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Vedic Dharma and Islam 2
Vedic Dharm and Islam 1
इस्लामी बंदगी दरिंदगी और गंदगी !
इस्लामी बंदगी दरिंदगी और गंदगी !
लेखक- सत्यवादी
सब जानते हैं कि बिना किसी प्राणी को मारे बिना उसका मास खाना असंभव है, फिर भी ऐसे लोग खुद को “शरीर भक्षी (Carnivorous) कि जगह (Non vegetarian ) कहकर खुद को सही ठहराते हैं. कुछ लोग शौक के लिए और कुछ देखादेखी भी आमिष भोजन करते हैं.
लेकिन इस्लाम ने मांसभक्षण को और जानवरों की क़ुरबानी को एक धार्मिक और अनिवार्य कृत्य बना दिया है. और क़ुरबानी को अल्लाह की इबादत का हिस्सा बताकर सार्वजनिक रूप से मानाने वाला त्यौहार बना दिया है.
क़ुरबानी क्या है, इसका उद्देश्य क्या है, और मांसाहार से इन्सान स्वभाव में क्या प्रभाव पड़ता है, यह इस लेख में कुरान और हदीस के हवालों दिया जा रहा है .साथ में कुछ विडियो लिंक भी दिए हैं . देखिये —
1-कुरबानी का अर्थ और मकसद —-
अरबी शब्दकोश के अनुसार “क़ुरबानी قرباني” शब्द मूल यह तीन अक्षर है 1 .قकाफ 2 .رरे 3 और ب बे = क र बق ر ب .इसका अर्थ निकट होना है .तात्पर्य ऐसे काम जिस से अल्लाह की समीपता प्राप्त हो .
हिंदी में इसका समानार्थी शब्द ” उपासना” है .उप = पास ,आस =निकट .लेकिन अरबी में जानवरों को मारने के लिए “उजुहाالاضحي ” शब्द है जिसका अर्थ “slaughter ” होता है .इसमे किसी प्रकार की कोई आध्यात्मिकता नजर नहीं दिखती है .बल्कि क्रूरता , हिंसा ,और निर्दयता साफ प्रकट होती है .जानवरों को बेरहमी से कटते और तड़प कर मरते देखकर दिल काँप उठता है और यही अल्लाह चाहता है. और कुरान में कहा गया है .
“और उनके दिल उस समय काँप उठते हैं , और वह अल्लाह को याद करने लगते हैं ” सूरा -अल हज्ज 22 :35″.
2-क़ुरबानी की विधियाँ —
यद्यपि कुरान में जानवरों की क़ुरबानी करने के बारे में विस्तार से नहीं बताया है और सिर्फ यही लिखा है.
“प्रत्येक गिरोह के लिए हमने क़ुरबानी का तरीका ठहरा दिया है , ताकि वह अपने जानवर अल्लाह के नाम पर कुर्बान कर दें ” – सूरा -हज्ज 22 :34″.
लेकिन सुन्नी इमाम ” मालिक इब्न अबी अमीर अल अस्वही” यानि मालिक बिन अनस مالك بن انس “(711 – 795 ई० ) ने अपनी प्रसिद्ध अल मुवत्ता The Muwatta: (Arabic: الموطأ) की किताब 23 और 24 में जानवरों और उनके बच्चों की क़ुरबानी के जो तरीके बताएं है. उसे पढ़कर कोई भी अल्लाह को दयालु नहीं मानेगा.
3-पशुवध की राक्षसी विधियाँ —
मांसाहार अरबों का प्रिय भोजन है, इसके लिए वह किसी भी तरीके से किसी भी जानवर को मारकर खा जाते थे. जानवर गाभिन हो या बच्चा हो या मादा के पेट में हो सबको हजम कर लेते थे. और रसूल उनके इस काम को जायज बता देते थे बाद में यही सुन्नत बन गयी है और सभी मुसलमान इसका पालन करते हैं. इन हदीसों को देखिये —
अ -खूंटा भोंक कर —
“अनस ने कहा कि बनू हरिस का जैद इब्न असलम ऊंटों का चरवाहा था, उसकी गाभिन ऊंटनी बीमार थी और मरणासन्न थी. तो उसने एक नोकदार खूंटी ऊंटनी को भोंक कर मार दिया. रसूल को पता चला तो वह बोले इसमे कोई बुराई नहीं है तुम ऊंटनी को खा सकते हो “ — मालिक मुवत्ता-किताब 24 हदीस 3 .
ब-पत्थर मार कर —
“याहया ने कहा कि इब्न अल साद कि गुलाम लड़की मदीने के पास साल नामकी जगह भेड़ें चरा रही थी. एक भेड़ बीमार होकर मरने वाली थी.तब उस लड़की ने पत्थर मार मार कर भेड़ को मार डाला .रसूल ने कहा इसमे कोई बुराई नहीं है ,तुम ऐसा कर सकते हो “ — मालिक मुवत्ता -किताब 24 हदीस 4.
जानवरों को मारने कि यह विधियाँ उसने बताई हैं, जिसको दुनिया के लिए रहमत कहा जाता है ? और अब किस किस को खाएं यह भी देख लीजये —
4- किस किस को खा सकते हो —
इन हदीसों को पढ़कर आपको राक्षसों की याद आ जाएगी.यह सभी हदीसें प्रमाणिक है यह नमूने देखिये —
अ -घायल जानवर —
“याह्या ने कहा कि एक भेड़ ऊपर से गिर गयी थी ,और उसका सिर्फ आधा शरीर ही हरकत कर रहा था ,लेकिन वह आँखें झपक रही थी .यह देखकर जैद बिन साबित ने कहा उसे तुरंत ही खा जाओ “ मालिक मुवत्ता किताब 24 हदीस 7.
ब -मादा के गर्भ का बच्चा —
“अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि जब एक ऊंटनी को काटा गया तो उसके पेट में पूर्ण विक्सित बच्चा था ,जिसके बल भी उग चुके थे . जब ऊंटनी के पेट से बच्चा निकाला गया तो काफी खून बहा ,और बच्चे दिल तब भी धड़क रहा था.तब सईद इब्न अल मुसय्यब ने कहा कि माँ के हलाल से बच्चे का हलाल भी माना जाता है . इसलिए तुम इस बच्चे को माँ के साथ ही खा जाओ “ मुवत्ता किताब 24 हदीस 8 और 9.
स – दूध पीता बच्चा —
“अबू बुरदा ने रसूल से कहा अगर मुझे जानवर का केवल एकही ऐसा बच्चा मिले जो बहुत ही छोटा और दूध पीता हो , रसूल ने कहा ऐसी दशा में जब बड़ा जानवर न मिले तुम बच्चे को भी काट कर खा सकते हो “ मालिक मुवत्ता -किताब 23 हदीस 4.
5- क़ुरबानी का आदेश और तरीका —
वैसे तो कुरान में कई जानवरों की क़ुरबानी के बारे में कहा गया है ,लेकिन यहाँ हम कुरान की आयत विडियो लिंक देकर कुछ जानवरों की क़ुरबानी के बारे जानकारी दे रहे हैं .ताकि सही बात पता चल .सके , पढ़िए और देखिये , —
अ – गाय —
“याद करो जब अल्लाह ने कहा की गाय को जिबह करो ,जो न बूढी हो और न बच्ची बीच का आयु की हो “सूरा -बकरा 2 :67 -68.”
ब- ऊंट —
“और ऊंट की कुरबानी को हमने अल्लाह की भक्ति की निशानियाँ ठहरा दिया है “सूरा अल हज्ज 22 :36”
स -चौपाये बैल —
“तुम्हारे लिए चौपाये जानवर भी हलाल हैं ,सिवाय उसके जो बताये गए हैं “सूरा-अल 22 :30.”
6- गैर मुस्लिमों को गोश्त खिलाओ —
“इब्ने उमर और और इब्न मसूद ने कहा की रसूल ने कहा है ,कुरबानी का गोश्त तुम गैर मुस्लिम दोस्त को खिलाओ ,ताकि उसले दिल में इस्लाम के प्रति झुकाव पैदा हो “
it is permissible to give some of it to a non-Muslim if he is poor or a relative or a neighbor, or in order to open his heart to Islam.
“فإنه يجوز أن أعطي بعض منه الى غير مسلم إذا كان فقيرا أو أحد الأقارب أو الجيران، أو من أجل فتح صدره للإسلام “
Sahih Al-Jami`, 6118.
गैर मुस्लिमों जैसे हिन्दुओं को गोश्त खिलाने का मकसद उनको मुसलमान बनाना है ,क्योंकि यह धर्म परिवर्तन की शुरुआत है .बार बार खाने से व्यक्ति निर्दयी और कट्टर मुसलमान बन जाता है .
7- गोश्तखोरी से आदमखोरी —
मांसाहारी व्यक्ति आगे चलकर नरपिशाच कैसे बन जाता है ,इसका सबूत पाकिस्तान की ARY News से पता चलता है ,दिनांक 4 अप्रैल 2011 पुलिस ने पाकिस्तान पंजाब दरया खान इलाके से आरिफ और फरमान नामके ऐसे दो लोगों को गिरफ्तार किया ,जो कब्र से लाशें निकाल कर ,तुकडे करके पका कर खाते थे . यह परिवार सहित दस साल से ऐसा कर रहे थे.दो दिन पहले ही नूर हुसैन की 24 की बेटी सायरा परवीन की मौत हो गयी थी ,फरमान ने लाश को निकाल लिया ,जब वह आरिफ के साथ सायरा को कट कर पका रहा था ,तो पकड़ा गया . पुलिस ने देगची में लड़की के पैर बरामद किये . इन पिशाचों ने कबूल किया कि हमने बच्चे और कुत्ते भी खाए हैं .ऐसा करने कीप्रेरणा हमें दूसरों से मिली है , जो यही काम कराते हैं . विडियो लिंक —
8- हलाल से हराम तक —
खाने के लिए जितने भी जानवर मारे जाते हैं ,उनका कुछ हिस्सा ही खाया जाता है , बाकी का कई तरह से इस्तेमाल करके लोगों को खिला दिया जाता है ..इसके बारे में पाकिस्तान के DUNYA NEWS की समन खान ने पाकिस्तान के लाहौर स्थित बाबू साबू नाले के पास बकर मंडी के मजबह (Slaughter House ) का दौरा करके बताया कि वहां ,गधे कुत्ते , चूहे जैसे सभी मरे जानवरों की चर्बी निकाल कर घी बनाया जाता है . यही नहीं होटलों में खाए गए गोश्त की हडियों को गर्म करके उसका भी तेल निकाल कर पीपों में भर कर बेच दिया जाता है ,जिसे जलेबी ,कबाब ,समोसे आदि तलने के लिए प्रयोग किया होता है . खून को सुखा कर मुर्गोयों की खुराक बनती है . फिर इन्हीं मुर्गियों को खा लिया जाता है .आँतों में कीमा भरके बर्गर बना कर खिलाया जाता है .विडियो लिंक —
हमारी सरकार जल्द ही पाकिस्तान के साथ व्यापारिक अनुबंध करने जारही है ,और तेल या घी के नाम पर जानवरों की चर्बी और ऐसी चीजें यहाँ आने वाली हैं .
लोगों को फैसला करना होगा कि उन्हें पूर्णतयः शाकाहारी बनकर, शातिशाली, बलवान, निर्भय और जीवों के प्रति दयालु बन कर देश और विश्व कि सेवा करना है या धर्म के नाम पर या दुसरे किसी कारणों से प्राणियों को मारकर खाके हिसक क्रूर निर्दयी सर्वभक्षी पिशाच बन कर देश और समाज के लिए संकट पैदा करना है .
दूसरे धर्मों के लोग ईश्वर को प्रसन्न करने और उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करके खुद को कष्ट देते हैं. लेकिन इस्लाम में बेजुबान जानवरों को मार कर अल्लाह को खुश किया जाता है और इसी को इबादत या बंदगी माना जाता है .फिर यह बंदगी दरिंदगी बन जाती है और जिसका नतीजा गन्दगी के रूप में लोग खाते हैं.
इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद विचार जरुर करिए — माँसाहारी अत्याचारी ,और अमानुषिक हो सकते हैं लेकिन बलवान और सहृदय कभी नहीं सो सकते .
अल्लाह एक कल्पित चरित्र है
अल्लाह एक कल्पित चरित्र है —
लेखक- सत्यवादी
कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इनकी ईश्वर के आदेश मानने से इंकार कर देगा. अप देखेंगे की अल्लाह हमेशा मुहम्मद का पक्ष लेता है, मुहम्मद के हरेक कुकर्म को किसी न किसी आयात से जायज बता देता है. मुहम्मद के लिए औरतों का इंतजाम करता है, मुहम्मद के घरेलु विवाद सुलझाता है, मुहम्मद के पापों पर पर्दा डालता है आदि आदि.
यूरोप के विद्वान् इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वास्तव में अल्लाह एक कल्पित चरित्र है. अल्लाह का कोई अस्तित्व नहीं है. अल्लाह और कोई नहीं मुहम्मद ही था. जो अल्लाह का रूप धरकर पाखण्ड कर रहा था और लोगों को मूर्ख बनाकर अपनी मनमर्जी चला रहा था और अय्याशी कर रहा था.
कुरान अल्लाह की किताब नहीं, बल्कि मुहम्मद, आयशा और वर्क बिन नौफल की बेतुकी बातों का संग्रह है और हदीसें मुहम्मद के साथियों द्वारा चुगली की गयी बातें हैं.यहाँ पर उन्हीं तथ्यों की समीक्षा की जा रही है, जिस से साबित होता है की मुहम्मद अलाह की खाल ओढ़कर अपनी चालें कैसे चलता था.
इसके लिए प्रमाणिक हदीसों और कुरान से हवाले लिए गए हैं —
1 -अल्लाह को केवल मुहम्मद ही जानता था —
“रसूल ने कहा कि केवल मुझे ही अलह के बारे में पूरी पूरी जानकारी है ,कि अल्लाह कैसा है ,और कहाँ रहता है ,और भवष्य में क्या करने वाला है ” — सही मुस्लिम -किताब 30 हदीस 5814.”
“आयशा ने कहा कि ,जब भी मोमिन रसूल के पास आकर,उन से अल्लाह और रसूल के अधिकारों ,के बारे में कोई सवाल करता था ,तो रसूल एकदम भड़क जाते थे ,और कहते थे कि ,मैं अल्लाह को अच्छी तरह पहिचानता हूँ .मुझ में और अल्लाह में कोई फर्क नहीं है .मैं अल्लाह के बारे में तुम सब से अधिक जानता हूँ ” — बुखारी -जिल्द 1 किताब 2 हदीस 19″.
“सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जन्नत में केवल उन्हीं लोगों को ऊंचा स्थान मिलेगा जो ,अल्लाह के साथ मुझे भी आदर देंगे और मुझे चाहेंगे ” — बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 478″ .
2 -अल्लाह मुहम्मद को औरतें भेजता था —
“खौला बिन्त हकीम नामकी एक औरत रसूल के पास गयी ,रसूल ने उस से सहवास कि इच्छा प्रकट की ,लेकिन आयशा को यह पसंद नहीं आया .इस पर रसूल ने कहा कि ,आयशा क्या तुम नहीं चाहती हो ,आल्लाह मुझे औरतें भेजकर मुझे ख़ुशी प्रदान नहीं करे .इस औरत को अल्लाह ने मेरे लिए ही भेजा है “. — बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 48” .
3 -अल्लाह मुहम्मद का पक्ष लेता था —
“अब्ब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि ,रसूल से मैंने सुना कि रसूल ने कहा अल्लाह हमेशा मेरा ही पक्ष लेता है .और मेरी हरेक बात को उचित ठहरा देता है .मेरे मुंह से अल्लाह ही बोलता है “सहीह मुस्लिम -किताब 1 हदीस 54 “.
4 -मुहम्मद को गाली,अल्लाह को गाली —
“अबू हुरैरा ने कहा कि ,जब कुरैश के लोग रसूल को मुहम्मद कि जगह “मुहम्मम “कहकर चिढाते थे तो,रसूल ने कहा क्या तुम लोग यह नहीं जानते हो कि ,तुम अल्लाह को चिढ़ा रहे हो .इस से तुम पर अजाब पड़ेगा “बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 773”.
5 -मुहम्मद कि जुबान अल्लाह कि जुबान —
“अबू मूसा ने कहा कि ,रसूल ने कहा ,मैं जो भी कहता हूँ वह मेरी नहीं बल्कि अल्लाह कि जुबान है .जिसने मेरी बात मानी समझ लो उसने अल्लाह कि बात को मान लिया “अबू दाऊद-किताब 3 हदीस 5112”.
“आयशा ने कहा कि ,हिन्दा बिन्त उतबा रसूल के पास शिकायत लेकर आई और बोली कि ,मुझे अबू सुफ़यान से खतरा है ,क्या मैं अपना घर छोड़ कर चली जाऊं ,क्या सुफ़यान को अल्लाह का खौफ नहीं है .रसूल ने कहा तुम डरो नहीं ,तुम्हें कुछ नहीं होगा .यह मेरा नहीं अल्लाह का वायदा है “सहीह मुस्लिम -किताब 18 हदीस 4254 “.
6 -मुहम्मद को अल्लाह का डर नहीं था —
“आयशा ने कहा कि ,एक बार जैसे ही रसूल घर में दाखिल हुए तो एक यहूदिन ने चिल्लाकर रसूल से कहा कि क्या तझे पता नहीं है कि कयामत के दिन अल्लाह तेरे गुनाहों के बारे में सवाल करेगा. रसूल ने कहा कि मुझे इसका कोई डर नहीं है मैं खुद अपने आप से सवाल क्यों करूंगा “मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1212”.
“अम्र बिन आस ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,अल्लाह तो मेरा दोस्त है .और वह मुझसे या मेरे बाप दादाओं या मेरे साथियों से उनके गुनाहों के बारे में कोई सवाल नहीं करेगा .और मई सब गुनाह माफ़ कर दूंगा “मुस्लिम -किताब 1 हदीस 417 .इब्ने माजा -किताब 1 हदीस 93”.
7 -मुहम्मद से नीची आवाज में बोलो —
“हे ईमान वालो ,अपनी आवाजें रसूल की आवाजों से ऊंची नहीं करो ,और जो लोग रसूल के सामने अपनी आवाजें नीची रखते है .अल्लाह उनके लिए क्षमा और उत्तम बदला देगा “सूरा -अल हुजुरात 49 :2 और 3”.
8 -अल्लाह के नाम पर मुहम्मद का कानून —
“जब अल्लाह का रसूल की फैसला कर दे ,तो किसी को कोई अधिकार नहीं रह जाता है कि ,वह रसूल कि वह रसूल के फैसले कि अवज्ञा कर सके .” — सूरा -अहजाब 33 :36 “.
“इब्ने अब्बास ने कहा कि ,जो रसुल के आदेश को कबूलकरेगा और मान लेगा समझ ले कि उसाने अल्लाह केअदेश को मान लिया .और जो रसूल के आदेश का विरोध करेगा वह अल्लाह का विरोध माना जाएगा “बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 634” .
9 -मुहम्मद का आतंक अल्लाह का आतंक —–
“अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,मैं लोगों ले दिलों में आतंक पैदा कर दूंगा .और जो आतंक होगा वह अल्लाह के द्वारा पैदा किया आतंक समझा जाये — “सहीह मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1066 और 1067” .
10 -अल्लाह ने शादियाँ तय करवायीं —
“जब मुहम्मद ने अपनी पुत्रवधू जैनब बिन्त से अपनी शादी करवाई थी ,वह शादी खुद अल्लाह ने ही करवायी थी .उस समय अल्लाह के आलावा कोई दूसरा नहीं रसूल ही थे “सहीह मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1212 “.
11 -अल्लाह के बहाने अली बोलता था —
“जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि ,अक्सर जब रसूल कोई महत्वपूर्ण आयत सुनाने वाले होते थे तो ,सब को बुला लेते थे .फिर अपने घर के एक गुप्त कमरे में अली को बुला लेते थे .जबीर ने कहा कि इसी तरह एक बार रसूल ने हमें बुलाया ,फिर कहा कि एक विशेष आयत सुनाना है .फिर रसूल अली को एक कमरे में ले गए .आर कहा कि इस आयत में काफी समय लग सकता है इसलिए अप लोग रुके रहें ,हमने चुप कर देखा कि अली ,रसूल से अल्लाह की तरह बातें कर रहा था .वास्तव में कमरे में रसूल और अली के आलावा कोई नहीं था .अलह कि तरह बातें करने वाला और कोई नहीं बल्कि रसूल का चचेरा भाई अली था “शामए तिरमिजी हदीस 1590 “.
इस सारे विवरणों से साफ पता चलता है कि ,अल्लाह का कोई अस्तित्व ही नहीं है .यह मुहम्मद की चालबाजी और पाखंड था .अरब के मुर्ख ,लालची लोग मुहाम्मद की बे सर पैर की बातों को अल्लाह का आदेश मान लेते थे .आज भी कई ढोंगी बाबा ,फकीर इसी तरह से लोगों को ठगते रहते है .चूंकि आज विज्ञानं का प्रचार होने से लोग ऐसे ढोंगियों को जल्द ही भंडा फोड़ देते हैं .और पाखंडियों को जेल के अन्दर करा देते हैं .और ढोंगियों के जाल से बच जाते है .
आज इस बात की अत्यंत जरुरत है कि दुनिया के सबसे बड़े धूर्त ,पाखंडी ,और अल्लाह के नाम पर आतंक करने वाले स्यंभू रसूल का विश्व स्तर पर भंडा फोड़ा जाये .तभी लोग शांति से जी सकेंगे .अल्लाह को मानाने या उस से डरने कि कोई जरुरत नहीं है .मुहम्मद ही अल्लाह बना हुआ था .
Letter from Andaman by Veer Sawarkar
LETTER 1
Oh Martyrs
The battle of freedom once begun
And handed down from sire to son
Though often lost is ever won!!
To-day is the tenth of May! It was on this day, that in the ever memorable year of 1857, the first campaign of the War of Independence was opened by you, Oh Martyrs, on the battle-field of India. The Motherland, awakened to the sense of her degrading slavery, Unsheathed her sword, burst forth from the shackles and struck the first blow for her liberty and for her honour. It was on this day that the war-cry ‘Maro Feringhee Ko’ was raised by the throats of thousands. It was on this day that the sepoys of Meerut, having risen in a terrible uprising, marched down to Delhi, saw the waters of the Jamuna, glittering in the sunshine, caught one of those historical moments which close past epoch to introduce a new one, and ‘had found, in a moment, a leader, a flag and a clause, and converted the mutiny into a national and a religious war.’ All honour be to you, oh Martyrs. For it was for the preservation of the honour of the
race that you performed the fiery ordeal of a revolution when the religions of the land were threatened with a forcible and sinister conversion, when the hypocrete threw off his friendly garb and stood up into the naked heinousness of a perfidious foe breaking
treaties, smashing crowns, forging chains and mocking all the while our merciful mother for the very honesty with which she believed the pretensions of the white liar, then you, oh Martyrs of 1857, awoke the mother, inspired the mother, and for the honour of the
mother, rushed to the battlefield terrible and tremendous with the war-cry ‘Maro Feringhee Ko’ on your lips, and with the sacred mantra God and Hindusthan on your banner ! Well did you do in rising. For otherwise, although your blood might have been spared, yet the stigma of servility would have been the deeper, one more link would have been added to the cursed chain of demoralizing patience, and the world would have again contemptuously pointed to our nation saying, ‘She deserves slavery, she is happy in slavery.’ For even in 1857, she did not raise even a finger to protect her interest and her honour!’ This day, therefore, we dedicate, oh Martyrs,to your inspiring memory! It was on this day that you raised a new flag to be upheld, you uttered a mission to be fulfilled,
you saw a vision to be realized, you proclaimed a nation to be born! We take up your cry, we revere your flag, we are determined to continue that fiery mission of ‘away with the foreigner’, which you uttered, amidst the prophetic thunderings of the Revolutionary war. Revolutionary, yes, it was a Revolutionary war. For the War of 1857 shall not cease till the revolution arrives, striking slavery into dust, elevating liberty to the throne. Whenever a people arises for its freedom, whenever that seed of liberty gets germinated in the blood of its fathers, whenever that seed of liberty gets germinated in the blood of its Martyrs, and whenever there remains at least one
true son to avenge that blood of his fathers, there never can be an end to such a war as this. No, a revolutionary war knows no truce, save liberty or death. We, inspired by your memory, determine to continue the struggle you began in 1857, we refuse to
acknowledge the armistice as a truce; we look upon the battles you fought as the battles of the first campaign—the defeat of which cannot be the defeat of the war. What? Shall the world say that India has accepted the defeat as the final one? That the
blood of 1857 was shed in vain? That the sons of Ind betray their fathers’ vows? No, by Hindusthan, no! The historical continuity of the Indian nation is not cut off. The war began on the 10thof May 1857 is not over on the 10thof May 1908, nor shall it ever cease till a 10thof May to come sees the destiny accomplished, sees the beautiful Ind crowned, either with the lustre of victory or with the halo of martyrdom. But, O glorious Martyrs, in this pious struggle of your sons help. O help us by your inspiring presence! Torn in innumerable pettyselves, we cannot realise the grand unity of the Mother. Whisper, then, unto us by what magic you caught the secret of Union. How the feringhee rule was shattered to pieces and the Swadeshi thrones were set up by the common consent of Hindus and Mahomedans. How in the higher love of the mother, united the difference of castes and creeds, how the venerated and venerable
Bahadur Shah prohibited the killing of cows throughout India, Hew Shreemant Nanasahib after the first salute of the thundering cannon to the emperor of Delhi, reserved for himself the second one! How you staggered the whole world by uniting under the banner of mother and forced your enemies to say ‘Among the many lessons the Indian Mutiny conveys to the historian and administrator, none is of greater importance than the warning that it is possible to have a revolution in which Brahmins and Shudras, Mahomedans and Hindus were united against us and that it is not safe to suppose that the peace and stability of our dominion in any great measure depends on the continent being inhabited by different races with different religious systems, for they mutually understand each other and respect and take part in each other’s modes and ways and doings. The mutiny reminds us thatour dominions rest on a thin crust ever likely to be rent by titanic fires of socialchanges and revolutions.’ Whisper unto us the nobility of such an alliance of Religion and Patriotism, the true religion whichever is on the side of patriotism, the true patriotism which secures the freedom of religion.
And give us the marvellous energy daring and secrecy with which you organized the mighty volcano; show us the volcanic magma that underlie the green thin crust on which the foe is to be kept lulled into a false security; tell us how the chapatti, that fiery
Cross of India flew from village to village and from valley to valley, setting the whole intellect of the nation on fire by the very vagueness of its message and then let us hear the roaring thunder with which the volcano atlast burst forth with an all shuttering
force, rushing, smashing, burning and consuming into one continuous fiery flow of redhot lava-flood! With in a month, regiment after regiment, prince after prince, city after city, sepoys, police, zemindars, Pundits, Moulvis, the multiple-headed Revolution
sounded its tocsin and temples and mosques resounded with the cry ‘Maro feringhee Ko’ Away with the foreigners! MEERUT ROSE, Delhi rose, roseBenares, Agra, Patna, Lucknow, Allahabad, Jadagalpoor, Jhansi, Banda, Indore- from Peshwar to Calcutta and
from the Narmada to the Himalayas, the volcano burst forth into a sudden, simultaneous and all consuming conflagration! !
And then, oh Martyrs, tell us the little as well as the great defects which you found out in our people in that great experiment of yours. But above all, point out that most ruinous, nay, the only material draw-back in the body of the nation which rendered all
your efforts futile- the mean selfish blindness which refuses to see its way to join the nation’s cause. Say that the only cause of the defeat of Hindusthan was Hindusthan herself, that shaking away the slumber of centuries, the mother rose to hit the foe, but
while her right hand was striking the Feringhee dead, her left hand struck, alas, not the enemy, but her forehead! So she staggered and fell back into the inevitable swoon of 50 years.
Fifty years are past, but, oh restless spirits of 1857, we promise you with our hearts’ blood that your Diamond Jubilee shall not pass without seeing your wishes fulfilled!! We have heard your voice and we gather courage from it. With limited means you sustained
a war, not against tyranny alone, but against tyranny and treachery together. The Daub and Ayodhya making a united stand, waged a war, not only against the whole of the British power but against the rest of the India too; and yet you fought for three years
and yet you had well-nigh snatched away the crown of Hindusthan and smashed the hollow existence of the alien rule. What an encouragement this! What the Duab and Ayodhya could do in a month, the simultaneous, sudden and determined rising of the whole of Hindusthan can do in a day. This hope illumines our hearts and assures us of success. And so we allow that your Diamond Jubilee year 1917 shall not pass without seeing the resurging Ind making a triumphant entry into the world. For, the bones of Bahadur Shah are crying vengeance from their grave! For, the blood of dauntless Laxmi is boiling with indignation! For, the shahid Peer Ali of Patna,
when he was going to the gallows for having refused to divulge the secrets of the conspiracy whispered defiance to the Feringhee said in prophetic words ‘You may hang me today, you may hang such as me everyday, but thousands will still rise in my place-
your object will never be gained.’ Indians, these words must be fulfilled!Your blood, oh Martyrs, shall be avenged.
VANDE MATARAM
इस्लाम का भविष्य क्या होगा ?
लेखक – सत्यवादी
मुसलमान अक्सर अपनी बढ़ती जनसंख्या की डींगें मारते रहते है .और घमंड से कहते हैं कि आज तो हमारे 53 देश हैं .आगे चलकर इनकी संख्या और बढ़ेगी .इस्लाम दुनिया भर में फ़ैल जायेगा .विश्व ने जितने भी धर्म स्थापक हुए हैं ,सभी ने अपने मत के बढ़ने की कामना की है .लेकिन मुहम्मद एकमात्र व्यक्ति था जिसने इस्लाम के विभाजन ,तुकडे हो जाने और सिमट जाने की पहिले से ही भविष्यवाणी कर दी थी .यह बात सभी प्रमाणिक हदीसों में मौजूद है .
यदि कोई इन हदीसों को झूठ कहता है ,तो उसे मुहम्मद को झूठ साबित करना पड़ेगा .क्योंकि यह इस्लाम के भविष्य के बारे में है .सभी जानते हैं कि किसी आदर्श ,या नैतिकता के आधार पर नहीं बल्कि तलवार के जोर पर और आतंक से फैला है .इस्लाम कि बुनियाद खून से भरी है .और कमजोर है .मुहम्मद यह जानता था .कुरान में साफ लिखा है –
1-इस्लाम की बुनियाद कमजोर है
“कुछ ऐसे मुसलमान हैं ,जिन्होंने मस्जिदें इस लिए बनायीं है ,कि लोगों को नुकसान पहुंचाएं ,और मस्जिदों को कुफ्र करने वालों के लिए घात लगाने और छुपाने का स्थान बनाएं .यह ऐसे लोग हैं ,जिन्होंने अपनी ईमारत (इस्लाम )की बुनियाद किसी खाई के खोखले कगार पर बनायीं है ,जो जल्द ही गिरने के करीब है .फिर जल्द ही यह लोग जहन्नम की आग में गिर जायेंगे “सूरा -अत तौबा 9 :108 और 109
2 –इस्लाम से पहिले विश्व में शांति थी .यद्यपि इस्लाम से पूर्व भी अरब आपस में मारकाट किया करते थे ,लेकिन जब वह मुसलमान बन गए तो और भी हिंसक और उग्र बन गए .जैसे जैसे उनकी संख्या बढ़ती गयी उनका आपसी मनमुटाव और विवाद भी बढ़ाते गए .वे सिर्फ जिहाद में मिलने वाले माल के लिए एकजुट हो जाते थे .फिर किसी न किसी बात पर फिर लड़ने लगते थे ,शिया सुनी विवाद इसका प्रमाण है .
इसके बारे में मुहमद के दामाद हजरत अली ने अपने एक पत्र में मुआविया को जो लिखा है उसका अरबी के साथ हिंदी और अंगरेजी अनुवाद दिया जा रहा है –
3 –हजरत अली का मुआविया को पत्र
हजरत अली का यह पत्र संख्या 64 है उनकी किताब” नहजुल बलाग “में मौजूद है .
http://www.imamalinet.net/EN/nahj/nahj.htm
“यह बात बिलकुल सत्य है कि,इस्लाम से पहिले हम सब एक थे .और अरब में सबके साथ मिल कर शांति से रह रहे थे .तुमने (मुआविया )महसूस किया होगा कि ,जैसे ही इस्लाम का उदय हुआ ,लोगों में फूट और मनमुटाव बढ़ाते गए .इसका कारण यह है ,कि एक तरफ हम लोगों को शांति का सन्देश देते रहे ,और दूसरी तरफ तुम मुनाफिक(Hypocryt )ही बने रहे ,और इस्लाम के नाम पर पाखंड और मनमर्जी चलाते रहे.तुमने अपने पत्र में मुझे तल्हा और जुबैर की हत्या का आरोपी कहा है .मुझे उस पर कोई सफ़ाई देने की जरुरत नहीं है .लेकिन तुमने आयशा के साथ मिलकर मुझे मदीना से कूफा और बसरा जाने पर विवश कर दिया ,तुमने जो भी आरोप लगाये हैं ,निराधार है ,और मैं किसी से भी माफ़ी नहीं मांगूंगा “
मुआविया के पत्र का हजरत अली का मुआविया को जवाब -नहजुल बलाग -पत्र संख्या 64
ومن كتاب له عليه السلام
كتبه إلى معاوية، جواباً عن كتاب منه
أَمَّا بَعْدُ، فَإِنَّا كُنَّا نَحْنُ وَأَنْتُمْ عَلَى مَا ذَكَرْتَ مِنَ الاَُْلْفَةِ وَالْجَمَاعَةِ، فَفَرَّقَ بيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَمْسِ أَنَّا آمَنَّا وَكَفَرْتُمْ، وَالْيَوْمَ أَنَّا اسْتَقَمْنَا وَفُتِنْتُمْ، وَمَا أَسْلَمَ مُسْلِمُكُمْ إِلاَّ كَرْهاً وَبَعْدَ أَنْ كَانَ أَنْفُ الاِِْسْلاَمِكُلُّهُ لِرَسُولِ اللهِ صلى الله عليه وآله حرباً
وَذَكَرْتَ أَنِّي قَتَلْتُ طَلْحَةَ وَالزُّبَيْرَ، وَشَرَّدْتُ بِعَائِشَةَ وَنَزَلْتُ بَيْنَ الْمِصْرَيْنِ وَذلِكَ أَمْرٌ غِبْتَ عَنْهُ، فَلاَ عَلَيْكَ، وَلاَ الْعُذْرُ فِيهِ إِلَيْكَ
[ A reply to Mu’awiya’s letter. ]
It is correct as you say that in pre-Islamic days we were united and at peace with each other. But have you realized that dissensions and disunity between us started with the dawn of Islam. The reason was that we accepted and preached Islam and you remained heathen. The condition now is that we are faithful and staunch followers of Islam and you have revolted against it. Even your original acceptance was not sincere, it was simple hypocrisy. When you saw that all the big people of Arabia had embraced Islam and had gathered under the banner of the Holy Prophet (s) you also walked in (after the Fall of Makkah.)
In your letter you have falsely accused me of killing Talha and Zubayr, driving Ummul Mu’minin Aisha from her home at Madina and choosing Kufa and Basra as my residence. Even if all that you say against me is correct you have nothing to do with them, you are not harmed by these incidents and I have not to apologize to you for any of them.
4 –इस्लाम का विभाजन
इस्लाम के पूर्व से ही अरब के लोग दूसरों को लूटने और आपसी शत्रुता के कारण लड़ते रहते थे .लेकिन मुसलमान बन जाने पर उनको लड़ने और हत्याएं करने के लिए धार्मिक आधार मिल गया .वह अक्सर अपने विरोधियों को मुशरिक ,मुनाफिक और काफ़िर तक कहने लगे और खुद को सच्चा मुसलमान बताने लगे .और अपने हरेक कुकर्मों को कुरान की किसी भी आयत या किसी भी हदीस का हवाला देकर जायज बताने लगे .धीमे धीमे सत्ता का विवाद धार्मिक रूप धारण करता गया .मुहम्मद की मौत के बाद ही यह विवाद इतना उग्र हो गया की मुसलमानों ने ही मुहम्मद के दामाद अली ,और उनके पुत्र हसन हुसैन को परिवार सहित क़त्ल कर दिया .उसके बाद ही इस्लाम के टुकडे होना शुरू हो गए .जिसके बारे में खुद मुहम्मद ने भविष्यवाणी की थी .-
“अबू हुरैरा ने कहा कि,रसूल ने कहा था कि यहूदी और ईसाई तो 72 फिरकों में बँट जायेंगे ,लेकिन मेरी उम्मत 73 फिरकों में बँट जाएगी ,और सब आपस में युद्ध करेंगे “अबू दाऊद-जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4579
“अबू अमीर हौजानी ने कहा कि ,रसूल ने मुआविया बिन अबू सुफ़यान के सामने कहा कि ,अहले किताब (यहूदी ,ईसाई ) के 72 फिरके हो जायेंगे ,और मेरी उम्मत के 73 फिरके हो जायेंगे ..और उन में से 72 फिरके बर्बाद हो जायेंगे और जहन्नम में चले जायेंगे .सिर्फ एक ही फिरका बाकी रहेगा ,जो जन्नत में जायेगा “अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4580 .
“अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,ईमान के 72 से अधिक टुकडे हो जायेंगे ,और मुसलमानों में ऐसी फूट पड़ जाएगी कि वे एक दुसरे कीहत्याएं करेंगे .”
अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4744 .
“अरफजः ने कहा कि मैं ने रसूल से सुना है ,कि इस्लाम में इतना बिगाड़ हो जायेगा कि ,मुसलमान एक दुसरे के दुश्मन बन जायेंगे ,और तलवार लेकर एक दुसरे को क़त्ल करेंगे “अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4153 .
“सईदुल खुदरी और अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,पाहिले तो मुसलमान इकट्ठे हो जायेंगे ,लेकिन जल्द ही उनमें फूट पड़ जाएगी .जो इतनी उग्र हो जाएगी कि वे जानवरों से बदतर बन जायेगे .फिर केवल वही कौम सुख से जिन्दा रह सकेगी जो इनको इन को ( नकली मुसलमानों )को क़त्ल कर देगी .फिर अनस ने रसूल से उस कौम की निशानी पूछी जो कामयाब होगी .तो रसुलने बताया कि,उस कौम के लोगों के सर मुंडे हुए होंगे .और वे पूरब से आयेंगे “अबू दाऊद-जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4747 .
5 –इस्लाम के प्रमुख फिरके
आमतौर पर लोग मुसलमानों के दो ही फिरकों शिया और सुन्नी के बारे में ही सुनते रहते है ,लेकिन इनमे भी कई फिरके है .इसके आलावा कुछ ऐसे भी फिरके है ,जो इन दौनों से अलग है .इन सभी के विचारों और मान्यताओं में इतना विरोध है की यह एक दूसरे को काफ़िर तक कह देते हैं .और इनकी मस्जिदें जला देते है .और लोगों को क़त्ल कर देते है .शिया लोग तो मुहर्रम के समय सुन्नियों के खलीफाओं ,सहबियों ,और मुहम्मद की पत्नियों आयशा और हफ्शा को खुले आम गलियां देते है .इसे तबर्रा कहा जाता है .इसके बारे में अलग से बताया जायेगा .
सुन्नियों के फिरके -हनफी ,शाफई,मलिकी ,हम्बली ,सूफी ,वहाबी ,देवबंदी ,बरेलवी ,सलफी,अहले हदीस .आदि –
शियाओं के फिरके -इशना अशरी ,जाफरी ,जैदी ,इस्माइली ,बोहरा ,दाऊदी ,खोजा ,द्रुज आदि
अन्य फिरके -अहमदिया ,कादियानी ,खारजी ,कुर्द ,और बहाई अदि
इन सब में इतना अंतर है की ,यह एक दुसरे की मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ते .और एक दुसरे की हदीसों को मानते है .सबके नमाज पढ़ने का तरीका ,अजान ,सब अलग है .इनमे एकता असंभव है .संख्या कम होने के से यह शांत रहते हैं ,लेकिन इन्हें जब भी मौका मिलाता है यह उत्पात जरुर करते हैं .
6 –इस्लाम अपने बिल में घुस जायेगा
मुहम्मद ने खुद ही इस्लाम की तुलना एक विषैले नाग से की है .इसमे कोई दो राय नहीं है .सब जानते हैं कि यह इस्लामी जहरीला नाग कितने देशों को डस चुका है .और भारत कि तरफ भी अपना फन फैलाकर फुसकार रहा है .लेकिन हम हिन्दू इतने मुर्ख हैं कि सेकुलरिज्म ,के नामपर ,और झूठे भाईचारे के बहाने इस इस्लामी नाग को दूध पिला रहे हैं .और तुष्टिकरण की नीतियों को अपना कर आराम से सो रहे है .आज इस बात की जरुरत है की ,हम सब मिल कर मुहम्मद की इस भविष्यवाणी को सच्चा साबित करदें ,जो उसने इन हदीसों में की थीं .-
“अबू हुरैरा ने कहा की ,रसूल ने कहा कि,निश्चय ही एक दिन इस्लाम सारे विश्व से निकल कर कर मदीना में में सिमट जायेगा .जैसे एक सांप घूमफिर कर वापिस अपने बिल में घुस जाता है ‘बुखारी -जिल्द 3 किताब 30 हदीस 100 .
“अब्दुल्ला बिन अम्र बिन यासर ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जल्द ही एक ऐसा समत आयेगा कि जब लोग कुरान तो पढेंगे ,लेकिन कुरान उनके गले से आगे कंधे से निचे नहीं उतरेगी.और इस्लाम का कहीं कोई निशान नहीं दिखाई देगा “
बुखारी -जिल्द 9 किताब 84 हदीस 65
“अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा है कि ,इस्लाम सिर्फ दो मस्जिदों (मक्का और मदीना )के बीच इस तरह से रेंगता रहेगा जैसे कोई सांप इधर उधर दो बिलों के बीच में रेंगता है “
सही मुस्लिम -किताब 1 हदीस 270 .
“इब्ने उमर ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ऐसा निकट भविष्य में होना निश्चय है ,कि इस्लाम और ईमान दुनिया से निकलकर वापस मदीने में इस तरह से घुस जायेगा ,जैसे कोई विषैला सांप मुड़कर अपने ही बिल में घुस जाता है “
सही मुस्लिम -किताब 1 हदीस 271 और 272 .
अब हम देखते हैं कि मुसलमान इन हदीसों को झूठ कैसे साबित करते है . आज लीबिया ,यमन और दूसरे इस्लामी देशों में जो कुछ हो रहा है ,उसे देखते हुए यही प्रतीत होता है कि मुहम्मद साहिब की यह हदीसें एक दिन सच हो जायेगीं ,जिनमे इस्लाम के पतन और विखंडन की भविष्यवाणी की गयी है .!
http://www.faithfreedom.org/oped/AbulKasen50920.htm
ऋषि दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित विवाह विधि वैदिक, युक्तिसंगत है
ऋषि दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित विवाह विधि वैदिक, युक्तिसंगत है –
सत्यार्थ प्रकाश के चतुर्थ समुल्लास में स्वामी जी ने कहा –
“जब तक इसी प्रकार सब ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा आर्य लोग ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़ ही के स्वयंवर विवाह करते थे तब तक इस देश की सदा उन्नति होती थी | जब से ब्रह्मचर्य से विद्या का न पढना, बाल्यावस्था में पराधीन, अर्थात माता-पिता के अधीन विवाह होने लगा; तब से क्रमश: आर्यावर्त देश की हानी होती चली आई है |इससे इस दृष्ट काम को छोड़ के सज्जन लोग पूर्वोक्त प्रकार से स्वयंवर विवाह किया करे |
“ जब स्त्री-पुरुष विवाह करना चाहे तब विद्या, विनय, शील, रूप, आयु, बल, कुल, शरीर का परिमाण आदि यथा योग्य होना चाइये | जब तक इनका मेल नहीं होता तब तक विवाह में कुछ भी सुख नहीं होता | न बाल्यावस्था में विवाह करने में सुख होता है |
“कन्या और वर का विवाह के पूर्व एकांत में मेल ने होना चाइये, क्यों की युवावस्था में स्त्री-पुरुष का एकांत वास दूषण कारक है |
“परन्तु जब कन्या व वर के विवाह का समय हो, अर्थात जब एक वर्ष व छह महीने ब्रह्मचर्य आश्रम और विद्या पूरी होने में शेष रहे तब कन्या और कुमारो का प्रतिबिम्ब, अर्थात जिसको ‘फोटोग्राफ’ कहते है अथवा प्रतिकृति उतारके कन्याओ की अध्यापिकाओ के पास कुमारो की और कुमारों के अध्यापको के पास कन्याओ की प्रतिकृति भेज देवे |
“ जिस-जिस का रूप मिल जाए, उस-उसका इतिहास अर्थात जन्म से लेके उस दिन पर्यंत जन्म-चरित्र का जो पुस्तक हो, उसको अध्यापक लोग मंगवा के देखे | जब दोनों के गुण-कर्म-स्वाभाव सदृश हों तब- जिस-जिसके साथ जिसका विवाह होना योग्य समझे उस-उस पुरुष व कन्या का प्रतिबिम्ब और इतिहास कन्या और वर के हाथ में देवे और कहे कि इसमें जो तुम्हारा अभिप्राय हो सो हम को विदित कर देना |
“ जब उन दोनों का निश्चय परस्पर विवाह करने का हो जाए तब उन दोनों का समावर्तन एक ही समय में होवे | जो वे दोनों अध्यापकों के सामने विवाह करना चाहें तो वहा, नहीं तो कन्या के माता-पिता के घर में विवाह होना योग्य है | जब वे समक्ष हों तब अध्यापकों व कन्या के माता-पिता आदि भद्र पुरषों के सामने उन दोनों की आपस में बात-चित, शास्त्रार्थ करना औरजो कुछ गुप्त व्यवहार पूछे सो भी सभा में लिखके एक दुसरे के हाथ में देकर प्रश्नोत्तर कर लेवे इत्यादि |
प्रश्न :- अब यहाँ विधर्मी शंका यह करते है “ स्वामी दयानन्दजी ने विवाह संस्कार में जो यह लिखा है कि विवाह स्वयंवर रीती से होना चाइये, कन्या और वर की इच्छा ही विवाह में प्रधान है | कन्या और वर सबके समक्ष वार्तालाप व शास्त्रार्थ करे इत्यादि |यह सब बातें वेद शास्त्र के विरुद्ध है | आर्य समाजियों का यह दावा है कि स्वामी दयानंद की शिक्षा वैदिक है, अत: वे इन सब बातों को सिद्ध करने के लिए वेद, शास्त्रों के प्रमाण देवे |
समाधान :- ऋषि दयानंद जी ने विवाह के सम्बन्ध में सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथो में लिखी है वे सब वेद, शास्त्रों और इतिहास के अनुकूल तथा युक्ति संगत है | इस बात को सिद्ध करने के लिए प्रमाण नीचे दिए जाते है |
प्रमाण संख्या १
तमस्मेरा युवतयो युवानं ……………यन्त्याप: | ऋग्वेद २/३५/४
भावार्थ : जवान स्त्रिया उत्तम ब्रह्मचर्य से युक्त होकर जवान ब्रह्मचारी पुरषों को जैसे जल वा नदी स्वयं समुद्र को प्राप्त होती है वैसे स्वयमेव प्राप्त होती है |
प्रमाण संख्या २
कियती योषा मर्यतो ……………………………….वार्येण |
भद्रा वधुभर्वति ……………………………………..जने चित || ऋग्वेद १०/२७/१२
भावार्थ : १. प्रथम, स्त्री-पुरुष का परिमाण यानी लम्बाई, चौड़ाई, बल, दृढ़ता आदि गुणों को देखना चाइये | २. स्त्री, पुरुष ऐसे हो जो एक दुसरे के गुणों को देककर परस्पर प्रीटी व अनुराग करनेवाले हो | ३. वधू कल्याण करनेवाली हो, भद्र देखनेवाली, भद्रा चरण करनेवाली, सुन्दर दृढ हो | ४. विवाह सब जनों के समक्ष होना चाइये और कन्या स्वयमेव उस जन समूह में से गुण-कर्म-स्वभाव देखकर वर को पसंद कर लेवे |
प्रमाण संख्या ३
१. अपश्यं त्वा मनसा चेकितानम……………………..तपसो विभुतम |
इह प्रजमिह रयिं…………………………..प्रजया पुत्रकाम ||
२. अपश्यं त्वा मनसा दिध्यानाम ………………….ऋतव्ये नाधमानाम |
उप मामुच्चा युवति………………………………..प्रजया पुत्रकामे || ऋग्वेद १०/१८४/१-२
भावार्थ : कन्या कहती है कि हे वर ! मैंने तुमको परीक्षा पूर्वक अच्छी प्रकार देख लिया है कि तुम मुझसे विवाह के योग्य हो और मैंने यह भी जान लिया है की तुमने तपश्चर्या से विद्या, ज्ञान को प्राप्त किया है तथा रूप, लावण्य, बल, पराक्रम को बढाया है | इस संसार में प्रजा व धन की इच्छा करते हुए, हे पुत्र की कामना करने वाले ! विवाह करके मेरे साथ गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करो |
इन उपयुक्त दो मंत्रो से ये बाते स्पष्ट होती है —
१. कन्या-वर-एक दुसरे की सबके समक्ष परीक्षा करे | जब उन दोनों को निश्चय हो कि हम दोनों के गुण-कर्म-स्वभाव परस्पर मिलते है तब वे परस्पर मिलते है तब वे परस्पर एक-दूसरे को जतलाकर वार्तालाप करके विवाह करे |
२. विवाह से प्रथम कन्या तथा वर तपश्चर्या पूर्वक विद्याध्यन करनेवाले तथा बल, पराक्रम, रूप लावण्य को बढ़ानेवाले हो |
३. कन्या-वर अत्यंत जवान हों | इससे बाल्यावस्था के विवाह का सर्वथा निषेध हो जाता है और उन दोनों का परस्पर ज्ञान हो किदोनों पुत्र की कामना करनेवाले और संतान-विज्ञानं के पंडित है |
प्रमाण संख्या ४
वांछ में तन्वं पादौ ……………………………..वांछ सकथ्यौ |
अक्षौ वृषन्यन्त्या केशा:…………………………..कामेन शुश्यन्तु || अथर्व वेद ६/९/१
भावार्थ : वर कहता है कि तू मेरे शरीर, पैरो, और आँखों को पसंद कर | मै तुम्हारे रूप-लावण्यादी बातों को पसंद करता हु |
इस मंत्र में यह बात स्पष्ट है कि वर-कन्या के अंग-प्रत्यंग की भी परीक्षा करनी चाइये | जब दोनों के अंग-प्रत्यंग निर्दोष हो तब उनका परस्पर विवाह होना चाइये |
इस मंत्र अनुसार कन्या-वर का एक दुसरे को परस्पर देखना, एक-दुसरे के पास एक-दुसरे का फोटो भेजना, अध्यापक व अध्यापिकाओ द्वारा परीक्षा करना आदि सब बाते आ जाती है | इन मंत्रो पर मनु का ने निम्नलिखित श्लोक में कहा है –
“जिसके सरल-सुधे अंग हो, विरुद्ध न हो, जिसका नाम सुन्दर अर्थात यशोदा, सुखदा, आदि हो, हंस और हथिनी के तुल्य जिसकी चाल हो, सुक्ष्म लोम केश और दन्त युक्त हो, सब अंग कोमल हो. ऐसी स्त्री के साथ विवाह होना चाइये | मनुस्मृति ३/१०
प्रमाण संख्या ६
एतैरेव गुनैर्युक्त: ……………………वर: |
यत्नात परीक्षित: …………………….धीमान जनप्रिय: || याज्ञवल्क स्मृति १/५५
भावार्थ : इन गुणों से युक्त, सवर्ण, वेद के जाननेवाला, बुध्दिमान, सब जनों से प्यार करनेवाला, जिसको पुरुषत्व की यत्न से परीक्षा की है वह वर विवाह के योग्य है |
कहो, विधर्मियो ! तुम जो ऋषि दयानंद की विवाह परीक्षा पर आक्षेप करते हो | उपहास करते हो, क्या कोई वर-वधु परीक्षा विधि पर आचरण करने को तयार है ? क्या कोई इस परीक्षा के अनुसार ब्रह्मचारी रहने को तयार है ? यह परीक्षा वेदों और अन्य शास्त्रों में रहते हुए ऋषि दयानंद पर शंका करते हो | इस पर इन्हें लज्जित होना चाइये |
प्रमाण संख्या ७
कुलं च शीलं च वपुर्वयश्च विद्याम…………………….च सनाथतं च |
एतान गुनान सप्त ……………………………………….शेषमचिन्तनीयम || – प० सं० आ० का० ३/२/१९
भावार्थ – कुल, शील, शरीर अवस्था. आयु, विद्या,धन, सनाथता – इन सात गुणों की परीक्षा करके फिर कन्या देवे |
इस स्मृति-वचन में विवाह के लिए जो बातें ऋषि दयानंद जी महाराज ने बतलाई है प्राय: वे सब आ गई है | यदि इन बातों को देककर विवाह किया जाये तो संसार के बहोत से दुःख स्वयमेव नष्ट हो जाये |
उपयुक्त लेख में हमने वेद-शास्त्र, स्मृति आदि प्रमाण देकर यह सिद्ध कर दिया है की ऋषि दयानंद महाराज ने विवाह सम्बन्ध में जो बातें लिखी है वे सब वैदिक, युक्तिसंगत तथा संसार के कष्ट को मिटानेवाली है |
पाठ्य ग्रन्थ :- मीरपुरी सर्वस्व – पंडित बुद्धदेव मीरपुरी
कुरआन की शिक्षाएं
कुरआन की शिक्षाएं
यह लेख किसी की धार्मिक भावना को आहत करने के लिए नहीं लिखा गया है केवल सत्य का प्रकाश करने के लिये लिखा गया है | मुस्लिम मित्रो का दावा है की कुरआन ने इन्सान को हर वो शिक्षा दी जो इन्सान के लिए जरुरी है | चाहे वो ज्ञान हो या विज्ञानं हर चीज की तालीम कुरआन ने दी है | इस लेख के माध्यम से हम कुरआन की शिक्षाओं प्रकाश डालेंगे |
शिक्षा :-
१.) माता पिता की सेवा की शिक्षा
किसी मनुष्य के जीवन में सबसे जरुरी चीज है उसकी शिक्षा जो उसे उसके माता पिता या फिर धार्मिक पुस्तकों से मिलती है | अच्छे शिक्षा ही मानव को मानव बनाते है वरना मनुष्य और जानवर में कोई ज्यादा अंतर नहीं है |
कुरान सूरह तौबा आयत २३ – ऐ ईमान वालो अपने बाप दादा को और अपने भाइयो को अपना मित्र न बनाओ अगर वे ईमान न लाये और कुफ्र को पसंद करे जो मित्र बनाएगा ऐसे वो अत्याचारी होगा |
अगली ही आयत में कुरान कहती है की कह दे अगर तुम्हे तुम्हारे बाप दादा भाई अल्लाह , अल्लाह के रसूल और उसकी राह में जिहाद से प्यारे है तो इन्तजार करो यहाँ तक की अल्लाह का हुकुम आ जाये |
यदि किसी व्यक्ति को जिहाद करते समय माता पिता या भाइयो पर रहम आ जाए और उनको वह व्यक्ति न मारे और उनको मित्र बनाने ले तो अल्लाह ने तुरंत आयत उतारी की ईमान न लाने वाले माता,पिता या भाइयो से मित्रता न रख अर्थात उन पर दया न कर और दूसरी आयत में कहा की अगर तुझे माता पिता भाई आदि अल्लाह के मार्ग में जिहाद से प्यारे है तो वो व्यक्ति अत्याचारी है और अल्लाह ऐसे नाफरमान लोगो को हिदायत नहीं देता |
जिन माता पिता ने कष्ट सह कर पाल पोश कर बड़ा किया हो उनसे केवल इस बात पर रिश्ता तोड़ लेना की वे ईमान नहीं लाते क्या यह अच्छी शिक्षा है ? यदि माँ बाप बुरा काम करने को कहते तब उनका कहा न मानना तो सही है पर केवल माता पिता भाइयो के ईमान ना लाने से उनसे रिश्ता ही खत्म कर लेना नहीं बल्कि उनको जान से मार देना कहाँ की मानवता है ?
२.) ईमानदारी की शिक्षा
मुहम्मद साहब के जीवन परिचय से स्पष्ट है की मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कोई भी कार्य नहीं करते थे | अधिकतर आज्ञा कुरआन में ही मोजूद है | ऐसी ही एक आज्ञा है
सूरह अनफ़ाल आयत १ – प्रश्न करते है तुझ से लूटो के बारे में तो कह दे लूटे अल्लाह और रसूल के लिए है |
सूरह अनफ़ाल आयत ६९ – उस में से खाओ जो तुम्हे लूट में हलाल मिला |
जहाँ तक की लूट की बात है मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कुछ नहीं करते थे भले ही कुरान में अल्लाह ने व्यस्तता के कारण लूट की आज्ञा न दी हो पर यह आज्ञा अल्लाह ही की थी जी की इन दो आयतों से स्पष्ट है |
यहाँ एक और जानकारी का विषय है की इन लूट में अल्लाह का बराबर का हिस्सा है क्योंकि इसी सूरह की आयत ९ के अनुसार अल्लाह ने इस लूट में मदद के लिए लगातार आने वाले एक हजार फरिश्तो की फोज भेजी थी | अर्थात अल्लाह भी कोई कार्य बिना कमिशन के नहीं करता |
पाठक गण यह भी अल्लाह की शिक्षा है लूटपाट करने की |
३) भाईचारे की शिक्षा
जैसा की कुरआन से विदित है अल्लाह भाईचारे को बहुत पसंद करते थे | इसी भाईचारे के लिए अल्लाह ने कुरआन में जगह जगह मोमिनो अर्थात मुसलमानों को सन्देश भी दिए है | आइये उन संदेशो पर भी एक नजर डाल लेते है |
सूरह इमरान आयत २८ – मुसलमान को उचित है की वे मुसलमान को छोड़कर किसी काफिर को मित्र न बनाये और जो ऐसा करे उसका अल्लाह से कोई रिश्ता नहीं |
पाठको इस से बढ़कर भाईचारे की शिक्षा क्या हो सकती है ?
४) अहिंसा परमोधर्म की शिक्षा
कुरआन को पढने से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम था | लेकिन अल्लाह ने यह अहिंसा का सन्देश केवल शांतिप्रिय कौम को ही दिया | जिसकी शांतिप्रियता से आज पूरा विश्व त्रस्त है | कुरआन की अहिंसावादी सोच के कुछ नमूने देखिये –
सूरह बकर आयत १९१ – उन्हें मार डालो जहाँ पाओ और उन्हें निकाल दो जहां से उन्होंने तुम्हे निकाला |
कुछ मुसलमान मित्र यहाँ कहेंगे की अल्लाह ने उन लोगो को मारने को कहा है जिन्होंने खुद लड़ाई की और ईमान वालो को घर से निकाला | लेकिन अगली आयत से सत्य का पता चलता है कि उन्हें मारने का उद्देश्य क्या है |
सूरह बकर आयत १९३ – तुम उन से लड़ो की कुफ्र न रहे और दीन अल्लाह का हो जाए अगर वह बाज आ जाए तो उस पर जयादती न करो |
मित्रो इस आयत से स्पष्ट है की लड़ने का उद्देश्य क्या है | लड़ने का उद्देश्य केवल दीन को फैलाना है |
ऐसी ही एक अहिंसावादी सोच को दर्शाती शिक्षा आपके समक्ष है –
कुरान सूरह तौबा आयत ५ – फिर जब प्रतिष्ठित महीने बीत जाए काफ़िरो को जहां पाओ क़त्ल करो , उन्हें पकड़ लो उन्हें घेर लो , फिर अगर वो तौबा कर ले और नमाज कायम कर ले तथा जकात अदा करे तो उनका रास्ता छोड़ दो |
इस आयत से भी स्पष्ट है क़त्ल करने का कारण क्या है | केवल मुसलमान न होना और यदि वो मुसलमान हो जाए तो उसे छोड़ दो | इन आयतों से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम है |
५.) सदाचार की शिक्षा
मुहम्मद साहब के जीवन से पता चलता है की वे बहुत ही सदाचारी व्यक्तित्व वाले थे और हो भी क्यों न ? कुरआन ने जो उनको शिक्षा दी थी | मुहम्मद साहब ने जो भी सदाचार के कार्य किये उन सबकी प्रेरणा अल्लाह ने ही उन्हें दी थी | सदाचारी की प्रेरणा देती कुछ आयते निम्नलिखित है |
सुरह निसा आयत २४ – विवाहित स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वर्जित है सिवाय लोंडियो के जो तुम्हारी है, इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनसे दाम्पत्य जीवन अर्थात सम्भोग का मजा लो और बदले में उन्हें निश्चित की हुई रकम अदा कर दो |
इस आयत से कुरआन की सदाचार की शिक्षा साफ़ साफ़ झलकती है | लेकिन कुछ और भी आयते है जो सदाचार को प्रोत्साहन देती है | इसी प्रोत्साहन का नतीजा था की मुहम्मद साहब ने ९ वर्ष की अबोध बालिका और पुत्र वधु से भी सम्बन्ध बनाने में कोई हिचकिचाहट महसूस न हुई |
कुरान सूरह अजहाब आयत ३७ -फिर जब जैद ने जैनब से अपनी आवश्यकता पूरी कर ली तो हम ने उसे आप को निकाह में दे दिया ताकि मोमिनो को कोई तंगी न रहे अपने गोद लिए की बीवियों से निकाह करने में |
यदि कोई व्यक्ति किसी औरत को माँ मान ले और बाद में उसका दिल उसके ऊपर आ जाये तो अल्लाह ने इसके लिए भी एक शिक्षा दी है आयत के जरिये | देखिये
सूरह अह्जाब आयत ४- तुम्हारी उन बीवियों को जिन्हें तुम माँ कह बैठते हो नहीं बनाया तुम्हारी माँ |
सूरह अह्जाब आयत ५०- हम ने तुम्हारे लिए हलाल कर दी लूट में मिली बीवियां, तुम्हारे चाचाओ की बेटिया , तुम्हारे फुफियो की बेटियाँ, तुम्हारे मामुओ की बेटियाँ और तुम्हारे खालाओ की बेटिया |और मोमिन औरत जो अपने आप को नबी के हवाले कर दे |
पाठको के लिए ये आयते काफी होगी कुरआन की सदाचारी की शिक्षा दिखाने के लिए |
६.) एकेश्वरवाद की शिक्षा
जैसा की कुरआन के पढने से पता चलता है की अल्लाह को सबसे ज्यादा नफरत उस आदमी से है जो एक अल्लाह को नहीं मानता | वैसे अल्लाह भी अपनी जगह बिलकुल सही है उस अकेले ईश्वर की उपासना में कोई दूसरा शामिल नहीं होना चाहिए चाहे वो कोई भी हो | कुरआन ने अनेक जगह पर एकेश्वरवाद की शिक्षाए दी है | जैसे –
सूरह इमरान आयत १७४- अल्लाह व उसके रसूलो पर ईमान लाओ |
सूरह बकर आयत ३४- सजदा करो आदम को |
हमारे मुसलमान भाई नमस्ते नहीं बोलते क्योंकि उनके अनुसार नमस्ते कहने से शिर्क हो जाता है जो की एकेश्वरवाद के खिलाफ है | लेकिन शायद भूल जाते है अल्लाह के सिवा किसी दुसरे पर ईमान लाना और अल्लाह को छोड़ किसी दुसरे को सिजदा करवाना भी शिर्क ही है | सबसे बड़ी एकेश्वरवाद की शिक्षा तो कलमे में ही है की नमाज में भी मुहम्मद साहब का नाम बोलना जरुरी है जैसे ला इलल्लाह मुहम्मद रसुल्लुलाह | अब बिना कलमा बोले नमाज अर्थात उपासना नहीं होती और बिना रसूल का नाम लिया कलमा पूरा नहीं होता | यह है अल्लाह की एकेश्वरवाद की शिक्षा |
७.) रहमदिली की शिक्षा
कुरआन में शायद ३०० से ज्यादा बार अल्लाह को रहम करने वाला बताया गया है | रहम का अर्थ है दया | कुरआन ने भी कई बार इंसान को दयालु होने की शिक्षा दी है | कुछ आयते कुरआन की इस दयालुता को दर्शाती है |
कुरान सूरह हज्ज आयत २८ – और जानवरों को कुर्बान करते समय अल्लाह का नाम ले |
कुरान सूरह हज्ज आयत ३६ – कुर्बानी के ऊंट हमने तुम्हारे लिए मुकर्रर किये और जब कुर्बान हो जाए तो खुद भी खाओ और खिलाओ |
कुरआन किस रहमदिली की शिक्षा देता है वो इन आयतों में स्पष्ट है |
८.) पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा
मुस्लिम मित्रो का मानना है की अल्लाह ने मुहम्मद साहब की शादी ज्यादा उम्र और कम उम्र की ओरतो से इसलिए कराई थी ताकि दुनियो वालो को एक मिशाल पेश की जा सके कि जब ज्यादा उम्र की पत्नी हो या कम उम्र की पत्नी हो तो कैसे से प्रेम से रहा जाए | मुहम्मद साहब ने स्वंय न्यूनतम नौ शादियाँ की और दुसरे ईमान वालो को एक से अधिक शादी करने की आज्ञा भी कठोर शर्तो पर दी क्योंकि मुहम्मद साहब को लगता था की एक से अधिक शादी करके वे अपनी पत्नियों को प्रेम नहीं दे पायेंगे | परन्तु जब स्वंय मुहम्मद साहब ने ऐसा नहीं किया तो कुरआन ने उन्हें इस प्रेम और समानता के व्यवहार से बी छुट दे दी |
कुरआन सूरह अजहाब आयत ५१ – आप ( स ) जिसको चाहे दूर रक्खे और जिसको चाहे पास रक्खे और जिसको आपने दूर कर दिया उसे फिर पास रक्खे तो कोई तंगी नहीं |
इस आयत का आशय स्पष्ट है नबी जो चाहे वो पत्नी के साथ करे जब जी चाहे उसे पास रख लो और जब दिल न करे उसे दूर कर दो | यह है कुरआन की पति को पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा |
सूरह बकर आयत २२३ – तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती है जैसे चाहो वैसे अपने खेत में जाओ |
वाकई कुरआन पत्नी के प्रति प्रेम की शिक्षा देती है | ये सब कुरआन की मुलभुत शिक्षाये है जिनका मुस्लिम मित्र दिलो जान से अनुसरण करते है |