाँ विवेक (Wisdom) है। पशु आदि में विवेक नहीं है, अतः वहां आत्मा नहीं है। आत्मा नहीं है तो कर्म फल भोग भी नहीं है। आत्मा एक व्यक्तिगत अस्तित्व (Cosmic Existence) है जबकि जीवन एक विश्वगत अस्तित्व (Individual Existence) है। पशु और वनस्पतियों में कोई व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं होता। अतः उसकी हत्या को जीव हत्या नहीं कहा जा सकता। जब पशु आदि में जीव (Soul) ही नहीं है, तो जीव-हत्या कैसी ? पशु आदि में सिर्फ और सिर्फ जीवन है, जीव नहीं। अतः पशु-पक्षी आदि के प्रयोजन हेतु उपयोग को हिंसा नहीं कहा जा सकता।
वैदिक मत :- क्यों जरुरी नहीं जीवन का ही दूसरा नाम चेतना है जो जीव के बगेर हो ही नहीं सकती |वृद्धि और विकास उसी शरीर में देखने को मिलेंगे जहा जीव है जहाँ जीव नहीं वह वृद्धि और विकास भी नहीं | किसी मृतक शरीर में यह सब लक्षण प्राप्त नहीं होंगे गुप्ता जी | कर्म और भोग तो एक दूजे के पूरक है | कर्म है तो भोग है और अगर कर्म नहीं तो भोग भी नहीं | जहाँ जड़ और चेतन का प्रत्यक्ष अनुभूति हो जाए उसे विवेक कहते है और वह निरंतर पुरषार्थ करने से प्राप्त होता है नाकि मात्र साधारण कर्म और भोग से | कर्म और भोग की व्यवस्था तो पशुओ में भी है पर उनमे विवेक नहीं है | जब बच्चे का जन्म होता है तो क्या उसमे विवेक होता है | कर्म-भोग होता है ? तो फिर क्या उसमे जीव नहीं है गुप्ता जी ? आप मात्र शब्दों का जाल बना रहे है सरल और सिद्धि बात है आत्मा है तो जीवन है ये भी एक दूजे के साथी है | आत्मा नहीं रहेंगी तो जीवन भी नहीं रहेंगा और अगर जीवन रहेंगा तो आत्मा भी रहेंगी | पशुओ में साधारण कर्म की व्यवस्था है, पशुओ में भोग है, और पशुओ में जीवन है तो पशुओ में आत्मा कैसे नहीं ?
अगर पशुओ में आत्मा नहीं है तो जो स्वाभाविक ज्ञान हमे उनमे दीखता है वह किसका गुण है आत्मा का या शरीर का ? अगर आत्मा नहीं तो शरीर का है और अगर शरीर का है तो मृतक शरीर में फिर क्यों नहीं दीखता ? यह गुण आत्मा का है जो आत्मा के साथ आता है और आत्मा के साथ चला जाता है |अंत में तुमने ही मान लिया की पशुओ में जीवन है जीव नहीं यह जीवन शब्द जीव से ही बना है | जीव है इस लिए जीवन है और जीव नहीं तो मृत्यु है | अत: पशु पक्षी की स्व प्रयोजनार्थ हत्या करना घोर हिंसा है |
लेखक – अनुज आर्य
कुछ दिन पहले मेरे एक मुस्लिम मित्र ने मुझे एक किताब पढने को कहा जिसका नाम था ” आप की अमानत आप की सेवा में ” लेखक थे मौलाना मुहम्मद कलीम सिद्दकी .
पुस्तक का नाम सुनकर मुझे लगा की इसमें कुछ नया होगा , लेकिन जब इस पुस्तक को पढ़ा तो पता चला की कुरान और अल्लाह को जबरदस्ती सही साबित करने की कोशिश की है | वे ही सब पुराने कुतर्क जिनका जवाब आर्य समाज पिछले १५० वर्षो से देता आ रहा है | इस लेख के माध्यम से मौलना की लिखी बातो पर प्रकाश डाला जाएगा
मौलाना :-
मेरे प्रिय पाठको ! मुझे क्षमा करना , मै अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी को ओर से आप से क्षमा और माफ़ी मांगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान( राक्षस ) के बहकावे में आकार आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुचाई , उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठकर इस पुरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी यदि इस्लाम की तुलना शैतान से की जाए तो भी शैतान ही सही साबित होगा | क्योंकि शैतान ने कभी बेगुनाह जानवरों के जिबह की आज्ञा नहीं दी पर इस्लाम वालो को देखिये न जाने अल्लाह के नाम पर कितने बेगुनाह जानवरों को जिबह कर चुके है | शैतान कोण हुआ ? मुसलमान या अजाजिल ?जिस बेचारे ने हजारो वर्षो तक अल्लाह को सजदा किया हो , जन्नत से निकलना मंजूर हुआ पर शिर्क न किया उस बेचारे को शैतान कहा जा रहा है | मुसलमान तो जन्नत के लिए नमाज करते है पर शैतान ने तो जन्नत में होते हुए भी सजदा करना ना छोड़ा | शैतान ने कोई काम अल्लाह की आज्ञा के बिना नहीं किया | फिर भी उसे बदनाम किया जाता है
मौलाना जी अब मै आपका ध्यान आपके कुरान की तरफ ही ले जाता हूँ जहां लिखा है की आदम ने अल्लाह के मना करने के बावजूद भी सैतान के बहकावे में आकर उस पेड़ का फल खाया जिसे खाने से अल्लाह ने मना किया था | तो भ्राता श्री आप तो एक साधारण इन्सान है जब आदम जो की अल्लाह के पहले नबी थे वो ही सैतान के बहकावे में आगये तो आपका बहकावे में आना स्वभाविक है | ये बाद का विषय है की शैतान किसके बहकावे में आया था | और हमारी दोलत हमारे पास देर से पहुचाने में आपकी कोई गलती नहीं है ये सारी गलती तो अल्लाह की है जिसे मात्र १४०० वर्ष पहले ख्याल आया की जिस कायानात को उसने करोड़ो साल पहले बनाया था तो उसके लिए कुरान रूपी ज्ञान भी भेजना है ? ये विषय बाद का है की अल्लाह ने तौरेत,जबूर या इंजील भी भेजी है |अब बात आती है घृणा फ़ैलाने की तो मानव जाती में घृणा को फ़ैलाने में महत्वपूर्ण योगदान भी कुरान का ही रहा है जिसने मानव जाती को दो भागो में बाँट दिया , एक ईमान वाले तथा दुसरे बेईमान | इस से बड़ी भेदभाव की बात क्या हो सकती है ? और इसी भेदभाव का नतीजा आज दुनिया भुगत रही है की देश के देश खत्म हो गये है इसी भेदभाव के कारण जो अल्लाह के द्वारा पैदा किया गया है दो इंसानों के बिच |
मौलाना :-
वह सच्चा मालिक जो दिलो के भेद जानता है , गवाह है की इन पृष्ठों को आप तक पंहुचाने में मै निस्वार्थ हूँ और सच्ची हमदर्दी का हक़ अदा करना चाहता हूँ | इन बातो को आप तक न पंहुचा पाने के गम में कितनी रातो की मेरी नींद उड़ी है | आपके पास एक दिल है उस से पूछ लीजिये वह सच्चा है |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी हम कैसे दिल से पूछ ले हमारे दिल पर तो अल्लाह ने पहले ही मोहर लगा दी है और हमारा रोग बड़ा दिया है तो आपका यह कहना व्यर्थ है
मौलाना :-
यह बात कहने की नहीं मगर मेरी इच्छा है की मेरी इन बातो को जो प्रेमवाणी है , आप प्रेम की आँखों से देखे और पड़े | उस मालिक के लिए सारे संसार को चलाने और बनाने वाला है गौर करे ताकि मेरे दिल और आत्मा को शान्ति प्राप्त हो , की मैंने अपने भाई या बहिन की धरोहर उस तक पंहुचाई और अपने इन्सान होने का कर्तव्य पूरा कर दिया |
आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी यह आपने इन्सान होने का नहीं बल्कि मुसलमान होने का कर्तव्य पूरा किया है क्योंकि जिस कुरान का आप पक्षधर कर रहे है उसमे कहीं भी इन्सान बनना नहीं बताया है केवल और केवल मुसलमान बनना सिखाया है | यदि आप वेद ज्ञान को दुसरो तक पाहुचाते तो आप इंसान होने का कर्तव्य पूरा करते
मै आपकी इस बात से सहमत हूँ की इस संसार को बनाने वाला एक ही है | पर क्या उस सैतान को बनाने वाला भी वाही है ? यदि शैतान को बनाने वाला भी वही है तो उस बनाने वाले से बड़ा शैतान कोन होगा ? क्योंकि इस्लाम तो जिव को स्वतंत्र नहीं मानता कर्म करने में |
मौलाना :-
इस संसार बल्कि प्रकृति की सब से बड़ी सच्चाई है की इस संसार सृष्टि और कायनात का बनाने वाला , पैदा करने वाला और उसका प्रबंध चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अकेला मालिक है | वह अपने अस्तित्व ( जात ) और गुणों में अकेला है | संसार को बनाने . चलाने , मारने जिलाने में उसका कोई साझी नहीं |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो शहिह मुस्लिम ३२/६३२५ ने ये क्यों लिखा की ” आदम खुदा की छवि है |” सिद्दकी साहब अब बताइए की यहाँ किस छवि की बात हो रही है ? यादी आप गुणों में तुलना करोगे तो आपका यह कहना व्यर्थ हो जाएगा की अल्लाह आपने गुणों में अकेला है और यदि आप ये कहो की ये शारीरिक छवि की बात हो रही है तो आपका अल्लाह साकार सिद्ध हो जाएगा | मर्जी आपर्की है की आप किस प्रकार का अल्लाह पसंद करते है | कुरान और इस्लाम ने अल्लाह को ही इस सब संसार का बनाने वाला माना है | लेकिन वो अल्लाह वही है जिसने कुरान की रचना की या फिर कोई दूसरा अल्लाह ? क्योकिं कुरान में अल्लाह भी दो है उदाहरण के लिए देखिये
१.)अल्लाह की सौगंध ! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है ” सूरत अन-नहल १६, आयत ६
२.)तुम्हारे रब की कसम ! हम अवश्य ही उन सबके विषय में पूछेंगे जो कुछ वे करते रहे | सूरत अलहिज्र, आयत ८२,८३
अब निर्णय आप पर छोड़ देते है की संसार को बनाने वाला अल्लाह एक है या फिर दो ?
मौलाना :-
वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है , हर एक की सुनता है और हर एक को देखता है | समस्त संसार ने एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकता |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो कुरान में अल्लाह ताला ने ये क्यों कहा ”
निसंदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है जिसने आकाशो और धरती को छह दिनों में पैदा किया और फिर राजसिंहासन पर विराजमान हुआ ” सूरत युनस आयत ३
अब वो सिंहासन कहां है यह भी देख लीजिये ” वही है जिसने आकाशो और धरती को छह दिन में पैदा किया -उसका सिहासन पानी पर था ” सुरत हूद आयत ७
अतः आपका यह कहना की वह हर जगह मौजूद है व्यर्थ है |
यदि( अल्लाह ) की मर्जी के बिना एक भी पत्ता नहीं हिल सकता “
तो जितने भी हत्या , चोरी ,बलात्कार आदि जितने भी अपराध है ये सब अल्लाह की मर्जी से ही हो रहे है तो फिर शैतान और अल्लाह में क्या भेद रह गया ? यहाँ तक की शैतान भी सभी कार्य अल्लाह की मर्जी से करता है |
मौलाना :-इतनी बड़ी सृष्टि का प्रबंध एक से ज्यादा खुदा या मालिको द्वारा कैसे चल सकता है | और संसार के प्रबंधक कई लोग किस प्रकार हो सकते है ?
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि आपकी कुरान के अनुसार देखा जाए तो एक खुदा के सिवाय बहुत से प्रबन्धक है | सबसे पहला प्रबन्धक तो जिब्राइल नाम का फरिश्ता ही है जो अल्लाह के पोस्टमैन की तरह कार्य करता है अर्थात अल्लाह का पैगाम नबियो तक पहुचाता फिरता है यदि वह न हो तो अल्लाह का पैगाम कोण पहुचाये ?दूसरा और सबसे बड़ा प्रबन्धक मुहम्मद साहब है जो अल्लाह के हर कार्य में सहयोग करते है चाहे वो अल्लाह के दीन को फैलाना या फिर अल्लाह का आज्ञापालन करना | अल्लाह की आज्ञापालन न करो तो चल जाएगा लेकिन जो नबी अर्थात मुहम्मद की आज्ञापालन नही करेगा वो दोज़ख में जाएगा |
एक दलील नामक शीर्षक के व्याख्यान में आप लिखते है की
मौलाना :-
चौदह सौ साल से आज तक इस संसार के बसने वाले और साइंस कम्पुटर तक शोध करके थक चुके और अपना अपना सिर झुका चुके है किसी में भी यह कहने की हिम्मत नहीं हुई की यह अल्लाह की किताब नहीं है
आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी शायद आप महर्षि दयानंद सरस्वती और आर्य समाज को भूल गये जिन्होंने १३२ वर्ष पहले कुरान की धज्जीया उड़ा दी थी ? बड़े बड़े मौलानाओ को आर्य समाज ने धुल चटाई है शास्त्रार्थ में वो सब आप शायद भूल गये है | आज तो भूल से भी कोई आर्य समाज के साथ शास्त्रार्थ करने नहीं आता | सत्यार्थ प्रकाश नाम तो आपने सुना ही होगा ? कैसी धज्जिया उड़ाई है कुरान की शायद आप भूल गये |
मौलाना :- इस पवित्र किताब में मालिक ने हमारी बुद्धि को समझाने के लिए अनेक दलीले दी है | एक उदाहरण है की ” अगर धरती और आकाश में अनेक माबूद होते तो खराबी और फसाद मच जाता |
आर्य सिद्धान्ती :-
मै आपकी बात से सहमत हूँ लेकिन क्या उस माबूद की किताब कुरान के मानने से फसाद उत्पन्न नहीं हो रहा है ? उसी अल्लाह और कुरान के नाम पर न जाने कितने करोड़ बेकसूरों का लहू बहाया है इस्लाम ने | उसी कुरान के आदेशो के कारण आज पूरे विश्व में अशांति का वातावरण है | इसी कुरान की आयतों को पढ़ कर अजमल कसाब और ओसामा से जैसे लोग काफ़िरो ( गैर मुस्लिमो ) को मारने निकल पड़े | इसी कुरान के कारण इंसान दो हिस्सों में बंट गया एक ईमान वाले तथा दुसरे ईमान न लाने वाले ||इस्लाम तो कहता है की जहालियत को खत्म करने के लिए कुरान अवतरित हुआ है लेकिन इसने तो खुद लोगो को जहालियत में डाल दिया है |
मौलाना :-
सच यह की संसार की हर चीज गवाही दे रही है यह भली भाँती चलता हुआ सृष्टि का निजाम गवाही दे रहा है की संसार का मालिक अकेला और केवल अकेला है | वह जब चाहे और जो चाहे कर सकता है |
आर्य सिद्धान्ती :-
सिद्दकी साहब दुनिया यही तो जानना चाहती है की वह अकेला है कोन ? क्या कुरान का लिखने वाला अल्लाह ही वह अकेला है ? यदि वही अकेला अल्लाह है तो फिर ये दूसरा अल्लाह कोन है ?
“अल्लाह की सौगंध ! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है ” सूरत अन-नहल १६, आयत ६ “
अतः आपका यह कहना की अल्लाह एक ही है इस्लाम के अनुसार तो यह बात कुछ हजम नही हुई |और यदि वह जब चाहे जो चाहे कर सकता है तो शैतान से सजदा क्यूँ न करवा सका ? आदम को फल खाने से क्यों न रोक सका ? कयामत तक शैतान लोगो को बहकाता रहेगा , उसे अल्लाह क्यों न रोक सके ?
मौलना :-
यह धरती भी मनुष्य की सेवक है , आग पानी जीव जंतु , संसार की हर वास्तु मनुष्य की सेवा के लिए बनाई गयी है | इन्सान को इन सब चीजो का सरदार बनाया गया है तथा सिर्फ अपना दास और अपनी पूजा और आज्ञा पालन के लिए पैदा किया है
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी धरती मनुष्य की सेवक नहीं है बल्कि जन्म और कर्म भूमि है | यदि मनुष्य की सेवक होती तो मनुष्य को धरती का सीना चिर कर फसले आदि न उगानी पड़ती मालिक के आदेश से वे स्वंय फसल उत्पन्न कर देती | यदि इन सबको सेवक मान भी लिया जाए तो सेवक की सेवा के बदले आप का भी कुछ फर्ज बनता होगा उन्हें देने को या फिर मुफ्त खोरी ही करना जानता है इस्लाम ? वेद ने तो धरती को माँ कहा है क्योंकि प्रथम मानव उत्पत्ति इसी भूमि से हुयी थी | लेकिन इस्लाम की समझ से ये बात दूर है , इस्लाम ने तो हर चीज को केवल भोग की दृष्टि से देखा चाहे वो रिश्ते में | इन्सान को सब चीजो कर सरदार नही बनाया गया अपितु वो अपने सामर्थ्य से सरदार बन बैठा | यदि अल्लाह ने इन्सान को अपनी पूजा के लिए बनाया है तो इन्सान के बन ने पहले उसकी पूजा कोन करता था ? जब अल्लाह बिना पूजा के रहता था तो अचानक ये अपनी पूजा करवाने की क्या सूझी ?
मौलाना :-
अगर एक मनुष्य अपना जीवन उस अकेले मालिक की आज्ञा पालना में नहीं गुजार रहा है तो वह इन्सान नहीं |
आर्य सिद्धान्ती :-
हाँ यह तो सत्य है की वो इन्सान नहीं बल्कि मुसलमान है | क्योंकि मुसलमान ही उस अकेले मालिक की आज्ञा पालन न करके रसूलो की भी आज्ञा पालन करते है |
देखिये प्रमाण ” और आज्ञापालन करो अल्लाह और उसके रसूल की ” सुरत मायदा आयत ९२
” आज्ञापालन करो रसूल का सम्भव है तुम्हे क्षमादान मिले ” सुरत नूर आयत ५५
एक या दो बार नहीं कई बार कहा है , यहाँ तक की धमकी भी दी है जो आज्ञापालन रसूल का नहीं करता तो वह काफिर है | अब निर्णय आप कर लीजिये की आपकी बात मानी जाए या फिर अल्लाह की ?
मौलाना :-
उस सच्चे मालिक ने अपने सच्चे प्रन्य , कुरान में एक सच्चाई हम को बताई है
आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी ये आपने किस आधार पर लिख दिया की उस सच्चे मालिक का सच्चा प्रनय कुरान है ?कोई एक आध प्रमाण तो दिया होता की कुरान ही ईश्वरीय ज्ञान है ?यदि ईश्वरीय ज्ञान होता तो तब से होता जब से मानव जाति है इतने करोड़ो वर्ष बीत जाने के बाद ना आता | यदि ये कुरान सच्चे मालिक का बनाया होता तो बिना सिर पैर की बातो और भेदभाव से न भरा होता |इस लिए यह दावा की यह ईश्वरीय ज्ञान है व्यर्थ है |
मौलाना :-इस संसार में जैसे भी कार्य करोगे वैसा बदला पाओगे |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो कुरान ने यह क्यों लिखा ? ” वह जिसको चाहेगा क्षमा करेगा जिस को चाहे दण्ड देगा क्योंकि वह सब वस्तु पर बलवान है ” सुरत बकर आयत २६९
एक और प्रमाण देखिये ” खुदा जिसको चाहे अनंत रिजक देवे ” सुरत बकर आयत २१२
तो आपका कुरान के अनुसार यह कहना की जो जैसा कार्य करेगा वैसा ही बदला पायेगा व्यर्थ है क्योंकि अल्लाह कर्म के अनुसार फल नही देता केवल अपनी मर्जी से फल देता है |
मौलाना :-
मरने के बाद तुम गल सड़ जाओगे और दोबारा पैदा नहीं किये जाओगे ऐसा नहीं है | न ही सत्य है की मरने के बाद तुम्हारी आत्मा किसी योनी में प्रवेश कर जायेगी | यह दृष्टिकोण किसी मानवीय बुद्धि की कसोटी पर खरा नहीं उतरता |
आर्य सिद्धान्ती:-
यदि ऐसा है तो वर्तमान शरीर किस आधार पर मिला है ? कोई सूअर है तो कोई इन्सान ,कोई आमिर है तो कोई गरीब , कोई जन्म से लंगड़ा है तो कोई अँधा | इन सब का क्या आधार है ? यदि ये सब शरीर बिना पूर्व जन्म के कर्मो का फल है तो अल्लाह पक्षपाती कहलायेगा क्योंकि एक को उसने आमिर के घर पैदा किया और दुसरे को गरीब के घर पैदा किया | किसी को रसूल बनाया तो किसी को काफिर के घर पैदा कर दिया | यदि आप पूर्व जन्म को नही मानते तो आदमियों में इतनी विभिन्नता क्यों ? लेकिन इस्लामिक जन्नत के बारे में आपका क्या विचार है ? वो किस दृष्टिकोण से सही है ? वो भी ऐसा जन्नत जो बिलकुल किसी वेश्याघर जैसा है |
मौलाना :-आवागमन ( पुनर्जन्म) का यह दृष्टिकोण वेदों में उपलब्ध नहीं है “
आर्य सिद्धान्ती :-
यह कहना आपकी भूल है देखिये वेद क्या कहता है पुनर्जन्म के बारे में
पुनर्नो असुं पृथ्वी ददातु पुनर्धौर्देवी पुनरन्तरिक्षम
पुनर्न सोमस्तन्वे ददातु पुनः पूषा पथ्या या स्वस्तिः ||( ऋग्वेद मंडल १० सूक्त ५९ मन्त्र ७ )
भावार्थः- मरणान्तर में पुनः जन्म धारण करते समय भूमि ,घुलोक और अन्तरिक्ष प्राणशक्ति देते है , वायु पोषण देता है और वाक्शक्ति वाक् देती है और भगवान इन सब से युक्त शरीर को देता है |
असुनीते पुनरस्मासु चक्षुः पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम
ज्योक पश्येम सूर्यमुच्चरंन्तमनुमते मृडय नः स्वस्ति ||( ऋग्वेद मंडल १० सूक्त ५९ मन्त्र ६ )
भावार्थः- हे प्राणविद्याविद ! हमारे इस शरीर में आप पुनः दृष्टि और प्राणशक्ति को धारण कराइए | हमे भोगो को भोगने की शक्ति दे | हम चिरकाल तक उदय को प्राप्त होते हुए सूर्य को देखे | हे उत्तम मती वाले हमे सुख से सुखी कर
अतः आपका यह कहना भी व्यर्थ है की वेद आवागमन की आज्ञा नहीं देता |बल्कि खुद कुरान और हादिश पुनर्जन्म की वकालत करती है देखिये प्रमाण
तू ही रात को दिन में दाखिल कर देता है और दिन को रात में दाखिल कर देता है | तू ही है जो बेजान से जानदार को पैदा करता है और जानदार से बेजान बना देता है तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोजी देता है | अल इमरान आयत २७
यहाँ पर अल्लाह ताला ने साफ़ साफ़ फ़रमाया है की जिस प्रकार दिन और रात एक के बाद एक आते है उसी प्रकार जीवन और मृत्यु एक के बाद एक आते है |
” कोन शख्स है जो मुर्दे से जिन्दा निकालता है और ज़िन्दा से मुर्दा निकालता है और हर काम का बन्दोबस्त कोण रखता है फ़ौरन बोल उठेंगे की खुदा ,तुम कहो क्या तुम इस पर भी नहीं डरते हो ” सुरत युनस आयत ३१
” वही जिन्दा को मुर्दे से निकालता है और वही मुर्दा को जिन्दा से पैदा करता है और जमीन को मरने के बाद जिन्दा करता है और इसी तरह तुम लोग भी मरने के बाद निकाले जाओगे ” अर रूम आयत १९
ये तमाम आयते इस बात का प्रमाण है की कुरान भी आवागमन को मानता है क्योकि आवागमन का अर्थ ही यही है की मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद फिर मृत्यु |
चलो कुछ समय के लिए मान भी लिया जाए की ये सब संसार एक ही बार है मृत्यु और जन्म भी एक बार है जो वर्तमान में है |अगर कोई प्रश्न करता है की अल्लाह ने कायनात को क्यों बनाया ये मखलूक क्यों पैदा की ? तो आप का उत्तर होगा की अपनी कुदरत दिखने के लिए व् अपनी इबादत करवाने के लिए | तो फिर ये प्रश्न खड़े हो जायेंगे
१.) अल्लाह के निन्यानवे नाम उसको गुणों को प्रदर्शित करते है तथा वह अनादी है , अतः उसके गुण भी अनादी होंगे | तो जब यह कायनात नही थी ,तब अल्लाह के गुण और अल्लाह के नाम की क्या सार्थकता थी ?
२.) जब अल्लाह अनंत काल से अकेला था ,तो अचानक कायनात बनाने की इच्छा और इबादत करवाने की चाह कहाँ से आ गयी ? अगर हमेशा से थी , तो उसकी उपयोगिता क्या , तथा इससे पहले जगत क्यों नहीं ?
३.) अल्लाह ने यह कायनात अपनी कुदरत से बनाई है तो यह कुदरत द्रव्य है या गुण ? गुण है तो उस से कायनात कैसे बनी ?यदि द्रव्य है तो फिर अल्लाह अकेला कैसे हुआ ?
४.) पूर्वजन्म आप मानते नही तो कोई रसुल्लाहतो कोई फकीर कोई अँधा ,कोई बहरा ?
( नोट :- यह ४ प्रश्न राजबीर आर्य जी की लिखी पुस्तक किताबुल्लाह वेद या कुरान में उठाये है )
आगे आप आवगमन के तीन विरोधी तर्क लिखते है जिनका समाधान किया जाएगा
मौलाना :- इस क्रम में सबसे बड़ी बात यह है की सारे संसार के विद्वानों और शोध कार्य करने वाले साइंस दोनों का कहना है की इस धरती पर सबसे पहले वनस्पति जगत ने जन्म लिया | फिर जानवर पैदा हुए और उसके करोड़ो वर्ष बाद इन्सान का जन्म हुआ | अब जबकि इन्सान अभी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुए थे और किसी इंसानी आत्मा ने अभी बुरे कर्म नहीं किये थे तो किन आत्माओ ने वनस्पति और जानवरों के शरीर में जन्म लिया ?
आर्य सिद्धान्ती :- आप जिन शोध के बारे में कह रहे है आपने उनका कोई प्रमाण नही दिया और न ही किसी विद्वान का नाम दिया | लेकिन यह सत्य है की सबसे पहले वनस्पति जगत उत्पन्न हुआ और यह सत्य भी है कोई इन्सान के जन्म से पहले ही उसकी मुलभुत आवश्यकताओ की पूर्ति कर दी गयी इसी लिए वेद ने ईश्वर को पुरोहित कहा है | उसके बाद ही इन्सान को धरती पर पैदा किया गया पर क्या इस्लाम मान्यता के अनुसार ये करोड़ो वर्षो का सृष्टि समय होना सही है | इस्लाम की मान्यता तो यह है की कुछ हजार साल पहले ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है | वेद आत्मा ,परमात्मा और प्रकृति तीन को अनादी माना है अर्थात इन तीनो का न कोई आरम्भ है और न ही अंत | आत्मा का शरीर धारण करना भी कोई प्रथम नही है ये भी अनादी ही है क्योंकि शरीर प्रकृति से ही बना है | जैसे इस सृष्टि में ये सब जिव जन्तु व घूलौक आदि है वैसे पहले भी थे इसी लिए वेद ने कहा है ” सुर्यचन्द्रम्सो धाता यथा पुर्वम कल्प्यते दिवं च पृथिवी चं अन्तरिक्षे मथो स्वाह ” अर्थात जैसे अब ये सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी आदि घूलोक है वैसे ही पहले भी थे | यहाँ स्पष्ट है की यह सृष्टि प्रलय ये पूर्व भी थी और प्रलय के बाद भी होगी | अब जिन मनुष्यों ने पूर्व सृष्टि में गलत कार्य किये थे वे इस सृष्टि के आरम्भ में जानवर के शरीर में जन्म लिए |
मौलाना :- दूसरी बात यह है की इस धारणा को मान लेने के बाद यह मानना पड़ेगा की इस धरती पर प्राणियों की संख्या में लगातार कमी होती रहे | जो आत्माए मोक्ष प्राप्त कर लेगी | उनकी संख्या कम होती रहनी चाहिए | अब यह तथ्य हमारे सामने है की इस विशाल धरती पर इन्सान जिव जंतु और वनस्पति हर प्रकार के प्राणियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है |
आर्य सिद्धान्ती :-
यह आपका तर्क नही बल्कि कुतर्क है , क्या प्रत्येक आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर रही है ?जो पूर्ण योगी है उनकी आत्मा ही मोक्ष को प्राप्त करती है तो कितने योगी होंगे इस मानव जाती में ? और क्या आपको यह नही मालुम की आत्मा ३६००० सृष्टि प्रलय तक मोक्ष में रहती है फिर दोबारा शरीर धारण करती है अपने उन कर्मो के आधार पर जो उसने मोक्ष से पहले किये थेतो फिर प्राणियों की संख्या में कमी आप किस आधार पर कह रहे है ? यह भी आपकी गलत फहमी है की धरती पर हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है क्योकि सैकड़ो से ज्यादा प्रजातीय ऐसी है जो अब लुप्त हो चुकी है उदाहरण के लिए डायनासोर, सेबर टूथ कैट , मैमथ इत्यादि | शेर ,बाघ , गेंडा आदि तमाम ऐसे जिव है जिनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है | रही बात इन्सान की जनसंख्या वृद्धि की तो वर्तमान के समय में मृत्यु दर और जन्म दर में कोई ज्यादा अंतर नही है | तो आपका यह कहना की हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है व्यर्थ है |
मौलाना :- तीसरी बात यह है की इस संसार में जन्म लेने वालो और मरने वालो की संख्या में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है | मरनेवाले मनुष्य की तुलना में जन्म लेने वाले बच्चो की संख्या कहीं अधिक है |
|आर्य सिद्धान्ती:-
यह जन्म लेने और मरने वालो की संख्या आप इन्सान के लिए देख रहे है उसमे भी वर्तमान के समय में कोई ज्यादा अंतर नही है |वर्तमान में शेर , काला हिरण , बाघ , गेंडा कोबरा अनेक ऐसी प्रजातीय है जो खत्म होने के कगार पर पहुँच गयी है जिन्हें सुरक्षित रखने के लिए सख्त कानून बनाये जा रहे है | फ्रेंच वैज्ञानिक बैरोन जिओर्ज्स लिओपोल्ड आदी का मत था की आरम्भ में जो प्रजातीय थी उनमे से अधिकतर लुप्त हो गयी है | इसका सीधा अर्थ ये है की यदि कोई प्रजाति बढ़ रही है तो कोई प्रजाति लुप्त होती जा रही है |कई जगह करोड़ो मच्छर जन्म लेते है तो कई जगह दवाइयों के छिडकाव से करोड़ो मच्छर मार दिए जाते है | अब पुनर्जन्म का इस से अच्छा प्रमाण कोण सा हो सकता है जो आपने दिया है की कुछ बच्चे अपने पिछले जन्म के राज खोलते है जिसे आप शैतान का काम कह रहे है | यह कितने ख़ुशी की बात है जो काम आज तक कोई न कर पाया वो शैतान ने कर दिया और बच्चे को उसके पिछले जन्म के सत्य बता दिए | यदि यह सब शैतान का ही काम है तो वे सब बाते सत्य कैसे हो जाती है जो बच्चा अपने बारे में बता देता है ? आप भुत प्रेत को तो सही मान रहे है जिसे विज्ञानं भी पूरी तरह से नकारता है लेकिन उसे मानने से इनकार कर रहे है जिसका यदि विज्ञानं समर्थन नही करता तो कम से कम उसके अस्तित्व को भी नही नकारता |इस बात का क्या प्रमाण है की मरने के बाद वही सब होगा जो आप कह रहे है ? यदि मरने के बाद सच्चाई सामने आ ही जायेगी तो आपने इतनी तकलीफ क्यों उठाई ये पुस्तक लिखने में ?
मौलाना :- कर्मो का फल मिलेगा
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि आप कर्मो का फल मानते है तो वर्तमान में जो फल भुगत रहे है वे किन कर्मो का फल है ? कोई जन्म से गरीब तो कोई जन्म से वजीर है ये सब किन कर्मो का फल है या अल्लाह का पक्षपात है
मौलाना :- यदि सत्कर्म करेगा भलाई और नेकी की राह पर चलेगा तो वह स्वर्ग में जाएगा | स्वर्ग जहाँ हर आराम की चीज है |
आर्य सिद्धान्ती :-
यह बात भी कुरान के हिसाब से गलत है क्योंकि अल्लाह सत्कर्म के बदले भलाई और स्वर्ग नहीं देता बल्कि जिसको चाहता है उसको स्वर्ग देता है | अगर सत्कर्मो के हिसाब से स्वर्ग या जन्नत देता तो काफ़िरो के लिए केवल दोजख की आग और केवल मुस्लिमो के लिए स्वर्ग देने की बात न कहता | क्या अंबानी बंधुओ के पास किसी आराम की चीज की कमी है ? क्या वे स्वर्ग सा जीवन नही जी रहे है क्या उनके पास सुख के सभी साधन नही मौजूद है ? यदि इस्लामिक स्वर्ग की बात कर रहे हो तो वो केवल एक अय्याशी का अड्डा प्रतीत होता है | जहां पर मर्दों को तो ७२ हरे मिलेंगी पर औरतो को केवल उनके पति मिलेंगे सम्भोग के लिए | अर्थात जन्नत में भी पक्षपात |
मौलाना:- सबसे बड़ी जन्नत की उपलब्धी यह होगी की स्वर्गवासी लोग वहां अपने मालिक के अपनी आँखों से दर्शन कर सकेंगे | जिसके बराबर और कोई मजे की चीज नहीं होगी |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो अल्लाह निराकार कैसे रहा ? यदि अल्लाह केवल स्वर्ग में है तो नरक की देखभाल कोन करता होगा ? क्या अल्लाह का अधिकार नरक पर ना रहा ? यदि अल्लाह नरक वालो को भी अपने दर्शन करा दे तो क्या पता वे भी ईमान ले आये अल्लाह का चेहरा देख कर |और जो सत्तर हजार फरिस्ते दोजख को खीच रहे है उन फरिश्तो की क्या गलती जो उन्हें भी दोजख में काम करना पढ़ रहा है ? अब ईमान ना लाने पर नरक की अग्नि तैयार है | यह तो सोच लेना था की ईश्वरीय संदेश को स्वीकार करने में बुद्धि की कठिनाइयाँ भी बाधक हो सकती है क्या इनका इलाज दोज़ख है ? दण्ड सदा बुरे विचार का होता है कोई बिना बुरी इच्छा के इमानदारी से कुरान के ईश्वरीय होने से इनकार कर दे तो ? और वह सच्चरित्र हो तब ?
मौलाना :-
उस मालिक के यहाँ गुनाह , कुकर्म , पाप भी छोटे बड़े होते है उसने हमे बताया है की जो पाप हमे सबसे अधिक सजा का भागीदार बनाता है और जिसको वो कभी क्षमा नहीं करेगा और जिस का करने वाला सदैव नरक में जलता रहेगा और उसको मौत भी न आएगी व उस अकेले मालिक को किसी का साझी बनाना है , अपने शीश और मस्तिष्क को उसके अतिरिक्त किसी दुसरे के आगे झुकाना या उसके अलावा किसी और को पूजा के योग्य मानना, घोर पाप है |
आर्य सिद्धान्ती :-
लेकिन क्या अल्लाह ही इन सबकी आज्ञा नही देता ? देखिये कुरान क्या कहता है ” अतः ईमान लाओ अल्लाह व् उसके रसूल पर ” जल इमरान आयत १७४
क्या यह अल्लाह के साथ किसी दुसरे को साझी बनाना नही है ? “आज्ञापालन करो अल्लाह और उसके रसूल की ” सुरत मायदा आयत ९२
यहाँ भी अल्लाह के साथ रसूल को भी आज्ञापालन में साझी नही ठहराया गया है ? और तो और नमाज में भी रसूल को मुहम्मद के साथ साझी ठहराया गया है | क्या ये सब शिर्क नही है ? और तो और अल्लाह खुद शिर्क करने की आज्ञा देते है देखिये प्रमाण ”
जब हमने फरिश्तो से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गये मगर शैतान ने नहीं किया उसने गरूर किया और काफिर हो गया ” सूरते बकर आयत ३४
अब बोलिए ऐसे अल्लाह को क्या कहेंगे की जो खुद शिर्क करवाता हो ? क्या अल्लाह को नरक में नही डाल देना चाहिए ?इस आयत से एक बात और सामने आती है की जब सजदा करने के लिए फरिश्तो को बोला गया है तो भला इब्लिश सजदा क्यों करे ? क्या वह भी फरिश्ता था ? लेकिन छोड़िये यह बात केवल शिर्क की हो रही है |
यहाँ तक की बिना मुहम्मद का नाम बोले नमाज नहीं होती फिर किस मुह से आपको मुसलमानों को एकेश्वरवादी मानते हो ?
मौलाना :-
” उदाहरण के लिए यदि पत्नी अपने पति से कहे आप मेरे पति देव है मेरा अकेले आप से काम नही चलता इसलिए जो पड़ोसी है मैंने उसे भी अपना पति मान लिया है तो यदि आप में कुछ भी लज्जा और मानवता है तो आप यह बात बर्दाश्त नही कर पाओगे , या अपनी पत्नी की जान के लेंगे अथवा स्वंय मर जायेंगे “
आर्य सिद्धान्ती :-
आपने उदाहरण अच्छा दिया है लेकिन कुरान की आयत “जब हमने फरिश्तो से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गये मगर शैतान ने नहीं किया उसने गरूर किया और काफिर हो गया ” सूरते बकर आयत ३४ को पढ़ कर तो ऐसा लगता है की जैसे पति ने खुद ही पत्नी को कहा हो की तुम उस पड़ोसी को भी पति मान लो और जब पत्नी ने मना किया तो उसे घर से बाहर निकाल दिया | अब ऐसे पति को आप क्या कहेंगे ? उसे भी मार न देना चाहिए ? निर्णय आप पर है सिद्दकी साहब |
मौलाना :-
अल्लाह को छोड़ कर तुम जिन वस्तुओ को पूजते हो वह सब मिलकर एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकती , और पैदा करना तो दूर की बात है यदि मक्खी उनके सामने से कोई चीज प्रसाद इत्यादि छीन ले तो वापस नहीं ले सकती | फिर कैसे कायर है पूज्य और पूजने वाले उन्होंने उस अल्लाह की कद्र नहीं की जैसी करनी चाहिए थी जो ताकतवर और जबरदस्त है |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी यह बात तो सत्य है की ये वस्तुए कुछ नहीं कर सकती इनकी पूजा व्यर्थ है | पर क्या इन|वस्तुओ को दुःख आदि भी होता है ? यदि इन पत्थरों को दुःख व् कष्ट नही होता तो फिर हज करते समय शैतान को पत्थर मारने की प्रक्रिया को इस्लाम वालो ने आज तक बंद क्यों नहीं किया ? क्या यह शैतान को पत्थर मारने की प्रथा हज यात्रिओ की मुर्खता नहीं दर्शाती ? शैतान को पत्थर मारने के चक्कर में न जाने कितने लोग घायल हो जाते है |
मौलाना :-
कुछ लोगो का मानना यह है की हम उनकी पूजा इसलिए करते है की उन्होंने ही हमे मालिक का मार्ग दिखाया और उनके वास्ते से हम मालिक की दया प्राप्त करते है | यह बिलकुल ऐसी बात हुयी की कोई कुली से ट्रेन के बारे मालुम करे जब कुली उसे ट्रेन के बारे जानकारी दे दे तो वह ट्रेन की जगह कुली पर ही सवार हो जाए की इसने हमे ट्रेन के बारे में बताया है |इसी तरह अल्लाह की सही दिशा और मार्ग बताने वाले की पूजा करना बिलकुल ऐसा है जैसे ट्रेन को छोड़कर कुली पर सवार हो जाना |
आर्य सिद्धान्ती :-
अगर मौलाना जी मै आपसे पुछू की नमाज में मुहम्मद का नाम क्यों ? कलमा में मुहम्मद का नाम क्यों ? यहाँ आपका जवाब यही होगा की मुहम्मद ने हमे अल्लाह का रास्ता दिखाया इस लिए नमाज में मुहम्मद का नाम भी है | तो मौलाना जी ये ट्रेन और कुली का उदाहरण तो आप मुसलमानों पर भी बिलकुल फिट बैठता है | की मुहम्मद ने बताया अल्लाह का मार्ग और मुसलमानों ने मुहम्मद को ही इबादत में शामिल कर लिया |
मौलाना :-
कुछ भाई यह कहते है की हम केवल ध्यान जमाने के लिए इन मूर्तियों को रखते है | यह भी खूब रही की खूब गोर से खम्बे को देख रहे है और कह रहे है की पिता जी का ध्यान जमाने के लिए खम्बे को देख रहे है | कहां पिताजी कहां खम्बा ?
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी बात तो आपकी सही है पर ये सारे मुसलमान क्यों काबे की तरफ मुह करे नमाज अदा करते है ? उसे अल्लाह का घर बताते है | कहां वो सर्वव्यापक ईश्वर और कहाँ वो अरब का छोटा सा जगह जहा पर मुसलमानों ने अल्लाह का घर बना रक्खा है | कुछ मुसलमान भाइयो से पूछा की काबे के पत्थर को क्यों चुमते है बोले हमारे नबी ने भी इसे चूमा था | क्या कमाल का तर्क है की नबी ने चूमा इस लिए हम भी चुमते है
मौलाना :
सच्चा धर्म शुरू से एक ही है और सब की शिक्षा है की उस अकेले को माना जाए और उसकी आज्ञा का पालन किया जाए , पवित्र कुरआन ने कहा है की ” धर्म तो अल्लाह का केवल इस्लाम है और इस्लाम के अतिरिक्त जो भी धर्म लाया जाएगा वह मान्य नहीं है ” ( सूरह आले इमरान :८५ )
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी धर्म सच्चा या झूठा नहीं होता | जो झूठा हो वो धर्म काहें का ? उसे अधर्म कहा जाता है | धर्म इतना व्यापक शब्द है जो उसकी महत्व को जान लिया होता तो अल्लाह के नाम पर इतना कत्लेआम ना मचता | आप इस्लाम को धर्म बता रहे हो पूरी अरबी भाषा में धर्म शब्द नहीं है फिर आपने कैसे इस्लाम को धर्म लिख दिया ? इस आयत दीन लिखा है धर्म नहीं | इस्लाम को तो बने हुए भी मात्र १४०० वर्ष हुए है और आप इसे आरम्भ से बता रहे है | धर्म संस्कृत का शब्द है जिसका प्रयोग केवल वैदिक ग्रंथो में है | धर्म शब्द धृ धातु से बना है जिसका मतलब है जो धारण करने योग्य हो अर्थात जो धारण करने योग्य हो उसे धर्म कहते है | और धारण करने योग्य क्या है इसके लिए मनु महाराज मनुस्मृति में लिखते है ” वेदोऽखिलोधर्ममूल ” अर्थात धर्म का मूल वेद है | वेद के अनुसार चलना धर्म और वेद के विपरीत चलना ही अधर्म कहलाता है | तो मौलाना जी इस संसार में एक ही धर्म है जिसे वैदिक या सनातन धर्म भी कहते है | धर्म पूरी मानव जाती के लिए है लेकिन दीन किसी विशेष वर्ग के लिए होता है |
मौलाना :-शैतान लोगो के पास गया और कहा की तुम्हे अपने महागुरु रसूल से बड़ा प्रेम है | मरने के बाद वे तुम्हारी निगाहों से ओझल हो गये है | अतः मई उनकी एक मूर्ति बना देता हूँ उसको देख कर तुम संतुष्टि पा सकते हो | शैतान ने मूर्ति बनाई| जब उसका जी करता वह उसे देखा करते थे | धीरे धीरे जब उस मूर्ति का प्रेम उन के मन में बस गया शैतान ने कहा की यदि तुम इस मूर्ति के आगे सर झुकाओगे तो इस मूर्ति में भगवान को पाओगे | मनुष्य के दिल में मूर्ति की बड़ाई पहले ही भर चुकी थी | इस लिए उसने मूर्ति के आगे सिर झुकाना और उसे पूजना आरम्भ कर दिया |
आर्य सिद्धान्ती :- काबा के बारे में आपका क्या विचार है ? क्या काबा के पत्थर को चूमना मुस्लिमो का मुहम्मद के प्रति प्रेम नहीं है ? क्या काबा की परिक्रमा करना मुसलमानो का काबा के प्रति प्रेम नहीं है ? जैसे मूर्ति के प्रति लोगो का प्रेम मूर्ति पूजा में बदल गया तो क्या आपको नहीं लगता की काबा के प्रति प्रेम भी किसी दिन उसकी पूजा में बदल जाएगा ? वैसे पूजा में बचा ही क्या है जैसे मूर्तिपूजक मूर्ति के समक्ष मुह करके प्रार्थना करते है वैसे ही मुसलमान लोग चाहे किसी भी देश में क्यों न रहता हो वह काबे की तरफ मुह करके ही इबादत करता है | यदि कहो की इस से एकता बढती है तो क्या जो लोग मूर्ति के सामने खड़े होकर इबादत करते है क्या उस से एकता नहीं बड़ेगी ?
मौलाना :-
इस संसार का सरदार ( मनुष्य ) जब पत्थर या मिट्टी के आगे झुकने लगा तो वह जलील हुआ और मालिक की निगाह से गिर कर सदा के लिए नरक का इंधन बन गया | उसके बाद अल्लाह ने फिर अपने रसूल भेजे जिन्होंने लोगो मूर्ति पूजा और अल्लाह के अलावा दुसरे की पूजा से रोका , कुछ लोग उनकी बात मानते थे तथा कुछ लोगो ने उनकी अवमानना की |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी फिर तो आपको महर्षि दयानंद को रसूल मान ने में बिलकुल भी विलम्ब न करना चाहिए क्योंकि उन्होंने अतिंम रसूल मुहम्मद के मृत्यु के हजारो सालो बाद मूर्ति पूजा के खिलाफ अभियान चलाया और एक ईश्वर के अलावा दुसरो की पूजा से रोका , उनके साथ भी यही कुछ हुआ की कुछ लोग उनकी बात मानते रहे और कुछ ने उनकी अवमानना की , और इन्ही एक अल्लाह को मानने वालो ने उनका विरोध किया |
मौलाना :-
एक के बाद एक नबी और रसूल आते रहे , उनके धर्म का आधार एक सा होता वह एक धर्म की और बुलाते की एक ईश्वर को मानो , किसी को उसके व्यक्तित्व और गुणों में साझी न ठहराओ , उसकी पूजा में किसी को साझी न करो |
आर्य सिद्धान्ती :- महर्षि दयानंद के लिए भी धर्म का एक आधार था , उन्होंने ने भी दुनिया को एक धर्म अर्थात वैदिक धर्म की ओर बुलाया और एक ईश्वर को मानने को कहा था | या बात तो सत्य है की ईश्वर के गुणों और व्यक्ति तव में किसी को साझी नहीं बनाओ पर क्या खुद को मुसलमान कहने वालो ने स्वंय उसके गुणों और पूजा में साझी नहीं बनाया ? खुद कुरान ने कई बार मुहम्मद को अल्लाह का साझी ठहराया , नमाज में मुहम्मद का नाम लिए बगैर नमाज पूरी नहीं होती , बिना मुहम्मद का नाम लिए कलमा नहीं पड़ा जा सकता , बिना मुहम्मद पर ईमान लाये मुसलमान नहीं बना जा सकता तो आप लोग किस मुह से ये बात कह सकते हो की किसी को अल्लाह का साझी न बनाओ ? हादिशो ने तो यहाँ तक कह डाला की आदम अल्लाह का ही प्रतिबिम्ब था | अब इस हादिश का क्या अर्थ निकाला जाए ? आदम किस स्वरूप में अल्लाह का प्रतिबिम्ब हुआ ? क्या आकार में या फिर गुणों में ? यदि कहो आकार में तो कुरान का अल्लाह भी आदम की तरह ९० फीट का हुआ यदि कहो गुणों में तो आदम भी अल्लाह का साझी हो गया |
मौलाना :-
जो उसकी पवित्रा मखलूक है न खाते है न पीते है न सोते है हर काम में मालिक की आज्ञा पालन करते है , सच्चा जानो , उसने अपने फरिश्तो के माध्यम से वाणी भेजी या ग्रन्थ उतारे है उन सब को सच्चा जानो ,मरने के बाद दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है |
आर्य सिद्धान्ती :-
जब फरिश्ते न थे तब अल्लाह की आज्ञा पालन कौन करता था ? और अल्लाह को फरिश्ते बनाने की क्या सूझी क्या वह अकेला कार्य करने में सक्षम न था ? जब अल्लाह को कुछ भी करने के लिए कुन कहना पड़ता है तो वाणी भेजने के लिए फरिश्तो की क्या जरुरत आन पड़ी ? यह बात तो सत्य है की दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है तो पुनर्जन्म की परिभाषा क्या है ? पुनर्जन्म की परिभाषा भी तो यही है की दोबारा जीवन पाकर अच्छे बुरे कार्यो का फल अर्थात बदला पाना है , लेकिन आप साहब तो पुनर्जन्म को सिरे से नकारते हो , इसी पुस्तक के आरम्भ में आप पुनर्जन्म को नकार चुके है |
मौलाना :-
जितने अल्लाह के नबी और रसूल आये सब सच्चे थे और उन पर जो धार्मिक ग्रन्थ उतरे वह सब सच्चे थे उन सब पर हमारा इमान है और हम उनमे अंतर नही करते |जिन महापुरुषों के यहाँ मूर्तिपूजा या अनेकेशवरवाद की शिक्षा हो वे या तो रसूल नहीं है या फिर उनकी शिक्षाओं में फेर बदल हो गया है | मुहम्मद साहब के पूर्व के तमाम रसूलो की शिक्षाओं में फेर बदल कर दिया गया है और कहीं कहीं ग्रंथो को भी बदल दिया गया है
आर्य सिद्धान्ती :- यदि सारे नबी सच्चे थे तो मौलाना साहब कलमा में मुहम्मद का नाम ही क्यों ? आप कहते हो की हम उनमे अंतर नहीं करते तो फिर कलमे और इबादत में केवल एक रसूल ही नाम लेना दुसरे का नाम नहीं लेना , यह सब क्या है ? क्या यह अंतर और पक्षपात नहीं है ? यदि मुहम्मद साहब के पहले के तमाम रसूलो के ग्रंथो में बदलाव हुआ है तो इसका जिम्मेवार कौन है ? जब अल्लाह ने कुरान की सुरक्षा की जिम्मेवारी ली तो क्या बाकी किताबो की सुरक्षा की जिम्मेवारी अल्लाह की नहीं थी ? ऐसा भेदभाव क्यों ? यदि अल्लाह पहली किताबो की ही सुरक्षा कर देता तो बाकी किताबो के भेजनेकी जरुरत ही न पड़ती |
मौलाना :-
यह भी इस्लाम की सत्यता का प्रमाण है की प्राचीन ग्रंथो में अत्यंत फेरबदल के बावजूद उस मालिक ने अंतिम रसूल के आने की खबर को बदलने न दिया ताकि कोई यह कह सके की हमे खबर न थी | वेदों में उसका नाम नराशंस , पुराणों में कल्कि अवतार . बाइबिल में फारकलीट इत्यादि लिखा गया है | इन सब ग्रंथो में मुहम्मद साहब का जन्म स्थान , जन्म तिथि समय और बहुत से वास्तविक लक्षण पहले ही बता दिए गये थे |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी जब अल्लाह ने प्राचीन ग्रंथो से अंतिम रसूल का नाम नही बदलने दिया तो बाकी सब कुछ कैसे बदलने दे दिया ? अगर अल्लाह पहले ही बाकी सब को बदलने से बचा लेते तो बार बार फ़रिश्ते या रसूल भेजने की तकलीफ न उठानी पड़ती | वैसे आपने वेदों या पुराणों में जो मुहम्मद साहब का होना बताया है तो आपको वेदों और पुराणों पर गर्व करना चाहिए और बड़ी शान से वैदिक धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि दुनिया का सबसे पहला ग्रन्थ वेद ही है और जब वेद ने इतने वर्षो पहले ही ये बात बता दी है तो इस से बढकर कोन सा ग्रन्थ हो सकता है | पर आपकी जानकारी के लिए बता दू की ना तो वेद ने मुहम्मद साहब को नराशंस कहा है ना पुराणों ने कल्कि अवतार कहा है ये सब ग़लतफ़हमी का नतीजा है जैसे रामपाल दास महाराज को कहीं पर भी कवि शब्द लिखा हुआ दिख जाए तो उसे कबीरदास बताते है वैसा ही हाल आपका है जो अदीना को मदीना बताते है | जिस अथर्ववेद २०/१२७ /१ मन्त्र के आधार पर आप मुहम्मद साहब को ही नराशंस साबित करने पर तुले है तो कुरान के सूरह फुर्कानी आयत ५२-५९ में अल्लाह को कबीर कहा गया है तो यदि कल को कोई कबीर पंथी कबीरदास को कुरान का अल्लाह बता दे तो संकोच मत करना , इस लिए फैसला आप पर है मौलाना जी , रही बात पुराण के कल्कि अवतार की तो जरा कल्कि पुराण के श्लोक (१:२:१५) पर नजर डालिए , यहाँ स्पष्ट है की कल्कि के जन्म के समय उनके माता पिता दोनों जीवित थे जबकि मुहम्मद साहेब के पिता की मृत्यु उनके जन्म से पहले ही हो गयी थी | इस से स्पष्ट है की कल्कि अवतार मुहम्मद साहेब नहीं हो सकते | दूसरा प्रमाण यह है की श्लोक ( १/३/९ ) के अनुसार कल्कि की एक ही पत्नी होगी जिसका नाम पद्मा होगा जो सिन्हाला में रहती होगी , जबकि मुहम्मद साहेब की ११ बीवियां थी | इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट है की पुराणों का कल्कि मुहम्मद नहीं हो सकता |ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िए http://agniveer.com/muhammad-vedas-hi/
मौलाना :-
अब से लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व वह अंतिम ऋषि मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही व् सल्लम सउदी अरब के देश मक्का में पैदा हुए |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी मुहम्मद साहब को ऋषि लिख कर इस शब्द का अपमान न कीजिये | आपको मालुम भी है की ऋषि किसे कहते है ? जरा निरुक्त ( ७/३ ) पढ़ कर देखिये ऋषि किसे कहते है | इस निरुक्त में स्पष्ट लिखा है ऋषिणा मंत्रदृष्टयों भवन्ति अर्थात वेद मंत्रो के दृष्टाओ को ऋषि कहते है अब जरा बताने का कष्ट करोगे की मुहम्मद साहब कोंसे वेद मन्त्रो के दृष्टा थे ? ऋग्वेद १/१/२ के अनुसार जो सब तरह की विद्याओ को जानता हो और उन विद्याओ को समाज के कल्याण के लिए उपयोग करे उसे ऋषि कहते है | लेकिन मुहम्मद साहब तो अनपढ़ थे विद्या से तो दुर दूर तक उनका कोई लेना देना नहीं था | जिस व्यक्ति का पूरा जीवन दुराचार , और हिंसा में बिता हुआ हो उसे आप ऋषि कहते है ? न कुरान ने मुहम्मद को कभी ऋषि कहा न ही हादिशो ने तो आपने किस आधार पर मुहम्मद साहेब को ऋषि कह दिया ?और अंतिम ऋषि तो महर्षि दयानंद को कहा जाता है उनके बाद कोई ऋषि पैदा नहीं हुआ | अगर आपको अंतिम ऋषि पर ही ईमान लाना है तो फिर ऋषि दयानंद पर लाओ जिन्होंने जीवन भर सत्य और वेद विद्याओ का प्रचार किया और सत्य के लिए ही प्राणों की आहुति दे दी |
मौलाना :-
पैदा होने के कुछ माह पूर्व ही उनके पिता का देहांत हो गया था | माँ भी कुछ ज्यादा दिन जीवित नही रही | पहले दादा और उनके देहांत के बाद आपके चाचा ने उन्हें पाला | संसार में सबसे निराला यह इन्सान समस्त मक्का नगर की आँखों का तारा बन गया |
आर्य सिद्धान्ती :-
जब मुहम्मद साहेब के जन्म से पूर्व उनके पिता का देहांत हो गया तो वे कल्कि कैसे हो गये ? क्योकी कल्किपुराणम् ( १/२/१५)) के अनुसार कल्कि के जन्म के समय उनके पिता जी जीवित होंगे | अब अल्लाह की अपने रसूल के प्रति दरियादिली देखिये की जन्म से पूर्व पिता जी को छीन लिया और कुछ दिन बाद माता को भी छीन लिया | क्या यही अल्लाह का मुहम्मद साहेब के प्रति प्रेम था ? आपने मुहम्मद साहेब का परिचय तो दिया पर पूरा स्पष्ट नही दिया | हम इस परिचय को थोडा और आगे बड़ा देते है , मुहम्मद साहेब के कारनामो से |
मुहम्मद साहेब ने अपने जीवन में सभी तरह की शादिया की , कुँआरी से शादी , शादीशुदा से शादी , विधवा से शादी , ९ वर्ष की अबोध बालिका से शादी तो कहीं माँ की उम्र की औरत से शादी |
मौलाना :-
सब ने एक स्वर में होकर कहा , भला आप की बात पर कौन विश्वास नहीं करेगा आप कभी झूठ नही बोलते और पहाड़ की छोटी से दूसरी ओर देख भी रहे है |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी इस्लाम टिका हुआ ही मुहम्मद साहब के झूठो पर है | खुद को अल्लाह का नबी बताना ही सबसे बड़ा झूठ है | लेकिन ऐसा मै नही कह रहा हूँ बल्कि अरब के लोगो के मुहम्मद साहब के प्रति क्या विचार थे इसका खुलासा तो खुद कुरान ही करता है | देखिये
“तुम्हारे कबीले के लोग तुम्हें झूठा बताते हैं ” सूरा -फातिर 35 :4
“यह लोग कहते हैं कि तुमने अल्लाह के नाम से झूठ बातें गढ़ रखी हैं ” सूरा -अश शूरा 42 :24
” तुम खुद ही अल्लाह के नाम से कुरान रचते हो “सूरा -सबा 34 :8
मौलाना :-
मनुष्य की यह कमजोरी रही है की वह अपने पूर्वजो की गलत बातो को भी अन्धविश्वास में मान कर चला जाता है | इंसानों की बुद्धि और तर्कों के नकारने के बावजूद मनुष्य पूर्वजो की बातो पर जमा रहता है और उसके अतिरिक्त करना तो क्या , कुछ सुन भी नहीं सकता |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी इसका सबसे अच्छा उदाहरण भी मुसलमान ही है क्योंकि वे आज भी कुरान की बातो को ईश्वरीय मानते है जो की बिलकुल तर्कहीन है , जैसे मुहम्मद साहब का ऊँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े करना | और चाँद के आधे हिस्से का मीना की पहाडियों पर गिरना | अब मौलाना जी बताइए इस से बड़ा अन्धविश्वास क्या होगा ? चाँद दसवा हिस्सा पृथ्वी को पूरी तरह तबाह कर सकता है और इस्लाम कहता है की चाँद का आधा हिस्सा मीना की पहाडियों पर गिर गया | दूसरा अन्धविश्वास देखिये की अल्लाह को खुश करने के लिए और अल्लाह के प्रति अपना समर्पण दिखाने के लिए लाखो बेजुबानो को कत्ल कर दिया जाता है | यदि अल्लाह को समर्पण करना भी है तो अपना जीवन कीजिये दुसरो का क्यूँ ?
मौलाना :-
यही कारण था की चालीस वर्ष की आयु तक आपका आदर करने और सच्चा मानने और जाने भी मक्का के लोग आपकी शिक्षाओं के शत्रु हो गये |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी मक्का वालो को तो शत्रु बनना ही था क्योंकि एक तरफ तो मुहम्मद साहब उनके देवी देवताओं का अपमान करते थे तथा दूसरी तरफ खुद को अल्लाह का एजेंट अर्थात नबी बताते थे | ऊपर से ऐसी उट पटांग बाते मानने के लिए उन्हें बाध्य करते थे |
मौलाना :-
जब कुछ लोग ईमान वालो को सताते , मारते और आग पर लिटा लेते , गले में फंदा दाल कर घसीटते और उन पर पत्थर बरसाते | परन्तु आप सब के लिए प्रार्थना करते किसी से बदला नहीं लेते , पूरी पूरी रात अपने मालिक से उनके लिए हिदायत की दुआ करते |एक बार मक्का के लोगो ने उस महापुरुष का अनादर किया आपके पीछे लड़के लगा दिए जो आपको भला बुरा कहते | उन्होंने आप को पत्थर मारे जिससे आपके पैरो से रक्त बहने लगा | तकलीफ की वजह से आप कही बैठ जाते वे फिर आपको खड़ा करते और मारते |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी मेरी ये बात समझ नही आई की एक तरफ तो अल्लाह बदर के युद्ध में ३००० फरिस्तो की फ़ौज भेज देता है मुहम्मद साहेब की मदद करने को और दूसरी तरफ जब कुछ लड़के मुहम्मद साहब को मार रहे थे तो चुप चाप देखते रहे ? या अल्लाह का समय मुड़ नहीं था फ़रिश्ते भेजने का या जानभुज कर मुहम्मद साहेब को पिटता देखना चाहते थे | और मौलाना जी यदि मुहम्मद साहेब बदला नही लेते थे और अल्लाह से उनके लिए हिदायत मांगते थे तो फिर मुहम्मद साहेब ने काफ़िरो के खिलाफ इतने युद्ध क्यूँ लड़े ? चलो मान लिया की मुहम्मद साहब ने उनके लिए हिदायत मांगी पर अल्लाह ने क्या कहा ? जरा देखिये
ऐ नबी मोमिनों से कहो काफिरों को कतल करे ,युद्ध के लिए तैयार रहे और धैर्य से काम ले बीस मुसलमान दो सौ काफिरों पर पड़ेंगे क्योंकि बीस अल्लाह वाले है =सुरा-अनफाल आ .६५
2) और निषिद्ध महीना खत्म होने पर काफिरों को जहां पाओ कतल करो उन्हें बंदी बना लो और रोक दो उनका रास्ता ,जगह -जगह पर ताक पर रहो उन्हें यातनाएँ दे दे कर मारो ,जब तक वह मुसलमान बनने का पश्चाताप न करे और अगर तौबा कर ले नमाज पड़े ,जकात दे फिर उसे अल्लाह के रास्ते में छोडो ,अल्लाह रहम करने वाला दयालु है ,सूरा-तौबा -आ.५
मौलाना :- आप ने यह भी खबर दी की मै रसूल हूँ अब मेरे बाद कोई रसूल न आएगा , मई ही वह अंतिम ऋषि नराशंस और कल्कि अवतार हूँ जिसकी तुम प्रतीक्षा करते थे और जिसके बारे में तुम सब कुछ जानते हो |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी आप ने ये जो लिखा है किसी हादिश से दिखा सकते हो जहां मुहम्मद साहेब ने अपने को अंतिम ऋषि नराशंस और कल्कि अवतार लिखा हो |
मौलाना :-
अब प्रलय तक आने वाले हर मनुष्य का कर्तव्य है और उसका धार्मिक और इंसानी दायित्व है की वह उस अकेले मालकी की पूजा करे , उसके साथ किसी को साझी न जाने और न माने , और उसके अंतिम संदेस्ता हजरत मुहम्मद को सच्चा जाने और उनके द्वारा लाये गये दीन और जीवन व्यतीत करने के ढंग का पालन करे , इस्लाम में इसी को ईमान कहा गया है इसके बिना मरने के बाद हमेशा के लिए नरक में जलना पड़ेगा |
आर्य सिद्धान्ती :-
जहा तक एक ईश्वर की पूजा की बात है वहाँ तक तो सही है | अगर उसके साथ किसी को साझी नही बनाना चाहते तो आज से ही कलमा बोलना बंद कर दीजिये |अब मुहम्मद साहेब जैसा जीवन जीने की आप बात कर रहे है भला १३-१३ शादिया की मुहम्मद साहेब ने और आप लोगो को कहा की ४ ही हलाल है तो बताओ कैसे जीवन जिओगे उनके जैसा ? और हाँ कैसे इंसान जैसा जीवन व्यतीत करने की आप बात कर रहे है जिसने उम्र की लिहाज किये वगैर पौती की आयु की बच्ची से निकाह किया हो , जिसने अपने बेटे की बीवी से निकाह किया हो ऐसे व्यक्ति को आप मार्गदर्शक बनाना चाहते हो ? मुहम्मद साहब ने खुद तो १३-१३ शादिया की और आप लोगो को कहा की ४ ही हलाल है और तो और बेचारे फातिमा के पति को दूसरी शादी भी न करने दी | अब बताओ मौलाना जी ऐसे पक्षपाती को कैसे अपना मार्ग दर्शक बनाया जा सकता है ? अगर मार्ग दर्शक बनाना है तो रामचन्द्र जी को बनाइए जिन्होंने चक्रवर्ती राजा होते हुए भी सम्पूर्ण जीवन मर्यादा में रह कर बिताया , पिता की आज्ञा के लिए राजकाज को छोड़कर १४ वर्षो तक जंगल में रहे | अपनी पत्नी की रक्षा के लिए समुद्र पर २९ मील लम्बा पुल बनाकर रावण को उसके घर में घुसकर मारा और अपनी पत्नी की रक्षा की | ऐसे चरित्र को अपना मार्गदर्शक बनाइए न की बीवियों के शौक़ीन व्यक्ति को |
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The Nature of the Christian God
1. God’s Name Exodus 15; 3
2. God’s Country Habakkuk 3; 3
3. Descriptions of God. 2 Samuel 22; 9, Deut. 11;12 , 2 Chronicles 16; 9, Zech. 4;10
3:1 God is like jasper & carnelian stones Rev. 4; 2-3
3:2 John’s description of Christ. Rev. i. I2-l6. Rev. 2; I8
4. God’s companions. Zech. 6; 2
4:1 Bizarre heavenly beasts around God’s throne praise him tirelessly. Rev. 4; 6
5. God’s Character
5:1 Yahweh the destroyer. Zeph. 1; 2
5:2 Yahweh the avenger. Deut 32; 35 Nahum 1; 2
5:3 Yahweh craves vengeance Ezek. 5; 12 -13
5:4 Yahweh the god of war. Deut. 39 —- 42
5:5 Yahweh comes accompanied by epidemics. Hab. 3;5-6
5:6 God as a wild beast. Lam. 3; 10 Hosea 5; 13; 7-8
5:7 God describes himself as a moth and the rot Hosea 5;
6. God’s emotional composition
6:1 Yahweh — an envious, irascible, indignant god. Nahum 1;1 – 6
6:2 Yahweh’s unbridled rage. Deut 32; 22 – 25
6:3 Yahweh’s uncontrollable fury and lack of poise. Isaiah 34; 2 – 10
6:4 Yahweh’s lack of compassion. Lam. 2; 20
6:5 The Lord God remains unmoved by pleas for mercy. Ezek. 8; 18 Ezek. 8:5 Isaiah
13, 6 18
6:6 God regrets destroying every living being and resolves not to do it again. Gen. 8;21
6:7 God repents and feels sorry for himself. Jer. 15; 6. Gen; 6; 6 1] Exodus 32; 14
I Sam. 15; 35 Amos. 7; 3 Jer.15;6.
6:8 The Lord takes a turn, and inexplicably tries to murder Moses and is pacified with the
offering of a baby’s foreskin. Exodus 4; 24-26
7. God’s Transport
7:1 God rides on the back of an angel. 2 Samuel 22:11 Psalm 18:10
8. God’s Throne
8:1 God has a rumbling, flashing, thundering throne. Rev. 4; 5
9. God’s Offspring
9:1 Sons of God have sex with the daughters of men. Gen. 6; 4 1]
10. God’s Diet
10:1 The Lord prefers meat to vegetables. Gen. 4. 3-5.
10:2 God enjoys the smell of roast meat. Gen. 8;20
10:3 God shoots out fire to eat the meat offering Lev 9:24
11. God’s Appearances
11:1 God stands on the Altar. Amos 9;1
11:2 God manifest himself as a pillar of fire and a cloud. Exodus 13; 21, 22.
11:3 God hides in a burning bush. Exodus 3.2-5
11:4 God shows his back parts. Exodus 33; 23
12. God’s Social Life
12:1 God is tired of living in a tent and demands a house. 2 Sam;7:4
12:2 Satan pays a visit on his mate God. Job 1; 6
12:3 Moses and God meet on the top of a mountain. Ex 19; 20
12:4 Moses takes the people to meet Jehovah in a burning mountain. Exodus 19; 17-22
12:5 God holds a dinner party for 74 guests on a paved mountain. Exo 24:9-11
12:6 God and two angels pay a courtesy call on Abraham and have lunch with him. Gen.
18; 1- 8
12:7 Abraham takes a stroll with God and negotiates with him. Gen. 18:16 Gen 18:23
12:8 God has a tiff with Sarah. Gen. 18:10
12:9 Disgusting effect of the presence of “God in a box.” 1 Samuel 5; 8
13. God’s Communicative skills
13:1 God appears in a cloud and talks to Moses. Exodus 33; 9 Numbers 12; 5
13:2 God roars Isaiah 42:13 Hosea 11:10 Joel 3; 16
13:3 and yells like grape-pressers. Jer. 25; 30
13:4 He summons people by whistling and hissing. Isaiah 5;26 Zech. 10; 8
13:5 He also summons the flies from Egypt and the Bees from Assyria by hissing. Isaiah
7; 18
14. God’s Deceptions
14:1 God deceives his own prophets. Jer. 20; 7 2 Chronicles 18; 22
14:2 And sends evil spirits to trouble his kings. I Samuel ‘I6; 14 I Samuel 18;10
14:3 He even has his son taken away and tempted. Luke 4; 1
14:4 He also deludes people into believing lies so that he can then condemn them. 2
Thessalonians 2; 11
14:5 God makes men drunkards Jeremiah 13:13
15. God’s Enemy the Dragon
15:1 God describes the Leviathan his nemesis — a many-headed fire-breathing Sea-
Dragon. Job 41:1 Ps 104:26
15:2 A War in heaven between the angels and the dragon. Rev. 12; 7
15:3 God fights with the Sea-Dragon and kills it. Ps 74:14 13 Isa 27:1
16. Testimonies of God’s Goodness
16:1 The love of God is evident in his killing and expropriating the land of others. Psalm 136: 10
16:2 Sun, moon, stars, dragons, pious mountains, and holy beasts are called upon to Praise the Lord. Psalm 148:3