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Cows domestication in Vedas

domestication of cows

Cows domestication in Vedas AV12.4

AV Sukta12.4 अथर्व वेद 12-4 सूक्त -वशा गौ ,ऋषि- कश्यप:

4.1.0.1 AV 12.4.1 अथर्व 12-4-1 On Donating a cow

गौ दान  किस को

ददामीत्येव ब्रूयादनु चैनामभुत्सत।

वशां  ब्रह्मभ्यो याचद्भ्यस्तत्प्रजावदपत्यवत्‌ || अथर्व 12.4.1

Cows should be given in keeping of learned persons

(veterinarians) who have noble temperaments.

गौओं को ब्राह्मण वृत्ति के पशु पालन  वैज्ञानिकों के ही दायित्व में देना  चाहिए ।

4.1.0.2 AV 12-4-2 Curse of a sick Cow दुःखी गौ का श्राप

प्रजया स वि क्रीणीते पशुभिश्चोप दस्यति।

य आर्षेयेभ्यो याचभ्दयो देवानां  गां न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-2

Those who do not give cows in the keeping of such

virtuous persons to bring about improvements in the

cows, merely trade and do no service for society.

They  suffer from curse of unhappy cows.

जो लोग कुशल कार्य कर्ताओं की सहायता से गौ संवर्द्धन  का कार्य

नहीं करते, वे केवल व्यापार वृत्ति से कार्य कराते हैं। वे दुखी  गौ के

श्राप के भोगी होते हैं।

4.1.0.3 AV 12-4-3 Underfed Cow’s Curse

दुःखी गौ का श्राप

कूटयास्य सं शीर्य-ते श्लोणया काटमर्दति।

बण्ड्या दह्य-ते गृहाः काणया दीयते स्वम् ।। अथर्व 12-4-3

Society that trades in unhealthy cows gets destroyed

By  curse of unhappy cows.

जो समाज गौ को व्यापार मान  कर चलाते हैं, वे दुखी गौ के श्राप से

नष्ट हो जाते हैं।

4.1.0.4 AV12-4-4 same as above फिर वही

विलोहितो अधिष्ठानाच्छद्विक्लिदुर्नाम विन्दति गोपतिम् ।

तथा वशायाः संविद्यं दुरदभ्ना  ह्युच्यसे ।। अथर्व12-4-4

Miserly person’s looking after the cows neglect their

Feed and health. Cows suffer bleeding and such

ailments which become incurable.

कंजूस गोपालक की गौ,रक्त  स्राव जैसे असाध्य रोगों से ग्रसित हो

कर नष्ट  हो जाती हैं।

4.1.0.5 AV 12-4-5 Foot and mouth disease

मुंह खुरपका

पदोरस्या अधिष्ठानाद्विक्लिन्दुर्नाम विंदति|

अनामनात्सं शीर्यन्ते या मुखेनोपजिघ्रति ।। अथर्व 12-4-5

By sniffing her feet/ place where cow puts her feet, A

disease ‘Wiklindu’ is contracted that finally destroys

the cow. ( The obvious reference is to the contagious

Foot and mouth disease)

गौ अपने  खुर सूंघने  से मुंह खुर पका रोग से ग्रस्त हो कर नष्ट हो

जाती  है।

4.1.0.6 AV12-4-6 Do not make Cut marks on Cow

ears

गौ की पहचान के लिए कान मत काटो

यो अस्याः कर्णावास्कुनोत्या स देवेषु वृश्चते ।

लक्ष्मं कुर्व इति मन्यते कनीयः कृणुते स्वम् ।। अथर्व 12-4-6

Those persons who make cut marks on cow’s ears for

Identification, are as if cutting short their own wealth.

गौ की पहचान के लिए  के कान नहीं काटने  चाहिएं।

4.1.0.7 AV 12-4-7 Do not cut COW Hair गौ के बाल नही

काटे  जाते

यदस्याः कस्मै चिद्भोगाय बालान्कश्चित्प्रकृन्तति ।

ततः किशोरा म्रियन्ते वत्सांश्च धातुको वृकः ।। अथर्व 12-4-7

Those who cut hair of a cow for any reasons, are

Cursed  to suffer in life.

जो किसी तांन्त्रिक कार्य के लिए गौ के बाल लेते हैं उन को श्राप

लगता है।

4.1.0.8 AV 12-4-8 Protect Cows from attack by birds गौ को कौए इत्यादि पक्षियों से बचाएं

यदस्या गोपतौ सत्या लोम ध्वाङ्क्षो अजीहिडत् ।

ततः कुमारः म्रियन्ते  यक्ष्मो विन्दत्यनामनात् ।। अथर्व 12-4-8

If crows are allowed to attack a cow, the lazy care

taker of  cows will suffer from tuberculosis.

( Lazy persons attract Tuberculosis)

जो चरवाहा गौ को कौए जैसे पक्षियों से नहीं बचाता , उस आलसी

को  क्षय रोग होगा । (आलस्य के कारण क्षय रोग होता है)

4.1.0.9 AV12-4-9 Cow Dung and Urine

गोबर गोमूत्र

यदस्याः पल्पूलनं  शकृद्दासी समस्यति ।

ततोऽपरूपं जायते तस्मादव्येष्यदेनसः ।। अथर्व 12-4-9

Throwing away in to waste the Cow Dung and Cow

Urine disfigures the society.

गोबर गोमूत्र व्यर्थ करने  से समाज के रूप की सुन्दरता नष्ट हो जाती

है ।

VETERINARY SERVICES

पशु चिकित्सा सेवाएं

4.1.0.10 AV 12-4-10 Cow Protection गौ सुरक्षा

जायमानाभि जायते  देवान्त्सब्राह्मणान्वशा ।

तस्माद ब्रह्मभ्यो देयैषा तदाहुः स्वस्य गोपनम् ।। अथर्व 12-4-10

Cow should always be under the care of

Knowledgeable persons having altruistic attitudes.

This  is the best form of COW PROTECTION

गौपालन  में ब्राह्मण वृत्ति के कुशल गोपालकों से ही गौ सुरक्षित

रहती है।

4.1.0.11 AV12-4-11 No Cow protection is cruelty

गौ की असुरक्षा अपराध है

य एनां  वनिमायन्ति तेषां देवकृता वशा।

ब्रह्मज्येयं तदब्रुवन्य एना निप्रयायते ।। अथर्व 12-4-11

Not providing cow in to proper hands for care is

cruelty to cows.

गौ को ब्राह्मण वृत्ति के लोगों के हाथ न देना गौ पर  अत्याचार है।

4.1.0.12 AV 12-4-12 Same again वही विषय

य आर्षेयेभ्यो या चद्भयो देवानां गां न  दित्सति ।

आ स देवेषु वृश्चते ब्राह्मणानां  च मन्यते ।। अथर्व 12-4-12

Not providing the cows with such care, destroys good

traditions of society.

गौवों को ऐसी सुरक्षा न  देने  से सामाजिक परम्पराओं का  नाश

होता है।

4.1.0.13 AV 12-4-13 pre parturition post parturition

care

दूध से हटी गर्भिनी गौ सेवा विषय

यो अस्य स्याद् वशाभोगो अन्यामिच्छेत तर्हि सः ।

हिंस्ते अदत्ता पुरुषं याचितां च न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-13

Productive cows can be kept for the immediate

benefits but unproductive cows must be given for

care by selfless persons.

बाखड़ी, गर्भिणी, दूध से सूखी गौ को निस्वार्थ सेवा चाहिए।

4.1.0.14 AV 12-4-14 Same as above वही विषय फिर

यथा शेवधिर्निहितो  ब्राह्मणानां  तथा वशा ।

तामेतदच्छायन्ति  यस्मिन्कस्मिंश्च जायते ।। अथर्व 12-4-14

Like the protection to be provided for hidden

treasures, such cows must be provided with due

protection .

( Modern science calls it Pre parturition & post

parturition- a 90 days regime two months or more

before calving and at least one week after calving

care under best hands)

जैसे किसी कोष की सुरक्षा की जाती है, उसी प्रकार विद्वान  कुशल

हाथों से बाखड़ी, कम/बिना  दूध की गर्भवती गौ की सुरक्षा होती है।

4.1.0.15 AV 12-4-15 denial of this service is cruelty to Cows

यह गौ सेवा उप्लब्ध न होना  गौ पर अत्याचार है

तस्मेतदच्छायन्ति  यद् ब्राह्मणा अभि ।

यथैनानन्यस्मिञ्जिनीयादेवास्या निरोधनम् ।। अथर्व 12-4-15

It is the duty of selfless good persons (veterinarians)

To provide this service. Denial of this service is cruelty towards Cows.

गौ वंश की ऐसी सेवा समाज का दायित्व है। इस सेवा का प्रबंध  न

होना  गौ पर अत्याचार है।

Importance of Veterinary Services गो विज्ञान  का महत्व

4.1.0.16 AV 12-4-16 Increase of Cows and identification

गो वंश विस्तार और उसे चिह्नित  करना

चरेदेवा त्रैहायणादविज्ञातगदा सती ।

वशां च विद्यान्नारद ब्राह्मणास्तह्येर्ष्याः ।। अथर्व 12-4-16

Up to three years of age a heifer moves around with

its mother. Then it Caves and has to be given an

identity and  donated to a deserving good household.

तीन  वर्ष तक की उस्रिया माता के संग रहती है। बछ्ड़ा देने  पर उस

का नामकरण करके किसी उपयुक्त परिवार को दान  की जाती है

4.1.0.17 AV 12-4-17 Nonobservance of such practice

Is not in best interests of society

ऐसे गोदान न करना समाज कल्याण हित में नही होता

य एनामवशामाह देवानां निहितं निधिम् ।

उभौ तस्मै भवाशर्वौ परिक्रम्येषुमस्यतः ।। अथर्व 12-4-17

Those who realize the wealth in cow’s udders and

milk, but do not share these cows with population, are

doing great disservice to welfare of the community.

जो गौ के दुग्ध का महत्व जानते हुए भी ऐसे गोदान नहीं करते वे

समाज के लिए कल्याण कारी नहीं सिद्ध होते

4.1.0.18 AV 12-4-18 Same again वही विषय फिर

यो अस्या ऊधो न  वेदाथो अस्या स्तनानुत ।

उभयेनैवास्मै दुहे दातुं चेदशकद्वशाम् । । अथर्व 12-4-18

Even ignorant persons if they donate cows for

Spreading them, do a great community service.

अविद्वान  लोग भी जो गोदान  से गौ संवर्द्धन  करने  के लिए यथा

समय गौ सेवा के लिए गौ दान  करते हैं, वे समाज सेवा का बड़ा

काम करते हैं

4.1.0.19 AV 12-4-19 Same again वही विषय फिर

दुर दभ्नैनमा शये याचितां च ना  दित्सति।

नास्मै कामाः समृध्यन्ते  यामदत्त्वा चिकीर्षति ।। अथर्व 12-4-19

Motivated by selfish considerations those who do not

Lend their cows at appropriate times for proper care

by experts, make their cows suffer and are in the end

not able to derive the benefits they were trying to

protect in the first place .

बाखड़ी गर्भ वती गौ की विशेष सेवा के लिए जो लोग अपनी  गौओं

को विशेषज्ञों के पास दान रूप से नही भेजते, उन  की गौएं कष्ट में

रहती हैं और जो लाभ अपेक्षित था वह नहीं मिलता।

4.1.0.20 AV 12-4-20  

Provide Vet experts honorable place

गो चिकित्सकों का आदर करो

देवा वशामयाचन्मुखं कृत्वा ब्राह्मणम् ।

तेषां सर्वेषामददद्धेडं न्येति मानुषः ।। अथर्व 12-4-20

Veterarian’s offer  for providing help to community to

take care of Cows should be gratefully accepted .

Ignoring the Vet Services angers the Vet Experts

पशु चिकित्सक गो सेवा के लिए उत्सुक रहते हैं। उन  सेवा ने  लेने

पर वे  क्रुद्ध होते हैं।

4.1.0.21 AV 12-4-21 Veterinarians पशु चिकित्सक

हेडं पशूनां न्येति ब्राह्मणेभ्योऽददद्वशाम् ।

देवानां निहितं भागं मर्त्यश्चेन्निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-21

Veterinarians are to be made available to serve cows.

By not taking  their services properly even the cows

are put to great  discomfort.

गौ सेवा के लिए प्रशिक्षित जन गोसेवा अवसर की प्रतीक्षा में  उत्सुक

रहते हैं। उन  की सेवा न  लेने  से गौ को भी बहुत पीड़ा होती है।

4.1.0.22 AV 12-4-22 Veterinary help

पशु चिकित्सा दायित्व

यदन्ये  शतं याचेयुर्ब्राह्मणा गोपतिं वशाम्‌।

अथैनां  देवा अब्रुवन्नेवं ह विदुषो वशा ।। अथर्व 12-4-22

Hundreds of people seek help from veterinarians, and

All their cows are said to belong to him.

बहुत से लोग अपनी  गौएं पशु चिकित्सक के पास ले जाते हैं। वे सब

गौ उस चिकित्सक की कही जाती हैं।

4.1.0.23 AV12-4-23 Expert Vet Services

कुशल पशु चिकित्सक सेवा

य एवं विदुषेऽदत्त्वाथान्येभ्यो ददद्वशाम् ।

दुर्गा तस्मा अधिष्ठाने पृथिवी सहदेवता ।। अथर्व 12-4-23

Those who do not take help of trained Vets and go to

Seek help from illiterates, cause lot of misery and loss

to society.

जो लोग विद्वान  पशुचिकित्सकों को छोड़ कर अविद्वानों  के पास

जाते हैं, वे समाज में दुःख का कारण होते हैं।

4.1.0.24 AV 12.4.24 Ignoring Vet help

पशु चिकित्सा न लेना

देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे अजायत ।

तामेतां विद्यान्नारदः सह देवै रुदाजत ।। अथर्व 12-4-24

First time pregnant cow needs extra care. House

Holders may think of such cows to be their blessing

and feel that it can take care of itself on its own as a

routine.

पहली बार गर्भ वती को गृह स्वामी अपना  सौभाग्य समझ कर यह

सोच लेता है कि सब अपने  से ठीक होगा। यह ग़लती है

4.1.0.25 AV 12-4-25 Continued वही विषय

अनपत्यमल्पपशुं वशा कृणोति पूरुषम्‌।

ब्राह्मणैश्च याचितामथैनां निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-25

Ignoring the expert Vet help those who confine such cows to their family out of misplaced affection, unknowingly cause harm to their cows and bring damage to the interests of their family.

विशेषज्ञों की सहायता न  ले कर ये गो स्वामी गौ और अपने  परिवार का और गौ का अहित करता है।

4.1.0.26 AV 12-4-26

अग्नीषोमाभ्यां कामाय मित्राय वरुणाय च ।

तेभ्यो याचन्ति  ब्राह्मणास्तेष्वा वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-26

Knowledge, Skills, Expert help, Implements and Resources all are needed for proper care. Ignoring this is a retrograde step.

विद्वत्ता, ज्ञान , हर प्रकार के संसाधन  उपयुक्त  स्थान  और समय पर उपलब्ध रहने  चाहिएं।

इन  सब पर ध्यान न  देना  समाज में पिछड़ापन  बढ़ाता है।

PASTURE FEEDING गोचर विषय

4.1.0.27 AV 12.4.27 Time to release Cows for Pastures प्रातः काल गोचर

यावदस्या गोपतिर्नोपशृणुयाद्दचः स्वयम् ।

चरेदस्य तावद्गोषु नास्यं श्रुत्वा गृहे वसेत् ।। अथर्व 12-4-27

Morning strains of mantras when heard being recited at Agnihotras indicates the time to release cows to go to pastures for self feeding.

प्रातः कालीन मंत्रो के पाठ की ध्वनि  जब सुनाई देती है, तब जानिए कि गौओं को गोचर में जाने  का समय हो चला

4.1.0.28 AV 12-4-28 Stall feeding is harmful घर में गौ को बंध कर मत रखो

यो अस्या ऋचउपश्रुत्याथ गोष्वचीचरत् ।

आयुश्च तस्य भूतिं च देवा वृश्चन्ति  हीडिताः ।। अथर्व 12-4-28

One who keeps Cows at home to feed even after hearing the morning mantra patha suffers in life.

जो प्रातःकाल मंत्र ध्वनि  सुनने  के पश्चात भी गौ को अपने  घर पर बांध कर खिलाता है, वह जीवन  मे दुख पाता है।

4.1.0.29 AV 12.4.29 Time to stay in Pastures गोचर में रहने  का समय

वशां चरन्ति  बहुधा देवानां निहितो निधिः ।

आविष्कृणुष्व रूपाणि यदा स्थाम जिघांसति ।। अथर्व 12- 4-29

As long as the cows like to feed in pastures they represent community assets. When cows want to retreat from pastures they indicate it by many signs.

गोचर में गौएं समाज की धरोहर के रूप में रहती हैं।जब वे पुन: अपने  गृह स्वामी के स्थान  जाना  चाहती हैं, स्वयम् संकेत करती हैं।

4.1.0.30 AV 12-4-30

आविरात्मानं कृणुते यदास्त्थाम जिघांसति।

अथो ह ब्रह्मभ्यो वशा याञ्च्याय कृणुते मन:।। अथर्व 12-4-30

Cow herself indicates the time for her to go back to her home for help from her master

जब गोचर से गृह स्वामी के पास जाने  का समय होता है गौ स्वयम् ऐसे संकेत देती है।

4.1.0.31 AV 12-4-31Cow’s desires are to be complied , गौ के अनुकूल आचरण हो

मनसा सं कल्पयति तद्देवाँ अपि गच्छति ।

ततो ह ब्रह्माभ्यो  वशामुपप्रयन्ति  याचितुम् ।। अथर्व 12-4-31

When Cows want to leave pastures to return to their homes, their desires should be complied with. ( It is the udder stress when it is full of milk, that prompts cow to return to her master for milking her and feeding her calf)

गौ के घर लौटने  के संकेत पर दूध दुहने  के लिए गौ को गृह स्वामी के यहां ले जाना चाहिए।

4.1.0.32 AV 12-4-32 Cow’s Blessings गौ के आशीर्वाद

स्वधाकारेण पितृभ्यो यज्ञेन  देवताभ्यः ।

दानेन  राजन्यो  वशाया मातुर्हेडं न गच्छति ।। अथर्व 12-4-32

Cows blessings flow by long life  and  presence of  elders in Society, Ajya for havi in yagyas, for the Society by her bounties (organic agriculture).

पितरों को अपने  स्वरूप से, ब्राह्मणों को यज्ञ में आज्य की हवि से,राज्य को अपनी  उपलब्धियों से धन्य  करती हैं।

4.1.0.33 AV 12-4-33 Cows belong to the learned गौ बुद्धिजीवियों की होती है

वशा माता राजन्यस्य तथा संभूतमग्रशः ।

तस्या आहुरनर्पणं यद ब्रह्मभ्यः प्रदीयते ।। अथर्व 12-4-33

Cow on first priority provides for protecting the welfare of society like a

mother does. But Cow really belongs to the Veterinarian intellectuals, who

provide for its  upkeep.

गौ सामाज को सर्व प्रथम माता कि तरह संरक्षण प्रदान  करती है।

परन्तु वास्तव में विद्वान  बुद्धिजीवि ही गौ को सुरक्षा प्रदान  करते

हैं।

4.1.0.34 AV12-4-34 Gross treatment of Cows a Crime गाव से दुर्व्यवहार अपराध है

यथाज्यं प्रगृहीतमालुम्पेत्स्त्रुचो अग्नये ।

एवा ह ब्रह्मभ्यो वशग्नय आ वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-34

Like Ajya havi dropping outside the fire is a crime, not providing the cows

with good Veterinary care is also a crime.

जैसे यज्ञाग्नि  से बाहर स्रुवा से आज्य गिराना  अपराध है, उसी प्रकार गौ को पशु चिकित्सक की

सेवा से दूर रखना  भी एक अपराध है।

4.1.0.35 AV 12-4-35 Productive cow fulfils all needs दुधारु गौ सम्पन्नता प्रदान करती है

पुरोडाशवत्सा सुदुधा लोकेऽस्मा उप तिष्ठति

सस्मै सर्वान्कामान्वशा  प्रददुशषे  दुह ।। अथर्व 12-4-35

Productive Cows fulfill all needs of the society

सवत्सा दुधारु गौ सब कामानाएं पूर्ण करती है

4.1.0.36 AV 12-4-36 Denying provision of cows leads to hell गो सेवा न  करना नरक देता है

सर्वान्कामान्ययमराज्ये वशा प्रददुशे दुहे  ।

अथहुर्नारकं लोकं निरुन्धा नस्य याचिताम् ।। अथर्व 12-4-36

Not making provision for good cows, denying cow products to the needy,

turns the society in to a living hell

गो सेवा से यम राज के यहां भी सब इच्छा पूरी होती हैं, परन्तु  गौ की  सेवा न  करने  से नरक

से छुटकारा नहीं मिलता।

4.1.0.37 AV 12-4-37 Cows denied mating are angry cows

गौ को वृषभ आवश्यक है

प्रवीयमाना  चरति क्रुद्धा गोपतये वशा ।

वेहतं मा मन्यमानो  मृत्योः पाशेषु बध्यताम् ।। अथर्व 12-4-37

Denial of breeding to good cows makes them infertile makes cows angry

and curse the keepers to Death.

(Modern practice of artificial insemination is known to  cause infertility. This

is a challenge for modern Dairy Practice.))

गौ को वृषभ का सहवास न  मिलने  पर गौ क्रोधित और बांझ होने

लगती  हैं। (क्रित्रिम गर्भाधान में गौ बांझ होने लगती हैं )

4.1.0.38 AV 12-4-38 Cow Breeding facility

गौ प्रजनन व्यवस्था

यो वेहतं मन्यमानो ऽमा च पचते वशा ।

अप्यस्य पुत्रान्‌ पौत्रांश्च याचयते बृहस्पति ।। 12-4-38

Neglect of breeding a good cow makes the coming  generation of society in

to beggars

जिस समाज में गौ प्रजनन सुव्यवस्थित नहीं होता वहां के लोग भीख मांगते हैं।

Pasture Significance गोचर महत्व

4.1.0.39 AV 12-4-39 Pastures should have free access गोचर महत्व

महदेषाव तपति चरन्ति  गोषु गौरपि ।

अथो ह गोपतये वशाददुषे विषं दुहे ।। अथर्व 12-4-39

Barriers in pastures angers the cows, the milk from such cows is likened to

poison. (महदेषाव – Big barriers)

(This fact is fully supported by latest dairy

science researches. Only milk of green forage fed cows is rich Essential

Fatty acids-Omega3 & Omega 6 and has much lower saturated fat content

and is rich with all Carotenoids. This is confirmed by the researches

shown here.)

भारतीय समाज में मन्यु (बोध जन्य क्रोध) का महत्व

sparta

भारतीय समाज में मन्यु (बोध जन्य क्रोध)  का महत्व 

साधारण हिंदी में  मन्यु का अर्थ क्रोध लिया जाता है . यह इसी बात का परिचायक है हम मन्यु शब्द  का अर्थ तक भूल गये हैं भारत वर्ष  में महाभारत काल में ही समाज में मन्यु का अभाव  दिखायी  देने  लगा था. वास्तव  में कृष्ण द्वारा  अर्जुन को  गीता का उपदेश वैदिक  मन्यु  का  ज्ञान ही  तो है. दुष्टों  के अन्याय के विरुद्ध आक्रोश और  संग्राम  तो  मानव  का कर्तव्य  बनता है. भगवान  राम का लन्केश रावण के दुष्टाचार से समाज का उद्धार मन्यु ही तो था. मर्यादा पुरुषोत्तम  से  क्रोध  की तो अपेक्षा ही नहीं  की जा सकती . बोध जन्य क्रोध  को मन्यु  कहते  हैं .इसीलिए  वैदिक प्रार्थना है  –  “मन्युरसि मन्युं मयि धेहि, हे दुष्टों पर क्रोध करने वाले (परमेश्वर) ! आप दुष्ट कामों और दुष्ट जीवो पर क्रोध करने का स्वभाव मुझ में  भी  रखिये यजुर्वेद – 19.9”. मनन उपरांत  उग्रता  मन्यु है अन्याय दुष्ट आचरण से समझौता करना दुष्टाचरण को समाप्त नहीं  करता वरन्च दुष्टाचार को  बढावा ही देता है.   क्या यह भारत वर्ष का ही नहीं समस्त मानव इतिहास  बताता है. महाभारत  काल   के पश्चात ऐसा लगता है कि भारतीय समाज मन्यु  विहीन हो गया.  तभी तो हम सब दुष्टों के व्यवहार को परास्त न कर के , उन से समझौता करते चले  आ रहे  हैं हिंदु धर्म  में वैदिक काल से यम नियम द्वारा अहिंसा  मानव मात्र का  कर्तव्य  है. परन्तु  अहिंसा का अर्थ  मन्यु विहीन होना कदापि नहीं  है.  अहिंसा परमो  ध्रर्मः के  अर्थ का  बोध पूर्वक  संज्ञान होना चाहिये.

समाज, राष्ट्र, संस्कृति की सुरक्षा के लिए, मन्यु कितना मह्त्व का  विषय है यह इस बात से सिद्ध होता है कि ऋग्वेद मे पूरे दो सूक्त केवल मन्यु पर हैं. और इन्हीं दोनो सूक्तों का अथर्व वेद मे पुनः उपदेश मिलता है.

 अग्निरिव मन्यो तविषितः, विद्मा तमुत्सं आबभूथ, मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः वेद यह भी निर्देश देते हैं कि मन्यु एक दीप्ति है जिस का प्रकाश यज्ञाग्नि द्वारा मानव हृदय में होता है. हृदय के रक्त के संचार मे मन्यु का उत्पन्न होना बताते है. मन्यु यज्ञाग्नि से ही उत्पन्न जातवेदस सर्वव्यापक वरुण रूप धारण करता है.

परन्तु वेदों मे इस बात की भी सम्भावना दिखायी है,कि कभी कभी समाज में , परिवार में विभ्रान्तियों, ग़लतफहमियों, मिथ्याप्रचार के कारण भी सामाजिक सौहार्द्र में आक्रोश हो सकता है. ऐसी परिस्थितियों में आपस में वार्ता, समझदारी से आपसी मनमुटाव का निवारण कर, प्रेम भाव सौहर्द्र पुनः स्थापित किया जाना चाहिये.

 Rig Veda Book 10 Hymn 83 same as AV 4.32

यस्ते मन्योSविधद्वज्र सायक सह ओजः पुष्यति विश्वमानुषक | 

साह्याम दासमार्यं त्वया युजा सहस्कृतेन सहसा सहस्वता || ऋ10/83/1

(वज्र सायक मन्यो)  Confidence is  born out of  being competently equipped and trained to perform a job.

हे मन्यु, जिस ने तेरा आश्रयण किया है, वह अपने शस्त्र सामर्थ्य को, समस्त बल और पराक्रम को निरन्तर पुष्ट करता है.साहस से उत्पन्न हुवे बल और परमेश्वर के साहस रूपि सहयोग से समाज का अहित करने वालों पर  बिना मोह माया ( स्वार्थ, दुख) के यथा योग्य कर्तव्य करता  है.

मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास देवो मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः |
मन्युं विश ईळते मानुषीर्याः पाहि नो मन्यो तपसा सजोषाः || ऋ10/83/2

मन्युदेव इंद्र जैसा सम्राट है. मन्युदेव ज्ञानी सब ओर से प्रचेत ,सचेत तथा धनी वरुण जैसे गुण वाला है  .वही यज्ञाग्नि द्वारा समस्त वातावरण और समाज मे कल्याण कारी तप के उत्साह से सारी मानव प्रजा का सहयोग प्राप्त करने मे समर्थ होता है. (सैनिकों और अधिकारियों के मनों में यदि मन्यु की उग्रता न हो तो युद्ध में सफलता नहीं हो सकती. इस प्रकार युद्ध में  मन्यु ही पालक तथा रक्षक होता है.)

अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान् तपसा युजा वि जहि शत्रून् |
अमित्रहा वृत्र हा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः || ऋ10/83/3

हे वज्ररूप, शत्रुओं के लिए अन्तकारिन्‌ , परास्त करने की शक्ति के साथ उत्पन्न होने वाले, बोध युक्त क्रोध ! अपने कर्म के साथ प्रजा को स्नेह दे कर अनेक सैनिकों के बल द्वारा समाज को महाधन उपलब्ध करा.

त्वं हि मन्यो अभिभूत्योजाः सवयंभूर्भामो अभिमातिषाहः |
विश्वचर्षणिः सहुरिः सहावानस्मास्वोजः पर्तनासु धेहि || ऋ10/83/4

हे बोधयुक्त क्रोध मन्यु!  सब को परास्त कारी ओज वाला, स्वयं सत्ता वाला, अभिमानियों का  पराभव  करने वाला , तू विश्व का शीर्ष नेता है. शत्रुओं के आक्रमण को जीतने वाला विजयवान है. प्रजाजनों, अधिकारियों, सेना में अपना ओज स्थापित कर.

अभागः सन्नप परेतो अस्मि तव क्रत्वा तविषस्यप्रचेतः |
तं त्वा मन्यो अक्रतुर्जिहीळाहं स्वा तनूर्बलदेयाय मेहि ||ऋ10/83/5

हे त्रिकाल दर्शी मन्यु, तेरे वृद्धिकारक  कर्माचरण से विमुख हो कर मैने तेरा निरादर किया है ,मैं पराजित  हुवा हूँ. हमें अपना बल तथा ओज शाली स्वरूप दिला.

अयं ते अस्म्युप मेह्यर्वाङ्  प्रतीचीनः सहुरे विश्वधायः |
मन्यो वज्रिन्नभि मामा ववृत्स्व हनाव दस्यूंरुत बोध्यापेः || ऋ10/83/6

हे प्रभावकारी समग्र शक्ति प्रदान करने वाले मन्यु, हम तेरे अपने हैं .  बंधु अपने आयुध और बल के साथ हमारे पास लौट कर आ, जिस से हम तुम्हारे सहयोग से सब अहित करने वाले शत्रुओं पर सदैव विजय पाएं.

अभि प्रेहि दक्षिणतो भवा मे Sधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि |
जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभा उपांशु प्रथमा पिबाव ||ऋ10/83/7

हे मन्यु , मैं तेरे श्रेष्ठ भाग और पोषक, मधुररस की स्तुति करता हूं . हम दोनो युद्धारम्भ से पूर्व अप्रकट मंत्रणा करें ( जिस से हमारे शत्रु को हमारी योजना की पूर्व जानकारी न हो). हमारा दाहिना हाथ बन, जिस से हम राष्ट्र  का आवरण करने वाले शत्रुओं पर विजय पाएं.

Rig Veda Book 10 Hymn 84 same as AV 4.31

त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणासो धर्षिता मरुत्वः |
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः || ऋ10/84/1 अथव 4.31.1

हे  मरने  की अवस्था में भी उठने की प्रेरणा देने  वाले  मन्यु , उत्साह !  तेरी सहायता से रथ सहित शत्रु को विनष्ट करते हुए और स्वयं आनन्दित  और प्रसन्न चित्त हो कर  हमें उपयुक्त शस्त्रास्त्रों से अग्नि के समान तेजस्वी नेत्रित्व  प्राप्त हो.

अग्निरिव मन्यो तविषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि

हत्वाय शत्रून् वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व ||ऋ10/84/2 अथर्व 4.31.2

हे उत्साह रूपि मन्यु तू अग्नि का तेज धारण कर, हमें समर्थ बना. घोष और  वाणी से आह्वान  करता हुवा  हमारी सेना  को नेत्रित्व प्रदान करने वाला हो. अपने शस्त्र बल को नापते  हुए  शत्रुओं को परास्त कर के हटा दें.

सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन् मृणन् प्रमृन् प्रेहि शत्रून्

उग्रं ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम् || ऋ10/84/3अथर्व 4.31.3

अभिमान करने वाले शत्रुओं को नष्ट करने का तुम अद्वितीय  सामर्थ्य रखते हो.

एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशं-विशं युधये सं शिशाधि |
अकृत्तरुक त्वया युजा वयं द्युमन्तं घोषं विजयाय कर्ण्महे || ऋ10/84/4अथर्व 4.31.4

हे मन्यु बोधयुक्त क्रोध अकेले तुम ही सब सेनाओं और प्रजा जनों का उत्साह बढाने वाले हो. जयघोष और सिन्ह्नाद सेना और प्रजा के पशिक्षण में  दीप्ति का प्रकाश करते हैं वह  तुन्हारा ही प्रदान किया हुवा है.


विजेषकृदिन्द्र इवानवब्रवो Sस्माकं मन्यो अधिपा भवेह |
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्मा तमुत्सं आबभूथ ||  ऋ10/84/5अथत्व 4.31.5

मन्यु द्वारा विजय कभी निंदनीय नहीं होती. हम उस प्रिय मन्यु के उत्पादक  रक्त के संचार करने वाले हृदय  के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें.

आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्ष्यभिभूत उत्तरम |
क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूतसंसृजि ||ऋ10/84/6  अथर्व 4.31.6

दिव्य सामर्थ्य उत्पन्न कर के उत्कृष्ट बलशाली मन्यु अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अनेक स्थानों पर पुकारे जाने पर उपस्थित हो कर, हमे  महान ऐश्वर्य युद्ध मे  विजय प्रदान करवाये.

संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुणश्च मन्युः | 

भियं दधाना हर्दयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम् || ऋ10/84/7  AV4.31.7

हे मन्यु ,  बोधयुक्त क्रोध , समाज के शत्रुओं द्वारा (चोरी से) प्राप्त प्रजा के धन को तथा उन शत्रुओं  के द्वारा राष्ट्र से पूर्वतः एकत्रित किये  गये  दोनो प्रकार के धन को शत्रु के साथ युद्ध में जीत कर सब प्रजाजनों अधिकारियों को प्रदान कर (बांट). पराजित शत्रुओं के हृदय में इतना भय उत्पन्न कर दे कि वे निलीन हो जाएं.

( क्या यह स्विस बेंकों मे राष्ट्र के धन के बारे में उपदेश नहीं है)

Atharva 6/41

मनसे चेतसे धिय आकूतय उत चित्तये !

मत्यै श्रुताय चक्षसे विधेम हविषा वयम् !! अथर्व 6/41/1

(मनसे) सुख दु:ख आदि को प्रत्यक्ष कराने वाले मन के लिए (चेतसे) ज्ञान साधन चेतना के लिए (धिये) ध्यान साधन बुद्धिके लिए (आकूतये) संकल्प  के लिए (मत्यै) स्मृति साधन मति के लिए, (श्रुताय) वेद ज्ञान के लिए ( चक्षसे) दृष्टि शक्ति के लिए (वयम) हम लोग (हविषा विधेम) अग्नि मे हवि द्वारा यज्ञ करते हैं.

भावार्थ: यज्ञाग्नि के द्वारा उपासना से मनुष्य को सुमति, वेद ज्ञान,चैतन्य, शुभ संकल्प, जैसी उपलब्धियां होती हैं जिन की सहायता से जीवन सफल हो कर सदैव सुखमय बना रहता है.

अपानाय व्यानाय प्राणाय भूरिधायसे !

सरस्वत्या उरुवव्यचे विधेम हविषा वयम !! अथर्व 6/41/2

(अपानाय व्यानाय) शरीरस्थ प्राण वायु के लिए (भूरिधायसे)अनेक प्रकार से धारण करने वाले (प्राणाय) प्राणों के लिए (उरुव्यचे) विस्तृत गुणवान सत्कार युक्त (सरस्वत्यै) उत्तम ज्ञान की वृद्धि के लिए (वयम हविषा विधेम) हम अग्नि मे हवि द्वारा द्वारा होम करते हैं.

भावार्थ: प्राणापानादि शरीरस्थ प्राण वायु के विभिन्न व्यापार मानव शरीर को सुस्थिर रखते हैं. इन्हें कार्य क्षेम रखने के लिए युक्ताहार विहार के साथ प्राणायामादि के साथ यज्ञादि संध्योपासना प्राणों को ओजस्वी बनाने के सफल साधन बनते हैं

मा नो हासिषुरृषयो दैव्या ये तनूपा ये न तन्वस्व्तनूजा: !

अमर्त्या मर्तयां अभि न: सचध्वमायुर्धत्त प्रतरं जीवसे न: !! अथर्व 6/41/3

(ये) जो (दैव्या ऋषिय:) यह दिव्य सप्तऋषि(तनूपा) शरीर की रक्षा करने वाले हैं (ये न: तन्व: तनूजा) ये जो शरीर में इंद्रिय रूप में स्थापित हैं वे (न: मा हासिषु) हमें मत छोडें .(अमर्त्या:) अविनाशी देवगण (मर्त्यान् न) हम मरण्धर्मा लोगों को (अभिसचध्वं) अनुगृहीत करो, (न: प्रतरं आयु:) हमारी  दीर्घायु  को (जीवसेधत्त) जीवन के लिय समर्थ करें( इसी संदर्भ में “ शुक्रमुच्चरित ” द्वारा ऊर्ध्वरेता का भी महत्व बनता है  शरीरस्थ सप्तृषि: सात प्राण, दो कान (गौतम और भरद्वाज ज्ञान को भली भांति धारण करने से भरद्वाज) दो चक्षु (विश्वामित्र और जमदग्नि जिस से ज्योति चमकती है) दो नासिका (वसिष्ठ और कश्यप प्राण के संचार का मार्ग), और मुख (अत्रि:)

Resolve Misperceptions – भ्रांति निवारण

 Negotiations

अव ज्यामिव धन्वनो मन्युं तनोमि ते हृदः!

यथा संमनसौ भूत्वा सखायाविव सचावहै !! अथर्व 6.42.1

असह्य व्यवस्था के विवेकपूर्ण  चिन्तन  करने से ज्ञान दीप्ति द्वारा मित्रों की तरह सुसंगत होने का भी प्रयास करना चाहिए.

Possible misapprehensions leading to public unrest /family discords should be resolved by better understanding. Angry situations may thus be resolved to establish peace and harmony.

Bury the hatchet- शांति वार्ता

सखायाविव सचावहा अव मन्युं तनोमि ते !

अघस्ते अश्मनो मन्युमुपास्यामसि यो गुरुः !! अथर्व 6.42.2

परिवार में समाज में विभ्रान्ति

Anger caused by misunderstandings should be resolved to establish friendly atmosphere. Anger should be forgotten as if buried under a heavy stone.

Restore Amity-सौहार्द्र पुनः स्थापन

अभि तिष्ठामि ते मन्युं पार्ष्ण्या प्रपदेन च !

यथावशो न वादिषो मम चित्तमुपायसि !! अथर्व 6.42.3

Public Anger should be forgotten for the hearts to become one. This is as if the anger had been crushed under the heels

यज्ञाग्नि का हृदय में स्थापित्य से क्षत्रियत्व का प्रभाव

अथर्व 6.76

1.य एनं परिषीदन्ति समादधति चक्षसे ! संप्रेद्धो अग्निर्जिह्वाभिरुदेतु  हृदयादधि अथर्व 6.76.1

जो इस  यज्ञाग्नि के चारों ओर बैठते हैं , इस की उपासना करते हैं, और दिव्य दृष्टि के लिए इस का आधान करते हैं , उन के हृदय के ऊपर प्रदीप्त हुवा अग्नि अपनी ज्वालाओं से उदय हो कर क्षत्रिय गुण प्रेरित करता है.

2.अग्नेः सांत्पनस्याहमायुषे पदमा रभे ! अद्धातिर्यस्य पश्यति धूममुद्यन्तमास्यतः !!अथर्व 6.76.2

शत्रु को तपाने  वाली अग्नि के (पदम्‌) पैर को, चरण को  (आयुषे) स्वयं की, प्रजाजन की, राष्ट्र की दीर्घायु के लिए (अह्म्‌) मैं ग्रहण करता हूँ . इस अग्नि के धुंए को मेरे मुख से उठता हुवा सत्यान्वेषी मेधावी पुरुष देख पाता है.

3.यो अस्य समिधं वेद क्षत्रियेण समाहिताम्‌ ! नाभ्ह्वारे पदं नि दधाति स मृत्यवे !! अथर्व 6.76.3

जो प्रजाजन इस धर्मयुद्ध की  अग्नि को देख पाता है, जो क्षत्रिय धर्म सम्यक यज्ञाग्नि सब के लिए समान रूप से आधान की जाती है. उसे समझ कर प्रजाजन कुटिल छल कपट की नीति को त्याग कर मृत्यु के लिए पदन्यास नहीं करता.

4. नैनं घ्नन्ति पर्यायिणो न सन्नाँ अव गच्छति! अग्नेर्यः क्ष्त्रियो विद्वान्नम गृह्णात्यायुषे !! अथर्व 6.76.4

जो सब ओर से घेरने वाले शत्रु हैं वह इस आत्माग्नि  का सामना नहीं  कर पाते, और समीप रहने वाले भी इस को जानने में असमर्थ रहते हैं. परन्तु जो ज्ञानी क्षत्रिय   धर्म ग्रहण करते हैं वे हुतात्मा अमर हो जाते हैं .

 

प्रकृति का वरदान – मधुविद्या

natures bounty

RV6.70 Nature’s bounties

Including Honey Doctrine

प्रकृति का वरदान – मधुविद्या

ऋषि:- बार्हस्पत्यो भारद्वाज: । देवता:- द्यावापृथिवी । जगती।

बार्हस्पत्यो -विद्वानों का भी विद्वान, भारद्वाज:- अत्यन्त शक्ति  से

सम्पन्न

इस सूक्त की व्याख्या में तीन बड़े महत्वपूर्ण शब्द प्रयुक्त हुए हैं.

घृत: – घृतवती,घृतश्रिया , घृतपृचा , घृतावृधा – घृत को स्नेहन भी कहते हैं- जीवन में सदा स्नेहयुक्त

 मनमुटाव रहित रहने से समाज में सौहर्द्र , संगठित रहने से समाजशक्ति , अस्पृश्यता भेदभाव जैसी  विकृतियों के स्थान पर समृद्ध  सुखमय समाज का निर्माण देखा जाता है.

मधु – स्नेह युक्त होना ही तो मधु जैसा मिठास जीवन में स्थापित करताहै. भारतीय दर्शन में मधुविद्या का बड़ा महत्व दिखाया

In proper understanding this sookt three words described below have to be considered in their wider context.

1.घृत ;-

Ghrit;- Commonly it is  known as ghee.  Ghee is also performs the function of a Lubricant. Metaphorically in personal relations Ghrit by removing friction adds to closeness, feelings of calm, mutual cooperation and affection. To the human body Ghrit provides strength and wellbeing. Thus Ghrit while it provides physical health and wellbeing to human body, metaphorically it provides the society with calm pleasant cooperative attitudes.

2.मधु ;   

Madhu Vidya is elaborately dealt with in Bridaranyakopanishad  2.5.(बृहदाराण्यकोपनिषद 2.5)

Basic premise is that honey is a sweet and highly desired material, both literally and metaphorically. Honey has physically sweet taste and stimulates health. Metaphorically Honey promotes by sweet agreeability and happy peace in all situations and experiences in life.

It is also not possible to trace as to which bee picked which flower for which part of this honey. Similarly in life pleasant living is made up as  the sum total of contributions of very small sweet agreeable, compliments from all elements the earth, unpolluted air, water, our pets, our relations, friends, colleagues, strangers on the street, innumerable sources that  are hard to identify individually.  Thus like honey there is no traceability for happiness in life.

As Upanishad says; Iyam pṛthivī sarveṣᾱṁ bhῡtᾱnᾱm madhu:

This earth is the honey of all beings. It is the essence and milk of all beings. People suck this earth as if they suck honey which has such a beautiful taste; and earth sucks everybody and everything as if they are honey to it. The earth is the honey of all, and everyone is the honey of the earth. The earth is absorbed into the ‘being’ of everything, and everything is absorbed into the ‘being’ of the earth. That is the meaning of saying that earth is the honey of all beings, and all beings are the honey of the earth. It is the honey that you absorb into your being by sucking, by licking, by enjoying, by making it a part of your own ‘being’. So does the earth make everything a part of its own ‘being’ by absorbing everything into itself. And so does every ‘being’ in the world suck the earth into itself and make it a part of its own ‘being’.

3.असश्चन्ती ;-Stands for selfless, anonymous actions without seeking rewards of actions  for self. This is what Ved describes in -कुर्वेन्नेवेह्कर्माणि जिजीविषेच्छत^ समा: | एवं त्वयि नान्यथेतो न कर्म लिप्यते नरे || यजु 40.2 , And Geeta ;कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते सङ्गोsस्त्वकर्मणि || 2.47

Food Safety – Security  जैविक पदार्थ

1.घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधुदुघे सुपेशसा ।
द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभिते अजरे भूरिरेतसा ।।AV 6.70.1

सम्पूर्ण पृथ्वी  भूमि और सौर ऊर्जा द्वारा प्रकृति के(वरुणस्य) सर्वव्यापी  नियमों  की व्यवस्था में  सदैव उत्तम माधुर्य लिए हुए (अन्नदि) पौष्टिक (स्वास्थ्य हितकारी) वीर्यवर्धक पदार्थों को प्रदान करने की अक्षय क्षमता रखती है.

(पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भूमि की उर्वरकता,  प्रदूषन रहित कार्य योजना और सौर  ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग का उपदेश इस वेद मंत्र से प्राप्त होता है )

Nature’s omnipotent omnipresent laws by combination of land and sun tirelessly supply of highly nutritious sweet (food) products from the entire expanse of land.
Biodiversity जैव विविधता का महत्व

2.असश्चन्ती भूरिधारे पयस्वती घृतं दुहाते सुकृते शुचिव्रते ।
राजन्ती अस्य भुवनस्य रोदसी अस्मे रेत: सिञ्चतं यन्मनुर्हितं ।।AV 6.70.2

भिन्न भिन्न क्षेत्रों में परस्पर स्वतंत्र रूप से स्थापित पर्यावरण द्यावा पृथिवी,सब जीव पशु, पक्षी, पर्यावरण के हितों की सुरक्षा से  मानव के पवित्र हितों की रक्षा के लिए जीवन को पवित्र मानसिकता और पौरुष प्रदान करने वाले सब सात्विक दूध, घी,  इत्यादि साधन प्राप्त कराते हैं. ( इस मंत्र में मानव जीवन के हित में जैव विविधता का महत्व दर्शाया गया है.)

Different diverse seemingly independent unconnected species of Nature make vital complimentary contributions to make available sustainable non corrupting disease free healthy food and environment.

 Innovations आविष्कार महत्व

3.यो वामृजवे क्रमणाय रोदसी मर्तो ददाश धिषणे स साधति ।
प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्परि युवो: सिक्ता विषुरूपाणि सव्रता ।।AV 6.70.3

जो बुद्धिमान समाज को जन प्रकृति के  साधनों के  सरल अधिक लाभकारी मार्ग  दर्शाते हैं  वे समाज में धर्मानुसार जीवन आचरण की व्यवस्था स्थापित करने मे सहायक बनते हैं.

Devise innovative & simple processes to employ the natural complimentary bounties of naturally available resources like people, animals, sun and land, and provide society and its progeny with traditions of just and better sustainable lifestyle.

Rains वृष्टि जल

4.घृतेन द्यावापृथिवी अभीवृते घृतश्रिया घृतपृचा घृतावृधा ।
उर्वी पृथ्वी होतृवूर्ये पुरोहिते ते इद् विप्रा ईळते सुम्नमिष्टये ।।AV 6.70.4

वर्षा के जल घृत की तरह अत्यंत महत्वपूर्ण गुणवान और सर्वव्यापी  हैं.  पृथ्वी की  ऊर्वरक बनाने के साथ साथ इन की गुणवत्ता  विद्वत्जनों के जीवन में इष्ट की पूर्ति के लिए यज्ञादि सात्विक कर्मों के प्रेरक हैं.

All encompassing rain waters are of great importance and bring glory, satiation and growth. They provide soil with riches to promote bliss and enlightened temperaments in wise persons to perform yajnas to achieve their goals.

Honey Doctrine (Sweetness/happiness in life) मधुविद्या

5.मधु न: द्यावापृथिवी मिमिक्षतां मधुश्चुता मधुदुघे मधुव्रते ।
दधाने यज्ञं द्रविणं च देवता महि श्रवो वाजमस्मे सुवीर्यम् ।। AV6.70.5

जीवन में  सब ओर से क्षरित मधु जैसा धन धान्य स्वास्थ्य  युक्त प्रसन्न  चित्त समाज में यज्ञादि (दान,देवपूजा,संगतिकरण) के परिणाम होते हैं. यज्ञ ही मधुविद्या है.

All things that endow with all pervading, health wealth and happiness and derive from Nature’s resources on earth and atmosphere above it are results of efforts that are made selflessly, in charity and cooperation   in all walks of life like performing Yajnas.  And result in providing to all life desirable like sweet honey. ( All actions that in combination consist of  Charity, Care of environments, and Collective good for society are called Yajnas in Vedic terminology. )

6.ऊर्जं न: द्यौश्च पृथिवी च पिन्वतां पिता माता विश्वविदा सुदंससा ।
सं रराणे रोदसी विश्वशंभुवा सनिं वाजं रयिमस्मे समिन्वताम् ।।AV 6.70.6

द्युलोक वृष्टि  के जल द्वारा  सेचन करने से पिता समान है, उस जल को धारण करने वाली पृथ्वी माता समान है,और ये दोनो पृथिवी लोक,  प्राण शक्ति , अन्न , ऊर्जा,  बल और सब आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाले हैं . ये द्यावापृथिवी सब को उपकार भाव से सुख शांति दे कर सब दुखों को दूर करते हैं .  समाज अपने हित में इस सत्मार्ग पर सदैव चले.

Nature’s action to bless us with Rain is likened to actions of a father, and earth’s action in receiving the rains and provide for our welfare are likened to the actions of a mother. Nature thus like both the parents provides us with all that is required to sustain us – breath of life, food, energy, comfort and happiness, remove our miseries and discomfort . To ensure this it is required of us to follow in correct path and behavior.

 

मनसापरिक्रमा विषय

energy everywhere

About Mansaparikrama  मनसापरिक्रमा विषय

AV3.26 & 3.27  

दो अथर्व वेद सूक्त 3.26 और 3.27 एक ही विषय पर समष्टि और व्यष्टि  रूप से उपदेश द्वारा मानव जीवनके मार्ग का निर्देश करते हैं. दोनों को एक साथ स्वाध्याय पर आधारित  मेरे  व्यक्तिगत विचार विद्वत्जनों के टिप्पणि के लिए प्रस्तुत हैं .

Two Atharv ved sookts 3.26 and 3.27 appear to give guidance on the same subject , AV3.26 on macro level and AV3.27 on micro earthly level. My personal understanding and interpretation of these two complimentary Vedic sookts is submitted for consideration and comments of learned persons

ऋषि:- अथर्वा |  देवता-अन्न्यादय: नाना देवता

  1. येऽस्यां स्थ प्राच्यां दिशि हेतयो नाम देवास्तेषां वो अग्निरिषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.1

 

पूर्व दिशा में हमारे  सम्मुख  स्थित (सूर्य) प्रत्यक्ष रूप से तम के  आसुरी भावों   (आलस्य, निद्रा , प्रमाद  , अवसाद जैसी तामसिक अंधकारमयी वृत्तियों का ) नाश कर के समस्त संसार को रात्रि की निद्रा से उठा कर स्वप्रेरित  दैनिक दिनचर्या में उद्यत  करता है |  सूर्याग्नि –ऊर्जावान  देवत्व से उपलब्ध निरन्तर चरैवेति चरैवेति प्रगतिशील  कर्मठता  की  प्रेरणा देता है. यही हमारे सुखों का साधन होता है,  विद्वत्जन- वेद विद्या ,  इस ( सुर्याग्नि)  की ऊर्जा  के विज्ञान का अनुसंधान करें और  हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के यज्ञाहुति  अर्पित  करते हैं. (यही संदेश ‘तमसोमामृतं गमय मृत्योर्मामृतं गमय’  में निहित है. एक उदाहरण के लिए संसारिक भौतिक सुख साधनों में आत्मचिंतन द्वारा आधुनिक विद्युत उत्पादन द्वारा पर्यावरण की हानि   को देखते हुए सौर ऊर्जा के प्रयोग मे प्रगति इसी दिशा में प्रगति  का द्योतक है. कहा जा रहा है कि जर्मनी शीघ्र ही अपनी विद्युत उत्पदनकी आवश्यकता का 80%  सौर  ऊर्जा द्वारा प्राप्त करने का लक्ष्य पा लेगा. इसी प्रकार स्वीडन निकट भविष्य में अपने 80%  वाहनों को अर्यावरण को क्षति पहुंचानेवाले डीज़ल पेट्रोल की बजाए पुरीष इत्यादि नागरिक कूड़े कचड़े से गैस उत्पाद से चला पाएगा. )

In the East in front of us as sun rises all negative dark tendencies (of sleepiness, laziness, procrastination, and despondency) are dispelled. Entire world by itself wakes up from rest & slumber of night and sets about its daily chores. Sun provides the inspiration to be activated with energy in our efforts to make continuous progress. This is the forbearer of our comforts in life; learned persons should explore these energy sciences and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to the Almighty and follow him with full dedication by making our offerings in Agnihotra .

( This is the essence of Vedic exhortation  ‘तमसोमामृतं गमय मृत्योर्मामृतं गमय’ . One example is that on realising the threat and damage to environments and population by reliance on fossil fuels and damage to ecology in conventional methods of electricity generation, Germany is aiming to reach the target of producing 80% of its electricity needs by Solar cogeneration. Similarly Sweden is aiming to make use of its municipal waste methane production to replace 80% of its fossil fuel needs in transport sector.)

1.प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । ।AV3.27.1 

प्राची पूर्व की दिशा में सूर्याग्नि अधिपति स्वामी  है, जो स्वतंत्र हैं  और सीमा बद्ध नहीं हैं . इन की रश्मियां (पृथ्वी पर आने वाले ) बाण स्वरूप हैं जो( भिन्न भिन्न प्रकार से)  हमारी रक्षा करते हैं.  इस सूर्य देवता को हम नमन करते हैं. उस के इन  रक्षक बाणों के प्रति हम नमन करते हैं | और जो हम से द्वेष करने वाले (तमप्रिय) रोगादि शत्रु हैं उन्हें ईश्वरीय न्याय पर  छोड़ते हैं.

In the East infinite and independent solar radiations are directed like missiles to provide energy and protection us (in many forms known as photo biology in science). We show our gratefulness to Sun for these bounties and leave our enemies such as sloth and pathogens at his disposal to deal with.

२ .येऽस्यां स्थ दक्षिणायां दिश्यविष्यवो नाम देवास्तेषां वः काम इषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.2

दक्षिण  दाहिने हाथ में स्थित कार्य कुशलता परिश्रम का संकल्प हमारे जीवन में सुरक्षा  प्रदान करने का मुख्य साधन है.  विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर  ,  (कार्यकौशल-कृष्टी) तकनीकी  विज्ञान का (अनुसंधान करें) और  हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.और जो हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं.

In our right hand dwell the dexterous life support skills. The resolve to lead skilful action oriented life ensures self preservation and protection. Learned persons should research and develop science and technologies and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and make our offerings in Agnihotra dedicated to Him..

2.दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.2

दक्षिण – दाहने  हाथ से कर्म प्रधान जीवन का संकल्प हमारे भीतर इन्द्र का दैवत्व स्थापित करता है.(इन्द्र का भी तो  आचरण स्वयं में निर्दोष  नहीं था)  अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मतान्ध बुधि भ्रष्ट हो  कर हम  अपना संतुलन खो सकते हैं और  (तिरश्चिराजी) जैसे कुछ टेढ़े मेढ़े रास्ते  भी  अपना लेते हैं . ऐसे अवसरों पर हमारे पितरों  का, पूर्व जनों का,  शास्त्रों का  मार्ग दर्शन हमारे लिए ठीक दिशा में कार्य करने लिए हमें  दिशा निर्देश करता  है . इस इन्द्र देवत्व  के प्रति हम प्रणाम करते हैं , इंद्र द्वारा  जीवन में सुरक्षा प्रदान करने वाली उपलब्धियों को हम प्रणाम करते हैं . और जो हम से द्वेष करने वाले  हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें ईश्वरीय न्याय पर  छोड़ते हैं.

  1. येऽस्यां स्थ प्रतीच्यां दिशि वैराजा नाम देवास्तेषां व आप इषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । AV3.26. 3

प्रतीची दिशा में हमारी पीठ के पीछे की दिशा में (वैराजा:) अन्न के स्वामी – कृषक जन और (देवा: ) व्यवहारी अर्थात व्यापारी जन स्थित हैं जिन के लिए जल (सिंचाई के लिए ) मुख्य बाण है, हमारे जीवन में सुरक्षा  प्रदान करने का मुख्य साधन है.  विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर  ,  कृषि तथा जल  के विज्ञान का अनुसंधान करें और  हमें उपदेश करें,जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.

Unconcerned with our activities – behind our backs-without our urging, the growers of food and commercial interests operate to provide us with food security. Water resource is the most significant for their proper operations. Scientists should carry our researches in to food production and water utilizations and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and will follow with full dedication.

 3.प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नं इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.3

हमारे पीछे हमें बिना बताए वरुण देवता जल के भौतिक स्वरूप में  भूमि के नीचे हर स्थान पर पहुंच कर वहां  पलने वाले सूक्ष्माणुओं के अधिपति हैं. इन का दायित्व भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्न के उत्पन्न करने की  सुरक्षा है. इस के लिए हम वरुण देवता को नमन करते हैं, उन के द्वारा इस प्रकार  अन्न  की सुरक्षा की व्यवस्था को हम नमन करते हैं . और जो हमारे शत्रु जन (इन प्रकृति के नियमों के विरुद्ध  चल कर  भूमि को जल विहीन, सूक्ष्माणुओं  रहित मरुस्थल  बना कर अनुपजाउ बना देते हैं ) उन्हें  हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं.

At our backs, (without our urging) Warun dewataa (through water) is in charge of  Rhiozosphere where he commands by reaching everywhere in the kingdom of microorganisms living in soil. Food grown thus is the protector of our lives . We prostate ourselves to Him, and for His bounties, and leave our enemies such as destroyers of Rhizosphere and the food products to face the harsh justice of Nature.  (Modern environmental science confirms that by damaging the Rhizosphere micro flora man is turning fertile lands in to barren life less food less deserts. This is result of Nature’s relentless justice.)

  1.  येऽस्यां स्थोदीच्यां दिशि प्रविध्यन्तो नाम देवास्तेषां वो वात इषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.4

 polar area

    Aurora borealis उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टिगोचर प्रचण्ड प्रकाश

 

यह जो उत्तर दिशा में हमारे बाएं ओर  वेगवान वायु द्वारा (पृथ्वी को) बींधने वाले  प्रक्षेपित बाण हैं ( जिन के कारण यह प्रचंड प्रकाश  दृष्टिगोचर होता है)  वे हमे आनंद प्रदान करें . जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.

(इस वेद मंत्र में ऋषियों ने पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टिगोचर प्रचण्ड प्रकाश को देख कर चिंतन के आधार पर अंतरिक्ष में अपार विद्युत के स्रोत की कल्पना की थी.  उसी भविष्यवाणी को आज का वैज्ञानिक यथार्थ में देखने का प्रयास करता दीखता है . आधुनिक विज्ञान के अनुसार आकाश में सूर्य  द्वारा प्रक्षेपित अत्यंत वेग प्रचंड प्रकाश  और गति से सूर्य की वायु समान उल्काएं   Solar winds आती  हैं . पृथ्वी के 100 किलोमीटर ऊपर उन के विस्फोट के  परिणाम स्वरूप एक ध्रुवीय ज्योति का प्रकाश पुंज दिखाइ  देता है . इस   उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टीगोचर आकाश में दिखाइ देने वाले प्रकाश को ओरोरा बोरिआलिस-Aurora Borealis उत्तरीय ध्रुव प्रकाश  नाम से जाना जाता है.  यह ज्योति पुंज पृथ्वी और सूर्य में निरन्तर एक विद्युत प्रवाह द्वारा क्रियामान  होता है.  इस विद्युत प्रवाह का वेग 50,000 वोल्ट की 20,000,000 एम्पीअर करेन्ट तक माना जाता है.  विख्यात वैज्ञानिक विद्युत के महान आविष्कारक निकोला टेस्ला  ने लगभग 100 वर्ष पूर्व अपने अनुसंधान पर आधारित आकाश में  इस अपरिमित विद्युत के भन्डार से पृथ्वी पर मानव की समस्त विद्युत की आवश्यकताओं को प्राप्त करने  की भविष्य वाणि की थी.

विद्युत को मोटर आदि चला कर प्रयोग में लाने के लिए वैज्ञानिक  Fleming’s Left Hand Rule फ्लेमिन्ग के बाएं  हाथ का नियम बताते  हैं . यह विद्युत क्रिया प्रकृति का सहज नियम है. )

(The aurora borealis (the Northern Lights) have always fascinated mankind. The solar wind and explosive events like coronal mass ejections (CMEs) carry solar plasma (primarily energetic protons) out in to the Earth’s orbit. Often, they interact with the geomagnetic field and spiral down toward the poles (where the magnetic field is directed). On interacting with the atmosphere, light is generated, producing the aurora.

Thus auroras, the north magnetic pole (aurora borealis) occur when highly charged electrons from the solar wind interact with elements in the earth’s atmosphere. Solar winds stream away from the sun at speeds of about 1 million miles per hour. When they reach the earth, some 40 hours after leaving the sun, they follow the lines of magnetic force generated by the earth’s core and flow through the magnetosphere, a teardrop-shaped area of highly charged electrical and magnetic fields. This phenomenon is said to take place above 100 Km of earth’s surface. All of the magnetic and electrical forces react with one another in constantly shifting combinations. These shifts and flows can be seen as the auroras lights “dance,” moving along with the atmospheric currents that can reach 20,000,000 amperes at 50,000 volts. (In contrast, the circuit breakers in your home will disengage when current flow exceeds 5-30 amperes at 220 volts.)Tesla the famous inventor of AC electricity and induction motor had a favourite research topic bordering on science fiction. It was visualized that it should be possible to tap in to the inexhaustible electrical energy in the auroras for our electricity needs by every individual to have a proper antenna in his home and draw all his electricity needs, without the present systems of electricity generation and transmission).The NASA Time History of Events and Macro scale Interactions during Sub storms (THEMIS) mission The “ropes” are a 650,000 Amp electric current flowing between the Earth and the sun.In utilization of electric power in applications involving motion activity

4.उदीची दिक्सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरिषवः।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.4

ये बांए  दिशा मे शरीर में स्थापित  मानव हृदय जो हमारी मानसिकता  में उत्पन्न मानव जीवन मूल्यों का भाव प्रधान है, जिस का सोम अधिपति है, उस के लिए प्रणाम |  मानव हृदय  स्वचालित  विद्युत नियन्त्रक नियम  से  सहज कार्य करता रहता है. यह  नियम संसार में  हमारे जीवन के सुखों का आधार बनता है. प्रकृति के इस दान के लिए हम अत्यन्त  आभारी हैं .  और इस दिशा में जो बाधा पहुंचाने वाले तत्व हैं उन्हें हम न्यायोचित परिणाम के लिए प्रकृति को ही समर्पित करते हैं .

(आधुनिक शारीरिक विज्ञान के अनुसार मानव हृदय जो निरंतर एक निश्चित गति से रक्त को  स्वच्छ कर के सारे शरीर में  शुद्ध  रक्त का संचार और दूषित पदार्थों का निकास कर  रहा है,  वह मानव शरीर मे प्रकृति द्वारा स्वत: उत्पन्न विद्युत प्रणाली के कारण से ही  है. ( यही  ऋषि  चिंतन में स्वजोरक्षिताशनि:इषव: का विज्ञान है )

इस अद्भुत विद्युत प्रणाली के लिए हम नमन करते हैं , इस व्यवस्था  के द्वारा हमारे शरीर की रक्षा  के लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे हृदय के सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय व्यवस्था पर  छोड़ते   है.

On our left side is situated the ruler of all our motivations and emotions (our HEART).Its proper working operates and protects our physical body to ensures orderly life and human existence. For this blessing of Nature we are ever grateful.

{It was in deep meditation on the left side of human body that the Rishi could perceive the working of the human heart that operates continuously because it generates its own electrical  signal (also called an electrical impulse.

(Fleming’s Left Hand Rule on relations between electrical forces is very famous.  This motive action of heart electricity comes as a natural, property of electrical phenomenon. )

Modern medical science is able to record this electrical impulse  by placing electrodes on the chest. This is called an electrocardiogram (ECG, or EKG).The cardiac electrical signal controls the heartbeat in two ways. First, since each impulse leads to one heartbeat, the number of electrical impulses determines the heart rate. And second, as the electrical signal “spreads” across the heart, it triggers the heart muscle to contract in the correct sequence, thus coordinating each heartbeat and assuring that the heart works as efficiently as possible.

The heart’s electrical signal is produced by a tiny structure known as the sinus node, which is located in the upper portion of the right atrium. (You can learn about the heart’s chambers and valves here.) From the sinus node, the electrical signal spreads across the right atrium and the left atrium, causing both atria to contract, and to push their load of blood into the right and left ventricles. The electrical signal then passes through the AV node to the ventricles, where it causes the ventricles to contract in turn.

 

This left hand motor action natural property of electricity (Fleming’s Rule) provides us with great comforts in our life. For this act of kindness we are ever grateful to Nature and present the impediments in our path for Nature itself to resolve.

There is another more direct way to perceive a very close connection of self generated electricity with human body that could not escape a Rishi’s perception in meditation.  Human heart located on our left side of the body is self regulated by electronic oscillator at 60 to 70 beats per minute to make us live. Modern scientific explanation of the phenomenon is being furnished below.

heart

The rhythmic contractions of the heart which pump the life-giving blood occur in response to periodic electrical control pulse sequences. The natural pacemaker is a specialized bundle of nerve fibers called the sinoatrial node (SA node). Nerve cells are capable of producing electrical impulses called action potentials. The bundle of active cells in the SA node trigger a sequence of electrical events in the heart which controls the orderly pattern of muscle contractions that pumps the blood out of the heart.

The electrical potentials (voltages) that are generated in the body have their origin in membrane potentials where differences in the concentrations of positive and negative ions give a localized separation of charges. This charge separation is called polarization. Changes in voltage occur when some event triggers a depolarization of a membrane, and also upon the re-polarization of the membrane. The depolarization and re-polarization of the SA node and the other elements of the heart’s electrical system produce a strong pattern of voltage change which can be measured with electrodes on the skin. Voltage measurements on the skin of the chest are called an electrocardiogram or ECG.

 

heart pumping function

  1.  येऽस्यां स्थ ध्रुवायां दिशि निलिम्पा नाम देवास्तेषां व ओषधीरिषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.5

वे जन जो भूमि पर आमोद प्रमोद के जीवन में स्थिर रहते हैं. उन्हें स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए शिक्षा और ओषधियों की आवश्यकता पड़ती है. वे  ओषधियां हमारे सुख का साधन है  के आभारी हैं, उन के बारे में विद्वत्जन हमें उपदेश करें  और हम अग्निहोत्र के द्वारा उन की उप्लधि से लाभान्वित  हों .

Those persons who stick to worldly routines and make merry are in need of directions by being spoken to for use of proper health care medicines. We are grateful for these remedies and perform Agnihotras dedicatedly.

5.ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.5

ध्रुवा पृथ्वी पर हमारे भौतिक जीवन के विकास का आधार विष्णु है जिस की रक्षा नाना प्रकार की वनस्पति लताओं का उदाहरण है जिन का विकास और उन्नति  पृथ्वी के स्वाभाविक गुरुत्वाकर्षण  के विरुद्ध दिशा में कार्य करने से होती है. इसी प्रकार समस्त विकास और उन्नति आराम आलस्य जैसी स्वभाविक वृत्तियों के विरुद्ध कर्मठता द्वारा ही होता है. इस व्यवस्था  के द्वारा हमारे विकास और उन्नति की व्यवस्था के  लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे अध्यवसयी कर्मठ आचरण के हमारा चित्त विचलित कर के  सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्ररीय न्याय व्यवस्था पर  छोड़ते है.

( सृष्टि  के नियमानुसार हर मरणधर्मा जब तक प्रकृति के क्षय नियम के विरुद्ध सहज स्वभाव और सद्प्रेरणा से निज प्रयत्न द्वारा जन्मोपरांत वृद्धि और शारीरिक उन्नति द्वारा यौवन बल और उन्नति को प्राप्त करता है, वही काल के नियमानुसार भौतिक जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंच कर भौतिकक्षय को जरावस्था से होते हुए मृत्यु को पाता है. परंतु अपने प्रयत्न द्वारा ‘मृत्युर्मामृतं गमय’  के लक्ष को प्राप्त करनेमें सदैव लगा रहता है ) .

On the physical plain according to laws of nature Entropy tends to infinity. Progress and growth are products of negative Entropy. We are grateful for our growth and progress for being provided with the wisdom to operate by negative Entropy. We want to protect ourselves by distractions that form obstacles by diverting us from the path of living a life of hard work to make progress by negative Entropy, and leave the superior forces of Nature and society to deal with these distractions.

( All things born grow and make progress till they progress proceeds as programmed  to peak out by negative entropy on physical plane. Inevitable march of time takes its toll by natural law of entropy tending to infinity and leads to result in extinction of the life born.)

  1.  येऽस्यां स्थोर्ध्वायां दिश्यवस्वन्तो नाम देवास्तेषां वो बृहस्पतिरिषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.6

पृथ्वी पर उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए सब दिशाओं की परिस्थितियों से सचेत रह कर ज्ञान और उत्तम वाणी के द्वारा बृहस्पति जीवन में उन्नति का साधन होता है.  बृहस्पति हमारे सुख और आनंद की रक्षा करता है. उस के लिए हम बृहस्पति को नमन करते हैं. विद्वत्जन हमरे सुख और हर्ष केलिए सदैव ज्ञान का उपदेश करें और हम सदैव अग्निहोत्र द्वारा प्रगति करें .यहां पर अग्निहोत्र का प्रसिद्ध मंत्र:-

यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा || भी इसी उपलक्ष से देखा जाता है.

The strategies that provide for our rising high in life are keen awareness about what is happening about us in all the directions. For this Brihaspati बृहस्पति knowledge and appropriate articulation are the enablers.  Brihaspati provides for our comforts and happiness. We should always get wise education and counsel to this effect. We express our obeisance for this and dedicate Agnihotras for this. Here to the same effect reference can seen in very important Agnihotra mantra: – यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ||

6.ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षं इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.6

भौतिक उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए बृहस्पति का आश्रय मिलता है ,जो निष्कपट निश्छल उत्तन ज्ञान और  वाणी द्वारा  इसी प्रकार आवश्यक है जैसे मेघ से वर्षा के  बाण पर्यावरण को शुद्ध  और निर्मल बना कर हमारी रक्षा करते हैं.

हम इस व्यवस्था के प्रति नमस्कार करते हैं, इस प्रकसर हमें सुर्क्षा प्रदान करने के लिए नमस्कार करते हैं  और जो ममारे इस मार्ग में शत्र्य रूपी बाधाएं होती हं उन्हें हम समाजिक ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं .

To attain great heights of success and progress we have dedicate ourselves to selfless wisdom and good articulate communication. Brihaspati  is the lord of these faculties. Our conduct should be as free of dirt and pollutants as the environment made clean by good rains from the clouds. We are grateful to Nature for this order of things and dedicate our efforts to Him and leave the impediments in our path to be dealt with higher wisdom and justice of Nature and society.

Long Life in Vedas

veda and yog

Long Life in Vedas

RV10.59

Integrating Ashtang Yog in life.

अष्टांग योग द्वारा दीर्घायु

ऋषि: –  बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना:;  बन्धु ‘बध्नातिइति बंधु:’ जो बांधता है वह बंधु है . जिस को बांधना सब से कठिन है उस को जो बांधताहै वह सच में बंधु है. किस का बांधना सब से कठिन है ? मन का. जो मन को  बांधता है, इधर उधर नहीं भटकने नहीं देता वह ‘बंधु’ है . श्रुतबंधु वह बंधु जिस ने श्रुतियों- वेदों  वेदों के  ज्ञान से  विप्र बन्धु अपने को विद्वान बंधु बनाया.गोप कहते हैं इंद्रियों को ,इंद्रियों का पालन करनेवाला गोपायन कहलाया. इस प्रकार मन को बांध लेने से इंद्रियों के व्यर्थ इधर उधर भटकने से

रोकने वाला –  बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना: ऋषि कहलाया. । आधुनिक भाषा में ‘पातञ्जलअष्टांग योग’  का उपदेश करने वाला ही हमारा सब से प्रिय बंधु के रूप में इस ऋग्वेदीय सूक्त का ऋषि है.

Rishi= Seer  of this Sookt is

bandhuh shrut bandhuviprabandhugopaayanah ,bandhu is one who ties up in love and affection- Mind is the most difficult to tie up or control,Thus one who helps in tying up mind and prevents it from straying from its chosen straight path is Bandhu. This Bandhu is also Shrut bandhuvipraBandhu  – has made himself learned by imbibing guided by Vedicwisdom, He is also Gopayanah; Gopas are physical senses, by tying up and controlling the mind by the genius of  Vedic wisdom physical sensuality is brought under control.  To sum up This Seer propounds the wisdom of what is named as Patanjali’s Ashtang Yog for welfare of humanity.

देवता: -1-3 निर्ऋति:, 4 निर्ऋति:सोमश्च, 5-6 असुनीति:, 7 पृथिवी-द्वयन्तरिक्ष-सोम-

पूष-पथ्या-स्वस्तय:, द्यावापृथिवी, 10 (पूर्वार्धस्य) इन्द्र द्यावापृथिव्य:, ।

छंद: -त्रिष्टुप्, 8 पंक्ति, 9 महापंक्ति, 10 पंक्त्युत्तरा ।

प्रथम  4 मंत्रों की ध्रुव पंक्ति है ‘परातरं  सु निर्ऋति र्जिहाताम्‌’- दुर्गति हम से दूर हो जाए,पूर्णतया चली जाए.

First 4 mantras have a refrain line ‘परातरं  सु  निर्ऋति र्जिहाताम्‌निर्ऋति  is described as lady of misfortune that entices people to lives devoted to sensual pleasures and forget about higher ideals in life. ‘May this lady of misfortune go away far from us’

1.प्र तार्यायु: प्रतरं नवीय: स्थातारेव क्रतुमता रथस्य ।

अध च्यवान उत्तवीत्यर्थं परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV 10.59.1

जैसे एक कुशल सारथी  के रथ का यात्री सुदूर प्रदेश की लम्बी यात्रा कर के नए नए स्थानों का आनंद लेना चाहता है उसी तरह  सद्बुद्धि से दीर्घायु प्राप्त करके नित्य ज्ञान वर्द्धन की साधना करें (धियो यो न: प्रचोदयात्‌) जिस से दुर्गति दूर चली जाए

Life of a devotee is to be blessed with enhanced life span for manifestationand realization of newer powers and wisdom, just like the passenger of car being driven by a skilful driver, wants to prolong his ride to visit and see newer places. Thus a person may desire to live longer as he has more powers and wisdom to acquire, that drives all the miseries and misfortunes far away.

2.सामन्नु राये निधिमन्न्वन्नं करामहे सु पुरुष श्रवांसि ।

ता नो विश्वानि जरिता ममत्तु परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV 10.59.2

श्रद्धा से सामगायन, मंत्रोच्चार द्वारा यज्ञादि में हवि दे कर, उत्तम ज्ञान को श्रद्धा से धारण कर के अन्नादि समृद्धि के साधनों को प्राप्त कर के विश्व को आनन्दित करो जिस से दुर्गति दूर चली जाए

With great devotion Yajnas are performed by reciting mantras and singing hymn of Sam Ved. Great attention with faith is paid to wise counsel. Hard work is put in to obtain the material bounties and food. Thus life is sweetened and such a life drives away all the miseries and misfortunes

3.अभी ष्वर्य: पौंस्यैर्भवेम द्यौर्न भूमिं गिरयो नाज्रान् ।

ता नो विश्वानि जरिता चिकेत परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV10.59.3

By our learning to live according to laws of the nature, just as Solar radiations enrich the entire earth, rains from clouds enrich the entire earth, by living a natural life style , all the opposing elements are overpowered by the blessings of the Almighty, and that drives all the miseries and misfortunes far away.

4.मो षु णोसोम मृत्यवे परा दा: पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम् ।

द्युभिर्हितो जरिमा सू नो अस्तु परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम् ।।RV 10.59.4

We pray for the wisdom to follow a life style that ensures for us to  behold the rising sun to bless us with long  life by providing good health ( Vitamin D) . With every passing day, our physical body may be aging but we continue to grow in strength of our wisdom that drives all the miseries and misfortunes far away.

Yoga in life योग साधना

5.असुनीते मनो अस्मासु धारय जीवातवे सु प्र तिरा न आयु: ।

रारन्धि नो सूर्यस्य संदृशि घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व ।।RV 10.59.5

By wisdom of Dhyaan control the mind concentrate on desired goals in life. Make best utilisation of visible bounties of sun. Make best judicious use of fats to enhance your physical health.

{ On the subject of making judicious use of dietary fats following two Rig Ved directives provide health guidance that completely endorsed by  modern science.;

  1. 1.  तयोरिद्‌ घृतवत्‌ पयो विप्रा रिहन्ति धीतिभि:” RV 1.22.14a

Wise people consume fat bearing milk products cautiously.

  1. 2.   a.एता अर्षन्ति हृद्यात्‌ समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे।घृतस्या धारा अभिचाकशीमि हिरण्ययोवेतसो मध्य आसाम्‌ ||  RV 4.58.5

From (human) heart emanates the ocean of  thousands of  warm streams (of blood) which carry in them golden colored particles  shaped like bamboo plants (cholesterols), to fight the forces of diseases and self-degeneration   in  the  human body.

(Cholesterol as seen under laboratory microscope are said to look like golden colored small elongated particles)

 cholestrol

 

    2.b .सम्यक स्रवन्ति सरितो न धेना अन्तहृदा पूयमानाः।

           एते अर्षन्त्पूर्मयो घृतस्य मृगाइव क्षिपणोरीष माणाः॥6|| RV 4.58.6

 

Flowing Streams (of blood) in the (human) heart system uniformly in natural manner  are like streams of light fluid, not thick-viscous and heavy, but like water, having the agility of a deer, which with its agile active operation  provides  for  cleansing and purifying action in human body for its physical & mental well being of humanity.

 

 artery

   2c. सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।

          घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठी भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः॥7|| R.V. 4.58.7

 

There are components of lipids which in red blood stream perform scavenging speedy action on the edges of their paths (the linings)  of blood arteries to speed up the flow and  maintain the blood pressure measure to desirable levels.

 (This is a very clear reference to HDL-High Density Lipids, which

keeps the arteries clean and unclogged)

 

 atery 1

 

       2d. अभिप्रवन्तु समनेव योषाः कल्याण्यः स्मयमानासो अग्रिम्‌।

          घृतस्य धाराः समिधो न सन्तु ता जुषाणो हर्यति जातवेदाः॥ RV4.58.8

 

These lipid particles act like fuel in the physical activities which bring forth healthy cheerful states of temperament. Intelligent persons live life of good physical activity – exercise that burns this fat as fuel to provide total mental & Physical fitness.

 

     2e. कन्याइव वहतुमेतवा उ अङ्‌ज्यङ्‌जाना अभिचाकशीमि।

       यत्रा सोमः सूयते यत्रा यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत्पवन्ते॥ RV 4.58.9

 

These lipids in conjunction with suitable foods with proper intellectual life styles of people engaged in their daily householder duties of performing various Yagnas. That leads to provide praiseworthy results, like maidens decorating to maintain their good looks thus engaging themselves in actions for achieving good   lives in desirable households.

 

  2f.अभ्यर्षत सुष्टुति गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविजानि धत्त।

    इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते॥ RV. 4.58.10

 

These lipids obtained from blessings of cows provide all the riches, bounties of health & wealth to wise people.}

6.असुनीते पुनरस्मासु चक्षु: पुन: प्राणमिह नो धेहि भोगम्।

ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृळया न: स्वस्ति।।RV 10.59.6

By wisdom of Yoga strengthen your physical faculties such as eyes etc, and develop energy to enjoy life. By achieving long life gain the blessings to see many sun rises and achieve sustainable prosperity by affirmative positive actions.

चक्षु: पुन: प्राणं इह नो धेहि भोगम्।

ज्योक् पश्येम सूर्यं उच्चरन्तं अनुमते मृळया न: स्वस्ति।।RV 10.59.6

With wisdom of Yoga strengthen your Pran प्राण   to enjoy long physical health of eyes and body. By achieving long life gain the blessing to see many sun rises and achieve sustainable prosperity by affirmative positive actions

Organic Food. जैविक अन्न

7. पुनर्नो असुं पृथिवी ददातु पुनद्र्यौदेवी पुनरन्तरिक्षम् ।

पुनर्न: सोमस्तन्वं ददातु पुन:  पूषा पथ्यां3 या स्वस्ति ।।RV 10.59.7

पृथ्वी,सूर्य, अंतरिक्ष पुन: पुन: स्वादिष्ट रस से युक्त अन्नादि हमारे पोषण दीर्घायु और कल्याण के लिए सदैव प्रदान करें.

The soil, the solar bounties, the atmospheric bounties nature’s elements may bless us every day, with life enhancing food for our welfare and prosperity.

8. शं रोदसी सुबन्धवे यह्वी ऋतस्य मातरा ।

भरतामप यद्रपो द्यौ: पृथिवी क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत् ।।RV10.59.8

By following the directives Ashtang yog the twin Bounties of nature  indeed establish the true wisdom in us.  By exercising control on our sense organs an individual attains the wisdom of life style that prevents any harm to come to him physically or mentally.

महान द्युलोक और पृथ्वी लोक की अनुकूलता से उत्तम धातुओं का निर्माण होता है, शरीर और मन स्वस्थ रहता है. मन  पर उत्तम नियंत्रण द्वारा वीर्य की सुरक्षा से मस्तिष्क दीप्त बनता है.यही ऋत का निर्माण करते हैं.  बाह्यलोकों और और आध्यात्मलोकों के  अनुकूल आचरण  से  कोइ भी दोष हमारे शरीर, हृदय, और मन को क्षति नहीं पहुंचा सकता है.

9. अयं द्वके अव त्रिका दिवश्चरन्ति भेषजा ।

क्षमा चरिष्ण्वेककं भरतामप यद्रपो

द्यौ: पृथिवी क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत् ।।RV 10.59.9

For leading a life pure in body and mind, three medicinal roles of Earth and Sun duo are important.

Sun through its photobiology  produces Vitamin D in living beings , Carotenoids and other body building life supporting elements in plant kingdom, and by its rain making clouds provides water that is a great medicine.

Earth by its microphages acts as ultimate sterilizer, and producer of all plant as nutritional and medicinal products.

An individual by wisdom of life style thus prevents any harm to come to him physically or mentally.

पृथ्वी और अंतरिक्ष में सूर्य यह दोनो जीवन में  तीन प्रकार की ओषधियां प्रदान करते हैं.

पृथ्वी सब प्रदूषण को स्वच्छ करने की  क्षमता द्वारा,जिसे आधुनिक विज्ञान मे माइक्रोफाजिज़ का नाम दिया जाता है. जिस का उदाहरण मट्टी से हाथ साफ करने, झूठे बर्तन इत्यादि साफ करने कि प्रथा में देखा जाता था, प्राकृतिक चिकित्सा में पेट पर मट्टी के लेप में देखा जाता है, जैविक वनस्पति द्वारा अन्न और ओषधियों के पृथ्वी मे उत्पादन में पाया जाता है.

इसी प्रकार सूर्य के प्रभाव से मेघों द्वारा वर्षा का ओषधि तुल्य जल, उदय होते समय के सूर्य द्वारा विटामिन डी तत्व और दिन में सूर्य के प्रकाश द्वारा वनस्पतियों में पौष्टिक ओषधि तत्व का निर्माण , इस प्रकार से तीन तीन प्रकार के ओषधि तत्व का प्रकृति मे पृथ्वी और अंतरिक्ष में सूर्य उपहार प्रदान करते  है. इस प्रकार  बाह्यलोकों और आध्यात्मलोकों के  अनुकूल आचरण  से  कोइ भी दोष हमारे शरीर, हृदय, और मन को क्षति नहीं पहुंचा सकता है.

{ Sun’s importance in health by photobiology forms a part of Vedic wisdom quoted below; Cardiac Health Photobiology in Veda

Photobiology Cardiac HEALTH in Vedas
RV 1-125-1, RV1.50, RV1.43, AV1.22
प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते ।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः ।। ऋ 1-125-1
प्रातःकाल का सूर्य उदय हो कर बहुमूल्य रत्न प्रदान करता है। बुद्धिमान उन रत्नों के महत्व को जान कर उन्हें अपने में धारण करते हैं।
तब उस से मनुष्यों की आयु और संतान वृद्धि के साथ सम्पन्नता और पौरुष बढ़ता है।
(
वैज्ञानिकों के अनुसार केवल UVB किरणें , जो तिरछी पृथ्वी पर पड़ती हैं
(
संधि वेला प्रातः सायं की सूर्य की किरणें ही विटामि¬न डी उत्पन्न करती हैं।)

RV1-50-11
RV 1-50-1
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव:  दृषे विश्वाय सूर्यम् | || RV1/50/1
उदय होते सूर्य की किरणें जातवेदसंबुद्धिमान के लिए  ईश्वर की कृपा से उत्पन्न कल्याणकारी पदार्थों के वाहक के रूप मे प्राप्त होती हैं, जब कि सामान्य विश्व के लिए सूर्य दृष्टीगोचर होता है.

उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम् ।
हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय ।। ऋ 1-50-11
दिवस के उदय को प्राप्त होते हुए, मित्रों में महासत्कार के योग्य उदय होते हुए सूर्य और प्रकाश संश्लेषण से उत्पन्न हरियाली (greenery by photosynthesis) से हमारे हृदय और दूसरे हरणशील (पीलिया) आदि रोगों का ¬नाश होता है ।
(
नवजात शिशु सामान्य रूप से आज कल पीलिया jaundice रोग से ग्रसित होते हैं। आधुनिक अस्पतालों में बच्चों की नर्सरी में जन्मोपरान्त पीलिया –Jaundice- से पीड़ित बच्चों के उपचार के लिए कृत्रिम सूर्य के प्रकाश का प्रबंध होता है । कोई कोई चिकित्सक नवजात बच्चे को सूर्यस्नान कराते हैं  .

शुकेषु मे हरिमाणं रोपणाकासु दध्मसि ।
अथो हारिद्रवेषु मे हरिमाणं निदध्मसि ॥ ऋ 1-50-12 , अथर्व 1-22-4

रोपित हरे वनस्पतियों कुशा घास हरे चारे इत्यादि पर पोषित दुग्ध में रोग हरण क्षमता है। इस लिए ऐसे हरे चारे पर पोषित गौओं के दुग्ध का सेवन करो।

आज विश्व के विज्ञान शास्त्र के अनुसार केवल मात्र हरे चारे पर पोषित गौ के दुग्ध में ही CLA (Conjugated Linoleic Acid) और Omega 3 वांछित मात्रा मे आवश्यक वसा तत्व मिलते हैं। केवल यही दुग्ध मा¬नव शरीर के सब स्वज¬न्य रोग निरोधक और औषधीय गुण रखता है। इस स्थान पर वेदों में एक और आधुनिक वैज्ञानिक विषय photosynthesis प्रकाश संश्लेषण का उपदेश भी प्राप्त होता है। सब व¬नस्पति के बीजों में जो तैलीय तत्व होता है उसे वैज्ञानिक ओमेगा6, Omega 6 नाम देते हैं। आज कल के सब प्रचलित रिफाइन्ड खाद्य तेलों में मुख्यत: केवल ओमेगा6, Omegta 6 ही होता है। विज्ञान बताता है की अंकुरित होने पर सूर्य के प्रभाव से photosynthesis प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया से ओमेगा 6 हरे रंग को धारण करता है जिसे आहार में ग्रहण कर¬ने पर ओमेगा 3 पोषक तत्व उपलब्ध होता है । यही गौ के पोषण मे हरे चारे का महत्व है।
(Omega 3 is found to be anti obesity, anti cancer, anti artheschelorosis – heart and brain strokes due to clogging of arteries and High blood pressure, anti Diabetes in short preventive as well as a medicine against all Self degenerating Human diseases)
उदगादयमादित्यो विश्वे¬न सहसा सह।
द्विषतम्मह्यं रधयमो अहं द्विषते रधम्‌ ॥ ऋ 1-50-13
उदय होते सूर्य के द्वारा विश्व को साहस सामर्थ्य प्रदान कर के , धर्माचरण पर न चलने वालों के शत्रु रूपी रोगों को नष्ट करके,आनन्द के साधन प्राप्त होते हैं ।
इसी विषय पर अथर्व वेद में निम्न मन्त्र मिलते हैं।
अनु सूर्यमुदयतां हृदद्योतो हरिमा च ते।
गो रोहितस्य वर्णेन तेन स्वा परि दध्मसि ॥ अ 1-22-1
हृदय में उत्पन्न हरणशील व्याधि का उदय होते सूर्य से तथा हिरण्य वर्ण ( Golden colored ) गौ दुग्ध के सेवन से उपचार करो।
गौएं दो प्रकार की मानी जाती हैं अधिक दूध देने वाली तथा दूध और खेती में दोनो मे उपयोगी पाइ जाने वाली.
( Milk breeds and Dual purpose breeds.)
सनहरे रंग की हिरण्य वर्णा गौ लाल सिंधी,साहीवाल, गीर इत्यादि अधिक दूध देनो वाली पाइ जाती हैं। इन्ही के दूध का हृदय रोग में महत्व बताया गया है ।

परि त्वा रोहितैर्वणै दीर्घायुत्वाय दध्मसि ।
यथाऽयरपा असदधो अहरितो भुवत्‌ ॥ अ 1-22-2

लाल रंग से तुझे दीर्घायु प्राप्त हो। जो रोगों के हरण से प्राप्त होती है॥

या रोहिणीदेवत्याय गावो या उत रोहिणीः।
रूपं रूपं वयोवयस्ताभिष्ट्‌वा परि दध्मसि॥ अ1-22-3

उदय होते हुए सूर्य और गौ की लालिमा रूप और आयु की वृद्धि के लिए देवता प्रदान करते हैं ।


हृदय स्वास्थ्य यज्ञ ऋग्विधान के अनुसार
ऋग्वेद सूक्त 1-43
ऋषि कण्वो घोरः, देवता रुद्र:   , मित्रावरुणौ, सोमः च
के 9 मन्त्रों सें
अपने स्वास्थ्य लाभ के हेतु आहार, व्यवहार, उपचार के साथ परमेश्वर स्तुति व्यक्तिगत ,सामाजिक मानसिकता और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए इस यज्ञ को भी सम्पन्न करना हित कर होगा।

(इस यज्ञ का विधान रोग निवृत्ति हेतु मनुष्यों, गौओं अश्वों इत्यादि के लिये किया जाता है। गोशाला में किये गए इस यज्ञ को शूलगवां यज्ञ कहते हैं)
कद रुद्गाय प्रचेतसे मीळ्हुष्टमाय तव्यसे ।
वोचेम शंतमं हृदे ॥ ऋ 1-43-1
विद्वान पुरुष कब महान रोग नाशक रुद्र की हृदय के लिए सुखदायी शांति की प्रशंसा के स्तोत्र सुनाएंगे ?

यथा नो अदितिः करत्‌ पश्वे नृभ्यो यथा गवे
यथा तोकाय रुद्गियम्‌ ॥ ऋ 1-43-2
(
अदिति से यहां तात्पर्य सन्धिवेला के आदित्य से है.) संधि वेला का सूर्य राजा, रंक, पशुओं ,गौवों सब के अपनी संतान की तरह रुद्र रूप से रोग हरता है.
यथा नो मित्रा वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति ।
यथा विश्वे सजोषसः ॥ ऋ 1-43-3
प्राण व उदान सूर्योदय के समय उसी प्रकार स्वास्थ्य प्रदान करते हैं जैसे विद्वान पुरुषों के उपदेश के अनुसार सूर्य की किरणों से उत्तम जल, प्रकाश संश्लेषण – Photosynthesis- औषधीय रस से हरी शाक इत्यादि.

गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्‌ ।
तच्छंयोः सुम्नीमहे ॥ ऋ 1-43-4
अनिष्ट को दूर करा के सुख शांति के लिए ,विद्वान लोग स्वास्थ और उत्तम जल के औषध तत्वों के ज्ञान का उपदेश करें.
यः शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते
श्रेष्ठो देवानां वसुः ॥ ऋ 1-43-5
जो सुवर्ण जैसा दीखता सूर्य है, वही देवताओं मे श्रेष्ठ और महान वीर्यादि तत्व प्रदान करता है.
शं नः करत्यर्वर्ते सुगं मेषाय मेष्ये ।
नृभ्यो नारिभ्यो गवे ॥ ऋ 1-43-6
वही हमारे समस्त पशु, पक्षियों, राजा, रंक, नारी, गौ सब का रोग नष्ट कर के स्वास्थ्य प्रदान करता है.
अस्मे सोम श्रिय मधि नि धेहि श्तस्य नृणाम्‌ ।
महि श्रवस्तुविनृम्णम्‌ ॥ 1 -43-7
हमें यह ज्ञान होना चाहिये हमारी सेंकडों की संख्या के लिए वह एक अकेला तेजस्वी अन्न, औषधी, बल प्रदान करने में समर्थ है.
मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।
आ न इन्दोवाजे भज ॥ ऋ 1-43-8
हमारे ज्ञान मे विघ्न डालने वाले, और धन के लोभी हमें न सतावें.
हमारा ज्ञान हमारा बल बढावे.

यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन्‌ धामन्नृतस्य ।
मूर्धा नाभा सोम वेन आभूपन्तीः सोम वेदः ॥ ऋ 1-43-9
अमृत और सत्य श्रेष्ठ ज्ञान सदैव हमारा मार्ग दर्शन कर के हमें उत्तम स्थान पर प्रतिष्ठित करें

अथर्व वेद 1/12 देवता यक्ष्मानाशन्‌
जरायज: प्रथम उस्रिया वृषा वात्व्रजा स्तनयन्नेति वृष्टया !
स नो मृडाति तनव ऋजगो रुजन् य एकमोजस्त्रेधा विचक्रमे !! अथर्व 1/12/1
This Ved Mantra is very interestingly describing a very modern topic regarding the medicinal efficacy of colostrums of a new born cow. It is equally applicable as directive in Vedas about importance of breast feeding.
Colostrums is the pre-milk fluid produced from the mother’s mammary glands during the first 72 hours after birth. It provides life-supporting immune and growth factors that insure the health and vitality of the newborn.
Commercial Exploitation of Colostrums of Cows for Human beings is a big modern pharmaceutical industry.
Breastfeeding in humans as also for new born calves provides natural “seeding” — the initial boost to immune and digestive systems –.
Loss of youth & Vigor
In western medicine which gives no importance to
ब्रह्मचर्य ,it is observed that after puberty, the amount of immune and growth factors present in human bodies begin to decline. Human body become more vulnerable to disease, its energy level and enthusiasm lessens, skin loses its elasticity, and there is gain of unwanted weight and body looses muscle tone. The modern humans also live in a toxic environment, with pollutants and allergens all around us.
Research has shown that Colostrums have powerful natural immune and growth factors that bring the body to a state of homeostasis — its powerful, vital natural state of health and well being. Colostrums help support healthy immune function; & also enable us to resist the harmful effects of pollutants, contaminants and allergens where they attack us.
Plus, the growth factors in Colostrums create many of the positive “side-effects” of a healthy organism — an enhanced ability to metabolize or “burn” fat, greater ease in building lean muscle mass, and enhanced rejuvenation of skin and muscle.
It is a very common modern medicine practice to collect colostrums from freshly calved cows to produce medicinal products for boosting disease resistance, and health promotion tonics for sick and elderly humans, specifically in debilitating diseases such as tuberculosis. New born calves particularly males are immediately taken away for slaughter. Cow’s Colostrums are collected for making medicines for the Pharma industries. Calves in general are fed on an artificial feed called Milk Replacer.
References to in the above ved mantra Atharv 1.12.1-
जरायुजः, उस्रिया, वृषा, स्तन्यन्नेति, वृष्टया, त्रेधा, are clear references to Colostrums – first few days milk of a cow just after calving. Literal meaning of these vedic words are – produce of a just calved cow which is in the process of releasing the placenta, milk giving cow, shower of milk from the udder and three rumens of a cow having played the important role in giving rise to the extraordinary medicinal value of this early milk of a cow. In this Sookt this is being promoted for curing Tuberculosis, as
the very Dewata of this sookt-
यक्षमानाशन्‌
suggests.-

अङ्गे अङ्गे शोचिषा शिश्रियाणं नमस्यन्तस्त्वा हविषा विधेम !
अङ्कान्त्समङ्कान् हविषा विधेम यो अग्रभीत् पर्वास्या ग्रभीता !! अथर्व 1/12/2
हे सूर्य आप की और समीपवर्ती देवताओं चंद्रमा, नक्षत्रादि तारादि की दीप्ति इस जगत और प्रत्येक प्राणी के अंग अंग में प्राण रूप से स्थित है. तुझ को नमस्कार करते हुवे हम हवि द्वारा तुम सब को परिचर्या द्वारा तृप्त करते हैं.

मुञ्च शीर्षक्त्या उत कास एनं परुष्परुराविवेशा यो अस्य !
यो अभ्रजा वातजा यश्च शुष्मो वनस्पतीन्त्सचतां पर्वतांश्च !! अथर्व 1/12/3
हे सूर्य इस पुरुष को शिरोवेदना से मुक्त करो.वह खांसी जो इस के अंग अंग ( संधिस्थलों) में घुस कर बैठा है, उस से भी मुक्त कर, जो शरीर को सुखा देने वाला पित्त विकार है उस से भी मुक्त कर, जो वर्षा काल मे श्लेष रोग वात विकार से होता है उस से भी मुक्त कर . सब त्रिविध रोगों की निवृत्ति के लिए वन वृक्षों, वनस्पतियों द्वारा यह सब रोग दूर हों.
शं मे परस्मै गत्राय शमस्त्ववराय मे!
शं मे चतुभ्यो अङ्गेभ्य: शमस्तु तन्वे3 मम !! अथर्व 1/12/4
मेरे ऊपर के शिरोभूत अङ्ग के लिए, मेरे नीचे के शरीर के लिए, मेरे हाथ पैर , तन सब अङ्गों के लिए सुख हो.}

10. समिन्द्रेरय गामनड्वाहं य आवहदुशीनराण्या अन:  ।

भरतामप यद्रपो द्यौ: पृथिवी क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत् ।।RV 10.59.10

इस प्रकार जोअपने शरीर को निर्दोष स्वस्थ बना कर, और इन्द्रियों का अधिष्ठाता बन कर  सम्यक बुद्धि से इस शरीर रूपि जीवन रथ को निर्बाध आगे ले चलता है, उस के  बाह्यलोकों और आध्यात्मलोकों के  अनुकूल आचरण  से  कोइ भी दोष शरीर, हृदय, और मन को क्षति नहीं पहुंचा सकते |

Thus those who live a life by making their physical body free from all ailments and keep all their sensual cravings under complete control by exercising Vedic wisdom, attain the life that suffers from  any harm to come to them physically or mentally

वेदों में सौर ऊर्जा विषय

solar energy

सौर ऊर्जा विषय

RV 5.48 Strategy for Progress in this world

1.कदु प्रियाय धाम्ने मनामहे स्वक्षत्राय स्वयशसे महे वयम्‌ | 
आमेन्यस्य रजसो यदभ्र आँ अपो वृणाना वितनोति मायिनी || ऋ5.48.1

किस प्रकार अपने राष्ट्र अपने जन्म स्थान – क्षेत्र के यश और प्रगति के लिए चारों ओर प्रकृति की मेघादि जलों की उदार वृत्तियों को स्वीकार करती हुयी अनुकूल बुद्धि ग्रहण करें ?

What are the strategies for adopting one’s place of birth, his life and nation to attain fame and prosperity by making use of nature’s benevolent bounties like rains and sun shine?  

 
2.ता अत्नत वयुनं वीरवक्षणं समान्या वृतया विश्वमा रजः | 
अपो अपाचीरपरा अपेजते प्र पूर्वाभिस्तिरते देवयुर्जनः || ऋ5.48.2

देवताओं की विद्वत्ता की कामना करते हुए साधारण जन और वीर जनों के कर्म और प्रज्ञान के आवरण को लोक लोकांतर में उसी प्रकार सब को नीचे की ओर बढ़ाते हैं , जिस प्रकार जल अपनी पूर्ववत्‌ वृत्ति से नीचे को बह कर निरन्तर उदाहरण प्रस्तुत करता है 

It is by intelligent use nature’s bounties to employ them in the form of negative entropy like working against water’s  tendency to flow from higher levels to lower levels that scientists devise means of progress by using negative entropy.
3.आ ग्रावभिरहन्येभिरक्तुभिर्वरिष्ठं वज्रमा जिघर्ति मायिनि | 
शतं वा यस्य प्रचरन्त्स्वे दमे संवर्त्तयन्तो वि च वर्त्तयन्नहा ||ऋ5.48.3

यद्यपि सूर्य की सैंकड़ो किरणें दिन रात के चक्र को चलाती हुइ पाषानों को वज्र के समाकरती और न विदीर्ण  मानव की आयु /जीवनको क्षीण करती लगती हैं. परंतु बुद्धिमत्ता से जीवन शैलि सूर्य के इस व्यवहार का उत्तम रूप देख पाती हैं. जैसा यजुर्वेद में विस्तार  से कहा है;

It appears that Solar energy that destroys rocks with strong force and works on aging of human body , but there is a hidden positive aspect to this. By intelligent life style the solar bounties are a boon.   “ अश्मन्नूर्जं पर्वते शिश्रियाणामद्भय ओषधीभ्यो वनस्पतिभ्यो अधि सम्भ्रतं पय: |

तां न इष्मूर्जं धत्त मरुत: संरराणा अश्मँस्तेक्षुनमयि त ऊर्ग्यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु || यजु 17.1”

यह सूर्य की किरणो  पर्वतों पर चट्टानों को विदीर्ण कर के उर्वरक भूमि और मेघों से जल की वृष्टि द्वारा अन्न और ओषधी के साधन उत्पन्न करके  कर मानव को जीवन को संरक्षण प्रदान करते हैं.

Solar heat in conjunction with microbes facilitates the disintegration of rocks in the mountains to create fertile virgin soil for excellent growth of pants and herbs.
4.तामस्य रीतिं परशोरिव प्रत्यनीकमख्यं भुजे अस्य वर्पसः | 
सचा यदि पितुमन्तमिव क्षयं रत्नं दधाति भरहूतये विशे ||ऋ5.48.4

1.       परशु के समान तीक्ष्ण चुभने वाली अग्नि के समान सूर्य के ताप का सुंदर रूप मानव को ऐश्वर्य पदान करने के लिए है. यदि उस सौर ऊर्जा का सद्प्रयोग किया जाए.

2.       The scorching heat of sun by its intelligent use is an excellent source to provide sustainable prosperity to human life style .

 
5.स जिह्वया चतुरनीक ऋञ्जते चारु वसानो वरुणो यतन्नरिम | 
न तस्य विद्म पुरुषत्वता वयं यतो भगः सविता दाति वार्यम ||ऋ5.48.5

3.       उत्तम जीवन व्यवस्थाके लिए सूर्य की ज्योति का उपयोग करने के चार प्रकार के साधनों पर अनुसंधान करके पुरुषार्थ से कार्यान्वित करना चाहिए. ( आधुनिक विज्ञान                प्रौद्योगिकी के अनुसार सौर ऊर्जा से इन चार प्रकारसे लाभ लेना चाहिए.

4.       1. गृह निर्माण पद्धति जिस से प्राकृतिक रूप से घर में रहने के तापमानको नियंत्रित किया जा सके.

5.       2. सौर ऊर्ज से ऊष्णता के साधन  जैसे पानी गरम करना,सौर ऊर्जा चालित चुल्हा, सुअर ऊर्जा से भिन्न भिन्न वस्तुओं का उपचार

6.       3. सौर ऊर्जा से विदुत उत्पादन

7.       4. सूर्य की ज्योति का कृषि उत्पादन में बुद्धिमत्ता से प्रयोग.   ,

For excellent (sustainable) living four strategies are talked about to make use of the solar bounties to pursue research, develop knowledge, make efforts and utilize them.

Modern technology mentions the following four strategies.

Four Methods of Solar energy utilization

1.Passive solar energy: This is the simplest and least expensive form of solar power. Unfortunately, it requires that your home be specifically designed to take advantage of solar heat, and situated on a lot to take maximum advantage of the sun’s rays. You can design passive solar capability into new construction, but this method is not applicable to existing homes.

2.Solar energy for heat: This is the oldest use of solar energy. Using relatively inexpensive flat plate collectors, heat from the sun’s rays is used to heat air, water, or other fluid that flows through coils in the panels. This heat can then be used to heat the water for your home or the home itself.

3.Solar energy for electricity: This method uses a photovoltaic (PV) solar power panel that converts sunlight into electricity. This power can be used to power your home’selectrical lighting and appliances. However, ancillary systems (storage batteries, inverters) are required to provide the right kind of electricity throughout the day and night. And it still takes a large surface area of PV cells to provide sufficient electrical power for the average home.

4. Inexpensive applications for solar energy in the yard or garden: You can use very inexpensive small photovoltaic panels to provide electrical power for yard lighting, solar pumps for water features, solar electric fencing, even a solar oven. These applications won’t save as much as powering your home with solar, but they also don’t cost much.

Advice to Teachers on education from Vedas

gurukul

RV 3 .12 Advice to Teachers on education

Devtaa: Indragni = Self motivated & Fired with invincible spirit to always successfully achieve his goal.

देवता:-इन्द्राग्नि: = उत्साह और ऊर्जा से  पूर्ण सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्ति

Create fire in their belly to be ultimate Doers.

ऋषि: गाथिनो विश्वामित्र:

प्रभु का गायन करने वाला सब  के साथ बन्धुत्व को अनुभव करता है और ‘ सखायस्त्वा वृणीमहे हम सब परस्पर सखा बन कर ही प्रभुका वरण कर सकते हैं यही भावना सभी से स्नेह करने वाला प्राणीमात्र का मित्र‘विश्वामित्र’ बना देती है.

शिक्षकों को उपदेश = विद्यार्थियों में (इन्द्राग्नि: ) उत्साह पूर्वक सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्तित्व बनाएं

1.इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम | 
अस्य पातं धियेषिता ||ऋ3.12.1

To successfully lead their life, instil among your wards the students the temperaments of Self motivation fired with invincible spirit to always successfully achieve their  goals, and develop   physical and mental strengths with excellence of speech, intelligence & competence.

अस्य सुतं- इन बच्चों की (जीवन में), पातं – रक्षाके लिए, इन्द्राग्नी – जीवन में उत्साह पूर्वक कर्मपरायणता जैसे इंद्र के गुण और शरीर में अपने खान पान जीवन शैली से  ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसी अग्नि की स्थापना करने के लिए , आ गतं- आ कर,गीर्भिर्नो – उत्तम वाणियों द्वारा, धियेषिता – उत्तम  बुद्धि के विकसित करें.

Social Community Responsibility 
2. इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः | 
अया पातमिमं सुतम ||ऋ3.12.2

Develop sense of responsibility & temperaments to evolve knowledge creation and execute projects for community welfare.

इन्द्राग्नी के प्रभाव से चेतना और बुद्धि के विकास से समस्त संसार के पालन का प्रबंध उपलब्ध करवाओ.

Seminars-Workshops
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे | 
ता सोमस्येह तृम्पताम || ऋ3.12.3

Hold seminars of experts to focus on current problems to arrive at consensus solutions and adopt them

कविच्छदा- विद्वानों के सत्संग से  , यज्ञस्य- धर्मसम्बंधी व्यवहार से , तृम्पताम- सब के सुख के लिए, इन्द्रमग्निं- समस्याओं को भस्म करने की योजना के  निर्णयों को, वृणे- स्वीकार करें.

Develop Problem Solving Talents

तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता | 

इन्द्राग्नी वाजसातमा ||ऋ3.12.4

Develop talents to develop fail safe solutions to problems, and ability to balance the allocation of resources for (R&D) knowledge development and execution of the projects.

वृत्र हणा- समस्याओं के दूर करने के लिए , तोशा – नाश कारक बाधाओं का , सजित्वानापराजिता –  विज्ञान शील पराजित न होने वाले प्रगति शील समाधानों द्वारा , वाजसातमा हुवे – समस्त ज्ञान विज्ञान के साधनों  और ऊर्जा की शक्तियों को प्राथमिकता के अनुसार महत्व दें.

Recognize the talented   
5.प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः | 
इन्द्राग्नी इष आ वृणे || ऋ3.12.5

Give recognition to research projects that propose strategies for growth and welfare of socity by participatory democratic processes.

वामर्चन्त्य – इन निर्णयों योजनाओं को कार्यान्वित करने वाले  दोनों -विद्वत्‌जन और प्रशासनीय कार्य कर्ता,  नीथाविदो- नम्रनिवेदन से , उक्थिनः उल्लेख के योग्य हैं.

Effectiveness of strategy  

6. इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम | 
साकमेकेन कर्मणा ||ऋ3.12.6

A single strategy implementation should be able to relegate the situations that bring harm to (90%) most of the community

एक ही सफल योजना के कार्यान्वित करने से अधिकांश (90%) समाज के कष्टों का निवारण सम्भव होता है.

Well conceived strategies 
7. इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः | 
ऋतस्य पथ्या अनु || ऋ3.12.7

To follow well meditated, fair and just strategies in all situations in short term and long term.

अपसस्पर्युप- कर्म मार्ग में सब ओर और समीप से, ‘ प्र यन्ति धीतय:’ बुद्धिमत्ता पूर्वक   ‘ऋतस्य पथ्या अनु’ सत्य मार्ग का अनुसरण करें

Staff & Line Function

8. इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च | 
युवोरप्तूर्य्यं हितम्‌ || ऋ3.12.8

To cultivate both the staff functions and line functions- the planners and executors should perform in tandem to implement all projects efficiently.

योजना आयोग और  कृयान्वन पक्ष  राजाऔर शासन  एक दूसरे के पूरक  बन के समस्त योजनाओं को शीघ्रता से सफल बनाते हैं .

Staff & Line Function

9.इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः | 
तद्वां चेति प्र वीर्य्यम्‌ ||ऋ3.12.9

राजा और शासन दोनों के पराक्रम और कर्मण्यता से सूर्य की ज्योति से प्रकाशित दिन के समान उज्वल समृद्ध समाज/राष्ट्र का निर्माण सम्भव है |

By the joint dedicated efforts of planning and executive immense welfare and prosperity of the community is possible.

Vedas on Nutrition Science

veda and nutrition

Vedas on Nutrition Science (part 1)

Rig Ved, 2-40 add RV1-187,RV5.48

AV 3.24, AV 2-26

अन्न विषयः RV1/187

भोजन से पूर्व प्रार्थना

अन्नपते अन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः ।

मम दातारं तारिषऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ।।

यजु 11-83

Oh  Mighty provider of our food- our Chef provide us with food that is free from any harmful organisms and that provides great strength.

Oh provider of food, I and my cattle both should be satiated with your food and good measure of energy.

   About FOOD

ऋषिः अगस्त्यो मैत्रावरुणि-।-देवता -अन्नम्

Annam RV Rig Veda Book 1 Hymn 187

पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम | 
यस्य त्रितो वयोजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत् ||ऋ1/187/1

(यस्य) जिस का(त्रित:) मन वचन कर्म से (वि,ओजसा)विविध प्रकार के पराक्रम तथा उपाय से (विपर्वम)अङ्ग उपाङ्गों से पूर्ण जैसे काट, छांट, बीन, छील, पीस कर(वृत्रम) स्वीकार करने योग्य धन, यहां पर धन से अन्न के सन्दर्भ मे तात्पर्य लें,खाने के योग्य (अर्दयत) प्राप्त करे, (नु) शीघ्र अन्न के संदर्भ मे ताज़ा,जैसे  दुग्ध के संदर्भ मे धारोष्ण बासी पुराना रखा हुवा नही     (पितुम) ओषधि रूप अन्न(मह:) बहुत (धर्माणम) गुणकारी स्वभाव वाले अन्न होते हैं  (तविषीम)  जिन के गुणों की  (स्तोषम) प्रशंसा करते हैं.( Freshly harvested- not artificially treated for extended shelf life)
स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वाववृमहे | 

अस्माकमविता भव || ऋ1/187/2

(स्वादो) स्वादु(पितो)पान करने योग्य जलादि पदार्थ (मधो) मधु के समान (High Brix number)( त्वा) ऐसे पेय पदार्थों को  (वयम) हम सब  (ववृमहे) ग्रहण करें(अस्माकम) इस अन्नपान के दान से (अविता) हमारे शरीर, मस्तिष्क की सुरक्षा,वृद्धि  (भव) सम्भव हो.
उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः | 
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः || ऋ1/187/3

(पितो)अन्न व्यापक कराने वाला परमात्मन(मयोभू: )सुख की भावना कराने वाले (अद्विषेण्य) किसी से द्वेष न करने वाले, सब को एक जैसा अन्न उपलब्ध करवाने वालेवाले,हमारे लिए (सुशेव:)सुंदर और सुख युक्त (अद्वया:) जिस मे द्वंद्व भाव न रखने वाला (सखा) वह मित्र आप, हे परमात्मन (शिवाभि:) सुखकारिणी वह अन्न (ऊतिभि:)रक्षा , तृप्ति, वृद्धि, तेज (न:) हम लोगो के लिए (शिव:) सुखकारी (उप,आ, चर) समीप अच्छे प्रकार से प्राप्त कराइये,( Zero Food Miles)
तव त्ये  पितो रस रजांस्यनु विष्ठिताः | 
दिवि वाता इव श्रिताः || ऋ1/187/4

(पितो)अन्नव्यापिन परमात्मा (तव ) उस अन्न के बीच जो (रसा: ) स्वादु खट्टा मीठा तीखा चरपरा आदि छह (मीठा,खट्टा,लवण,कटु चरपरा,तिक्त कडुवा और कषाय कसैला) (दिवि) अंतरिक्षा  मे (वाताइव) पवनों के समान (श्रिता) आश्रय को प्राप्त हो रहे हैं (त्ये) वे

(रजांसि)लोकलोकांतरों को  ( अनु, विष्ठिता: ) पीछे प्रविष्ट होते हैं.( Diet should consist of all natural tastes and colors of eatables)
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो | 
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते ||ऋ1/187/5

(पितो) अन्नव्यापौ पालक परमात्मन (ददत)देतेहुवे (तव) आप के जो अन्न वा(त्ये) वे पूर्वोक्त रस हैं (स्वादिष्ट)अतीव स्वादुयुक्त(पितो)पालक अन्नव्यापक परमात्मन (तव)आप के  उस अन्न के सहित  (ते) वे रस (रसानाम)मधुरादि रसों के बीच (स्वाद्मान:)अतीव स्वादु(तुविग्रौवाइव)जिन का प्रबल गला (develops good vocal faculties) उन जीवो के समान (प्रेरते)प्रेरणा देते अर्थात जीवों को प्रीति उत्पन्न कराते हैं.
त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम् | 
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत् ||ऋ1/187/6

(पितो) अन्नव्यापी पालनहार परमेश्वर (तव) जिस आप की  (अवसा) कृपा  से सूर्य (अहिम)मेघ को (अबधीत) हन्ता है (केतुना)विज्ञान से जो (चारु)श्रेष्ठ तर (अकारि)किया जाता है वह (महानाम)महात्मा पूज्य (मन)मन(त्वे)आप में (हितम) धरा है,प्रसन्न है ( Suggesting possible artificial rains)

यददो पितो अजगनविवस्व पर्वतानाम् | 
अत्रा चिन्नो मधो पितोSरं भक्षाय गम्याः ||ऋ1/187/7

(पितो) हमारा पोषण करने वाला  (यत) जब यह (अद:)  अन्न(अजगन) प्राप्त होता है (विवस्व) गुणवान(मघोपितो) स्वादिष्ट अन्न (अत्र,चित)(पर्वतानाम) पर्वतों से उर्वरकता युक्त (न: भक्षायअरमगम्या)  हमारे खाने के लिए उप्लब्ध हो

यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे | 
वातपे पीव  इद्भव || ऋ1/187/8

(वातापे) भौतिक शरीर (अपाम ओषधीनाम्)  तरल जल ओषधी पदार्थ इत्यादि (यतआरिशामहे पीब:) जो हम खाते हैं पी कर (इत भव) स्वस्थ हृष्ट पुष्ट  करें.

यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे | 
वातापे प्पेब इद्भव || ऋ1/187/9

(सोम) बुद्धि पूर्वक (गवाशिर: यवाशिर: भजामहे) गौ दुग्ध यव वनस्पति इत्यादि का भोजन जब हम गृहण करते हैं(ते) से (यत वातापे पीब: इत भव) जो हम पी कर गृहण करते हैं (खाना भी पी कर गृहण होता है)हमारे शरीर को स्वस्थ ह्रष्ट पुष्ट करे.

करम्भ ओषधे भव पीवो वृक्क उदारथिः | 
वातापे पीब इद्भव || ऋ1/187/10

(ओषधे)(करम्भ: ) (उदारथि: )( वृक्क: )(पीब: ) (भव)

( वातापे) (पीब: ) (इत) (भव) जठराग्नि को प्रदीप्त करने और पवन आदि से मुक्ति प्राप्त हो.

तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम | 
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम् ||ऋ1/187/11

(पितो) (तम) (त्वा) (वचोभि: ) (गाव: )(न) (वयम) (हव्या) (सषूदिम)(देवेभ्य: )( सधमादम) (त्वा) (अस्मभ्यम)(सदमाधम) (त्वा) जैसे गौ इत्यादि तृण घास खा कर रस दूध देती हैं उसी प्रकार अन्नदि से श्रेष्ठ भाग ग्रहण करा के आनन्द से सब रहें.

RV2.40

Rishi: Gritasamad, Devta  SomaPushano

 2-40

ऋषिः गृत्समद् भार्गवः शौनकः  देवताः सोमापूषणौः

( Note: The Rishi of this Sukta-Chapter- is Gritsamad- The Intelligent one who wants to bring cheerfulness around. The Devta- Topic- is SomaPushna-  intelligent Nutritional Strategies i.e. the science of Nutrition )

सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।

जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिः ।।  2-40-1

Nutritionists are the generators of ‘wealth’  through Nutritive food. From good food comes  intellect that  generate riches and activities on  the earth and outer space. From its very inception they are the guardians of sustainability of this earth.

अथ सौम्यम् ।अन्नं वै सोमोऽन्नेनैव तत्प्रजापतिः पुनरात्मानमाप्याययतान्नमेनमुपसमावर्ततान्नमनुक्रमात्मनोऽकुरुतान्नेनोऽ एवैष एतदाप्यायतेऽन्नमेनमुपसमावर्तते ऽन्नमनुकमात्मनः कुरुते। शतपथ 3918

तद्यत्सारस्वतमनु भवति  वाग्वै सरस्वत्यन्नं सोमस्तस्माद्यो वाचा पसाम्यन्नादोहैव भवति। शतपथ 3919

 2.  इमाव देवौ जायमानौ जुषन्ते मौ तमांसि गूहतामजुष्टा 

आभ्यामिन्द्रः पक्वामामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुस्रियासु ।।  2-40-2

In their very beginning the gloom of lack of nutrition is dispelled by emergence of milk in young immature females. (Mothers, Cows, and rains from clouds)

3. सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम् 

विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वमथो वृषणा पञ्चरश्मिम् ।।  2-40-3

( Human body is likened to  a chariot with five controlling reins- the five PrAAnas पञ्च प्राण- अपान,व्यान,उदान, समान और मन) Nutrition makes a strong performing  creative  person  ( likened to a वृषभ  a performing bull), who manages the available  resources  to enable movements on this earth and beyond ( Outer Space) ( There is reference to a possible space vehicle equipped with seven wheels or perhaps booster rockets?

4. दिव्यन्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे 

तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे ।।    2-40-4

The resulting activities from good nutrition give rise to desirable and much sought after health, wealth , fame  and progeny on this earth and  for control over outer space.

5. विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति 

सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतनः जयेम ।।   2-40-5

While on one hand it has a role in creating the existing situations in life, on the other hand it is guided  by its wisdom to take measures for  correcting any unbalances, to defeat destructive forces.

6. धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयि सोमो रयिपतिर्दधातु 

अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद् वदेम विदथे सुवीरः ।।

RV 2-40-6

May the supreme nutrition provider पूषा and †ÖפüŸµÖ- Sun, feed our intellects ( Can we see a link with Omega 3 and solar radiation for brain development ?), and  give us  wisdom to have  health wealth, wisdom, progeny and shun unsustainable activities to bring welfare to the entire society.

Vedas on Nutrition  ( Part 2)

1.   तयो रिद् घृतवतत्पयो विप्राः रिहन्ति धीतिभिः।

गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे ।।   1-22-14

घृतवतत्पयो घृत  तत् पयः  Fats and milk bearing those fats गन्धर्वस्य –gandharwas are the mythical characters existing in the space between earthly humans ( untouched by civil reflective  behaviors, emotions, feelings) and heavenly Dewataas. Gandharwas are said to sustain the society by providing life sustaining strategies. गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे  – In the footsteps of civilized high position persons- the intelligent persons partake of fats and fat bearing milk very cautiously.

AV3.24

ऋषि: भृगु , देवता: वनस्पति: प्रजापति:

 वनस्पति: Agriculture produce

1. पयस्वतीरोषधय: पयस्वन्मामकं वच:। अथो पयस्वतीनामा भरेsहं  सहस्रश: ॥ अथर्व 3.24.1

Speak about growing such produce that has nutritional and medicinal qualities, and fill its thousands of bags in warehouses.

उस (अन्न) की (उत्पादन की) बात करो जो पौष्टिक और ओषधि है. सहस्रों बोरों मे उस का भंडारण करो

2. वेदाहं पयस्वन्वतं चकार धान्यं बहु । सम्भृत्वा नाम यो देवस्त्वं वयं हवामहेयोयो अयज्वानो गृहे ॥ अथर्व 3.24.2

Spread knowledge about growing such food in abundant quantities.  Ensure that everybody has equal access to such food like Nature’s bounties. If some persons engage in storage of food (to cause shortages and deprive public access) food stuff from their warehouses should be ordered for public distribution.

उस ज्ञान का विस्तार करो जिस के द्वारा इस प्रकार का उत्तम अन्न बहुलता से उत्पन्न किया जा सके . जिस प्रकार सब को समान रूप से प्रकृति की सब वस्तुएं सम्भरण देवता द्वारा उपलब्ध रहती हैं उसी प्रकार यह अन्न भी सब को समान रूप से उपलब्ध रहना चाहिए. जिन स्वार्थी (अयज्वन जनों – यज्ञ न करने वाले) के घरों में इस अन्न का  भंडार हो उसे सब साधारण जनों को उपलब्ध करो.  

3. इमा या: पञ्च  प्रदिशो मानवी: पञ्च कृष्टय: । वृष्टे शापं नदीरिवेह स्फातिं समावहान्‌ ॥ अथर्व 3.24.3

All sections of society at all times and in all situations should have access to food in the same manner as rivers make available waters after rains.

(पञ्च प्रदेश पञ्च मानव) सब  समाज –ब्राह्मण ,क्षत्री ,वैश्य,शूद्र, निषाद, सब परिस्थितियों दिशाओं पूर्व,पश्चिम, दक्षिण, उत्तर और मध्य स्थान अंतरिक्ष ( पृथ्वी से ऊपर यान इत्यादि)  में इस अन्न की समृद्धि को ऐसे प्राप्त करें जैसे वर्षा के पश्चात नदियां  समान रूप से ज;ल सब को प्रदान करती हैं.

4. उदुत्सं शतधारं सहस्रधारमक्षितम्‌ । एवास्माकेदं धान्यं सहस्रधारमक्षितम्‌ ॥ अथर्व 3.24.4

Like hundreds and thousands of perennial streams this flow of food supply should be perennial and none exhausting.

बारहमासी अविरल बहने वाले सहस्रों झरनों की तरह  यह अन्न के स्रोत भी अविरल और कभी क्षीण न होने वाले हों

5. शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर । कृतस्य कार्यस्य  चेह स्फातिं समावह ॥ अथर्व 3.24.5

Hundreds of Farm hands feed thousands of mouths. Only this kind of public welfare strategy brings progress and prosperity in the society. (Earn by hundred hands and distribute in charity by thousand hands. Only such temperaments sustain a healthy society)

सौ हाथों वाले कृषक जन सहस्र जनों के लिए यह उपलब्ध करें .इस प्रकार की मगल वर्षा से समाज की वृद्धि और उन्नति हो. ( सौ हाथों से कमा और हज़ार हाथों से दान कर ,इसी वृत्ति से समाज का कल्याण होता है )

 

6. तिस्रो मात्रा गन्धर्वाणां चतस्रो गृहपत्न्या: । तासां या स्फातिमत्तमा तया त्वाभि मृशामसि ॥ अथर्व 3.24.6

Divide the revenues from Food production into seven parts. Three parts should be devoted to education, research and public services, four parts should be the share of housewives that run the households, if any surplus is conceived  the eighth part shall go to enrich the nation to build its strengthen.

इस उत्पादन के तीन भाग शिक्षा कार्य कौशल और अनुसंधान के लिए प्रयोग में लाए जाएं, चार भाग गृह पत्नियों को परिवार के पालन हेतु उपलब्ध होना चाहिए. यदि कुछ अधिक उपलब्धि हो तो आठवां भाग राष्ट्र को उन्नत बनाने में प्रयोग किया जाए.

7. उपोहश्च समूहश्च क्षत्तारौ ते प्रजापते । ताविहा वहतां स्फातिं बहुं भूमानमक्षितं ॥अथर्व3.24.7

Farmers that produce the food and administrator that control utilization of the farmers’ bounties are like the two wheel of the carriage that takes a nation forward.  Their coordinated efforts can ensure that food supplies are always available in right quantities. 

खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले और उस से  प्राप्त धन का सदुपयोग करने वाले दो समूह इस समाज को सुचारु रूप से चलाने वाले दो सारथी हैं.

वे दोनों समृद्धि को लाएं, हमारा अन्न विपुल हो, सदैव वर्द्धनशील हो और कभी समाप्त न हो.          

Gambling & Vedas

dice and mahabharat

Gambling & Vedas

 RV 10.34

ऋ 10.34

प्रावेषा मा बृहतो मादयंति प्रवातेजा इरिणे वर्वृताना: !

सोमस्येव मौजवतस्य भक्षो विभीदको जागृविर्मह्यमच्छान् !! ऋ10/34/1

Rolling of dice on the board attract me like rolling of water down the desert . I get drunk like imbibing sweet wine at the sight of these rolling dice. These dice though made of विभीतक – Terminalia Belerica बहेडा – wood or seeds, are indeed alive and indeed speak to me and lead me astray.

 

न मा मिमेथ न जिहीळ एषा शिवा सखिभ्य उत मह्यमासीत्‌ |
अक्षस्याहमेकपरस्य हेतोरनुव्रतामप जायामरोधम्‌ || ऋ10.34.2

Here is my wife who never treats me with disrespect, nor shows her being ashamed of my ugly behavior, has been a well wisher  and a great help to me and my family/friends. I have   even abandoned such a loving wife, for love these Dice.
द्वेष्टि श्वश्रूरप जाया रुणद्धि न नाथितो विन्दते मर्डितारम |
अश्वस्येव जरतो वस्न्यस्य नाहं विन्दामि कितवस्य भोगम || ऋ10.34.3

Even his wife deserts a gambler. Even his mother in law  despises him.  Even as he begs for  no body lends him any help. A gambler becomes useless like an old horse, and receives neither comfort nor respect.
अन्ये जायां परि मृशन्त्यस्य यस्यागृधद्वेदने वाज्यक्षः |
पिता माता भ्रातर एनमाहुर्न जानीमो नयता बद्धमेतम || ऋ10.34.4

When the covetous eyes of Dice corner the wealth of a gambler, the winners drag his wife by her hair, and even the close relations of the gambler stand as mute witness to the spectacle.
यदादीध्ये न दविषाण्येभिः परायद्भ्योSव हीये सखिभ्यः |
न्युप्ताश्च बभ्रवो वाचमक्रतँ  एमीदेषां निष्कृतं जारिणीव || ऋ10.34.5

When I make a resolution to desist from gambling in future, my friends taunt me. And these rolling multicolored Dice become so irresistible that I run to them like an adulterous woman.
सभामेति कितवः पृच्छमानो जेष्यामीति तन्वाशूशुजानः |
अक्षासो अस्य वि तिरन्ति कामं परतिदीव्ने दधत आ कृतानि ||  ऋ10.34.6

An able bodied person covets  the wealth of a rich man and enters the casino  to win attracted by the  stacked tokens plied in front of his opponent.
अक्षास इदङ्‌कुशिनो नितोदिनो निकृत्वानस्तपनास्तापयिष्णवः |
कुमारदेष्णा जयतः पुनर्हणो मध्वासम्पृक्ताः कितवस्य बर्हणा ||ऋ10.34.7

For the loser these Dice  act like sharp weapons giving immense pain like those from physical injuries. On loss of everything even the members of his family suffer great discomfort. For the winner these Dice bring good news like the birth of his son, but the looser is completely ruined.
त्रिपञ्चाशः क्रीळति व्रात एषां देव इव सविता सत्यधर्मा |
उग्रस्य चिन्मन्यवे ना नमन्ते राजा चिदेभ्योनम इत कर्णोति || ऋ10.34.8

The dice play their own independent game and are a law un to themselves. They bow not before wrath of the mighty . Even King pays them homage.

नीचा वर्तन्त उपरि स्फुरन्त्यहस्तासो हस्तवन्तं सहन्ते |
दिव्या अङ्‌गारा इरिणे नयुप्ताः शीताः सन्तो हर्दयं निर्दहन्ति || ऋ10.34.9

They jump up and down , without any hands they overpower.  They are cold to touch but for the loser they are hot like burning ambers.
जाया तप्यते कितवस्य हीना माता पुत्रस्य चरतः क्व स्वित |
ऋणावा बिभ्यद धनमिच्छमानोSन्येषामस्तमुप नक्तमेति ||R10.34.10

The gamester is abandoned by his family. In debt ever in  fear he wanders, Anxious for wealth , he enters strange households at night to plunder.
स्त्रियं दृष्ट्वाय कितवं ततापा Sन्येषां जायांसुकृतं च योनिम |
पूर्वाह्णे अश्वान युजुजे हि बभ्रून्‌ त्सो अग्नेरन्ते वृषलः पपाद || ऋ10.34.11

He suffers pain at seeing happy households and women folk. But in the afternoon he again reverts to the game of dice, and is reduced in  penury to warm himself in the cold of night , by open fire.
यो वः सेनानीर्महतो गणस्य राजा वरातस्य परथमोबभूव |
तस्मै कृणोमि न धना रुणध्मि दशाहं  प्राचीस्तदृतं वदामि || ऋ10.34.12

He raises his empty hands in salutation of the dice and prays to the dice for their mercy  to win in the game.
अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः |
तत्र गावः कितव तत्र जाया तन्मे विचष्टे सवितायमर्यः || ऋ10.34.13

Vedas give the wise counsel thus: Game of Dice is not for YOU. Perform the divine work of a farmer with family your household with cows, and bounties of nature.  Rejoice in the riches of your labor.
मित्रं कृणुध्वं खलु मृळता नो मा नो घोरेण चरताभि  धृष्णु |
नि वो नु मन्युर्विशतामरातिरन्यो बभ्रूणां प्रसितौ न्वस्तु ||ऋ10.34.14

Gamester now wiser, tells the dice not to entice and bewitch him any more  . He tells the dice to allow him to be friends with himself and bring grace upon his own life.

He asks  the dice to destroy his enemies by holding them under their spell. And tells  the brown seeds to instead   play useful role by their  (medicinal) properties for welfare of society.

Here reference is made to विभीतक – Terminalia Belerica बहेडा – wood or seeds of which the dice used to be made . These brown  herb seeds areबहेड, which are used as dice are instead  put to the excellent medicinal use as essential component of Ayurvedic medicine Triphala. त्रिफला , that consists of हरड, बहेडा, आमला.

Importance of Gotra Parampara

1400 years of inbreeding

According to a Obstetrician at Westmead Hospital more than 60% of children born with intellectual handicap in Sydney are Muslims from the Middle East.
In breeding in the Muslim world – not suprising.
This apparently came from a Lockheed pilot who has had 3 assignments to Saudi Arabia .
During the pilot transition program with the KV-107 and C-130 with Lockheed, we found that most Saudi pilot trainees had very limited night vision, even on the brightest of moon lit nights. Their training retention rate was minimal including maintenance personnel.

Some had dim memories and had to be constantly reminded of things that were told to them the day before. Needless to say, an American, British or any other western instructor gets burned out pretty quick. It actually took Muslim C-130 pilots years before they could fly in the dark safely and then would be reluctant to leave the lights of a city. Ask any Marine, Air Force or Army guy who’s been trying to train Iraqis, and especially Afghans. They will say, “Yep, dumber than homemade dodo”.

Islam is not only a religion, it’s a way of life all the way around. Yet another set of revealing facts about Muslim beliefs and traditions and ways of life. -1400 years of inbreeding.

I found this to be interesting. Didn’t know whether to believe it or not. To research I went to Wikipedia, “Cousin Marriage”, and far down in the article “Genetics”, it seems there is a lot of truth here.

A huge Muslim problem: Inbreeding

Nikolai Sennels is a Danish psychologist who has done extensive research into a little-known problem in the Muslim world: the disastrous results of Muslim inbreeding brought about by the marriage of first-cousins.

This practice, which has been prohibited in the Judeo-Christian tradition since the days of Moses, was sanctioned by Muhammad and has been going on now for 50 generations (1,400 years) in the Muslim world.

This practice of inbreeding will never go away in the Muslim world, since Muhammad is the ultimate example and authority on all matters, including marriage.

The massive inbreeding in Muslim culture may well have done virtually irreversible damage to the Muslim gene pool, including extensive damage to its intelligence, sanity, and health.

According to Sennels, close to half of all Muslims in the world are inbred. In Pakistan , the numbers approach 70%. Even in England, more than half of Pakistani immigrants are married to their first cousins, and in Denmark the number of inbred Pakistani immigrants is around 40%.

The numbers are equally devastating in other important Muslim countries:
67% in Saudi Arabia , 64% in Jordan , and Kuwait , 63% in Sudan , 60% in Iraq , and 54% in the United Arab Emirates and Qatar .

According to the BBC, this Pakistani, Muslim-inspired inbreeding is thought to explain the probability that a British Pakistani family is more than 13 times as likely to have children with recessive genetic disorders. While Pakistanis are responsible for three percent of the births in the UK, they account for 33% of children with genetic birth defects.

The risks of what are called autosomal recessive disorders such as cystic fibrosis and spinal muscular atrophy is 18 times higher and the risk of death due to malformations is 10 times higher.

Other negative consequences of inbreeding include a 100 percent increase in the risk of still births and a 50% increase in the possibility that a child will die during labor.  Lowered intellectual capacity is another devastating consequence of Muslim marriage patterns.

According to Sennels, research shows that children of consanguineous marriages lose 10-16 points off their IQ and that social abilities develop much slower in inbred babies. The risk of having an IQ lower than 70, the official demarcation for being classified as “retarded,” increases by an astonishing 400 percent among children of cousin marriages. (Similar effects were seen in the Pharaonic dynasties in ancient Egypt and in the British royal family, where inbreeding was the norm for a significant period of time.)

In Denmark, non-Western immigrants are more than 300 percent more likely to fail the intelligence test required for entrance into the Danish army.  Sennels says that “the ability to enjoy and produce knowledge and abstract thinking is simply lower in the Islamic world.” He points out that the Arab world translates just 330 books every year, about 20% of what Greece alone does.  In the last 1,200 years of Islam, just 100,000 books have been translated into Arabic, about what Spain does in a single year.

Seven out of 10 Turks have never even read a book.

Sennels points out the difficulties this creates for Muslims seeking to succeed in the West. “A lower IQ, together with a religion that denounces critical thinking, surely makes it harder for many Muslims to have success in our high-tech knowledge societies.”  Only nine Muslims have ever won the Nobel Prize, and five of those were for the “Peace Prize.” According to Nature magazine, Muslim countries produce just 10 percent of the world average when it comes to scientific research measured by articles per million inhabitants.

In Denmark, Sennels’ native country, Muslim children are grossly over represented among children with special needs. One-third of the budget for Danish schools is consumed by special education, and anywhere from 51% to 70% of retarded children with physical handicaps in Copenhagen have an immigrant background. Learning ability is severely affected as well.

Studies indicated that 64% of school children with Arabic parents are still illiterate after 10 years in the Danish school system. The immigrant drop-out rate in Danish high schools is twice that of the native-born.

Mental illness is also a product. The closer the blood relative, the higher the risk of schizophrenic illness. The increased risk of insanity may explain why more than 40% of patients in Denmark ’s biggest ward for clinically insane criminals have an immigrant background.

The U.S. is not immune. According to Sennels, “One study based on 300,000 Americans shows that the majority of Muslims in the USA have a lower income, are less educated, and have worse jobs than the population as a whole.”  Sennels concludes: There is no doubt that the wide spread tradition of first cousin marriages among Muslims has harmed the gene pool among Muslims. Because Muslims’ religious beliefs prohibit marrying non-Muslims and thus prevents them from adding fresh genetic material to their population, the genetic damage done to their gene pool since their prophet allowed first cousin marriages 1,400 years ago are most likely massive. This has produced overwhelming direct and indirect human and societal consequences.

Bottom line: Islam is not simply a benign and morally equivalent alternative to the Judeo-Christian tradition. As Sennels points out, the first and biggest victims of Islam are Muslims.

Simple Judeo-Christian compassion for Muslims and a common-sense desire to protect Western civilization from the ravages of Islam dictate a vigorous opposition to the spread of this dark and dangerous religion. These stark realities must be taken into account when we establish public polices dealing with immigration from Muslim countries and the building of mosques in the U.S.