All posts by rdhoot

मुसलमानों का ईमान एक झूठ

TAQIYYA

मुसलमानों का ईमान एक झूठ

अक्सर मुसलमान यह बात कहते हैं ,कि हम तो अपने ईमान के पक्के हैं .क्योंकि मुसलमान शब्द का मतलब ही है “मुसल्लम ईमान “यानी पूरा ईमान .लोग गलती से ईमान का तात्पर्य उनकी सत्यवादिता या उनकी आस्था समझ लेते हैं (जो है नहीं) .
लेकिन बहुत कम लोग जानते

हैं कि ,मुसलमानों के दो गुप्त ईमान policies और भी हैं ,जिनका प्रयोग मुसलमान खुद को बचाने और दूसरों को धोखा देने में करते हैं .मुसलमानों कि इन दो नीतियों Policies या ईमान का नाम है ,तकिय्या और कितमान .इनका विवरण इस प्रकार है –
1 -तकिय्या تقيه Taqiyya
इसका अर्थ है छल, ढोंग ,ढकोसला,दिखावा ,सत्य को नकारना ,बहाने बनाना आदि हैं
उदाहरण -जब किसी इस्लामी किताब में कोई खराब बात बताई जाती है ,तो मुसलमान कसते है कि ,अनुवाद गलत है ,अमुक शब्द का अर्थ कुछ और है,हम इस फतवे या हदीस को नहीं मानते ,या यह आयत मंसूख (रद्द )हो चुकी है .आदि
2 -कितमान كِتمان Kitaman
इसका अर्थ है आड़,झूठ,मिथ्या आरोप लगाना आदि
उदाहरण -जब मुसलमानों की गलतियाँ पकड़ी जाती हैं ,तो वह खुद को निर्दोष साबित करने लिए दूरारों में वही गलतियां बताने लगते है ,और लोगों को गुमराह करने के लिए गालीगालोच करने लगते हैं ,दवाब डालने के लिए हंग्गामा करते हैं ,हिंसा करते है .आदि
मुसलमानों के विशासघात के उदाहरण
1 -मुहम्मद गौरी ने 17 बार कुरआन की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा ,लेकिन हमला किया ]
2 -अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया
3 -औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया .
4 -औरंगजेब ने कुरआन की कसम खाकर श्री गोविन्द सिघ को आनद पुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था .फिर हमला किया था
5 -अफजल खान ने दोस्ती के बहाने शिवाजी की ह्त्या का प्रयत्न किया था .
६-मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था .
अगर हम इतिहास से सबक नहीं लेकर मुसलमानों की शांति और दोस्ती की बातों मे आते रहे तो हमेशा नुकसान उठाते रहेंगे.

 

अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा- वीर नाथूराम गोडसे…

nathuram-godse

अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा- वीर नाथूराम गोडसे…

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

 

19 मई 1910 को मुम्बई – पुणे के बीच ‘ बारामती ‘ में संस्कारित राष्ट्रवादी हिन्दु परिवार मेँ जन्मेँ वीर नाथूराम गोडसे एक ऐसा नाम है जिसके सुनते ही लोगोँ के मन-मस्तिष्क मेँ एक ही विचार आता है कि गांधी का हत्यारा।

इतिहास मेँ भी गोडसे जैसे परम राष्ट्रभक्त बलिदानी का इतिहास एक ही पंक्ति मेँ समाप्त हो जाता है…

गांधी का सम्मान करने वाले गोडसे को गांधी का वध आखिर क्योँ करना पडा, इसके पीछे क्या कारण रहे, इन कारणोँ की कभी भी व्याख्या नही की जाती।

नाथूराम गोडसे एक विचारक, समाज सुधारक, पत्रकार एवं सच्चा राष्ट्रभक्त था और गांधी का सम्मान करने वालोँ मेँ भी अग्रिम पंक्ति मेँ था। किन्तु सत्ता परिवर्तन के पश्चात गांधीवाद मेँ जो परिवर्तन देखने को मिला, उससे नाथूराम ही नहीँ करीब-करीब सम्पूर्ण राष्ट्रवादी युवा वर्ग आहत था। गांधीजी इस देश के विभाजन के पक्ष मेँ नहीँ थे। उनके लिए ऐसे देश की कल्पना भी असम्भव थी, जो किसी एक धर्म के अनुयायियोँ का बसेरा हो। उन्होँने प्रतिज्ञापूर्ण घोषणा की थी कि भारत का विभाजन उनकी लाश पर होगा। परन्तु न तो वे विभाजन रोक सके, न नरसंहार का वह घिनौना ताण्डव, जिसने न जाने कितनोँ की अस्मत लूट ली, कितनोँ को बेघर किया और कितने सदा – सदा के लिए अपनोँ से बिछड गये।

खण्डित भारत का निर्माण गांधीजी की लाश पर नहीँ, अपितु 25 लाख हिन्दू, सिक्खोँ और मुसलमानोँ की लाशोँ तथा असंख्य माताओँ और बहनोँ के शीलहरण पर हुआ।

किसी भी महापुरुष के जीवन मेँ उसके सिद्धांतोँ और आदर्शो की मौत ही वास्तविक मौत होती है। जब लाखोँ माताओँ, बहनोँ के शीलहरण तथा रक्तपात और विश्व की सबसे बडी त्रासदी द्विराष्ट्रवाद के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ। उस समय गांधी के लिए हिन्दुस्थान की जनता मेँ जबर्दस्त आक्रोश फैल चुका था। प्रायः प्रत्येक की जुबान पर एक ही बात थी कि गांधी मुसलमानोँ के सामने घुटने चुके है। रही – सही कसर पाकिस्तान को 55 करोड रुपये देने के लिए गांधी के अनशन ने पूरी कर दी। उस समय सारा देश गांधी का घोर विरोध कर रहा था और परमात्मा से उनकी मृत्यु की कामना कर रहा था।

जहाँ एक और गांधीजी पाकिस्तान को 55 करोड रुपया देने के लिए हठ कर अनशन पर बैठ गये थे, वही दूसरी और पाकिस्तानी सेना हिन्दू निर्वासितोँ को अनेक प्रकार की प्रताडना से शोषण कर रही थी, हिन्दुओँ का जगह – जगह कत्लेआम कर रही थी, माँ और बहनोँ की अस्मतेँ लूटी जा रही थी, बच्चोँ को जीवित भूमि मेँ दबाया जा रहा था। जिस समय भारतीय सेना उस जगह पहुँचती, उसे मिलती जगह – जगह अस्मत लुटा चुकी माँ – बहनेँ, टूटी पडी चुडियाँ, चप्पले और बच्चोँ के दबे होने की आवाजेँ।

ऐसे मेँ जब गांधीजी से अपनी जिद छोडने और अनशन तोडने का अनुरोध किया जाता तो गांधी का केवल एक ही जबाब होता- “चाहे मेरी जान ही क्योँ न चली जाए, लेकिन मैँ न तो अपने कदम पीछे करुँगा और न ही अनशन समाप्त करुगा।”

आखिर मेँ नाथूराम गोडसे का मन जब पाकिस्तानी अत्याचारोँ से ज्यादा ही व्यथित हो उठा तो मजबूरन उन्हेँ हथियार उठाना पडा। नाथूराम गोडसे ने इससे पहले कभी हथियार को हाथ नही लगाया था। 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने जब गांधी पर गोली चलायी तो गांधी गिर गये। उनके इर्द-गिर्द उपस्थित लोगोँ ने गांधी को बाहोँ मेँ ले लिया। कुछ लोग नाथूराम गोडसे के पास पहुँचे। गोडसे ने उन्हेँ प्रेमपूर्वक अपना हथियार सौप दिया और अपने हाथ खडे कर दिये। गोडसे ने कोई प्रतिरोध नहीँ किया। गांधीवध के पश्चात उस समय समूची भीड मेँ एक ही स्थिर मस्तिष्क वाला व्यक्ति था, नाथूराम गोडसे। गिरफ्तार होने के बाद गोडसे ने डाँक्टर से शांत मस्तिष्क होने का सर्टिफिकेट मांगा, जो उन्हेँ मिला भी।

नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के सम्मुख अपना पक्ष रखते हुए गांधी का वध करने के 150 कारण बताये थे। उन्होँने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वह अपने बयानोँ को पढकर सुनाना चाहते है। अतः उन्होँने वो बयान माइक पर पढकर सुनाए। लेकिन नेहरु सरकार ने (डर से) गोडसे के गांधी वध के कारणोँ पर रोक लगा दी जिससे वे बयान भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पाये। गोडसे के उन क्रमबद्ध बयानोँ मेँ से कुछ बयान आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा जिससे आप जान सके कि गोडसे के बयानोँ पर नेहरु ने रोक क्योँ लगाई.?

तथा गांधी वध उचित था या अनुचित.??

दक्षिण अफ्रिका मेँ गांधीजी ने भारतियोँ के हितोँ की रक्षा के लिए बहुत अच्छे काम किये थे। लेकिन जब वे भारत लोटे तो उनकी मानसिकता व्यक्तिवादी हो चुकी थी। वे सही और गलत के स्वयंभू निर्णायक बन बैठे थे। यदि देश को उनका नेतृत्व चाहिये था तो उनकी अनमनीयता को स्वीकार करना भी उनकी बाध्यता थी। ऐसा न होने पर गांधी कांग्रेस की नीतियोँ से हटकर स्वयं अकेले खडे हो जाते थे। वे हर किसी निर्णय के खुद ही निर्णायक थे। सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहते हुए गांधी की नीति पर नहीँ चलेँ। फिर भी वे इतने लोकप्रिय हुए कि गांधीजी की इच्छा के विपरीत पट्टाभी सीतारमैया के विरोध मेँ प्रबल बहुमत से चुने गये। गांधी को दुःख हुआ, उन्होँने कहा की सुभाष की जीत गांधी की हार है। जिस समय तक सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस की गद्दी से नहीँ उतारा गया तब तक गांधी का क्रोध शांत नहीँ हुआ ।

मुस्लिम लीग देश की शान्ति को भंग कर रही थी और हिन्दुओँ पर अत्याचार कर रही थी । कांग्रेस इन अत्याचारोँ को रोकने के लिए कुछ भी नहीँ करना चाहती थी, क्योकि वह मुसलमानोँ को खुश रखना चाहती थी।गांधी जिस बात को अनुकूल नहीँ पाते थे उसे दबा देते थे । इसलिए मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है की आजादी गांधी ने प्राप्त की । मेरा विचार है की मुसलमानोँ के आगे झुकना आजादी के लिए लडाई नहीँ थी। गांधी व उसके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे ।

 

श्री नाथूराम गोडसे व अन्य राष्ट्रवादी युवा गांधीजी की हठधर्मिता और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से क्षुब्ध थे, हिन्दुस्थान की जनता के दिलोँ मेँ गांधीजी के झूठे अहिँसावाद और नेतृत्व के प्रति घृणा पैदा हो चुकी थी।उस समय गांधीजी के चरित्र पर भी अंगुली उठ रही थी जिसके चलते वरिष्ठ नेता जे. बी. कृपलानी और वल्लभ भाई पटेल आदि नेताओँ ने उनसे दूरी बना ली। यहा तक की कई लोगोँ ने उनका आश्रम छोड दिया था। अब उससे आगे के बयान….

इस बात को तो मैँ सदा से बिना छिपाए कहता रहा हूँ कि मैँ गांधीजी के सिद्धांतोँ के विरोधी सिद्धांतोँ का प्रचार  कर रहा हूँ। यह मेरा पूर्ण विश्वास रहा है कि अहिँसा का अत्याधिक प्रचार हिन्दू जाति को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अंत मेँ यह जाति ऐसी भी नहीँ रहेगी कि वह दूसरी जातियोँ से, विशेषकर मुसलमानोँ के अत्याचारोँ का प्रतिरोध कर सके ।

हम लोग गांधीजी की अहिँसा के विरोधी ही नहीँ थे, प्रत्युत इस बात के अधिक विरोधी थे कि गांधीजी अपने कार्यो और विचारोँ मेँ मुस्लिमोँ का अनुचित पक्ष लेते थे और उनके सिद्धांतोँ व कार्यो से हिन्दू जाति की अधिकाधिक हानि हो रही थी।

मालाबार, नोआख्याली, पंजाब, बंगाल, सीमाप्रांत मेँ हिन्दुओँ पर अत्याधिक अत्याचार हुयेँ । जिसको मोपला विद्रोह के नाम से जाना जाता है । उसमेँ हिन्दुओँ की संपत्ति, धन व जीवन पर सबसे बडा हमला हुआ।हिन्दुओँ को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया, स्त्रियोँ के अपमान हुये । गांधीजी अपनी नीतियोँ के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे । प्रत्युत यह कहना शुरु कर दिया कि मालाबार मेँ हिन्दुओँ को मुसलमान नहीँ बनाया गया ।यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रोँ ने यह स्वीकार किया कि सैकडोँ घटनाऐँ हुई है। और उल्टे मोपला मुसलमानोँ के लिए फंड शुरु कर दिया ।

कांग्रेस ने गांधीजी को सम्मान देने के लिए चरखे वाले ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाया। प्रत्येक अधिवेशन मेँ प्रचुर मात्रा मेँ ये ध्वज लगाये जाते थे । इस ध्वज के साथ कांग्रेस का अति घनिष्ट सम्बन्ध था। नोआख्याली के 1946 के दंगोँ के बाद वह ध्वज गांधीजी की कुटिया पर भी लहरा रहा था, परन्तु जब एक मुसलमान को ध्वज के लहराने पर आपत्ति हुई तो गांधी ने तत्काल उसे उतरवा दिया। इस प्रकार लाखोँ – करोडोँ देशवासियोँ की इस ध्वज के प्रति श्रद्धा को गांधी ने अपमानित किया। केवल इसलिए की ध्वज को उतारने से एक मुसलमान खुश होता था।

कश्मीर के विषय मेँ गांधी हमेशा यह कहते रहे की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौप दी जाये, केवल इसलिए की कश्मीर मेँ मुस्लिम है। इसलिए गांधीजी का मत था कि महाराजा हरिसिँह को संन्यास लेकर काशी चले जाना चाहिए, परन्तु हैदराबाद के विषय मेँ गांधी की नीति भिन्न थी । यद्यपि वहाँ हिन्दूओँ की जनसंख्या अधिक थी, परन्तु गांधीजी ने कभी नहीँ कहा की निजाम फकीरी लेकर मक्का चला जायेँ ।

जब खिलापत आंदोलन असफल हो गया तो मुसलमानोँ को बहुत निराशा हुई और अपना क्रोध हिन्दुओँ पर  उतारा । गांधीजी ने गुप्त रुप से अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया, जो गांधीजी के लेख के इस अंश से सिद्ध हो जाता है – “मैँ नही समझता कि जैसे खबर फैली है, अली भाईयोँ को क्योँ जेल मेँ डाला जायेगा और मैँ क्योँ आजाद रहूँगा? उन्होँने ऐसा कोई कार्य नही किया है जो मैँ न करु।यदि उन्होँने अमीर अफगानिस्तान को आक्रमण के लिए संदेश भेजा है, तो मैँ भी उनके पास संदेश भेज दूँगा कि जब वो भारत आयेँगे तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारतवासी उनको हिन्द से निकालने मेँ सरकार की सहायता नहीँ करेगा।”

मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए गांधी ने एक मुसलमान के द्वारा भूषण कवि के विरुद्ध पत्र लिखने पर उनकी अमर रचना शिवबवनी पर रोक लगवा दी, जबकि गांधी ने कभी भी भूषण का काव्य या शिवाजी की जीवनी नहीँ पढी। शिवबवनी 52 छंदोँ का एक संग्रह है जिसमेँ शिवाजी महाराज की प्रशंसा की गयी है । इसके एक छंद मेँ कहा गया है कि अगर शिवाजी न होते तो सारा देश मुसलमान हो जाता । गांधीजी को ज्ञात हुआ कि मुसलमान वन्देमातरम् पसंद नही करते तो जहाँ तक सम्भव हो सका गांधीजी ने उसे बंद करा दिया ।

राष्ट्रभाषा के विषय पर जिस तरह से गांधी ने मुसलमानोँ का अनुचित पक्ष लिया उससे उनकी मुस्लिम समर्थक नीति का भ्रष्ट रुप प्रगट होता था । किसी भी दृष्टि से देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि इस देश की राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है । गांधीजी ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत मेँ हिन्दी को बहुत प्रोत्साहन दिया। लेकिन जैसे ही उन्हेँ पता चला कि मुसलमान इसे पसन्द नही करते, तो वे उन्हेँ खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी का प्रचार करने लगे । बादशाह राम, बेगम सीता और मौलवी वशिष्ठ जैसे नामोँ का प्रयोग होने लगा। मुसलमानोँ को खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी (हिन्दी और उर्दु का वर्ण संकर रुप) स्कूलोँ मेँ पढाई जाने लगी। इसी अवधारणा से मुस्लिम तुष्टिकरण का जन्म हुआ जिसके मूल से ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ है ।

गांधीजी का हिन्दू मुस्लिम एकता का सिद्धांत तो उसी समय नष्ट हो गया जिस समय पाकिस्तान बना। प्रारम्भ से ही मुस्लिम लीग का मत था कि भारत एक देश नही है। हिन्दू तो गांधी के परामर्श पर चलते रहे किन्तु मुसलमानोँ ने गांधी की तरफ ध्यान नही दिया और अपने व्यवहार से वे सदा हिन्दुओँ का अपमान तथा अहित करते रहे। अंत मेँ देश का दो टुकडोँ मेँ विभाजन हो गया और भारत का एक तिहाई हिस्सा विदेशियोँ की भूमि बन गया।

32 वर्षो से गांधीजी मुसलमानोँ के पक्ष मेँ कार्य कर रहे थे और अंत मेँ उन्होँने जो पाकिस्तान को 55 करोड रुपये दिलाने के लिए धूर्ततापूर्ण अनशन करने का निश्चय किया, इन बातोँ ने मुझे गांधी वध करने का निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया। 30 जनवरी 1948 को बिडला भवन की प्रार्थना सभा मेँ देश की रक्षा के लिए मैने गांधी को गोली मार दी।

वास्तव मेँ मेरे जीवन का उसी समय अन्त हो गया था जब मैने गांधी वध का निर्णय लिया था। गांधी और मेरे  जीवन के सिद्धांत एक है, हम दोनोँ ही इस देश के लिए जीये,गांधीजी ने उन सिद्धांतोँ पर चलकर अपने जीवन का रास्ता बनाया और मैने अपनी मौत का। गांधी वध के पश्चात मैँ समाधि मेँ हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ।

मैँ मानता हूँ कि गांधीजी एक सोच है, एक संत है, एक मान्यता है और उन्होँने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए। जिसके कारण मैँ उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, लेकिन इस देश के सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नही था। किसी का वध करना हमारे धर्म मेँ पाप है, मै जानता हूँ कि इतिहास मेँ मुझे अपराधी समझा जायेगा लेकिन हिन्दुस्थान को संगठित करने के लिए गांधी वध आवश्यक था । मैँ किसी प्रकार की दया नही चाहता हँ । मैँ यह भी नही चाहता कि मेरी ओर से कोई और दया की याचना करेँ ।

यदि देशभक्ति पाप है तो मैँ स्वीकार करता हूँ कि यह पाप मैने किया है ।यदि पुण्य है तो उससे उत्पन्न  पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है। मुझे विश्वास है कि मनुष्योँ के द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमेँ मेरे काम को अपराध नही माना जायेगा । मैने देश और जाति की भलाई के लिए यह काम किया! मैने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियोँ के कारण हिन्दुओँ पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए!!

मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य ‘नीति की दृष्टि’ से पूर्णतया उचित है। मुझे इस बात मेँ लेश मात्र भी सन्देह नही की भविष्य मेँ किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेँगे तो वे मेरे कार्य को उचित आंकेगे।

मोहनदास गांधीजी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसेजी एवँ उनके मित्र नारायण आपटेजी को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। न्यायालय मेँ जब गोडसे को फाँसी की सजा सुनाई गई तो पुरुषोँ के बाजू फडक रहे थे, और स्त्रियोँ की आँखोँ मेँ आँसू थे। नाथूराम गोडसे व नारायण आपटे को 15 नवम्बर 1949 को अम्बाला (हरियाणा) मेँ फासी दी गई। फाँसी दिये जाने से कुछ ही समय पहले नाथूराम गोडसे ने अपने भाई दत्तात्रेय को हिदायत देते हुए कहा था, कि

“मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धू नदी मेँ ही उस समय प्रवाहित करना जब सिन्धू नदी एक स्वतन्त्र नदी के रुप मेँ भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमेँ कितने भी वर्ष लग जायेँ, कितनी ही पीढियाँ जन्म लेँ, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना ।”

श्रीनाथूराम गोडसे ने तो न्यायालय से भी अपनी अन्तिम इच्छा मेँ सिर्फ यही माँगा था – ” हिन्दुस्थान की सभी नदियाँ अपवित्र हो चुकी है, अतः मेरी अस्थियोँ को पवित्र सिन्धू नदी मेँ प्रवाहित कराया जाए ।”

वीर नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे ने वन्दे मातरम् का उद्घोष करते हुये फाँसी के फंदे को अखण्ड भारत का स्वप्न देखते हुये चूमा और देश के लिए आत्म बलिदान दे दिया ।

नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी अंतिम इच्छा को पूर्ण करना तो दूर उनकी राख भी उनके परिवार वालोँ को नहीँ सौँपी गई थी । जेल अधिकारियोँ ने अस्थियोँ और राख से भरा मटका रेलवे पुल के ऊपर से घग्गर मेँ फेँक दिया था । दोपहर बाद मेँ उन्ही जेल कर्मचारियोँ मेँ से किसी ने बाजार मेँ जाकर यह बात एक दुकानदार को बताई, उस दुकानदार ने तत्काल यह सूचना स्थानीय हिन्दू महासभा कार्यकर्ता इन्द्रसेन शर्मा तक पहुँचाई ।इन्द्रसेन उस समय ‘ द ट्रिब्यून ‘ के कर्मचारी भी थे। इन्द्रसेन तत्काल अपने दो मित्रोँ को साथ लेकर दुकानदार द्वारा बताये गये स्थान पर पहुँचेँ । उन दिनोँ घग्गर नदी मेँउस स्थान पर बहुत ही कम पानी था । उन्होँने वह मटका वहाँ से सुरक्षित निकालकर प्रोफेसर ओमप्रकाश कोहल को सौप दिया,जिन्होँने आगे उसे डाँ. एल वी परांजये को नासिक मेँ ले जाकर सुपुर्द किया। उसके पश्चात वह अस्थिकलश 1965 मेँ नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे तक पहुँचाया गया, जब वे जेल से रिहा हुए । वर्तमान मेँ यह अस्थिकलश पूना मेँ उनके निवास पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी होने की प्रतिक्षा मेँ रखा हुआ है।

15 नवम्बर 1950 से अभी तक प्रत्येक 15 नवम्बर को महात्मा गोडसे का “शहीद दिवस” मनाया जाता है। सबसे पहले नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के चित्रोँ को अखण्ड भारत के चित्र के साथ रखकर फूलमाला पहनाई जाती है ।उसके पश्चात जितने वर्ष उनके आत्मबलिदान को हुए है उतने दीपक जलाये जाते है और आरती होती है। अन्त मेँ उपस्थित सभी लोग यह प्रतिज्ञा लेते है कि वे महात्मा गोडसेजी के “अखण्ड हिन्दुस्थान” के स्वप्न को पूरा करने के लिये काम करते रहेँगे। हमे पूर्ण विश्वास है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश एक दिन टुकडे- टुकडे होकर बिखर जायेगे और अन्ततः उनका भारत मेँ विलय होगा और तब गोडसेजी का अस्थि विर्सजन किया जायेगा।

हमेँ स्मरण रखना होगा कि यहूदियोँ को अपना राष्ट्र पाने के लिये 1600 वर्ष लगे,प्रत्येक वर्ष वे प्रतिज्ञा लेते थे कि अगले वर्ष यरुशलम हमारा होगा। इसी प्रकार हमेँ भी प्रत्येक 15 नवम्बर को अखण्ड भारत बनाने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिये।

मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य किसी की भावनाओँ को ठेस पहुँचाना नहीँ, बल्कि उस सच को उजागर करना है, जिसे अभी तक इतिहासकार और भारत सरकार अनदेखा करती रही है।

गांधीजी के बलिदान को नही भूला जा सकता है तो गोडसेजी के बलिदान को भी नही।

 

मदर टेरेसा संत या धोखा

Mother Teresa

मदर टेरेसा संत या धोखा 

एग्नेस गोंक्झा बोज़ाझियू अर्थात मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं। उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तथ्य, आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं। उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है, लेकिन बात कुछ और भी है, जो उन्हें “दया की मूर्ति”, “मानवता की सेविका”, “बेसहारा और गरीबों की मसीहा”… आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़” छवि पर ग्रहण लगाती हैं, और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप (या कहें कि खुलासे) पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं, ना कि किसी हिन्दू संगठन ने, जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)। बहरहाल, आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं (अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं, संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी) –

यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो, धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?) नहीं फ़ैला सकते हैं। उनकी मिशनरियाँ, उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल, भव्य मन्दिर, मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं। जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है, वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं। आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई, धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है, क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है। पैसा (यानी चन्दा) कहीं से भी आये, किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये, उसका काम-धंधा कुछ भी हो, इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है? क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है, और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”। वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा। यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर, चैन से गरीबों का शोषण कर, जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर… है ना मजेदार धर्म…

बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की, मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली, सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया, सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं। जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था, वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा था? मदर टेरेसा को समूचे विश्व से, कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं।

अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल, जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में 450 मिलियन पाउंड का घोटाला किया, ने मदर टेरेसा को 1.25 मिलियन डालर का चन्दा दिया। मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं। हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया। मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं, और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया, गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा, टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला” कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे।

मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से 1.25 मिलियन डालर का चन्दा मिला, ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स” नामक कम्पनी 1980 में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी। अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज से कीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी, उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं? ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके, लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं।

ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ” तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे…”(?)

बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं, उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था। मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है…”। उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया। जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?” तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है, जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है” (क्या अजीब थ्योरी है…बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा… शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि “ये तो भगवान की देन हैं..”, लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह…)

मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है”। गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा। भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, जिसमें सरकारी तौर पर 4000 से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए। उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये? क्या प्रभावितों की मदद करने? जी नहीं, बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये। और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई, भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर, ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई। प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या?

एक और जर्मन पत्रकार वाल्टर व्युलेन्वेबर ने अपनी पत्रिका “स्टर्न” में लिखा है कि अकेले जर्मनी से लगभग तीन मिलियन डालर का चन्दा मदर की मिशनरी को जाता है, और जिस देश में टैक्स चोरी के आरोप में स्टेफ़ी ग्राफ़ के पिता तक को जेल हो जाती है, वहाँ से आये हुए पैसे का आज तक कोई ऑडिट नहीं हुआ कि पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है, कैसे खर्च किया जाता है… आदि।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार क्रिस्टोफ़र हिचेन्स ने 1994 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें मदर टेरेसा के सभी क्रियाकलापों पर विस्तार से रोशनी डाली गई थी, बाद में यह फ़िल्म ब्रिटेन के चैनल-फ़ोर पर प्रदर्शित हुई और इसने काफ़ी लोकप्रियता अर्जित की। बाद में अपने कोलकाता प्रवास के अनुभव पर उन्होंने एक किताब भी लिखी “हैल्स एन्जेल” (नर्क की परी)। इसमें उन्होंने कहा है कि “कैथोलिक समुदाय विश्व का सबसे ताकतवर समुदाय है, जिन्हें पोप नियंत्रित करते हैं, चैरिटी चलाना, मिशनरियाँ चलाना, धर्म परिवर्तन आदि इनके मुख्य काम हैं…” जाहिर है कि मदर टेरेसा को टेम्पलटन सम्मान, नोबल सम्मान, मानद अमेरिकी नागरिकता जैसे कई सम्मान मिले।

संतत्व गढ़ना –
मदर टेरेसा जब कभी बीमार हुईं, उन्हें बेहतरीन से बेहतरीन कार्पोरेट अस्पताल में भरती किया गया, उन्हें हमेशा महंगा से महंगा इलाज उपलब्ध करवाया गया, हालांकि ये अच्छी बात है, इसका स्वागत किया जाना चाहिये, लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिये कि यही उपचार यदि वे अनाथ और गरीब बच्चों (जिनके नाम पर उन्हें लाखों डालर का चन्दा मिलता रहा) को भी दिलवातीं तो कोई बात होती, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ…एक बार कैंसर से कराहते एक मरीज से उन्होंने कहा कि “तुम्हारा दर्द ठीक वैसा ही है जैसा ईसा मसीह को सूली पर हुआ था, शायद महान मसीह तुम्हें चूम रहे हैं”,,, तब मरीज ने कहा कि “प्रार्थना कीजिये कि जल्दी से ईसा मुझे चूमना बन्द करें…”। टेरेसा की मृत्यु के पश्चात पोप जॉन पॉल को उन्हें “सन्त” घोषित करने की बेहद जल्दबाजी हो गई थी, संत घोषित करने के लिये जो पाँच वर्ष का समय (चमत्कार और पवित्र असर के लिये) दरकार होता है, पोप ने उसमें भी ढील दे दी, ऐसा क्यों हुआ पता नहीं।

मोनिका बेसरा की कहानी –
पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। मोनिका के पति मि. सीको ने इस बात को स्वीकार किया था। वे बेहद गरीब हैं और उनके पाँच बच्चे थे, कैथोलिक ननों ने उनसे सम्पर्क किया, बच्चों की उत्तम शिक्षा-दीक्षा का आश्वासन दिया, उस परिवार को थोड़ी सी जमीन भी दी और ताबड़तोड़ मोनिका का “ब्रेनवॉश” किया गया, जिससे मदर टेरेसा के “चमत्कार” की कहानी दुनिया को बताई जा सके और उन्हें संत घोषित करने में आसानी हो। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। जब एक चैरिटी संस्था ने उस अस्पताल का दौरा कर हकीकत जानना चाही, तो पाया गया कि मोनिका बेसरा से सम्बन्धित सारा रिकॉर्ड गायब हो चुका है (“टाईम” पत्रिका ने इस बात का उल्लेख किया है)।

“संत” घोषित करने की प्रक्रिया में पहली पायदान होती है जो कहलाती है “बीथिफ़िकेशन”, जो कि 19 अक्टूबर 2003 को हो चुका। “संत” घोषित करने की यह परम्परा कैथोलिकों में बहुत पुरानी है, लेकिन आखिर इसी के द्वारा तो वे लोगों का धर्म में विश्वास(?) बरकरार रखते हैं और सबसे बड़ी बात है कि वेटिकन को इतने बड़े खटराग के लिये सतत “धन” की उगाही भी तो जारी रखना होता है….

(मदर टेरेसा की जो “छवि” है, उसे धूमिल करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, इसीलिये इसमें सन्दर्भ सिर्फ़ वही लिये गये हैं जो पश्चिमी लेखकों ने लिखे हैं, क्योंकि भारतीय लेखकों की आलोचना का उल्लेख करने भर से “सांप्रदायिक” घोषित किये जाने का “फ़ैशन” है… इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं है, जो कुछ पहले बोला, लिखा जा चुका है उसे ही संकलित किया गया है, मदर टेरेसा द्वारा किया गया सेवाकार्य अपनी जगह है, लेकिन सच यही है कि कोई भी धर्म हो इस प्रकार की “हरकतें” होती रही हैं, होती रहेंगी, जब तक कि आम जनता अपने कर्मों पर विश्वास करने की बजाय बाबाओं, संतों, माताओं, देवियों आदि के चक्करों में पड़ी रहेगी, इसीलिये यह दूसरा पक्ष प्रस्तुत किया गया है)

 

The Q’uran promotes sinful conduct

sinful quran

The Q’uran promotes sinful conduct

God forgiveth what is past; but whoever doth it again, God will take vengeance on him.” (5: 96.)

C. ~ The forgiveness of sin is almost as bad as the sanction of its commission which encourages its further growth. A book whose teachings tend to encourage the commission of sin can neither be the Word of God, nor the work of an enlightened author. It is, on the contrary, on that promotes sinful conduct. It is true though that the prevention of the further commission of sin can be secured by one’s praying to God, repenting of his past conduct and by exerting himself to his utmost (to lead a virtuous life.)

 Did Allah, himself send the devil to incite the innocent?

” Dost thou not see that we send devils against the infidels to incite them to sin.” (19: 78.)

C. ~ As God Himself sends devils to incite the infidels, the devils are innocent, neither the devils nor the people tempted by them could, therefore, be liable to punishment. Since all sins are committed at the bidding of the Lord, He alone should suffer the consequences thereof. If He is really the dispenser of justice, He Himself should suffer in hell the consequences of His evil deeds. But if He sets justice at naught, He becomes a sinner, since it is a sin to perpetrate injustice.

“It will be gracious unto him, who shall repent and believe and shall do that which is right and who shall be rightly directed.” (20: 76.)

C. ~ It is written in the Quran that one’s sins are forgiven by mere repentance. This encourages sin, since here is nothing to deter men from its commission. This gook and its author, therefore, place a premium upon sin. Hence it is clear that this book cannot be the Word of God, nor can the Being described therein be Divine.

“And we placed stable mountains on the earth, lest it should move with them.” (21: 31.)

C. ~ If the author of the Quran had been acquainted with the phenomenon of the revolution of the earth, he would never have taught that the earth was immovable, because mountains were fixed in it. It could be argued that if there were no mountains, it would be shaken. Why does it quake when there is a seismic disturbance?

“And remember her who preserved her virginity, and into whom we breathed our spirit.” (21: 88.)

C. ~ It is impossible that such obscene statements should have been recorded in Divine revelation or even in a book written by a decent man. When even human beings do not relish such writings, how can God do so? It is such statements as bring the Quran into disrepute. If its teachings had been good, it would have commanded admiration like the Vedas.

 

Allah and Enemies

allah and enemies

Allah and Enemies

What kind of God would have enemies?

“Whoso is an enemy to God or his angels or to Gabriel, or to Michael, shall have God for his enemy, for verily God is an enemy to infidels.” (2: 92.)

C. ~ Where does this host of partners come from, if, as the Mohammedans say, God is one without a partner? Is he who is an enemy to others also an enemy to God? This can never be true, since God is an enemy to none.

“And say forgiveness; and we will pardon you your sins, give an increase to the doers of good.” (2:55)

C. ~ Does not this (so-called) Divine teaching encourage people to live sinful lives? Why should one fear sin when he is given the promise of redemption? He that gives such a promise cannot be God, nor can a book that inculcates such a doctrine be the Word of God. God can never do injustice, but if He pardons the sinners, He renders Himself unjust.

“And when Moses asked drink for his people, we said “strike the rock with thy rod;” and from it there gushed twelve fountains.” (2:57)

C. ~ Now can anyone (except the Mohammedan God) utter such impossibilities? It is absolutely impossible to believe that twelve springs could gush forth on striking a rock with a rod, unless it had been hollowed out in the center and filled with water and twelve holes bored therein.

“But God will show his special mercy to whom He will.” (2:99.)

C. ~ Does God show His special mercy to those who do not deserve it? If He does, He works great mischief, for all men will become indifferent to the practice of virtue. No one will then lead a virtuous life and hate sin, since His mercy depends upon His (arbitrary) will and not upon one’s deeds.

“People may not, out of malice, try to turn you away from your religion, for there are among them many a friend of the faithful.” (2:101.)

C. ~ Now behold! God Himself put them on their guard lest the infidels should turn them away from their faith. Is not God omniscient? Such things cannot be true of God.

 

The Q’uran is neither the worked of God nor an intelligent person

quran

The Q’uran is neither the worked of God nor an intelligent person

 We lay this criticism on the teachings of the Quran before all thinking people. let them decide for themselves as to what sort of book it is. As for your opinion, we think that this book can neither be the work of God nor that of an enlightened person, nor does it contain knowledge. We have pointed out some of its many faults so that people may not be taken in and thereby waste their lives. Whatever little truth it contains being in harmony with the teachings of the Vedas and other scientific works, is acceptable to us as it is to other wise and enlightened men who are free from bigotry and religious prejudices.

The rest is superstition and error. It increases the sufferings of the human race by making man a beast, and disturbs the peace of the world by promoting war and by sowing the seeds of discord. Besides, the Qoran is simply replete with useless repetitions. May God be Merciful unto all men so that they may love one another, live together in peace and a promote each other’s happiness.

If all enlightened men were, like us, to point out, in an impartial spirit, various defects found in different religions, it is not at all impossible that all quarrels should cease, that people should live together in peace all following one religion, and that truth should thus triumph. The wise and the good, it is hoped, will understand the motives which actuated the writer of these lines and profit by what little has been said her about the Qoran. They are requested to correct any mistakes that might have crept into the book through error of judgment.

If the Quran were the work of God, how could He swear by it?

 ” I swear by the instructive Quran, that thou art one of the messengers of God, sent to show the right way. This is revelation of the most Mighty, the Merciful God.” (34: 1 – 4.)

C. ~ If the Qoran were the work of God, how could He swear by it? If the prophet had been a messenger of God, he would not have fallen in love with his daughter-in-law. It is foolish to assert that the believers in the Qoran are on the straight path, for he alone is said to tread that path who believes in truth, utters truth, acts in conformity with truth and shapes his conduct in accordance with the dictates of Dharma (duty) which consists of justice and freedom from prejudice and forsakes all that is opposed to them. Neither the Qoran nor the Mohammedans nor their God satisfies these conditions. If Mohammad had been the greatest prophet, he would have been the most learned and the most virtuous among men. The praise of Mohammedanism by Mohammad is like the praise by a coaster-monger of his own plums.

“And the trumpet shall be sounded again, and behold they shall come forth from their graves, and hasten unto their Lord. And their hands shall speak unto us, and their feet shall bear witness of that which they have committed. His command, when He willeth a thing, is only that he saith unto it “Be!” and it is.” (36: 50, 63, 80.)

C. ~ How absurd! Can the feet ever give evidence? When there was none else except God, to whom did be issue the command and who heard it and what came into existence? If there was nothing else at that time, this statement is false and if there was something else, then the statement that there was nothing else except God must be thought to be false.

Other books sent down by Allah before the Q’uran.

 “And we spake by revelation unto Moses, saying, “March forth with my servants by night; for ye will be pursued.” And Pharaoh sent an officer through the cities to assemble forces. Who has created me and directeth me; and who giveth me to eat and to drink. And who, I hope, will forgive my sins on the day of Judgment.” (25: 50, 51, 76, 77, 80.)

C. ~ When God first sent down His book to Moses what need was there for sending down books to David, Christ and Mohammad? God’s knowledge must be Unchangeable and Infallible but sending down later books would show that the knowledge contained in the first book was fallible and imperfect. If these first three works contained true knowledge, the Qoran must be false.

It is impossible for all the four books to teach true knowledge because their teachings contradict each other. If God has created souls, they must need cease to exist some day or the other. If it is God Who gives sustenance to man and other creatures, why do people suffer from disease and why does not each man get an equal amount of food? Why do some people, such as kings, get sumptuous food and others like the paupers get poor food?

The Q’uran is meaningless if the book was already given to Moses

 “We gave Moses the book and the miracles. We said unto them, be ye changed into scouted apes. And we made them an example unto those who were contemporary with them and unto those who came after them, and a warning to the pious.” (2:53.)

C. ~ if the book was given to Moses, the revelation of the Qoran becomes meaningless. Both Qoran and the Bible assert that Moses was endowed with miraculous powers, but it is absolutely incredible, inasmuch as no man can work miracles now-a-days, and what cannot be done in our day, could never have been done in the past.

Moses must have resorted to hypocrisy in the same way as the selfish impose upon the credulity of the ignorant at the present time. Now why does not God endow anyone with miraculous powers when both He and His devotees exist in our day. Where was the necessity of sending down the Qoran when God had already given Moses a book? If the teachings about dong good and abstaining from evil are the same in the Bible and Qoran, the sending down of two different books was nothing but a mere repetition of the same. Again, did God forget to record something in the book given to Moses that He had to send down another book later on?

Now either what God said regarding their (transgressors’) being changed into scouted apes in order to make an example for others never came to pass or He must have resorted to trickery.

Whoever does such things cannot be God, nor can the book containing them be divine in origin.

 

Does Allah ride a camel

camael riding

Does Allah ride a camel ?

 “And thy Lord shall come and the angels rank on rank. And hell on that day shall be brought there.” 89: 23, 24.)

C. Does the God of these people, like a police inspector or a commander, parade his forces? Is hell like an earthen pitcher that it can be carried somewhere? If it is so small, how will it be able to contain countless prisoners?

“And said the apostle of God to them – “Look after the camel of God and let her drink water. But they treated him as an impostor and hamstrung her. So their Lord destroyed them for their crime, and visited all alike.” (101:15; 15, 18.)

C. ~ Does God also go out for a ride on the camel? If not, why does He keep that animal, and why did He break His own law by afflicting these people with plague before the day of judgment? If He afflicted them with this disease, He must have done it by way of punishment, then the day of Judgment and the judging of people on that day cannot but be false. This verse about the camel leads to infer that in Arabia there were but few animals other than the came for people to ride on. This also proves that he Qoran was written by a native of Arabia.

” Nay, verily if he desist not, we shall seize him by the forelock, the sinful, lying forelock! We too will summon the guards of hell. (126: 15, 16, 18.)

C. ~ God did not escape performing the duties of a menial servant – that of dragging a person. Can the forelock be ever guilty and lying? It is only the soul that can be so. Can He be God Who summons the guards of Hell just as the governor )of a jail) sends for his warders?

 

ISLAMIC PARADISE

ISLAMIC Paradise

ISLAMIC PARADISE

Sexual intercourse in Paradise

“Aye, blooming youths round among them, when thou lookest at them: thou wouldst deem them scattered pearls. With silver bracelets shall they be adorned and drink of a pure beverage shall the Lord give them.” (76: 19, 21.)

C. ~ Well Sir, why are boys of pearly complexion kept there? Cannot those in paradise be satisfied with being served by grown up men, and their desires being ministered to by women? It would not be at all surprising of the unnatural crime, which some of the most wicked people commit with boys, had had its origin in this verse of the Qoran.

And why is in paradise partiality shown to some of the inmates by providing them with servants? This must afford pleasure to the served and be of a source of misery to the servants? And if God fills their cups with wine for them, He is more like one of their servants. What does His greatness and glory then consist in?

And do women become pregnant in paradise as the result of sexual intercourse with men and do they give birth to children? If they do not, the sexual connection is useless, and if they do, whence do those souls come from? And why are they born in paradise without having worshipped God ( (on the earth)? If they are born there without believing in the true religion, they enter paradise without having deserved it. What can be more unjust than that some should enjoy happiness by being religious and others without it?

“They shall have meet recompense. And the cups are full. Ruh and the angels shall be ranged in order.” (78: 25, 32, 36)

C. ~ If the dead are judged according to their deeds, what did Houris, angels, and boys of pearly complexion do to deserve perpetual residence in paradise? When they will drain whole cupful of wine, will they not become intoxicated, and fight with each other? Ruh is here name of an angel who is stronger than the rest. Will God make Ruh and other angels stand in a line and form them into a regiment? Will He invest it with power to punish all (erring) souls? Will He himself at that time be sitting or standing? If God were to gather all His forces before the judgment day and thereby capture Satan, His rule would become secure. Well! This is indeed God-head!

Drinking of alcohol forbidden on earth, but not in Paradise.

“A cup shall be carried round unto them, filled from a unruffled fountain, for the delight of those who drink; and near them shall lie the virgins of paradise, refraining their looks from beholding any besides their spouses, having large black eyes, and resembling the egg of an ostrich covered with feathers from the dust. And Lot was also one those who were sent by us. We delivered him and his whole family, except an old woman, his wife, who perished among those that remained behind; afterwards we destroyed the others.”43:,44, 45, 48, 57, 131, 133, 134.)

C. ~ Well! The Mohammedans cry that it is a sin to drink wine on this earth but in their paradise streams of wine flow. It is good that Mohammedans have rendered some service to the cause of temperance here, but they have been more than compensated for this abstinence in paradise. So many women have been allotted to each man there, he would find it difficult to fix his affections on one. The place must be afflicted with maladies. If the dwellers have go t bodies, they must die and if they have go no bodies, they cannot gratify their lust.

What then is the use of paradise? If you believe that Lot was a prophet, do you also believe what is recorded in the Bible that he begot children of his own daughters. If you do, it is foolish to regard such a person a prophet. If your God grants salvation to such persons and their associates He must also be like them. A being who recites old wives’ tales and kills other people through prejudice cannot be God, for such a God can only live in a Mohammedan house and nowhere else.

THE PARADISE OF ISLAM IS NO BETTER THAN THIS WORLD

 “But bear good tidings unto those who believe and do good works that they shall have gardens watered by rivers; so oft as they eat of the fruit thereof for sustenance, they shall say, this is what we have formerly eaten of; and they shall be supplied with several sorts of fruit having a mutual resemblance to one another. There shall they enjoy wives subject to no impurity, and there shall they continue forever.” (2: 24.)

C. ~ The paradise as described in the Qoran is in no respect better than this world, because the same sort of things that are obtainable here are to be had there. The only exception being that men here die and are born again, whereas this is not the case with them in paradise, te women also here do not continue to live forever, whereas in paradise they do so. We should like to know how these poor women pass their days till the Day of Judgment.

Of course it will be alright if the Mohammaden God extends His helping hand to them and thereby they manage to pass their days with comfort. Tut Tut! Tut! But this goes to show that the paradise of the Mohammedans justly resembles the Golak and the temple of the Gosaeens of Gokal wherein women are valued more than men. Similarly in the temple of God (paradise) women are valued and loved more than men by God. They live forever in heaven but not men. How can this arrangement last unless God desires it? The Mohammedan God is surely in danger of falling in love with these women!!!

 Deceiving angels to impress them of his (Allah.s) greatness.

 “And he taught Adam the names of all things, and then propose them to the angels, and said, “Declare unto me the names of these things if ye say truth.” God said, “O Adam, tell them their names” and when he had told them their names, God said, “Did I not tell you that I know the secrets of heaven and earth and know that which ye discover, and that which ye conceal.”

C. ~ Could God ever deceive His angels in this way in order to impress them with His Greatness? It was an act of sheer imposture on His part. No enlightened man could ever believe such a thing of God, nor would he display such hauteur. Was it by these means that God wanted to display His supernatural powers? Such quackery can only flourish among the savages but not among the civilized.

 

Believers of the Q’uran must be illiterate

illetrate

Believers of the Q’uran must be illiterate

 “As to the youth his parents were believers, and we feared lest he should trouble them by error and infidelity. Until when he reached the setting of the sun, he found it to set in a mire fount; and hardly he found a people. They said, “O Dhoulkarnain!” Verily, Gog,and Magog waste their land, shall we then pay thee tribute, so thou build a rampart between us and them.” (18: 79, 84, 93.)

C. ~ How unwise of God! He feared lest the parents of the boy might be led to rebel against His authority. This cannot be compatible with the nature of God. Again mark the ignorance of the author of the Qoran! He thinks that the sun sinks into a lake at night, and comes out of it again at day-break. As a matter of fact, the sun is very much larger than the earth. How can be then set it in a river or lake or an ocean?

This proves that the author of the Quran was ignorant of Physical Geography and Astronomy. Had he known these Sciences, why would he have written such things as are oppose to the dictum of knowledge? The believers in this book are also illiterate; other wise they would not have believed in a book which is do full of error. Now mark God’s injustice? Though He is Himself the Creator of this earth and is its King and Judge, yet He allows Gog and Mogog wage constant war with exh other. This is also incompatible with the nature of God. Such a book can only be believed in by savages and not by enlightened men.

“And remember in the book of the Quran the story of Mary: when she retired from her family to a place towards the east, and took veil to conceal herself form them: and we sent our spirit Gabriel unto her, and he appeared unto her in the space of a perfect man. She said, fly for refuge unto the Merciful God, that He may defend me from thee, if thou fearest Him, then do not approach me. He answered, verily I am the messenger of thy Lord, and am sent to give thee a holy son. She said, how shall I have a son, seeing a man hath not touched me and I am no harlot. Gabriel replied, so hall it be: thy Lord saith, this is easy with me; and we will perform it, that we may ordain him for a sign unto men, and a mercy from us: for it is a thing which is decreed. Wherefore she conceived him and she retired aside with him in her womb to a distant place.” (19: 12 – 16, 18.)

C. ~ It is a thing for the wise to consider that if all the angels are the spirit of God, they could not exist as separate entities from Him. Moreover, Mary while she was a Virgin, gave birth to a son, although she did not like to co-habit with any man, yet contrary to her wishes she was conceived by the angel at the Lord’s command. Now how wrong it was of God to have done so! There are many other objectionable things recorded in the Quran which we do not think advisable to mention here.

 

What an injustice of Allah

injustise

What an injustice of Allah!

“These are they whose hearts and ears and eyes God hath sealed up; these the careless ones. And every soul shall be repaid according to its deeds, and they shall not wronged.” (16: 110, 112.)

C. ~ When God Himself had sealed up their hearts, etc., the unfortunate ones are condemned to destruction without any fault on their part. They are denied the privilege of being free-agents. How unjust it is! And yet we are told by the Qoran that everyone shall be repaid according to his deeds, and shall have neither more or less than what he is entitled to.

When the sinners were not free-agents in committing sin, but did it yielding to a stern necessity, having been compelled to do so by God, why are they to blame? They should not suffer for their deeds, on the contrary it is God who ought to suffer punishment. And if everyone is repaid according to the full measure of his deeds, wherein does God’s forgiveness consist? And if God does forgive sins, He destroys justice. God never act in this reckless fashion; only an erring mortal can act like this.

“And we have appointed hell the portion of infidels. And every man’s fate have we fastened about his neck. And on the day of resurrection will we bring forth to him a book which shall be proffered to him wide open. And since Noah, how many nations have we exterminated.” (17: 8, 14, 18.)

C. ~ If those who do not believe in the Quran, the Prophet and the God of whom the Qoran speaks, and have no faith in the seven heavens or in the Muslim prayer, etc., are infidels, and if it is they who are destined for hell, we can then say without the least hesitation that all this is nothing but sheer partiality. Is it possible that those who believe in the Qoran are all good, whole others are wicked? It is childish to assert that everyone has his fate fastened about his neck. As a matter of fact we don’t see it fastened round the neck of a single person. If by this is meant that men shall have the just reward of their deeds, it sounds preposterous to assert that their hearts, eyes, etc., have been sealed up. We are told that God will bring forth His book on the day of judgment; if so where is that book now? Does God make daily entries in His book after the fashion of the shopkeepers?

There is another thing which should be considered in this connection. If there is not previous birth, where did the deeds of men come from and how could the book of deeds be made out? If it has bee prepared in the absence of deeds, God has wronged the parties concerned. Why did He bestow happiness upon some and subject others to misery in the absence of the good or bad works? If it be said that He did it, because it pleased Him to do so, in that case too He wronged them.

To add to or take away from the felicity or suffering of any person with out any regard to his merits or demerits is termed injustice. And will it be God who will read the book at the time specified or will He have a reader by? If God dooms to destruction souls that have been waiting for an indefinite period without any fault on their part, He is a tyrant. But he who is a tyrant, cannot be God.

There can be no delay in the administration of Justice

“We gave to The mood the She-camel before their very eyes. And entice such of them as thou canst by thy voice. One day we will summon all men with their leaders: they whose book shall be given into their right hand.” (17: 61, 66, 73.)

C. ~ Verily, one of the most convincing proofs which God can advance in favor of His God-head is the possession of the she-camel! If God ordered Satan to beguile human beings then He Himself is a greater Satan. But to call one, who leads people to commit sin, God is a most foolish thing. If God will call the Prophet and all his followers on the day of judgment in order to decide  the fate of the dead, all of them will have to remain in custody till that period. But custody without any trial is extremely irksome and it is, therefore, the duty of every good judge to decide cases promptly. It is like the justice administered by Popan Bai. What will you think of a judge who would say that he would not administer justice till all the criminals and the law-abiding citizens of fifty years back had been gathered together in one place. What sort of justice will this be? He will keep one man in custody for this cannot be called justice.

If you want to see what justice is, read the Vedas and Manusmriti, which declare that there is not a moment’s delay in the administration of justice and that all souls are judged according to their deeds. Again, to hold that God summons the prophets as witnesses is to question His Omniscience. Can such a book ever be the Word of God and can its author ever be an Almighty God?