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गुमराही अल्लाह

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गुमराही अल्लाह

कह निश्चय अल्लाह गुमराह करता है जिसको चाहता है और मार्ग दिखलाता है तर्फ अपनी उस मनुष्य को रुजू करता है।मं0 3। सि0 13। सू0 13।।आ0 27

समी0- जब अल्लाह गुमराह करता है तो खुदा  और शैतान में क्या भेद हुआ ? जब कि शैतान दूसरों को गुमराह अर्थात् बहकाने से बुरा कहाता है तो खुदा  भी वैसा ही काम करने से बुरा, शैतान क्यों नहीं ? और बहकाने के पाप से दोज़खी क्यों नहीं होना चाहिये ?

इसी प्रकार उतारा हमने इस कुरान  को अर्बी में जो पक्ष करेगा तू उनकी इच्छा का पीछे इसके आई तेरे पास विद्या से। बस सिवाय इसके नहीं कि ऊपर तेरे पैग़ाम पहुँचाना  है और ऊपर हमारे है हिसाब लेना।। मं0 3। सि0 13। सू0 13। आ037। 40

समी0-कुरान किधर की ओर से उतारा ? क्या ख़ुदा ऊपर रहता है ? जो यहबात सच्च है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता,क्योंकि ईश्वर सब ठिकाने एकरस व्यापक है। पैग़ाम पहुंचाना हल्कारे का काम है और हल्कारे की आवश्यकता उसी को होती है जो मनुष्यवत् एकदेशी हो  और हिसाब लेना-देना भी मनुष्य का काम है, ईश्वर का नहीं क्योंकि,वह सर्वज्ञ है | यह निश्चय होता हैकि किसी अल्पज्ञ मनुष्य का बनाया कुरान है |

और किया सूर्य चन्द्र को सदैव फिरने वाले।। निश्चय आदमी अवश्यअन्याय और पाप करने वाला है।। मं0 3। सि0 13। सू0 14। आ0 33।34

समी0- क्या चन्द्र-सूर्य सदा फिरते और पृथिवी नहीं फिरती ? जो पृथिवी नहीं फिरे तो कई वर्षों का दिन रात होवे। और जो मनुष्य निश्चय अन्याय और पाप करने वाला है तो कुरान से शिक्षा करना व्यर्थ है, क्योंकि जिनका स्वभाव पाप ही करने का है तो उनमें पुण्यात्मा कभी न होगा और संसार में पुण्यात्मा और पापात्मा सदा दीखते हैं, इसलिये ऐसी बात ईश्वरकृत पुस्तक की नहीं हो सकती |

बस ठीक करूं मैं उसको और फूंक दूं बीच उसके रूह अपनी से, बस गिर पड़ो वास्ते उसके सिजदा करते हुए।। कहा ऐ रब मेरे, इस कारण कि गुमराहकिया तूने मुझको, अवश्य जीनत दूंगा मैं वास्ते उनके बीच पृथिवी के, और गुमराह करूंगा।। मं0 3। सि0 14। सू0 15। आ0 29। 391

समी0 –जो खुदा ने अपनी रूह आदम साहेब में डाली तो वह भी खुदा हुआ और जो वह खुदा न था तो सिजदा अर्थात् नमस्कारादि भक्ति करने में अपना शरीक क्यों किया ? जब शैतान को गुमराह करने वाला खुदा ही है तो वह शैतान का भी शैतान बड़ा भाई गुरु क्यों नहीं ? क्योंकि तुम लोग बहकाने वाले को शैतानमानते हो तो खुदा ने भी शैतान को बहकाया और प्रत्यक्ष शैतान ने कहा कि मैं बहकाऊंगा फिर भी उसको दण्ड देकर क़ैद क्यों न किया ? और मार क्यों नडाला |

छली मुहम्मद

mera neta chor hai

छली  मुहम्मद 

-आरै उस मनुष्य  से अधिक पापी कौन है जो  अल्लाह पर झूठ बाँध  लेता है आरै कहता है कि मरेी ओर  वही की गई  परन्तु वही उसकी ओर नहीं की गई  और जो

कहता है कि में  भी उतारूंगा  कि जैसे अल्लाह उतारता है । म0ं 2। सि0 7। स0ू 6। आ0 93

समी0-इस बात से सिद्ध  होता है कि जब मुहम्मद साहेब कहते थे कि मेरे पास खुदा  की ओर से आयतें आती हैं  तब किसी दूसरे  ने भी महुम्मद साहबे के तुल्य  लीला रची होगी कि मेरे पास भी आयतें उतरती हैं, मुझको भी पैग़म्बर मानो। इसको हठाने और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये मुहम्मद साहेब ने यह उपाय किया होगा |

-अवश्य हमने तुमको उत्पन्न किया, फिर तुम्हारी सूरतें बनाई, फ़रिश्तों से’ कहा कि आदम को सिजदा करो, बस उन्होंने सिजदा किया,परन्तु शैतान सिजदा करने वालों में से न हुआ।। कहा जब मैने तुझे  आज्ञा दी फिर किसने रोका कि तूने  सिजदा न किया, कहा मैं उससे अच्छा हू,तूने मुझको  को आग से आरै उसको मिट्टी से उत्पन्न किया।। कहा बस उसमें से उतर, यह तेरे योग्य नहीं है कि तू उसमें अभिमान करे।। कहा उस दिन तक ढील दे कि कबरों में  से उठाये जावें।। कहा निश्चय तू ढील दिये गयों से है।। कहा बस इसकी कसम है कि तूने मुझको गुमराह किया, अवश्य मैं उनके लिये तेरे  सीधे मार्ग पर बैठूंगा ।। और प्राय तू उनको धन्यवाद  करने वाला न पावेगा।। कहा उससे दुर्दशा के साथ निकल, अवश्य जो कोई उनमें से तेरा पक्ष करेगा तुम सबसे दोज़ख को भरूंगा।। मं0 2। सि0 8। सू0 7। आ011- 183

समी0-अब ध्यान देकर सुनो खुदा और शैतान के झगड़े को। एक फरिश्ता जैसा  कि चपरासी हो, था। वह भी खुदा  से न दबा और खुदा उसके आत्मा को पवित्र न कर सका, फिर ऐसे बाग़ी को जो पापी बनाकर ग़दर करने वाला था उसको खुदा ने छोड़ दिया। खुदा की यह बडी़ भूल है शैतान तो सबको बहकाने वाला और खुदा शैतान को बहकाने वाला होने से यह सिद्धहोता है कि शैतान का भी शैतान खुदा है क्योंकि शैतान प्रत्यक्ष कहता है कि तूने मुझे गमुराह किया। इससे खुदा में पवित्रता भी नहीं पाई जाती और सब बुराइयों का चलाने वाला मूल कारण खुदा हुआ । ऐसा खुदा  मुसलमानों का ही हो सकता है अन्य श्रेष्ठ विद्वानों का नहीं और फरिश्तों से मनुष्यवत वार्तालाप करने से देहधारी अल्पज्ञ न्याय रहित मुसलमानों का खुदा है इसी से विद्वान् लोग इस्लाम के मजहब को प्रसन्न नहीं करते |

क्या क़ुरान विश्वासी शिक्षक हो सकता है ?

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क्या क़ुरान विश्वासी शिक्षित हो सकता है ?

-और वह जो लड़का, बस थे मां बाप उसके ईमान वाले, बस डरे हम यह कि पकड़े उनको सरकशी में और कुफ्र में।। यहाँ तक कि पहुंचा  जगह डूबने सूर्य  की, पाया उसको डूबता था बीच चश्मे कीचड़ के। कहा उननेऐजुलकफ्ररनैननिश्चय याजूजमाजूजफि़साद करने वाले हैं बीच पृथिवी के।। मं0 4। सि0 16। सू018। आ0 80। 88।944

समी0 -भला! यह खुदा  की कितनी बेसमझ है। शंका  से डरा कि लड़के के मां-बाप कहीं मेरे मार्ग से बहका कर उलटे न कर दिये जावें। यह कभी ईश्वर की बात नहीं हो सकती। अब आगे की अविद्या की बात देखिये कि इस किताब का बनाने वाला सूर्य को एक झील में रात्रि को डूबा जानता है, फिर प्रातःकाल निकलता है, भला ! सूर्य तो पृथिवी से बहुत बड़ा है, वह नदी वा झील वा समुद्र में कैसे डूब सकेगा ! इससे यह विदित हुआ कि कुरान के बनाने वाले को भूगोल खगोल की विद्या नहीं थी। जो होती तो ऐसी विरुद्ध बात क्यों लिख देते ? और इस पुस्तक के मानने वालों को भी विद्या नहीं है। जो होती तो ऐसी मिथ्या बातों से युक्त पुस्तक को क्यों मानते ? अब देखिये ख़ुदा का अन्याय ! आप ही पृथिवी का बनाने वाला राजा न्यायाधीश है और याजूजमाजूज को पृथिवी में फ़साद भी करने देता है। यह ईश्वरता की बात से विरुद्ध है। इससे ऐसी पुस्तक को जंगली लोग माना करते हैं, विद्वान् नहीं |

-और याद करो बीच किताब के मर्यम को, जब जा पड़ी लोगों अपनेसे मकान पूर्वी में।। बस पड़ा उनसे उधर पर्दा, बस भेजा हमने रूह अपनी को अर्थात् फ़रिश्ता, बस सूरत पकड़ी वास्ते उसके आदमी पुष्ट की।। कहने लगी निश्चय मैं शरण पकड़ती हूँ रहमान की तुझसे, जो है तू परहेज़गार।। कहने लगा सिवाय इसके नहीं कि मैं भेजा हुआ हूँ मालिक तेरे के से, तो कि दे जाऊं मैं तुझको लड़का पवित्र।। कहा कैसे होगा वास्ते मेरे लड़का नहीं हाथ लगाया मुझ को आदमी ने, नहीं मैं बुरा काम करने वाली।। बस गर्भित हो गई साथ उसके और जा पड़ी साथ उसके मकान दूर अर्थात् जंगल में।। मं0 4। सि0 16। सू0 19। आ016-20। 223

समी0 -अब बुद्धिमान विचार लें कि फ़रिश्ते सब खुदा की रूह हैं तो खुदा से अलग पदार्थ नहीं हो सकते। दूसरा यह अन्याय कि वह मर्यम कुमारी के लड़का होना, किसी का संग करना नहीं चाहती थी।परन्तु खुदा के हुक्म से फ़रिश्ते ने उसको गर्भवती किया, यह न्याय से विरुद्ध बात है। यहाँ अन्य भी असभ्यता की बातें बहुत लिखी हैं उनको लिखना उचित नहीं समझा |

स्त्री और इस्लाम

burqa slaves

स्त्री और इस्लाम

-प्रश्न करते हैं तुझसे रजस्वला को कह वो अपवित्र हैं पृथक् रहो ऋतु समय में उनके समीप मत जाओ जब तक कि वे पवित्र न हों, जब नहा लेवें उनके पास उस स्थान से जाओ खुदा  ने आज्ञा दी।। तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारे लिये खेतियाँ हैं बस जाओ जिस तरह चाहो अपने खेत में।। तुमको अल्लाह लग़ब;बेकार,व्यर्थ शपथ में नहीं पकड़ता।। मं0 1। सि0 2। सू0 2। आ0 222- 2241

समी0-जो यह रजस्वला का स्पर्श संग न करना लिखा है, वह अच्छी बात है। परन्तु जो यह स्त्रियों को खेती के तुल्य लिखा और जैसा जिस तरह से चाहो, जाओ यह मनुष्यों को विषयी करने का कारण है। जो खुदा  बेकार शपथ पर नहीं पकडत़ा तो सब झूठ बोलगें, शपथ तोडंग़े। इससे खुदा झूठ  का पव्रर्तक होगा |

 

घमण्डी अल्लाह

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घमण्डी  अल्लाह

-उन लोगों  का रास्ता कि जिन पर तूने निआमत की।। और उनका मार्ग मत दिखा कि जिनके ऊपर  तूने ग़ज़ब अर्थात् अत्यन्त क्रोध  की दृष्टि की और न गुमराहों का मार्ग हमको दिखा।। मं0 1। सि0 1। सू0 1। आ0 6।7

समी0- जब मुसलमान लोग पूर्वजन्म और पूर्वकृत पाप-पुण्य नहीं मानते तो किन्हीं पर ‘‘निआमत’’ अर्थात् फ़जल वा दया करने और किन्हीं पर न करने से खुदा पक्षपाती हो जायगा, क्योंकि बिना पाप-पुण्य, सुख-दुःख देना केवल अन्याय की बात है। और बिना कारण किसी पर दया और किसी पर क्रोध दृष्टि करना भी स्वभाव से बहिः है। क्योंकि बिना भलाई-बुराई के’ वह दया अथवा क्रोध नहीं कर सकता और जब उनके पूर्व संचित  पुण्य-पाप ही नहीं, तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता | और इस सूरत की टिप्पन पर-‘‘यह सूरः अल्लाह साहेब ने मनुष्यों के मुखसे कहलाई कि सदा इस प्रकार से कहा करें’’, जो यह बात है तो ‘‘अलिफ बे’ आदि अक्षर भी खुदा  ही ने पढ़ाये होंगे जो कहो कि नहीं,तो बिना अक्षर ज्ञान के इस सूरः को कैसे पढ़ सके? क्या कण्ठ ही से बुलाए और बोलते गये ? जो ऐसा है तो सब कुरान  ही कण्ठ से पढ़ाया होगा। इससे एसेा समझना चाहिये कि जिस पस्तक मे पक्षपात की बात पाई जाये वह पस्तक ईश्वर कृत नहीं हो  सकता | जसैा कि अरबी भाषा में  उतारने से अरबबालों का इसका पढऩा सुगम, अन्य भाषा बोलने वालों को कठिन होता है, इसी से खुदा  में पक्षपात आता है। और जैसे परमेश्वर ने सृष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्याय दृष्टि से सब देश भाषाओं से विलक्षण संस्कृत-भाषा कि जो सब देशवालों के लिये एक से परिश्रम से विदित होती है, उसी में वेदों का प्रकाश किया है, करता तो कुछ भी दोष नहीं होता |

-यह पुस्तक कि जिसमें सन्देह नहीं, परहेज़गारों को मार्ग दिखलाती है।।जो कि ईमान लाते हैं साथ ग़ैब ;परोक्ष के, नमाज पढ़ते, और उस वस्तु से जो हमने दी, खर्च करते हैं।। और वे लोग जो उस किताब पर ईमान लाते हैं, जो तेरी ओर’वा तुझसे पहिले उतारी गई, और विश्वास कयामत पर रखते हैं।। ये लोग अपने मालिक की शिक्षा पर हैं और ये ही छुटकारा पानेवाले हैं।। निश्चय जो काफि़र हुए, और उन पर तेरा डराना न डराना समान है, वे ईमान न लावेंगे।।अल्लाह ने उनके दिलों, कानों पर मोहर कर दी और उनकी आखों पर पर्दा है और उनके वास्ते बड़ा अजाब है।। मं1। सि0 1। सूरः2। आ0 2-71

समी0-क्या अपने ही मुख से अपनी किताब की प्रशंसा करना खुदा  की दम्भ की बात नही? जब ‘परहेज़गार’ अर्थात् धार्मिक लोग हैं  वे तो स्वतः सच्चेमार्ग में हैं, और जो झूठे मार्ग पर हैं, उनको यह कुरान मार्ग ही नहीं दिखला सकता फिर किस काम का रहा ? क्या पाप-पुण्य और पुरुषार्थ के विना खुदा अपने ही खजाने से खर्च करने को देता है ? जो देता है तो सबको क्यों नहीं देता ? और मुसलमान लोग परिश्रम क्यों करते हैं ?और जो बाइबिल इन्जील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इन्जील आदि पर ईमान जैसा कुरान पर है, वैसा क्यों नहीं लाते ? और जो लाते हैं तो कुरान का होना किसलिये ? जो कहें कि कुरान में अधिक बातें हैं तो पहिली किताब में लिखना खुदा  भूल गया होगा। और जो नहीं भूला तो कुरान का बनाना निष्प्रयोजन है। और हम देखते हैं तो बाइबल और कुरान की बातें कोई2 न मिलती होंगी, नहीं तो सब मिलती हैं। एक ही पुस्तक जैसा कि वेद है क्यों न बनाया ? क़यामत पर ही विश्वास रखना चाहिये अन्य पर नहीं ? क्या ईसाई और मुसलमान ही खुदा  की शिक्षा पर हैं, उनमें कोई भी पापी नहीं है ? क्या जो ईसाई और मुसलमान अधर्मी हैं, वे भी छुटकारा पावें और दूसरे धर्मात्मा भी न पावें तो बड़े अन्याय और अन्धेर की बात नहीं है ?और क्या जो लोग मुसलमानी मत को न माने  उन्हीं को काफि़र कहना वहएकततर्फीडिगरी नहीं है ? जो परमेश्वर ही ने उनके अन्तःकरण और कानों पर मोहर लगाई और उसी से वे पाप करते हैं तो उनका कुछ भी दोष नहीं। यह दोष खुदा  ही का है। फिर उन पर सुख-दुःख वा पाप-पुण्य नहीं हो सकता, पुनः उनको सज़ा जज़ा क्यों करता है ? क्योंकि उन्होंने पाप वा पुण्य स्वतंत्रता से नहीं किया |

-उनके दिलों  में रोग  है, अल्लाह ने उनको रोग बढ़ा दिया।।मं0 1। सि0 1।सू0 2। आ0 101

समी0- भला, विना अपराध खुदा  ने उनको रोग बढ़ाया, दया न आई, उन बिचारों को बड़ा दुःख हुआ होगा। क्या यह शैतान से बढ़कर शैतानपन का कामनहीं है ? किसी के मन पर मोहर लगाना, किसी को रोग बढ़ाना, यह खुदा  का काम नहीं हो सकता। क्योंकि रोग का बढ़ना अपने पापों से है |

 

विज्ञान और खुदा

 

 

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विज्ञान और खुदा

-चढत़े हैं फरिश्ते और रूह तर्फ़ उसकी वह अज़ाब होगा बीच उस दिन के कि है परिमाण उसका पचास हजा़र वर्ष । जब कि निकलेंगे वर्ष कबरों में से दौडत़े हुए  मानो कि वह बुतों के स्थानों की ओर दौड़ते हैं । म0ं 7। सि0 29। सू0 70। आ0 4। 431

समी0 -यदि पचास हज़ार वर्ष दिन का परिमाण है तो पचास हज़ार वर्ष की रात्रि क्यों नहीं ? यदि उतनी बड़ी रात्रि नहीं है तो उतना बड़ा दिन कभी नहीं हो सकता। क्या पचास हज़ार करोड़ वर्ष तक खुदा फ़रिश्ते और कर्मपत्र वाले खड़े वा बैठे अथवा जागते ही रहेंगे ? यदि ऐसा है तो सब रोगी होकर पुनः मर ही जायेंगे। क्या कबरों से निकल कर खुदा की कचहरी की ओर दौडेग़े ? उनके पास सामान  क़बरों में क्योंकर पहुंचेगे ? और उन विचारों को जो कि पुण्यात्मा वा पापात्मा हैं, इतने समय तक सभी को क़बरों में दौरे सुपुर्द कैद क्यों रक्खा ? और आजकल खुदा की कचहरी बन्द होगी और खुदा तथा फ़रिश्ते निकम्मे बैठे होंगे? अथवा क्या काम करते होंगे ? अपने2  स्थानों में बैठे इधर-उधर घूमते, सोते, नाच तमाशा देखते वा ऐश आराम करते होंगे। ऐसा अन्धेर किसी के राज्य में न होगा। ऐसी2बातों को  सिवाय जंगलियों के दूसरा कौन मानेगा ?

-रहे वे लोग जिन्होंने इमां लाये और उन्होंने अच्छे कर्म किये, वाही जन्नत वाले है, वे सदैव उसी में रहेंगे | सू o 20 | आ o 82 |

समी0 -यदि जीवों को खुदा ने उत्पन्न किया है तो वे नित्य, अमर कभी नहीं रह सकते। फिर बहिश्त में सदा क्योंकर रह सकेंगे ? जो उत्पन्न होता है वह वस्तु अवश्य नष्ट हो जाता है। आसमान को ऊपर तले कैसे बना सकता है ? क्यों कि वह निराकार और विभु पदार्थ है। यदि दूसरी चीज़ का नाम आकाश रखते हो तो भी उसका आकाश नाम रखना व्यर्थ है। यदि ऊपर तले आसमानों को बनाया है तो उन सब के बीच में चाँद सूर्य कभी नहीं रह सकते। जो बीच में रक्खा जाय तो एक ऊपर और एक नीचे का पदार्थ प्रकाशित हो दूसरे से लेकर सब में अंडाकार रहना चाहिये। ऐसा नहीं दीखता, इसलिये यह बात सर्वथा मिथ्या है |

-यह कि मसजिदें वास्ते अल्लाह के हैं, बस मत पुकारो साथ अल्लाहके किसी को।। मं0 7। सि0 29। सू0 72। आ0 18

समी0 -यदि यह बात सत्य है तो मुसलमान लोग ‘‘लाइलाहइल्लिलाःमुहम्मदर्रसूलल्लाः’ इस कलमे में खुदा के साथी मुहम्मद साहेब को क्यों पुकारते हैं ? यह बात कुरान से विरुद्ध है और जो विरुद्ध नहीं करते तो इस कुरान की बातको झूठ करते हैं। जब मसजि़दें खुदा के घर हैं तो मुसलमान महाबुत्परस्त हुए।

क्योंकि जैसे पुरानी, जैनी छोटी सी मूर्ति को ईश्वर का घर मानने से बुत्परस्त ठहरते हैं,ये लोग क्यों नहीं ?

-इकद्दा किया जावेगा सूर्य और चाँद ।। मं0 7। सि0 29। सू0 75। आ0 9

समी0 -भला सूर्य चाँद कभी इकट्ठे हो सकते हैं ? देखिये! यह कितनी बेसमझ की बात है। और सूर्य चाँद ही के इकट्ठे करने में क्या प्रयोजन था ? अन्य सब लोकों को इकट्ठे न करने में क्या युक्ति है ? ऐसी2 असम्भव बातें परमेश्वरकृत कभी हो सकती हैं ? विना अविद्वानों के अन्य किसी विद्वान् की भी नहीं होतीं |

-जब कि सूर्य लपेटा जावे।। और जब कि तारे गदले हो जावें।। औरजब कि पहाड़ चलाये जावें।। और जब आसमान की खाल उतारी जावे।। मं0 7।सि0 30। सू0 81। आ0 1। 2। 3। 11

समी0 -यह बड़ी बेसमझ की बात है कि गोल सूर्यलोक लपेटा जावेगा ? और तारे गदले क्यों कर हो सकेंगे ? और पहाड़ जड़ होने से कैसे चलेंगे ? और आकाश को क्या पशु समझा कि उसकी खाल निकाली जावेगी ? यह बड़ी ही बेसमझ और जंगलीपन की बात है।

-और जब कि आसमान फट जावे।। और जब तारे झड़ जावें। और जब दर्या चीरे जावें और जब कबरें जिलाकर उठाई जावें । मं0 7। सि0 30। सू0 82।आ0 1-4

समी0 -वाह जी कुरान के बनाने वाले फि़लासफ़र ! आकाश को क्यों कर फाड़ सकेगा ? और तारों को कैसे झाड़ सकेगा ? और दर्या क्या लकड़ी है जो चीर डालेगा ? और क़बरें क्या मुर्दे हैं जो जिला सकेगा ? ये सब बातें लड़कों के सदृश हें |

-क़सम है आसमान बुर्जों वाले की।। किन्तु वह कुरान है बड़ा।। बीचलौह महफूज़ के।। मं0 7। सि0 30। सू0 85। आ0 1। 21

समी0 -इस कुरान के बनाने वाले ने भूगोल-खगोल कुछ भी नहीं पढ़ा था। नहीं तो आकाश को किले के समान बुर्जो वाला क्यों कहता ?यदि मेषादि राशियों को बुर्ज कहता है तो अन्य बुर्ज क्यों नहीं ? इसलिये यह बुर्ज नहीं हैं,किन्तु सब तारे लोक हैं। क्या वह  कुरान खुदा के पास है ? यदि यह कुरान उसका किया है तो वहभी विद्या और युक्ति से विरुद्ध अविद्या से अधिक भरा होगा |

-निश्चय वे मकर करते हैं एक मकर।। और मैं भी मकर करता हूं एकमकर।। मं0 7। सि0 30। सू0 86। आ0 15। 16

समी0 -मकर कहते हैं ठगपन को, क्या खुदा भी ठग है ? और क्या चोरी काजबाव चोरी और झूठ का जवाब झूठ है ? क्या कोई चोर भले आदमी के घर में चोरी करे तो क्या भले आदमी को चाहिये कि उसके घर में जा के चोरी करे ? वाह! वाह जी!!  कुरान के बनाने वाले |

-इस तरह खुदा मुर्दों को जिलाता है और तुम को अपनी निशानियां दिखलाता है कि तुम समझो।। मं0 1। सि0 1। सू02। आ0 733

समी0- क्या मुर्दों को खुदा जिलाता था तो अब क्यों नहीं जिलाता ? क्या क़यामत की रात तक क़बरों में पड़े रहेंगे ? आजकल दौरा सुपुर्द हैं ? क्या इतनी ही ईश्वर की निशानियां हें पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि निशानियां नहीं हैं ? क्या संसारमें जो विविध रचना विशेष प्रत्यक्ष दीखती हैं,ये निशानियां कम हैं ?

-निश्चय हमने मूसा को किताब दी और उसके पीछे हम पैग़म्बर को लाये और मरियम के पुत्र ईसा को प्रकट मौजिज़े अर्थात् दैवीशक्ति और सामर्थ्य दिये उसके साथ रूहल्कुद्सरु के, जब तुम्हारे पास उस वस्तु सहित पैग़म्बर आया कि जिसको तुम्हारा जी चाहता नहीं, फिर तुमने अभिमान किया, एक मत को झुठलाया और एक को मार डालते हो।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 871

समी0 -जब कुरान में साक्षी है कि मूसा को किताब दी तो उसका मानना मुसलमानों को आवश्यक हुआ और जो2 उस पुस्तक में दोष हैं वे भी मुसलमानोंके मत में आ गिरे और ‘मौजिज़े’ अर्थात् दैवीशक्ति की बातें सब अन्यथा हैं, भोले भाले मनुष्यों को बहकाने के लिये झूठ-मूठ चला ली हैं, क्योंकि सृष्टिक्रम और विद्या से विरुद्ध सब बातें झूठी ही होती हैं जो उस समय ‘मौजिज़े थे तो इस समय क्यों नहीं ? जो इस समय भी नहीं तो उस समय भी न थे, इसमें कुछ भी सन्देहनहीं |

-और इससे पहिले काफि़रों पर विजय चाहते थे, जो कुछ पहिचाना था जब उनके पास वह आया झट काफि़र हो गये, काफि़रों पर लानत है अल्लाहकी।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ092

समी0 – क्या जैसे तुम अन्य मतवालों को काफि़र कहते हो वैसे वे तुम को काफि़र नहीं कहते हैं ? और उनके मत के ईश्वर की ओर से धिक्कार देते हैं फिर कहो कौन सच्चा और कौन झूठा ? जो विचार कर देखते हैं तो सब मतवालों में झूठ पाया जाता है और जो सच है सो सब में एक सा है, ये सब लड़ाइयां मूर्खता की हैं |

-अल्लाह सूर्य को पूर्व से लाता है बस तू पश्चिम से ले आ, बस जोक़ाफिर था हैरान हुआ, निश्चय अल्लाह पापियों को मार्ग नहीं दिखलाता।।-मं0 1। सि0 3। सू0 2। आ0 258

समी0-देखिये यह अविद्या की बात! सूर्य न पूर्व से पश्चिम और न पश्चिमसे पूर्व कभी आता जाता है, वह तो अपनी परिधि में घूमता रहता है।इससे निश्चितजाना जाता है कि कुरान के कर्ता को न खगोल और न भूगोल विद्या आती थी। जो पापियों को मार्ग नहीं बतलाता तो पुण्यात्माओं के लिये भी मुसलमानों के खुदाकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि धर्मात्मा तो धर्म मार्ग में ही होते हैं।मार्ग तो धर्म से भूले हुए मनुष्यों को बतलाना होता है, सो कर्तव्य के न करने से कुरान के कर्ता की बड़ी भूल है |

-कहा चार जानवरों से ले उनकी सूरत पहिचान रख, फिर हर पहाड़ पर उनमें से एक2 टुकड़ा रख दे, फिर उनको बुला, दौड़ते तेरे पास चले आवेंगे।।-मं0 1। सि0 3। सू0 2। आ0 260

समी0-वाह2 देखो जी! मुसलमानों का खुदा भानमती के समान खेल कर रहा है ! क्या ऐसी ही बातों से खुदा की खुदाई है ? बुद्धिमान लोग ऐसे खुदा को तिलांजलि  देकर दूर रहेंगे और मूर्ख लोग फसेंगे, इससे खुदा की बड़ाई के बदले बुराई उसके पल्ले पड़ेगी |

-जिसको चाहै नीति देता है।। मं0 1। सि0 3। सू0 2। आ0 269

समी0-जब जिसको चाहता है,नीति देता है तो जिसको नहीं चाहता,उसको अनीति देता होगा। यह बात ईश्वरता की नहीं। किन्तु,जो पक्षपात छोड़ सबको नीति का उपदेश करता है,वही ईश्वर और आप्त हो सकता है, अन्य नहीं |

-जिसने तुम्हारे वास्ते पृथिवी बिछौना और आसमान की छत को बनाया।।मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 222

समी0- भला, आसमान छत किसी की हो सकती है? यह अविद्या की बात है। आकाश को छत के समान मानना हाँसी की बात है। यदि किसी प्रकार की पृथिवी को आसमान मानते हों तो उनकी घर की बात है |

 

स्वामी ध्रुवानन्द

Swami Dhruvanand Sarasvati

स्वामी ध्रुवानन्द

डा. अशोक आर्य

गांव पानी जिला मथुरा उतर प्रदेश में आप का जन्म हुआ । आप का नाम धुरेन्द्र था तथा शास्त्री होने पर नाम के साथ शास्त्री लग गया ओर सन १९३९ में राजा उम्मेद सिंह , नरेश शाहपुर ने आप को राजगुरु की उपाधि दी तो आप के नाम के साथ राजगुरु भी जुड गया । इस प्रकार आप का पूरा नाम धुरेन्द्र शास्त्री , राजगुरु बना ।

स्वामी सर्वदानन्द जी ने अलीगट से पच्चीस किलोमीटर दूर काली नदी के तट पर एक सुरम्य स्थान पर गुरुकुल की स्थापना की । इस स्थन का नाम हर्दुआगंज है । वास्तव में यह हरदुआगंज नामक गांव इस गुरुकुल से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर है । इस गांव में ही स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनन्य सेवक मुकन्द सिंह जी निवास करते थे । उनकी सन्तानें अब भी यहीं रहती हैं । स्वामी जी जब भी इधर आते थे तो काली नदी के पुल के पास स्थापित चौकी पर बैटा करते थे । यह चौकी गुरुकुल के मुख्य द्वार के टीक सामने है । आप की शिक्शा मुख्य रुप से इस गुरुकुल मेम, ही हुई ।

आर्य समाज की सेवा का ही परिणाम था कि आप आर्य प्रतिनिधि सभा संयुक्त प्रान्त के प्रधान बने तथा बाद में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के भी अनेक वर्ष्ज तक प्रधान रहे ।  आर्य समाज के आन्दोलनों में आप स्स्दा ही बट चट कर बाग लेते थे । इस कारण ही आप हैदराबाद सत्याग्रह में भी आगे आए तथा इस आन्दो;लन का नेत्रत्व किया ।

आप ने जब संन्यस लिया तो आप को स्वामी ध्रुवानन्द का नाम दिया गया । आप की सम्पादित  एक पुस्तक सन १९३८ इस्वी में शाहपुर से ही प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में विवाह संस्कार के अन्तर्गत ” वरवधू के बोलने योग्य मंत्र ” शीर्षक दिया गया । दिनांक २९ जून १९६५ इस्वी को आप का देहान्त हो गया ।

स्वामी ओमानन्द सरस्वती

image swami omanand ji

स्वामी ओमानन्द सरस्वती

– डा. अशोक आर्य

स्वामी ओमानन्द सरस्वती जी का जन्म गांव नरेला ( दिल्ली ) में दिनाक चैत्र शुक्ला ८ सम्वत १९६७ विक्रमी तदनुसार ९ जून १९११ इस्वी को हुआ । आप के पिता गांव के धनाट्य थे जिनका नाम कनक सिंह था । माता का नाम नान्ही देवी था । आप का नाम भगवान सिंह रखा गया ।

आप ने गांव के ही हाई स्कूल में अपनी शिक्शा आरम्भ की । आरम्भिक शिक्शा पूर्ण कर आप दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कालेज में उच्च शिक्शा के लिए प्रवेश लिया । यहां से आप ने एफ़ ए की उपाधि की परीक्शा उतीर्ण कर देश के स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पडे तथा देश को स्वाधीन कराने के प्रयास में समय लगाने के लिए आप ने आगे की शिक्शा को छोडने का निर्णय लिया ।

अब आप ने नियमित रुप से आर्य समाज के साथ ही साथ कांग्रेस की कार्य योजनाओं का भाग बनकर इन के लिए कार्य आरम्भ कर दिया । आप की पटने की इच्छा अभी पूरी प्रकार से समाप्त न हुई थी , इस कारण आप ने दयानन्द वेद विद्यालय निगम बोध घाट में प्रवेश लिया तथा यहां रहते हुए आप ने संस्क्रत व्याकरण का खूब अध्ययन किया । इतना ही नहीं आप ने गुरुकुल चितौड में प्रवेश ले कर कुछ समय यहां से शास्त्रों का भी अध्ययन किया ।

अब तक आप एक अच्छे शिक्शक के योग्य बन चुके थे । अत: सन १९४२ में आपने गुरुकुल झज्जर में आचार्य पद की नियुक्ति प्राप्त की तथा आप इस संस्था की निरन्तर उन्नति के लिए जुट गये । आप के नेत्रत्व ने इस गुरुकुल ने भरपूर उन्नति की । आप के प्रयत्नों से गुरुकुल झज्जर ने एक महाविद्यालय का रुप लिया तथा देश के उतम गुरुकुलों में स्थान बनाने में सफ़ल हुआ । इतना ही नहीं यह आर्ष शिक्शा का भी उत्तम केन्द्र बन गया । इस मध्य ही आप न जाने कब भगवान सिंह से भगवान देव बन गए किसी को पता हि न चला ।

आप देश के पूर्व वैभव के प्रमाण चुन चुनकर एकत्र करते रह्ते थे । प्राचीन इतिहास तथा पुरातत्व के कार्यों में आप की अत्य दिक रुचि थी । इस कारण ही जब आप इन सिक्कों व कंक्ड – पत्थरों को साफ़ कर रहे होते थे तो लोग आप का मजाक उडाया करते थे किन्तु इस सब के परिणाम स्वरुप गुरुकुल में एक उच्चकोटि का संग्रहालय बन गया है , जिसे देखने के लिए विदेश के लोग भी आते हैं । इस संग्रहालय में कुछ एसी सामग्री भी है , जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं । १९६५ में व १९७१ में जो भारत का पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ , उस सम्बन्ध में जब आप अबोहर आये तथा फ़ाजिलका सैनिकों से मिलने गये तो मैं भी आप के साथ गया । यहां तोपों के अनेक खाली गोले तो आप को भेंट किये ही गये , एक एसा टोप भी भेंट किया गया , जिसके एक ओर से गोली अन्दर जाकर दूसरी ओर से निकल गयी थी किन्तु जिस सैनिक के सिर पर यह टोप था वह पूरी प्रकार से बच गया था । यह सामग्री भी आज इस संग्रहालय की शोभा बना हुआ है । आप का सैनिकों में प्रचार करना एक उपलब्धि थी ।

आप ने १९७० इस्वी में स्वामी सर्वानन्द सरस्वती जी से संन्यास की दीक्शा ली तथा स्वामी ओमानन्द सरस्वती बन गये । आप परोपकारिणी सभा अजमेर के प्रधान रहे तथा सार्वदेशिक सभा के भी । आप ने अनेक देशों में भी आर्य समाज का सन्देश दिया । एसे देशों में यूरोप , अमेरिका , अफ़्रीका , पूर्वी एशिया के अनेक देश सम्मिलित हैं ।

आप एक अच्छे लेखक व सम्पादक भी थे । आप ने आर्य समाज को धरोहर रुप में अनेक पुस्तकें भी दीं । इन में आर्य समाज के बलिदान , स्वप्न्दोष ओर उसकी चिकित्सा, व्यायाम का महत्व,नेत्र रक्शा, भोजन आदि पुस्तकों के अतिरिक्त अपनी विदेश यात्राओं इंग्लैण्ड, नैरौबी , जापान तथा काला पानी का भी उल्लेख किया तथा गुरुकुल पत्रिका सुधारक के सम्पादक भी रहे ।

आप का पुरातत्व के लिए जो प्रेम था उसके कारण आप ने इतिहास, प्राचीन मुद्राओं . प्राचीन सिक्कों , वीर योधेय आदि पर अपने खोज पूर्ण व एक उतम गवेषक के रुप में कई ग्रन्थ दिये । सत्यार्थ प्रकाश को ताम्बे की प्लेटों पर उत्कीर्ण करवा कर यह प्लेटें भी गुरुकुल के संग्रहालय का अंग बना दी गई हैं । अन्त में आर्य समाज का यह योद्धा दिनांक २३ मार्च २००३ इस्वी को इस संसार से विदा हुए ।

स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती

Swami Rameshwaranand Saraswati

स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती 

-डा. अशोक आर्य

स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्ती जी आर्य समाज के तेजस्वी संन्यसी थे । आप उच्चकोटि के वक्ता थे तथा उतम विद्वान व विचारक थे । सन १८९० मे आप का जन्म एक क्रष्क परिवार में हुआ । आप आरम्भ से ही मेधावी होने के साथ ही साथ विरक्त व्रति के थे । आप उच्च शिक्शा न पा सके गांव में ही पाट्शाला की साधारण सी शिक्शा प्राप्त की ।

आरम्भ से ही विरक्ति की धुन के कारण आप शीघ्र ही घर छोड कर चल दिए तथा काशी जा पहुंचे । यहां पर आप ने स्वामी क्रष्णानन्द जी से संन्यास की दीक्शा  ली  । संन्यासी होने पर भी आप कुछ समय पौराणिक विचारों में रहते हुए इस का ही अनुगमन करते रहे किन्तु कुछ समय पश्चात ही आपका झुकाव आर्य समाज की ओर हुआ । आर्य समाज में प्रवेश के साथ ही आप को विद्या उपार्जन की धुन सवार हुई तथा आप गुरुकुल ज्वाला पुर जा पहुंचे तथा आचार्य स्वामी शुद्ध बोध तीर्थ जी से संस्क्रत व्याकरण पटा ।

यहां से आप खुर्जा आए तथा यहां के निवास काल में दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया । इसके पस्चात आप काशी चले गए । काशी में रहते हुए आप ने की शास्त्रों का गहन व विस्त्रत अध्ययन किया । इस प्रकार आपका अधययन का कार्य २१ वर्ष का रहा , जो सन १९३५ इस्वी में पूर्ण किया ।

स्वामी जी ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी खूब भाग लिया । सन १९३९ मे जब हैदराबाद सत्याग्रह का शंखनाद हुआ तो आप इस में भी कूद पडे । इस मध्य आप को ओरंगाबाद की जेल को अपना निवास बनाना पडा । १७ अप्रैल १९३९ को आपने जिला करनाल , हरियाणा के गांव घरौण्डा में गुरुकुल की स्थापना की । आप ने आर्य समाज के अन्य आन्दोलनों में भी बट चट कर भाग लिया । जब पंजाब की कांग्रेस की सर्कार के मुखिया सरदार प्रताप सिंह कैरो ने पंजाब से हिन्दी को समाप्त करने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया तो आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब को हिन्दी रक्शा के लिए एक बहुत विशाल आन्दोलन करना पडा । आप ने इस आन्दोलन में भी खूब भाग लिया तथा पंजाबी सूबा विरूध आन्दोलन में भी आपने बलिदानी कार्य किया ।

आप की देश व धर्म की सेवाओं को देखते हुए लोगों ने आप को सांसद चुन लिया तथा आप लोक सभा के सदस्य भी बने । आप ने अनेक पुस्तकें भी लिखीं , यथा महर्षि दयनन्द ओर राजनीति , महर्षि दयानन्द का योग , संध्या भाष्यम , नमस्ते प्रदीप , महर्षि दयानन्द ओर आर्य समाजी पण्डित , विवाह पद्ध्ति , भ्रमोच्छेदन आदि । देश के इस नि:स्वार्थी तथा निर्भीक वक्ता का ८ मई १९९० इस्वी को निधन हो गया ।

पण्डित प्रकाश वीर शास्त्री

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-डा. अशोक आर्य

आर्य समाज के जो प्रमुख वक्ता हुए, कुशल राजनेता हुए उनमें पं. प्रकाश वीर शास्त्री जी का नाम प्रमुख रुप से लिया जाता है । आप का नाम प्रकाशचन्द्र रखा गया । आप का जन्म गांव रहरा जिला मुरादाबाद , उतर प्रदेश मे हुआ । आप के पिता का नाम श्री दिलीपसिंह त्यागी था , जो आर्य विचारों के थे ।

उस काल का प्रत्येक आर्य परिवार अपनी सन्तान को गुरुकुल की शिक्शा देना चाहता था । इस कारण आप का प्रवेश भी पिता जी ने गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में किया ।  इस गुरुकुल में एक अन्य विद्यार्थी भी आप ही के नाम का होने से आप का नाम बदल कर प्रकाशवीर कर दिया गया । इस गुरुकुल में अपने पुरुषार्थ से आपने विद्याभास्कर तथा शास्त्री की प्रीक्शाएं उतीर्ण कीं । तत्पश्चात आप ने संस्क्रत विषय में आगरा विश्व विद्यालय से एम ए की परीक्शा प्रथम श्रेणी से पास की ।

पण्डित जी स्वामी दयानन्द जी तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे । इस कारण ही आर्य समाज की अस्मिता को बनाए रखने के लिए आपने १९३९ में मात्र १६ वर्ष की आयु में ही हैदराबद के धर्म युद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये ।

आप की आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी , इस कारण आप अपनी शिक्शा पूर्ण करने पर आर्य प्रतिनिधि सभा उतर प्रदेश के माध्यम से उपदेशक स्वरुप कार्य करने लगे । आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में आप का नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया तथा सब स्थानोण से आपके व्याख्य्तान के लिए आप की मांग देश के विभिन्न भागों से होने लगी ।

पंजाब में सरदार प्रताप सिंह कैरो के नेत्रत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने हिन्दी का विनाश करने की योजना बनाई । आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्शा समिति ने सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद १९५८ इस्वी में हो गया । आप ने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्टा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया । इस आन्दोलन ने आप को आर्य समाज का सर्व मान्य नेता बना दिया ।

इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी । इन की स्थिति को सुधारने के लिए आप ने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा लखनउ तथा हैदराबद में इस के दो सम्मेलन भी आयोजित किये । इससे स्पष्ट होता है कि आप अर्योपदेशकों कितने हितैषी थे ।

आप की कीर्ति ने इतना परिवर्तन लिया कि १९५८ इस्वी को आप को लोक सभा का गुड्गम्व्से सदस्य चुन लिया गया । इस प्रकार अब आप न केवल आर्य नेता ही बल्कि देश के नेता बन कर रजनीति में उभरे । १९६२ तथा फ़िर १९६७ में फ़िर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप लोक सभा के लिए चुने गए । एक सांसद के रूप में आप ने आर्य समाज के बहुत से कार्य निकलवाये ।

१९७५ में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन, जो नागपुर में सम्पान्न हुआ , में भी आप ने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में , सम्मेलन मे पधारे आर्यों की एक सबा का आयोजन भी किया । इस सभा में( हिन्दी सम्मेलन में पंजाब के प्रतिनिधि स्वरुप भाग लेने के कारण) मैं भी उपस्थित था , आप के भाव प्रवाह व्याख्यान से जन जन भाव विभोर हो गया ।

आप ने अनेक देशों में भ्रमण किया तथा जहां भी गए, वहां आर्य समाज का सन्देश साथ लेकर गये तथा सर्वत्र आर्य समज के गौरव को बटाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे । जिस आर्य प्रतिनिधि सभा उतर प्रदेश के उपदेशक बनकर आपने कार्य क्शेत्र में कदम बटाया था , उस आर्य प्रतिनिधि सभा उतर प्रदेश के आप अनेक वर्ष तक प्रधान रहे । आप के ही पुरुषार्थ से मेरट, कानपुर तथा वाराणसी में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्बन्धी सम्मेलनों को सफ़लता मिली । इतना ही नहीं आप की योग्यता के कारण सन १९७४ इस्वी में आप को परोपकारिणी सभा का सदस्य मनोनीत किया गया ।

आप का जीवन यात्राओं में ही बीता तथा अन्त समय तक यात्राएं ही करते रहे । अन्त में जयपुर से दिल्ली की ओर आते हुए एक रेल दुघटना हुई । इस रेल गाडी में आप भी यात्रा कर रहे थे । इस दुर्घटना के कारण २३ नवम्बर १९७७ इस्वी को आप की जीवन यात्रा भी पूर्ण हो गई तथा आर्य समाज का यह महान योद्धा हमें सदा के लिए छोड कर चला गया ।